हमारा भोजन और स्वास्थ्य

868

हमारा उत्तम भोजन वही है जो शीघ्रपाची (जल्दी हज्म होने वाला) हो और उसमें प्रोटीन, वसा, कार्बोज, लवण, जल इत्यादि बलवर्धक, शक्ति स्थिर रखने वाले पौष्टिक तत्त्व और रोगों से मुकाबला करने वाले विटामिन उचित मात्रा में सम्मिलित हों । जा मनुष्य शाकाहारी हैं और माँस, मछली तथा अण्डे आदि से परहेज करते हैं, उन लोगों को इनके स्थान पर दूध, दही, घी, और मक्खन की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए । मेहनत मजदूरी करने वाले (किसान और मजदूरों को) कार्बोज की और बच्चों, गर्भवती एवं प्रसूताओं को अपने भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए ।

आदि मानव पशुओं के समान सब चीजें कच्ची ही खाता था ! खाना पकाकर खाना आधुनिक सभ्यता की देन समझा जाता है। जब से मनुष्य ने आग बनाना सीखा है, तभी से वह अपने भोजन को पकाकर खाने लगा है । सभ्यता के साथ ही साथ पाक कला का भी निरन्तर विकास होता चला आया है। भोजन को पकाने से हमें बहुत से लाभ और कुछ हानियाँ भी होती हैं जिनका विवरण हम नीचे दे रहे हैं।

लाभ – भोजन को पकाने से खाने की चीजों से रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु गर्मी पाकर नष्ट हो जाते हैं । पका हुआ भोजन शीघ्र ही पच जाता है । पकाने से भोजन स्वादिष्ट हो जाता है और आसानी से चबाने योग्य बन जाता है । अनाजों के श्वेतसार (स्टार्च) जिन पर हमारे पाचक रसों का कोई प्रभाव नहीं होता, पकाने से उस श्वेतसार के पर्दे फट जाते हैं, जिससे वह पचने योग्य बन जाता है। पका हुआ भोजन गरम होता है और गरम भोजन पाचक अंगों पर उतना बोझ नहीं डालता है जितना कि कच्चा डालता है । यही कारण है कि पका हुआ भोजन शीघ्र पच जाता है, कच्चे या बिना पके पदार्थ खाने से हमारा शरीर आमतौर पर रोगी हो जाया करता है । पके हुए पदार्थ हमारे शरीर की शक्ति भी अधिक प्रदान करते हैं क्योंकि पकाकर हम भोजन को कई प्रकार का बना सकते हैं । कई प्रकार का बनाया हुआ भोजन स्वादिष्ट, रुचिकर और ग्राह्य होता है। पके हुए भोजन को हम अधिक देर (समय) तक रख सकते हैं। (जैसे-कच्चा दूध जल्दी बिगड़ जाता है किन्तु पका हुआ दूध उतनी जल्दी खराब नहीं होता है। माँस आदि के न गलने और घुलने वाले अंश पकाने से घुलनशील बन जाते हैं।

नोट – भोजन पकाने से सम्बन्धित हालांकि नियम तो बहुत अधिक हैं जैसे – भोजन पकाने का स्थान, भोजन पकाने के बर्तन, खाना खाने के बर्तन, खाना सुरक्षित रखने के बरतनों का साफ और स्वच्छ (कीटाणु रहित) होना बहुत ही आवश्यक है और इसी प्रकार बनाने की चीजें (खाद्य पदार्थ) स्वच्छ (अच्छे और बढिया) होने चाहिए। सस्ते, गन्दे, बुरे, धुने हुए, गले-सड़े द्रव्यों से पूर्णत: परहेज करना चाहिए । किन्तु इन समस्त बातों के अतिरिक्त भोजन को न तो अधिक पकाना चाहिए और न ही उसे कच्चा खाना चाहिए क्योंकि भोजन को अधिक पकाने से उसके विटामिन नष्ट हो जाते हैं। ये विटामिन 100 डिग्री तापक्रम ही सह सकते हैं। एक मुख्य बात और है कि भोजन बनाने में भारी पानी का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसके कारण सब्जी बहुत देर में गलती है और ईधन भी बहुत अधिक लगता है । इसलिए भोजन बनाने में सदा स्वच्छ हल्का पानी का ही प्रयोग करना चाहिए । भोजन पकाते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि भोजन के परस्पर विरोधी चीजों का मेल न हो पाये – जैसे दूध और मछली, दूध और मांस, दही और घी, घी और शहद, उड़द की दाल और दही आदि को आपस में मिलाना अनुचित है, इस प्रकार की उल्टी-सीधी खाद्य चीजों को मिला देने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं ।

यहाँ यह कुछ तथ्य भी ध्यान में रखने आवश्यक हैं जैसे – जल में कोई चीज उबली हो तो उस जल को बेकार समझकर फेंकना नहीं चाहिए, बल्कि उसे या तो उबलने वाली वस्तु में ही सूखने दें अथवा किसी दूसरी वस्तु के साथ इसका उपयोग कर लें । ऐसा करने से भोजन के तत्त्वों से आपको हाथ धोना नहीं पडेगा । इसी प्रकार सब्जी इत्यादि को काटने के बाद कदापि मत धोइये बल्कि इन्हें काटने से पूर्व ही धो ली जाए ताकि आपको उसके पौष्टिक तत्व भरपूर मिल सकें । इसी प्रकार चावलों में जल मात्र उतना ही डालना चाहिए जितना कि उनमें खप सके चावलों के अधिक पानी (मांड) को फेंकना अनुचित है। जहाँ तक भी सम्भव हो सके शाक-भाजियों को अधिक न छीलें क्योंकि सब्जियों के छिलकों में पोषक तत्व खूब अधिक मात्रा में रहते हैं। दूध को खुले वातावरण में न उबालें, क्योंकि दूध को खुली कड़ाही में हवा की उपस्थिति में तेज आँच पर अधिक देर तक उबालने से उसके विटामिन ‘ए’ और विटामिन ‘सी’ नष्ट हो जाते हैं क्योंकि यह तत्व वायु की ऑक्सीजन से मिल जाते हैं। यदि ढके हुए बर्तन में (जहाँ हवा न आ सके) में दूध उबाला जाये तो उसके विटामिन नष्ट होने से बच जाते हैं ।

वैज्ञानिकों का कथन है कि भोजन को जितना प्राकृतिक रूप में खाया जाये उतना ही अधिक लाभप्रद, स्वास्थ्यवर्द्धक होता है । जैसे – ईख (गन्ने) का ताजा रस जितना अधिक लाभप्रद है, गुड़ उससे कम, शक्कर और भी उससे कम तथा सफेद बूरा अथवा सफेद चीनी सबसे ही कम लाभप्रद होती है । क्योंकि बूरा या सफेद चीनी में कार्बोज के अतिरिक्त अन्य सभी पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं । इसी प्रकार अण्डे की कच्चा खाने में जितना अधिक लाभ है, हल्का उबालकर (Half Boiled) में उससे कम और उबालकर खाने में और भी कम तथा तलकर या भूनकर खाने में सबसे ही कम मानव शरीर को लाभ प्राप्त होता है । इसके अतिरिक्त भोजन पकाने से कोई उपयोगी और आवश्यक अंश जैसे – विटामिन ‘ए’ और विटामिन ‘सी’ इत्यादि नष्ट हो जाते हैं। सब्जियों को उबालने से उपयोगी नमक और विटामिन पानी में घुल जाते हैं ।

भोजन के मुख्य दो भेद

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए रक्त में 80% क्षारपन और 20% अम्लता होनी चाहिए । इसीलिए रक्त में खारापन (Alkaline) होता है अत: हमें रक्त को संतुलित बनाये रखना चाहिए ताकि हम निरोग बने रहें । यदि हमारे रक्त में अम्लता 20% से अधिक हो जाये तो हमारे शरीर में विकार अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं और हम जो भोजन लेते हैं वह अम्लतायुक्त ही अधिक होता है और इसी के फलस्वरूप हम रोगी हो जाते हैं ।

कुछ खनिज लवण

अम्लता देने वाले खनिज लवण – फॉस्फोरस, सल्फर, सिलीकोन, क्लोरीन, फ्लोरीन, आयोडीन और ब्रोमीन ।

क्षारपन देने वाले खनिज लवण – पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, लोहा, मैगनीज, एलुमिनियम, तांबा, लिथ्यूम, जिंक और निकल ।

हमारे भोजन में क्षार एवं अम्लीय प्रधान वस्तुऐं

अम्लता प्रधान वस्तुऐं – समस्त प्रकार के माँस, मछली, अण्डे, अनाज, डबलरोटी, सफेद आटे की चपाती, लुचई, पूरी, कचौड़ी, बादाम को छोड़कर सभी मेवे (मूंगफली, नारियल, पिस्ता, अखरोट, काजू आदि), सफेद चीनी, मैदे की बनी समस्त चीजें, मिठाइयाँ, चाकलेट, मीठी गोलियाँ, वनस्पति घी, शराब, शर्बत, लैमन, सोड़ा वाटर, उबाला हुआ दूध, दूध की खीर, फिरनी आदि दूध से निर्मित वस्तुएँ, मटर, सेम, लीबिया, बेर, आलू, बुखारा, छिलका रहित दालें, चाय, कॉफी और कहवे में सबसे अधिक अम्लता पाई जाती है ।

क्षार प्रधान वस्तुऐं – हरी पत्तेदार सब्जियाँ, लौकी, बन्दगोभी, चुकन्दर, गाजर, फूलगोभी, खीरा, ककड़ी, सलाद, प्याज, हरी मटर, आलू, मूली, शलजम, टमाटर, समस्त प्रकार के फल (बेर और आलू बुखारे को छोड़कर) सेब, नाशपाती, आडू, चैरी, तरबूज, खरबूजा, पूरा पका केला, अंगूर, सूखे फल, नीबू का रस, सन्तरा, कच्चा दूध, मुन्नका, किशमिश, अंजीर, मटर और सेम को छोड़कर सभी तरकारियाँ, मक्खन, अण्डे का पीला हिस्सा अर्थात् जर्दी, चोकरदार आटा, (बाजरा, ज्वार, अन्न और दालों के छिलके जब नहीं निकाले तो वे भी खारापन उत्पन्न करने वाले भोजन होते हैं) जापान के सोयाबीन में भी काफी मात्रा में खारापन होता है ।

भोजन की माप

भोजन से हमें दो लाभ होते है । (1) एक तो यह हमें बलवान बनाता है। (2) दूसरे यह हमारे शरीर में उष्णता उत्पन्न करके हमें प्रत्येक काम करने की ताकत प्रदान करता है ।

भोजन की माप का अर्थ यह नहीं है कि हम उसको नापकर अथवा तोलकर खायें, बल्कि वैज्ञानिक विधि के अनुसार ‘ताप की माप’ कैलोरी (Calorie) से की जाती है । भोजन से जो शक्ति प्राप्त की जाती है वह उष्ण संख्या में बताई जाती है, इसी को (कैलोरी) कहते हैं । प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से लगभग बराबर ही कैलोरी प्राप्त होती है किन्तु प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट की वनस्पति तेल या घी से दुगुनी कैलोरी प्राप्त होती है। प्रत्येक व्यक्ति को उसकी शारीरिक और मानसिक क्रियाओं के अनुसार अलग-अलग मात्राओं में कैलोरियों की आवश्यकता होती है । किसको कितनी कैलोरियों की आवश्यकता है यह निम्न तालिका में देखिए:

अवस्थानुसार औसत कैलोरी

श्रेणीआयुमानकितनी कैलोरी चाहिए
वयस्क मनुष्य14 वर्ष से ऊपर2600
वयस्क स्त्री14 वर्ष से ऊपर2100
बालक12-13 वर्ष2000
बालक10-11 वर्ष1800
बालक8-9 वर्ष1600
शिशु6-7 वर्ष1300
शिशु4-5 वर्ष1000

 

विभिन्न खाद्य वर्गों से प्राप्त कैलोरी की मात्रा

खाद्य वर्गप्रति 50 ग्राम में प्राप्त कैलोरी
घी500
गिरी300
चीनी200
अनाज200
दालें190
अण्डे100
कन्द40 से 90
दूध50
ताजा सब्जी और फल35

 

नोट – भोजन की माप का निर्धारण करते समय हमें लिंग (पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग) उसकी आयु, श्रम (काम का ढंग) और जलवायु (उसके रहने का स्थान) इत्यादि को भी ध्यान में रखना चाहिए । स्त्रियों को प्राय: पुरुषों की अपेक्षा 1/10 कम भोजन की आवश्यकता होती है, क्योंकि वे पुरुषों की अपेक्षा कम श्रम करती हैं किन्तु गर्भवती स्त्रियों और प्रसूताओं को अधिक पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है । ‘आयु’ के विचार से हमें बच्चों को चिकने पदार्थ अधिक मात्रा में देने चाहिए, ताकि उनके शरीर के समस्त तन्तु ठीक प्रकार से बढ़ते रहें। किन्तु बूढ़े (बड़ी आयु के लोगों) को चिकनाई कम मात्रा में दें। कठोर शारीरिक श्रम करने वाले मनुष्यों को, हल्का-फुल्का श्रम करने वाले मनुष्यों की अपेक्षा उष्णता उत्पादक पदार्थों की अधिक आवश्यकता होती है, उनको 4-5 हजार कैलोरी शक्ति प्रदान करने वाला भोजन मिलना चाहिए । मानसिक श्रम करने वाले मनुष्यों को सुपाच्य और हल्का भोजन करना चाहिए, जिससे उनके पाचक अंगों पर अनावश्यक दबाव न पड़े। अन्त में जलवायु पर भी ध्यान देना आवश्यक है – ठण्डे देशों में गरम देशों की अपेक्षा चिकनाई की अधिक आवश्यकता होती है। इसलिए हम लोग प्राय: जाड़ों में गर्मियों की अपेक्षा अधिक पौष्टिक भोजन कर सकते हैं ।

Ask A Doctor

किसी भी रोग को ठीक करने के लिए आप हमारे सुयोग्य होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। डॉक्टर का consultancy fee 200 रूपए है। Fee के भुगतान करने के बाद आपसे रोग और उसके लक्षण के बारे में पुछा जायेगा और उसके आधार पर आपको दवा का नाम और दवा लेने की विधि बताई जाएगी। पेमेंट आप Paytm या डेबिट कार्ड से कर सकते हैं। इसके लिए आप इस व्हाट्सएप्प नंबर पे सम्पर्क करें - +919006242658 सम्पूर्ण जानकारी के लिए लिंक पे क्लिक करें।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.

पुराने रोग के इलाज के लिए संपर्क करें