चायना या सिनकोना ( China Or Cinchona )

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लक्षण तथा मुख्य-रोगलक्षणों में कमी
होम्योपैथी का आविष्कार सिनकोना से हुआजोर से दबाने से रोगी को आराम
स्राव जाने के कारण अत्यधिक दुर्बलता – रक्तस्राव, प्रदर, अतिसार, वीर्यपात आदि से उत्पन्न होने वाली दुर्बलता को दूर करता है।गर्मी से आराम अनुभव करना
सविराम ज्वर (intermittent fever)लक्षणों में वृद्धि
ज्वर में चायना, युपेटोरियम, आर्स, कैपसिकम, साइमेक्स की तुलनाकिसी रस के स्राव से रोग में वृद्धि
सम्पूर्ण पेट में वायु भर जाना, डकार से आराम न होनास्पर्श न सह सकना
स्पर्श न सह सकना, परन्तु जोर से दबाने से सह सकनाठंड को न सह सकना
किसी विचार से छुटकारा न पा सकनादूध तथा फलों से रोग होना

(1) होम्योपैथी का आविष्कार सिनकोना से हुआ – हनीमैन ने होम्योपैथी का आविष्कार कैसे किया इसके विषय में वे लिखते हैं : “मैंने पहले-पहल 1790 में अपने ऊपर सिनकोना की छाल का यह देखने के लिये परीक्षण किया कि इसका सविराम-ज्वर (Intermittent fever) से क्या संबंध है। इस परीक्षण से मेरी आंखों के सामने उस उष:काल का प्रकाश हुआ जिसका तेज उत्तरोत्तर बढ़ता गया, बढ़ते-बढ़ते वह दिन आ गया जब चिकित्सा-जगत् में एक नवीन चिकित्सा-प्रणाली का जन्म हुआ। अपने ऊपर परीक्षणों से स्पष्ट हो गया कि औषधि स्वस्थ-व्यक्ति के ऊपर रोग के जो लक्षण उत्पन्न करती है, रोग में उन्हीं लक्षणों के प्रकट होने पर वही औषधि उन लक्षणों को समाप्त कर उस रोग का उन्मूलन कर देती है। सविराम-ज्वर का अर्थ है -‘मलेरिया’ जैसा बुखार।

सिनकोना और कुनीन में इतना ही भेद है कि सिनकोना एक छाल का नाम है, इसे चायना भी कहते हैं, और कुनीन सिनकोना की छाल से बनती है। कुनीन को चिनिनम सल्फ़ कहते हैं। हनीमैन ने सिनकोना की छाल से परीक्षण किये थे। क्वाथ को उन्होंने बार-बार लिया और उससे उनके शरीर में मलेरिया के से, सविराम-ज्वर के-से लक्षण उत्पन्न हो गये। क्योंकि सिनकोना मलेरिया को दूर भी करती है, और स्वस्थ-शरीर में इसे लेने से हनीमैन में मलेरिया के से लक्षण उत्पन्न हो गये, इससे उन्हें सूझा कि सभवत: सिनकोना मलेरिया की इसलिए दूर करती है क्योंकि शरीर में यह मलेरिया जैसी बीमारी उत्पन्न कर देती है। इसी विचार से होम्योपैथी की नींव पड़ी और उन्होंने अपने ऊपर, अपने मित्रों पर, अपने बच्चों पर औषधियों के परीक्षण करने शुरू किये, और जो सिद्धांत सिनकोना द्वारा उन्हें सूझा था उसे उन्होंने अन्य औषधियों द्वारा परीक्षणों पर भी सत्य पाया। इस प्रकार होम्योपैथी का आविष्कार सिनकोना से हुआ।

(2) स्राव जाने के कारण अत्यधिक दुर्बलता – रक्तस्राव, प्रदर, अतिसार, वीर्यपात आदि से उत्पन्न होने वाली दुर्बलता को दूर करता है – हनीमैन ने अपने काल में देखा कि सिनकोना का दो रोगों में उपयोग किया जाता था। एक रोग था निर्बलता को दूर करना, दूसरा था सविराम-ज्वर को दूर करना। वे इस परिणाम पर पहुंचे कि इन दोनों दिशाओं में इसका प्रयोग इसीलिये सफल होता है क्योंकि स्वास्थ्य में इसके लेने से दुर्बलता भी आ जाती है, सविराम-ज्वर-जैसा ज्वर भी आ जाता है। ज्वर के विषय में हम आगे चल कर लिखेंगे। दुर्बलता के लिये होम्योपैथिक सिनकोना (चायना) अमोघ औषधि है। परन्तु कैसी दुर्बलता? हनीमैन ने सिनकोना का दुर्बलता के विषय में जो क्षेत्र तय किया वह निश्चित था। उनका कहना था कि जो रक्तहीनता फैरम दूर कर सकेगा वह सिनकोना (चायना) नहीं दूर कर सकेगा, जो स्नायु-संबंधी कमजोरी ऐसिड फॉस दूर कर सकेगा वह सिनकोना नहीं दूर करेगा। सिनकोना का कमजोरी दूर करने का कौन-सा क्षेत्र है? जब शरीर से रक्त-स्राव बेहद हो गया हो, वीग्र-स्राव से दुर्बलता आ गई हो, ऐसी निर्बलता को सिनकोना दूर करता है। इस प्रकार की निर्बलता में इसे ‘Pick-me-up’ कहा जा सकता है। इसी प्रकार नक्स वोमिका 1x तथा कैलकेरिया हाईपोफ़ौस 3x भी ‘Pick-me-up’ माने जाते हैं। यद्यपि होम्योपैथी में इस प्रकार के टॉनिकों को स्थान नहीं है। इन्फ्लुएन्जा के बाद जब रोगी बेहद कमजेरी अनुभव करता है, सर्दी सहन नहीं कर सकता, सोचने लगता है कि अब शायद ठंडे कपड़े पहनने के दिन ही नहीं आयेंगे, गर्म कपड़ों से ही जीवन चलाना पड़ेगा, तब चायना 200 की एक मात्रा सारा नक्शा बदल देती है। इंफ्लुएन्जा में अगर रोगी कमजोरी के साथ-साथ थकान, भारीपन अनुभव करे, शरीर में कपन हो, तो जेलसीमियम से लाभ होता है। दुर्बलता दूर करने में आर्निका का भी कम महत्व नहीं है। रोगी शारीरिक तथा मानसिक परिश्रम से थक जाता है, हृदय पर भी बोझ पड़ता है, अधिक काम करने से, डॉक्टर, वकील, अध्यापक – किसी भी पेशे का व्यक्ति क्यों न हो, अगर रोगी परिश्रम (Strain) से थका-थका रहता है, तो आर्निका शारीरिक ही नहीं मानसिक थकान को भी दूर कर सकता है।

रक्तस्राव तथा उससे होने वाली दुर्बलता – इस रोगी को रक्तस्राव बहुधा हुआ करता है। किसी भी अंग से रक्तस्राव हो सकता है। नाक से नकसीर फूट सकती है, गले से, किसी भी अंग से। स्त्रियों में जरायु से रक्तस्राव होता है। रक्तस्राव होते-होते इसके बीच में किसी-किसी को ऐंठन पड़ जाती है। ऐसी हालत में सिनकोना (चायना) रक्तस्राव को ही नहीं बन्द कर देगा, रक्तस्राव से होनेवाली कमजोरी को भी नहीं होने देगा। सिकेल में भी रक्तस्राव के लक्षण हैं, बच्चा जनने के समय रक्तसाव दोनों औषधियों में है, परन्तु चायना शीत-प्रधान है, जच्चा की हालत में ठंड लग जाय तो उसे ऐंठन पड़ जाती है, सिकेल ऊष्ण प्रधान है, रोगिन कपड़े को परे फेंक देती है, ठंड चाहती है। प्रदर की निर्बलता को भी सिनकोना दूर करता है।

अतिसार से होने वाली दुर्बलता, अतिसार में दर्द नहीं होता – सिनकोना का अतिसार पनीला, पीला होता है। अपच भोजन निकल जाता है। जो बात अन्य औषधियों में नहीं पायी जाती वह यह है कि दस्त दर्द रहित होते हैं। दस्तों की इस कमजोरी को यह दूर करता है।

वीर्यपात द्वारा होनेवाली दुर्बलता – शरीर की जो भी प्राणप्रद ग्रन्थियां हैं उनसे स्राव के बहुत अधिक निकल जाने की कमजोरी को यह दवा दूर कर देती है। वीर्य तो शरीर का सार ही है। इसके जाने से जो कमजोरी होती है उसका इलाज चायना है। नवयुवक जो हस्त-मैथुन आदि कुकर्मों से क्षीण-काय हो जाते हैं उनकी कमजोरी को यह दूर करता है।

(3) सविराम-ज्वर (Intermittent fever) – हमने कहा था कि हनीमैन ने अपने काल में देखा कि चायना का दो बातों में उपयोग किया जाता है था ‘निर्बलता’ तथा ‘ज्वर’। निर्बलता के विषय में हम लिख चुके। ऐलोपैथ तो हर प्रकार के मलेरिया में कुनीन दे देते हैं, परन्तु हनीमैन का कथन है कि मलेरिया-ज्वर भी सब एक से नहीं होते, इसलिये कुनीन से कई रोगी अच्छे हो जाते हैं, कई लटकते रहते हैं। चायना अपने ढंग के सविराम-ज्वर में ही काम देता है, हर प्रकार के सविराम-ज्वर में नहीं। चायना के ज्वर के क्या लक्षण हैं?

चायना के बुखार में प्यास का लक्षण विशेष ध्यान देने के योग्य है। जाड़ा लगने के बहुत पहले रोगी को प्यास लगने लगती है, और ज्यों-ही जाड़ा लगने लगता है प्यास जाती रहती है। जाड़े से पहले प्यास का लगना शुरू होना इतना मुख्य-लक्षण है कि इस प्यास के शुरु होते ही रोगी समझ जाता है कि जाड़ा-बुखार आने वाला है; अगर यह लक्षण न हो, तो चायना औषधि नहीं है। जाड़े में प्यास चली जाती है, परन्तु उत्ताप की अवस्था आने पर फिर प्यास लौट आती है। जब उत्ताप पूर्ण-रूप में चढ़ जाता है। तब प्यास फिर खत्म हो जाती है। इसके बाद पसीने की अवस्था आती है। पसीने के पूरे काल में जबर्दस्त प्यास रहती है। शीत में और उत्ताप में प्यास का हट जाना, और शीत से पहले प्यास का लगना, पसीने के पूरे काल में प्यास – ये इसके ज्वर के विशेष-लक्षण है।

(4) ज्वर में चायना, युपेटोरियम, आर्स, कैपसिकम, साइमेक्स की तुलना – शीत या पूर्ण-उत्ताप की अवस्था में प्यास का होना चायना न देने का लक्षण है। प्यास शीत से पहले लगती है, शीत में नहीं। जब चायना के रोगी को जिसे तीसरे, सातवें, चौदहवें दिन ज्वर आता हो, तब प्यास के लक्षण पर ही वह समझ जाता है कि ज्वर आने वाला है। युपेटोरियम का रोगी प्यासा होते हुए भी पानी लेने से इन्कार कर देता है क्योंकि पानी के हरेक घूंट से उसकी सर्दी बहुत बढ़ जाती है। आर्सेनिक के ज्वर में रोगी प्यासा होता है, परन्तु पानी पीना नहीं चाहता क्योंकि पानी पीने से उसे उल्टी आ जाती है, फिर भी उसकी प्यास इतनी जर्बदस्त होती है कि न चाहते हुए भी पीता जाता है। कैपसिकम में सर्दी पीठ से शुरू होती है, सर्दी प्यास के साथ शुरू होती है, परन्तु पानी पीने से रोगी ठंड के मारे कांपने लगता है, और इसके साथ पीठ में तथा अंग में पीड़ा होने लगती है। साइमेक्स में पानी पीने से रोगी के सब – लक्षण बढ़ने लगते हैं, खांसी, सिर-दर्द आदि बढ़ जाते हैं। चायना के संबंध में यह स्मरण रखना चाहिये कि ज्वर में शीत के प्रारंभ होते ही प्यास जाती रहती है, शीतावस्था के आने से बहुत पहले प्यास का आगमन होता है। उत्ताप की अवस्था में रोगी बार-बार कपड़ा हटाने का प्रयत्न करता है परन्तु कपड़ा हटाते ही उसे सर्दी सताने लगती है, इसलिये फिर कपड़ा ओढ़ लेता है। ज्वर में कपड़ा ओढ़ने और उतराने के चायना के लक्षण नक्स वोमिका के सदृश है।

(5) संपूर्ण पेट में वायु भर जाना, डकार से आराम न होना – रोगी का पेट तंबूरा बना रहता है, लगातार डकार आते हैं परन्तु आराम नहीं आता, पेट भरा-का-भरा महसूस होता है। कार्बो वेज और लाइको में भी पेट में वायु का प्रकोप रहता है, कार्बो में डकार से कुछ आराम आता है, लाइको में कभी आराम आता है, कभी नहीं भी आता। जब पेट में वायु अटक जाय और ऐसा मालूम पड़े कि पेट में हवा अवरुद्ध (Incarcerated flatus) है, पेट की मशीन ही रूठ गई है, तब चायना 200 की एक मात्रा वायु को निकाल देगी। कार्बो वेज भी ऐसी हालत में काम कर देता है।

स्पर्श का सह सकना – सारा स्नायु-मंडल अत्यंत sensitive हो जाता है। पीड़ा का स्थान छूते ही रोगी कराह उठता है, छूने नहीं देता। फोड़े को हल्के-हल्के दबाते चले जायें, तो रोगी इस दबाव को सहने लगता है, यहाँ तक कि जब दबाव जोर का हो जाता है, तब भी रोगी उस दबाव को सह लेता है, उसे कुछ आराम-सा लगता है। जो दांत दर्द कर रहा होता है उसे दबाये चले जायें, तो उस दबाव से भी आराम मिलता है। दबाने से आराम मिलना इस औषधि का विशिष्ट-लक्षण है। स्नायु-मंडली की Sensitiveness बालों में भी प्रकट होती है। अगर बालों को हवा लगे तब भी बालों में दर्द महसूस होता है। कहीं भी नसों में अगर दबाने से दर्द को आराम हो, तो सिनकोना (चायना) उपयोगी है।

ऐसे दर्द जो जरा से स्पर्श से जरा-से छेड़ने से जाग्रत हो जायें, और फिर बढ़ते चले जायें, यहाँ तक कि तीव्र रूप धारण कर लें, चायना से ठीक हो जाते हैं।

(7) किसी विचार से छुटकारा न पा सकना – इस रोगी के दिमाग में कुछ विचार ऐसे जम जाते हैं कि वह उनसे छुटकारा ही नहीं पा सकता। बे-बुनियाद विचार ऐसी जड़ पकड़ लेता है कि हटाये नहीं हटता। अधिकतर उसके दिमाग में यह बैठ जाता है कि उसके शत्रु उसके पीछे पड़े हुए हैं। वह जहाँ कहीं भी जाता है, जो कुछ भी करता है, यही समझता रहता है कि उसके शत्रु उसके हर कार्य में बाधा डाल रहे हैं। ये विचार उसके मन पर ऐसे हावी हो जाते हैं कि वह बिस्तर से कूद पड़ता है, और कभी-कभी इन काल्पनिक शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिये आत्मघात तक कर बैठता है। विचारों से छुटकारा न पा सकने के रोग में नैट्रम म्यूर भी उपयोगी है।

सिनकोना (चायना) औषधि के अन्य लक्षण

(i) सामयिकता (Periodicity) – यह समझना गलत है कि बारी के मलेरिया-ज्वर पर ही इसका प्रभाव है। अगर कोई रोग हर दूसरे-तीसरे दिन आता है, तो चायना को स्मरण करना चाहिये। सामयिकता इसका विशेष लक्षण है।

(ii) जिगर का पुराना रोग – जिगर के पुराने रोग में यह सर्वोत्तम औषधि है। पेट के दाईं तरफ के निचले भाग में दर्द होता है, कभी-कभी पसलियों के नीचे भीतर के हिस्से में कड़ा, बढ़ा हुआ, स्पर्श-द्वेषी जिगर पाया भी जाता है। रोगी की त्वचा पीली हो जाती है। मल का रंग सफेद होता है क्योंकि जिगर पित्त का पूरा प्रवाह नहीं कर रहा होता है।

(iii) कीड़ों की उल्टी के स्वप्न – अगर रोगी को बार-बार ऐसे स्वप्न आयें कि उल्टी में जीवित-कृमि निकल रहे हैं तो यह इसका विशिष्ट लक्षण है।

(9) चायना का सजीव, मूर्त चित्रण – शरीर से रक्त, वीर्य या किसी प्रकार का तरल पदार्थ निकल जाने से पीले चेहरे वाला, वीर्यहीन, रक्तहीन व्यक्ति जिसकी आँखे धंस गई हों, कमजोर हो गया हो, कमजोरी से पसीना आ जाता हो, शोथ आदि रोग के स्थान को छूने से उसे कष्ट होता हो, बालों को हवा छू जाय तब भी घबराता हो, दूध-फल आदि खाने से पेट फूल जाता हो, पेट तम्बूरे की तरह फूला रहता हो, डकारें मारता हो, परन्तु डकारों से भी आराम न आता हो, जिसकी शिकायतें एक दिन बाद, दो दिन बाद आती रहती हों, जिगर के पुराने रोग से पीड़ित हो, पतले दस्त आते हों परन्तु दस्तों के साथ दर्द न होता हो, कमजोरी और रक्तशून्यता चेहरे पर लिखी हो, कमजोरी से कानों में भनभनाहट होती हो, सर्दी न सहन कर सकता हो, मलेरिया जैसे ज्वर से देर तक पीड़ित रहा हो-ऐसा होता है चायना का रोगी।

(10) शक्ति तथा प्रकृति – कमजोरी में 6 या 12 शक्ति का चायना तब तक दोहराना चाहिये जब तक कमजोरी के लक्षण दूर न हो फिर बन्द कर देना चाहिये। वैसे अन्य औषधियों की तरह 30, 200 शक्ति व्यवहार में आती है। औषधि ‘सर्द’-Chilly-प्रकृति के लिये है।

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2 Comments
  1. Amjad khan says

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    1. Dr G.P.Singh says

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