जलोदर का उपचार [ Homeopathic Medicine For Ascites In Hindi ]

विवरण – इस रोग का प्रारम्भ पाकाशय की गड़बड़ी से होता है। बाद में पानी भर जाने के कारण नगाड़े की तरह फूल जाता है तथा शरीर में शोथ, जलन, पीड़ा एवं पेशाब रुक जाना आदि उपसर्ग प्रकट…

निस्पन्द वायु रोग [ Homeopathic Medicine For Catalepsy In Hindi ]

जिस आक्षेपिक अथवा स्नायविक-रोग में मनुष्य अपनी इच्छानुसार चल-फिर नहीं सकता अथवा जिसमें बेहोशी के साथ सभी पेशियाँ अकड़ जाती हैं अथवा कड़ी हो जाती हैं, उसे ‘निस्पन्द-वायु-रोग’ कहते…

हाइड्रोसील(अंडकोष वृद्धि) की दवा – हाइड्रोसील से बचाव

लक्षण – अण्डकोषों के जल-संचय हो जाने पर वे फूलकर कड़े हो जाते हैं। यह रोग एकादशी से पूर्णिमा तक बढ़ता है, फिर घटने लगता है । इस पानी को ऑपरेशन द्वारा भी निकाला जा सकता है ।…

रक्त विकार (खून की खराबी) का इलाज [ Homeopathic Medicine For Blood Poisoning ]

विवरण – रक्त-विकार विभिन्न रूपों में प्रकट होता है । इस रोग का मुख्य कारण एक प्रकार का सूक्ष्म कीटाणु (Micro-Organism) बताया जाता है । इस रोग के कारण शरीर में एक प्रकार का विष फैल…

लकवा (पैरालिसिस) का होम्योपैथी इलाज [ Homeopathic Remedies For Paralysis In Hindi ]

लकवा (पैरालिसिस) का होम्योपैथी इलाज विवरण – किसी अंग के सम्पूर्ण अथवा एक हिस्से के स्पर्श-ज्ञान-रहित हो जाने तथा उसे इच्छानुसार हिलाने-डुलाने में असमर्थ हो जाने को लकवा अथवा…

जलांतक (पानी से डर) का इलाज [ Homeopathic Medicine For Hydrophobia In Hindi ]

विवरण – कटा हुआ चमड़ा चाटने अथवा पागल कुत्ता, सियार, बिल्ली आदि के काटने से यह रोग होता है । इन पशुओं के दाँत अथवा नखों द्वारा शरीर के किसी भाग में जख्म हो जाने तथा उस जगह इनकी लार…

टिटनेस का इलाज [ Tetanus Ka ilaj In Hindi ]

लक्षण – हाथ अथवा पाँव में घाव हो जाने एवं कटी हुई जगह से किसी जीवाणु के शरीर में प्रविष्ट हो जाने पर, स्नायुओं में उत्तेजना हो जाने के कारण यह रोग हो जाता है। इस रोग के जीवाणु…

अंडकोष ( टेस्टिस ) में दर्द और सूजन का उपचार

विवरण – उपदंश सूजाक आदि रोगों के कारण अण्डकोष तथा उसकी आवरक-झिल्ली में प्रदाह उत्पन्न हो जाता है । प्रदाह के समय पानी जैसा तरल पदार्थ निकला करता है। धीरे-धीरे अण्डकोषों में सूजन आ…

ताण्डव या नर्त्तन रोग [ Homeopathic Medicine For Chorea In Hindi ]

विवरण – यह स्नायु-संस्थान का रोग है, जो प्राय: 10-15 वर्ष की आयु के बच्चों में अधिक पाया जाता है। इसे स्नायु-संस्थान की ऐच्छिक-पेशियों का उन्माद भी कह सकते हैं । अपना भोग-काल…

मूत्रपिण्ड ( मूत्र पथरी ) रोकने की चिकित्सा

विवरण – मूत्रपिण्ड कोष में उत्पन्न पथरी अपने उत्पत्ति स्थान पर ही बहुत समय तक रुकी रह सकती है तथा उस हालत में रोगी को किसी कष्ट का अनुभव भी नहीं होता। कभी-कभी कमर में हल्का दर्द…
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