डिम्बग्रंथि की रचना और कार्य

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यह गिनती में दो होती हैं – एक गर्भाशय के दाँयी ओर तथा दूसरी गर्भाशय के बाँयी ओर रहती है । जिस प्रकार पुरुषों में शुक्र-ग्रन्थि होती है उसी प्रकार स्त्रियों में डिम्ब-ग्रन्थि होती है । इस ग्रन्थि से निकलने वाले हार्मोन को यौन हार्मोन कहते हैं । इसे डिम्बाशय, स्त्रियों का अण्डकोष (Overies) भी कहा जाता है । इसी के कारण स्त्रियों में स्त्रियोचित गुण पैदा होते हैं। इन ग्रन्थियों का रंग सफेद और आकार बादाम जैसा होता है । प्रत्येक ग्रन्थि लगभग साढ़े तीन से.मी. लम्बी, दो से.मी. चौड़ी और डेढ़ से.मी. मोटी होती है। इस ग्रन्थि में जो हार्मोन पैदा होते हैं वे पिट्यूट्री ग्रन्थि के अगले खण्ड के हार्मोन की सहायता से स्त्रियों के लैंगिक चिन्हों को उभारते हैं ।

महिलाओं का मासिक-धर्म होना इसी ग्रन्थि के ठीक-ठीक काम करने पर निर्भर है । यदि किसी स्त्री के शरीर में से इस ग्रन्थि को निकाल दिया जाये तो नारित्त्व का समुचित विकास नहीं होता, स्तन नहीं बढ़ते, मासिकधर्म रुक जाता है और गर्भाशय तथा योनि आदि अंगों का क्षय हो जाता है और स्त्री बन्धया तथा शरीर से मोटी होती जाती है । गर्भाशय में गर्भ इसी ग्रन्थि की सहायता से स्थित रहता है ।

सच तो यह है कि नारी के शरीर में इस ग्रन्थि का वही महत्त्व है जो पुरुष के शरीर में अण्ड ग्रन्थियों का है । यह भी उसी प्रकार पोषक और सन्तानोत्पादक स्त्राव बनाती है । ये छोटी चिड़िया के अण्डे के समान गर्भाशय के दोनों पार्श्वों में स्थित दो ग्रन्थियाँ हैं प्रत्येक ‘बीजकोष’ (ओवरसीज) के दो प्रान्त हैं – अन्तर्मुख और बहिर्मुख। इनमें से अन्तर्मुख प्रान्त गर्भाशय की ओर मुख किये हुए हैं और 2-3 अंगुल लम्बी रज्जुवत छोटी बन्धनी (जो मांस और तन्तुओं से बनी हुई 1 इंच लम्बी होती है) द्वारा गर्भाशय से बँधा है । इस बन्धनी का नाम बीजाधार बन्धिका (Ligament of the ovary) है। बहिर्मुख प्रान्त से एक पतली नली बीज रूप आर्त्तव के बहने के लिए चलती है। इसका नाम बीज कुल्या (Ovarian Fimbria) है।

यदि बीज कोष (डिम्बाशय) को सूक्ष्मदर्शी से देखा जाये तो प्रत्येक में प्राय: 70 हजार बीज (ovum) मिलते हैं। ये बीज यौवनारम्भ में क्रमश: पुष्ट होकर कालान्तर में संपुष्ट होते हैं। इनमें सबसे अधिक पुष्ट हुए बीज प्रति मास बाहर निकलते हैं और बीज कुल्यामार्ग द्वारा चलकर बीज वाहिनियों (फैलोपियन टयूबस) द्वारा पुष्पित मुखों से पकड़ लिये जाते हैं और इस प्रकार ये बीज वाहिनियों के मार्ग से गर्भाशय में घुसते हैं ।

 

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