Homeopathic Remedies For Gallstone In Hindi [ पित्त पथरी का होम्योपैथिक इलाज ]

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कारण – खान-पान के दोष से पित्त-कोष अथवा पित्त-वाहिनी में जब पित्त-रस पत्थर के कण के रूप में परिवर्तित हो जाता है, तब उसे ‘पित्त-पथरी’ कहा जाता है।

लक्षण – पत्थर के कण के रूप में परिवर्तित ये पित्त-कण मटर के दाने के बराबर छोटे अथवा कबूतर के अण्डे के बराबर बड़े, कई आकार-प्रकार के, कई रंगों के तथा संख्या में एक अथवा अधिक पाये जाते हैं । जब तक पथरी पित्त-कोष में रुकी रहती है, तब तक रोगी को किसी विशेष कष्ट का अनुभव नहीं होता । कुछ लोगों के पेट में थोड़ा बहुत दर्द होता है और कुछ को बिल्कुल ही नहीं होता, परन्तु जब पथरी बिल्कुल पित्त-कोष से निकल कर पित्त-वाहिनी नली में पहुँचती है, तब पेट में एक प्रकार का असह्य-दर्द उत्पन्न होकर, रोगी को एकदम ब्याकुल कर देता है। इस भयंकर दर्द का नाम ही ‘पित्त-शूल’ है । यह दर्द दाँयी कोख से आरम्भ होकर चारों ओर-विशेष कर दाँयें कन्धे तथा पीठ तक फैल जाता है। यह दर्द कुछ घण्टों से लेकर कई सप्ताह तक बना रहता है तथा फिर अचानक ही बन्द हो जाता है। इस दर्द के साथ वमन, कामला, श्वास-कष्ट, मूर्छा, ठण्डा पसीना, नाड़ी की कमजोरी तथा हिमांग आदि लक्षण भी प्रकट होते हैं। दर्द के बन्द हो जाने पर सब कष्ट स्वत: ही दूर हो जाते हैं। उस स्थिति में शौच के समय मल को धोते समय यदि पत्थर के कणों का हाथ से स्पर्श हो तो यह समझ लेना चाहिए कि पथरी पेट से बाहर निकल गई है ।

चिकित्सा – इस रोग में निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती हैं :-

कैल्केरिया-कार्ब 30, 200 – डॉ० हयूजेज के मतानुसार यह पित्त-पथरी के शूल को दूर करने वाली श्रेष्ठ औषध है । इस औषध को 15-15 मिनट के अन्तर से देना चाहिए ।

बार्बोरिस बलगेरिस Q – यदि ‘कैल्केरिया-कार्ब’ को 3 घण्टे तक देने के बाद भी दर्द बन्द न हो, तो इस औषध की 20-20 मिनट के अन्तर से 10-20 बूंदें देनी चाहिए अथवा इसे ‘6’ में देना चाहिए ।

कार्डअस मेरियेनस Q – यकृत् में, विशेष कर बाँयी ओर के अदगत अंश में दर्द होने पर इस औषध के मूल-अर्क को 5 से 10 बूँद तक की मात्रा में नित्य 3-3 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए ।

आर्निका 3x, 6 – नवीन-रोग की स्थिति में यदि उपसर्ग कुछ घट जायँ तथा धीमा दर्द विद्यमान हो तो इसे देना हितकर रहता है ।

चायना Q – बीमारी के वेग के समय दर्द उठने से लेकर बन्द होने तक इसे देना लाभकारी रहता है ।

कोलेस्टेरिनम 2, 2x, 3 वि० – डॉ० स्वान के मतानुसार यह पित्त-पथरी के शूल की आश्चर्यजनक औषध है । यदि 2 क्रम में देने की सुविधा न हो तो इसे निम्न-शक्ति में भी दिया जा सकता है । डॉ० बर्नेट इस औषध को रोग की विभिन्न अवस्थाओं में 3x, 3 वि० के रूप में देने की सिफारिश करते हैं ।

मैग्नेशिया फॉस 3x – डॉ० सैण्डर्स तथा डॉ० मिल्स आदि इस औषध को गरम पानी में सेवन कराने तथा लगाने की सलाह देते हैं तथा इसे पित्त-पथरी के शूल में अद्भुत लाभकारी मानते हैं ।

डायस्कोरिया Q – यदि दर्द पित्त कोष को केन्द्र बना कर चारों ओर फैलता हो तथा चलने-फिरने अथवा मुड़ने से आराम का अनुभव होता हो तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए ।

विशेष – इनके अतिरिक्त लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का भी दर्द बन्द करने के लिए प्रयोग किया जाता है :-

चियोनैन्थस Q, हाईड्रैस्टिस Q, (प्रति मात्रा 1 से 10 बूंद तक), जेलसिमियम 1x, चेलिडोनियम 2x, आर्सेनिक 3x, 30, बेलाडोना 3x, लोरेसिरेसस 3 तथा डिजिटेलिस 30 आदि ।

टिप्पणी – शूल का दर्द शीघ्र बन्द हो, मल के साथ पथरी शरीर से बाहर निकल जाय तथा पित्त-कोष में दुबारा पथरी न जम सके – इन बातों पर ध्यान देना चाहिए ।

दुबारा आक्रमण को रोकना

पित्त-पथरी के दुबारा आक्रमण को रोकने के लिए निम्नलिखित उपचार करना चाहिए :-

चायना 6x – इस औषध की 6 गोलियों की मात्रा दिन में 3 तीन बार के हिसाब से कई महीनों तक प्रयोग करनी चाहिए । डॉ० क्लार्क के मतानुसार इस औषध को एक मास तक देते रहने के बाद कुछ दिनों के लिए देना बन्द कर देना चाहिए, तत्पश्चात् फिर सेवन कराना चाहिए।

एक अन्य मतानुसार ‘चायना 6x’ की 6 गोलियाँ नित्य दिन में 2 बार देनी चाहिए तथा जब 10 मात्राएँ रोगी के पेट में पहुँच जाएँ, तब 1 दिन की नागा देकर 6 गोलियों की एक-एक मात्रा तब तक देनी चाहिए, जब तक 10 मात्राएँ समाप्त न हो जाये । फिर क्रम से तीन दिन की नागा देकर और 4-5 दिनों के अन्तर से औषध देनी चाहिए। फिर इसी प्रकार 1 महीने के अन्तर से 1 मात्रा देनी चाहिए । इस विधि से औषध देने पर प्राय: रोगी की पथरी शीघ्र निकल जाती है तथा बाद में पित-कोष में पथरी कभी उत्पन्न नहीं होती, अर्थात रोग जड़ से दूर हो जाता है।

चेलिडोनियम तथा कार्डअस मेरियानस – डॉ० ऐम्बर्स ‘चेलिडोनियम’ तथा डॉ० बौजॉन्सकी ‘कार्डअस’ का प्रयोग करके दुबारा पथरी न होने देने की बात कहते हैं ।

पित्त-पथरी की निश्चित-चिकित्सा

जैतून का तेल – इसे पित्त-पथरी का निश्चित इलाज माना गया है। जैतून का तेल (Olive Oil) को प्रतिदिन आधे पिण्ट की मात्रा में लें । इसमें थोड़ा-सा तेल पीकर उसके तुरन्त बाद ही ऊपर से नींबू का रस पी लें । फिर 3-4 मिनट बाद थोड़ा-सा तेल पीकर पुन: नींबू का रस पी लें । इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा करके आधा पिण्ट जैतून का तेल पी जायँ तथा बीच-बीच में नींबू का रस लेते हुए अन्त में नींबू का रस पीकर ही समाप्त करें। नींबू का रस पीते रहने से तेल हजम होता चला जाता है तथा तेल पीने के कारण जो उल्टी आनी चाहिए, वह नहीं आती । उत्त प्रक्रिया से एक ही दिन में पित्त-पथरी निकल जाने की सम्भावना रहती है । यदि ऐसा न हो तो यह प्रक्रिया 2-3 दिन तक दुहरानी चाहिए। इससे पित्त-पथरी अवश्य निकल जायगी ।

टिप्पणी – पित्त-पथरी की शिकायत 100 में से 10 मनुष्यों को होती हैं और उनमें भी पुरुषों को कम तथा स्त्रियों को अधिक होती हैं । पित्त-पथरी में शूल के आक्रमण के समय रोगी की नाड़ी में कमजोरी, ठण्डा पसीना आना, चेहरे पर पीलापन तथा साँस लेने में कष्ट के लक्षण पाये जाते हैं । वमन के लक्षण पित्त-पथरी की अपेक्षा गुर्दे की पथरी (मूत्र-पथरी) के दर्द में अधिक पाये जाते हैं । मूत्र-पथरी का निर्माण ‘पित्त-कोष’ में नहीं होता, वह गुर्दे में बनती है, अत: मूत्र-पथरी का वर्णन यहाँ नहीं किया गया है।

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2 Comments
  1. keshav verma says

    Olive oil kitna Lena he AK bar me or pure din me total kitna Lena he

    1. Dr G.P.Singh says

      Write your problem.

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