मलेरिया का लक्षण, कारण और होमियोपैथिक उपचार

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मलेरिया से दुनिया भर में पन्द्रह लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। ये आंकड़े अमेरिका की नेशनल एकेडमी आफ साइसेज की ताजा रिपोर्ट में दिए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मलेरिया गर्म देश में अप्रत्याशित रूप से फैल रहा है। यदि इसकी रोकथाम के लिए शीघ्र ही कारगर कदम नहीं उठाए गए, तो यह इसी तेजी से फैलता जाएगा।

मलेरिया के कारण

मलेरिया रोग प्रोटोजोआ परापोषी रोगाणुओं द्वारा होता है, जिनका वाहक मच्छर होता है। ये चार प्रकार के होते हैं –

1. लाज्मोडियम फेल्सीपेरम
2. लाज्मोडियम वाइवेक्स
3. प्लाज्मोडियम ओवेल तथा
4. लाज्मोडियम मलेरियाई

इन चारों के आधार पर ही बुखार चढ़ने एवं उतरने की अवधि में भी अन्तर होता है। भारत में इस प्रोटोजोआ का मुख्य वाहक मादा ‘एनोफिलीज स्टेफेसी’ नामक मच्छर है।

मलेरिया के लक्षण

1. संक्रमित मच्छर के काटने एवं बुखार चढ़ने के बीच 7 से 10 दिन का अंतर रहता है। इस अवधि में रोगी को भूख नहीं लगती, सिरदर्द रहता है और थकावट बनी रहती है।

2. ठंड की अवस्था अथवा शरीर की कंपकंपाहट के कारण रोगी अत्यधिक ठिठुरने लगता है। इसके साथ ही उल्टियां होने लगती हैं, सिरदर्द बना रहता है। इसके बाद बुखार चढ़ना शुरू होता है।

3. रोगी को जलन के साथ अत्यधिक गर्मी अनुभव होती है, सूखी एवं जलती त्वचा। बुखार 104-106°F तक पहुंच जाता है।

4. लगभग 1-2 घंटे बाद अत्यधिक पसीना आना शुरू होता है एवं बुखार कम होने लगता है।

5. बुखार एक निश्चित समयबद्धता के साथ ही परिलक्षित होता है। यह समयबद्धता 12, 24, 48, 72 घंटे हो सकती है। एकातंरा बुखार एक दिन छोड़कर आता है। तिजारी हर तीसरे दिन और चौथरी चौथे दिन और कभी-कभी हर सप्ताह में एक दिन।

मलेरिया का जांच

रक्त की जांच से मलेरिया रोगाणुओं का पता चल जाता है।

मलेरिया का होमियोपैथिक उपचार

होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति से मलेरिया रोग का सफल इलाज संभव है। मलेरिया रोग की प्रमुख होमियोपैथिक औषधियां निम्न हैं –

‘एल्सटोनिया’, ‘अमोनियमपिक राटा’, ‘कारनस’, ‘यूपेटोरियम पर्फ’, ‘इपिकॉक’, ‘नेट्रमम्यूर’, ‘सिड्रान’, ‘नक्सवोमिका’, ‘आर्सेनिक एल्बम’, ‘सल्फर’।

यूपेटोरियम पर्फ : जब मलेरिया महामारी के रूप में फैला हो, तो यह दवा ठीक कार्य करती है।

नेट्रमम्यूर : रक्त की लाल कोशिकाओं के नाश को रोकने वाली श्रेष्ठ दवा है।

आर्सेनिक एल्बम : बुखार चढ़ने का समय मध्य दोपहर एवं मध्य रात्रि (12 से 2 बजे के बीच) थकान, बेचैनी, लगातार करवट बदलना, शरीर में प्रदाह, पेट में जलन और पसीने का अभाव, घबराहट, तेज बुखार, मृत्यु भय, लिवर, स्पलीन का बढ़ जाना, किडनी में खराबी के कारण पेट व मुंह पर सूजन, पेशाब में एल्बूमिन, पित्त की उल्टी होना, रक्तहीनता आदि होने पर 30 शक्ति में दवा खानी चाहिए।

यूकेलिप्टस : मूल अर्क में 15-20 बूंद दिन में तीन बार पिलाने पर बुखार उतरता है।

मलेरिया से बचाव

1. मच्छरों से बचाव आवश्यक है।
2. गांवों, शहरों में पानी इकट्टा नहीं होने देना चाहिए।
3. पोखर, नालों इत्यादि में नगरपालिका की सहायता से मच्छरमार दवा का छिड़काव कराना चाहिए।
4. घरों में मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए।

मशरूम खाना छोड़ें

कभी भी जंगली मशरूम न खाएं। खाने योग्य किस्मों से विषैली किस्मों को अलग करने में विशेषज्ञों को भी मुश्किल हो सकती है। यदि आपका अनुमान गलत हुआ तो आप किडनी के तीक्ष्ण या और बुरे रोग से पीड़ित हो सकते हैं।

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