खून की कमी का इलाज

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संसार में सर्वव्यापि एवं सर्वाधिक रोगी संभवतया रक्तहीनता के ही हैं। जब शरीर में हीमोग्लोबिन नामक पदार्थ का स्तर सामान्य स्तर से नीचे गिर जाता है, तब रक्तहीनता की स्थिति बन जाती है। विभिन्न आयु वर्ग में रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा कितनी होनी चाहिए, इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निम्न मानक निर्धारित किए हैं

• 6 माह से 6 वर्ष तक के बच्चे – 11 ग्राम %
• 6 वर्ष से 12 वर्ष आयु के बच्वे -12 ग्राम %
• 12 वर्ष से ऊपर की लड़की/स्त्री – 12 ग्राम %
• गर्भवती महिला – 11 ग्राम % –
• 12 वर्ष से अधिक आयु का लड़का/आदमी – 13 ग्राम %

लाल रक्त कोशिकाएं अस्थिमज्जा में निर्मित होती हैं। इनकी जीवन-अवधि 120 दिन की होती है। तत्पश्यात ये लिवर, स्पलीन आदि (रेटिक्यूलोएंडोथेलियल) अंगों में इकट्ठी होकर विसर्जित हो जाती हैं। लाल रक्त कोशिकाएं हीमोग्लोबिन की गठरी होती हैं। हीमोग्लोबिन की कृत्रिम रचना के लिए आयरन (लौह), फालिक एसिड, विटामिन बी 12 एवं प्रोटीन की आवश्यकता होती है। रक्तहीनता हो सकती है

1. अस्थिमज़्ज़ा में लाल रक्त कोशिकाओं का कम निर्माण होने अथवा निर्माण न होने की स्थिति में (हायपोप्लास्टिक रक्तहीनता),

2. पालन-पोषण एवं आहार में कमी की वजह से (न्यूट्रीशनल),

3. अत्यधिक रक्तस्राव की वजह से,

4. लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने के कारण (हीमोलिटिक)।

अल्प भोजन, खाद्य पदार्थों में लौह की कमी एवं शरीर में लौह की अधिक आवश्यकता के कारण ही रक्तहीनता की स्थिति बनती है। शरीर से किसी भी रूप में (स्त्रियों में मासिक स्राव, बवासीर, खूनी पेचिश, पेट में घाव, मसूड़े से खून बहना, स्त्रियों में बच्चा जनने के बाद अत्यधिक रक्त स्राव होना आदि के कारण) अधिक रक्तस्राव होने पर भी रक्तहीनता प्रकट होने लगती है। इसके अलावा रक्तहीनता का एक मुख्य कारण पेट में कृमि (हुकवार्म) होना है।

खून की कमी का लक्षण

1. कमजोरी, थकान, बदनदर्द

2. जीभ की सूजन, मुंह के किनारों पर दरार, खाना निगलने में तकलीफ होना ।

3. बाद की अवस्था में आहार नाल में जाला पड़ने के कारण सांस लेने में तकलीफ, हाथों के नाखून टेढ़े-मेढ़े, मोटे एवं स्पलीन का आकार बढ़ जाता है। इन लक्षणों के समूह को प्लमरविन्सन अथवा पेटरसन कैली सिंड्रोम कहते हैं।

4. पेरोटिड ग्रंथियों में एवं पैरों में सूजन आ जाती है।

5. जमीन चाटने की आदत (जिओफेजिया) पड़ जाती है।

6. पुरुष हारमोन का स्राव कम होता है एवं लम्बाई छोटी रह जाती है।

7. अप्राकृतिक वस्तुएं, जैसे माचिस की तीलियां आदि खाने की आदत पड़ जाती है। बाल अत्यधिक झड़ने लगते हैं।

खून की कमी दूर करने के उपाय

नवजात शिशुओं में एवं गर्भवती स्त्रियों को लौहयुक्त पदार्थ अधिक लेने चाहिए। दालों में (जैसे में चना आदि), आटे में, सब्जियों में, फलों में, मूंगफली में,

दूध में सभी में लौह होता है। यदि सम्भव हो सकते, तो इन सभी चीजों का नियमित सेवन करना चाहिए।

खून की कमी होमियोपैथिक उपचार

रक्तहीनता की स्थिति में एवं रक्तहीनता से होने वाली अन्य बीमारियों में होमियोपैथिक औषधियां अत्यंत फायदेमंद हैं। प्रमुख औषधियां निम्न हैं – ‘फेरममेट’, ‘चाइना’, ‘नेट्रमम्यूर’, ‘कैल्केरिया फॉस’, ‘आर्सेनिक’,’ टी. एन. टी.’।

फेरम मेटेलिकम : कमजोर, दुबले-पतले युवक, जरा-सा परिश्रम कर लेने पर बदन टूटा हुआ महसूस होना, बोलने से, चलने से, यहां तक कि लगातार देखने तक से परेशानी बढ़ जाती है और अधिक कमजोरी महसूस होने लगती है। चेहरे पर पीलापन, किन्तु परिश्रम करने पर या दर्द वगैरह के लक्षण मिलने पर लाली आ जाना आदि लक्षणों के आधार पर दवा 30 शक्ति में लें। यदि किसी कारणवश रक्तस्राव भी हो रहा हो, तो 30 शक्ति में दवा प्रयोग करनी चाहिए।

नेट्रमम्यूर : रक्तहीनता, अत्यधिक कमजोरी, बदन दर्द, दुर्बलता, आंतों की पाचनशक्ति क्षीण हो जाती है, रोगी को सांत्वना देने पर वह व्यग्र हो उठता है, सुबह होने से लेकर शाम तक सिरदर्द, स्कूल जाने वाले बच्चों में मुंह में सूखापन, जीभ में दर्द, होंठों पर दरार बातचीत करने से, दिमागी काम करने से गर्मी से परेशानी बढ़ जाती है एवं खुली हवा में, ठंडे पानी से नहाने पर, कसे कपड़े पहनने से आराम मिलता है। 200 शक्ति की दवा प्रयोग करनी चाहिए।

इसके अलावा –

• यदि मरीज बिलकुल पीला दिखाई पड़ने लगे और ऐसा महसूस हो कि, शरीर में रक्त है ही नहीं शरीर में तो ‘फॉस्फोरस’, ‘एपिस’ एवं ‘काली कार्ब’ दवाएं बहुपयोगी हैं।

• सम्पूर्ण शरीर में समस्त अंगों की समान दुर्बलता होने पर ‘फॉस्फोरस’ दवा उपयोगी रहती है। साथ ही लिवर, गुर्दे एवं हृदय संबंधी बीमारियों के साथ रक्तहीनता भी हो, तो उक्त दवा प्रभावकारी है।

• आंखों की ऊपरी पलकों पर सूजन के साथ रक्तहीनता हो, तो ‘कालीकार्ब’ दवा उपयोगी होती है।

• यदि आंखों की निचली पलकों पर सूजन अधिक हो, तो ‘एपिस’ दवा उपयोगी रहती है।

• अधेड़ावस्था में, जबकि रक्त प्रवाह अत्यंत अनियमित होता है और रक्तहीनता की स्थिति में, जबकि दिमाग में अचानक रक्त प्रवाह अधिक हो जाने के कारण मूर्छा जैसी स्थिति हो जाती है, तब ‘लेकेसिस’ दवा अत्यंत फायदेमंद रहती है।

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