पेशाब में रुकावट का इलाज – पेशाब रुक जाना

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इस पोस्ट में मूत्राशय के भरे रहने पर भी पेशाब का न निकलने का होम्योपैथिक दवा के बारे में जानेंगे।

एकोनाइट 30 – मूत्र के बन्द हो जाने तथा मूत्राशय में पेशाब के भरे रहने पर भी मूत्र न निकलने की दशा में यह औषध लाभ करती है ।

कैन्थरिस 30, 200 – पेशाब करने की तीव्र इच्छा के रहते हुए भी पेशाब न कर पाना, दोनों गुर्दों में जलन के साथ दर्द का दौरा पड़ना, मूत्राशय में जबर्दस्त मरोड़ के साथ मूत्र न आने की भयंकर पीड़ा, कभी केवल रक्त का ही पेशाब आना, बूंद-बूंद पेशाब आना तथा मूत्रेन्द्रिय में भयंकर जलन – इन लक्षणों में इस औषध का प्रयोग हितकर रहता है। इस औषध का रोगी न तो ठण्डा और न गरम कॉफी ही पी सकता है।

एपिस 6, 30 – पेशाब का न निकलना, यदि निकले भी तो पेशाब का आधा हिस्सा एल्ब्यूमिन से भरा होना, लाल रंग का दुर्गन्धित तथा झागदार पेशाब होना एवं कम मात्रा में आना । पेशाब निकलते समय दोनों गुर्दों में तीव्र दर्द, गुर्दों में रक्त-संचय, सूजन तथा डंक मारने जैसा दर्द होना – इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।

लाइकोपोडियम 30, 200 – पेशाब का मूत्राशय में भरे रहना तथा बाहर न निकल पाना, पेशाब की हाजत होने तथा देर तक जोर लगाने के बाद थोड़ा-सा पेशाब करने से पूर्व गुर्दों में दर्द होना तथा पेशाब कर चुकने के बाद दर्द में कमी आना, मूत्र-ग्रन्थि से मूत्राशय तक मूत्र-प्रणाली में दर्द, मूत्र में लाल-रेत के कणों की उपस्थिति, मूत्राशय का शोथ तथा मूत्राशय के निम्न भाग में भार का अनुभव होना-इन सब लक्षणों में यह औषध विशेष लाभ करती है ।

टेरिबिन्थिना 1, 6 – पेशाब बन्द होना, मूत्र-ग्रन्थियों का शोथ, मूत्र-ग्रन्थियों में रक्त-संचय तथा मूत्र-ग्रन्थि (गुर्दे) क्षेत्र के प्राय: सभी रोगों की यह प्रमुख औषध है। मूत्र-ग्रन्थि प्रदेश में हल्का दर्द, जलन, गुर्दे में जलन उठकर मूत्र-प्रणाली तक पहुँचना, पेशाब करते समय जलन और कष्ट तथा पेशाब में एल्ब्यूमिन का निकलना-इन सभी लक्षणों में वह औषध हितकर सिद्ध होती है ।

आर्सेनिक 30, 200 – पेशाब करने की हाजत ही न होना, अथवा पेशाब करने की शक्ति न रहना या पेशाब ही बन्द हो जाना, मूत्राशय के पेशाब से भरे रहने पर भी, उसमें से पेशाब न निकलना, कभी-कभी पेशाब करने की तीव्र इच्छा होने पर भी पेशाब न निकलना । यदि बड़ी कठिनाई से थोड़ा-सा पेशाब निकले भी तो उस समय तीव्र जलन होना, पेशाब बीयर जैसे रंग का गँदला, पस रुधिर मिश्रित तथा सड़ाँध जैसी दुर्गन्धयुक्त होना आदि लक्षणों में लाभकारी है ।

इस औषध का रोगी बहुत परेशान तथा बेचैन रहता हैं, किसी स्थान पर टिक कर बैठ नहीं पाता, इधर-उधर टहलता रहता है, अन्त में जब थक तक बैठ जाता है, तब भी उसकी परेशानी दूर नहीं होती । ठण्ड को बर्दाश्त न कर पाना, कपड़ा लपेटे रहना, गर्मी को पसन्द न करना, आग पर सेंकते रहना, गर्म भोजन की इच्छा तथा फल खाने से तकलीफ बढ़ जाना-ये सब इस औषध के प्रकृति-गत लक्षण हैं। हैजा-रोग में पेशाब बन्द हो जाने पर यह औषध श्रेष्ठ लाभ करती है ।

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