सीपिया का होम्योपैथिक उपयोग
( Sepia Homeopathic Medicine In Hindi )
लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
शारीरिक-रचना – पतली-दुबली, लम्बी, कन्धे से कूल्हे तक एकसार स्त्री | तेज हरकत से अच्छा लगना |
शारीरिक रचना – दोनों गालों के ऊपर के हिस्सों में घोड़े की जीन की तरह नाक पर से जाता हुआ पीला दाग | गर्मी से रोगी को अच्छा लगना |
मानसिक-लक्षण – घरेलू कार्यों में चित्त न लगा, पुत्र-पति आदि के प्रति उदासीनता का भाव; रुदन | ठंडा पेय पसन्द करना |
मानसिक-लक्षण – रोगिणी का जीवन उत्साहहीन पड़ जाना; चुपचाप बैठे रहना | लक्षणों में वृद्धि |
गर्भाशय और भीतर के यंत्र भग से बाहर निकल पड़ने-जैसा अनुभव | ठंड, ठंडी हवा, नमी से वृद्धि |
गुदा-प्रदेश या भीतरी अंगों में गोले-का-सा अनुभव | बर्फीली ठंड से रोग-वृद्धि |
भूख लगने, और खाने पर भी पेट का खाली अनुभव होना | अति-विहार से रोग |
रजोरोध के समय उत्ताप की लहरों के साथ पसीना आना | सवेरे तथा शाम को रोग-वृद्धि |
मल-द्वार में एक भारी ढेला-सा मालूम होना- कब्ज | मासिक से पहले वृद्धि |
(1) शारीरिक-रचना – पतली-दुबली, लम्बी, कन्धे से कूल्हे तक एकसार स्त्री – यह औषधि ‘अनेक-कार्य-साधक’ है, और विशेष तौर पर स्त्रियों के अनेक रोगों में इसके ‘व्यापक-लक्षण’ (Generals) पाये जाते हैं। रोगिणी की शारीरिक-रचना को देखकर योग्य-चिकित्सक उसे पहचान जाता है। उसका शारीरिक गठन लम्बा, पतला-दुबला होता है। वह कन्धे से कल्हे तक एकसार होता है – जैसा पुरुषों का गठन होता है। जिस स्त्री का नितम्ब-प्रदेश चौड़ा न हो, वह सन्तानोत्पन्न नहीं कर सकती, लम्बी स्त्रियों की रचना में सीपिया को और लम्बे-पुरुषों की रचना में फॉसफोरस को याद करना चाहिये।
(2) शारीरिक रचना – दोनों गालों के ऊपर के हिस्सों में घोड़े की जीन की तरह नाक पर से जाता हुआ पीला दाग – शारीरिक-लक्षणों में सीपिया की रोगिणी का एक मुख्य-लक्षण यह है कि उसके दोनों गालों पर पीले-पीले से दाग होते हैं, जो नाक के ऊपर के हिस्से से जाकर एक दूसरे के साथ ऐसे मिल जाते हैं मानो नाक पर घोड़े की जीन पड़ी हुई हो। इस औषधि का मुख्य-क्षेत्र जरायु का रोग है, और जिस स्त्री को जरायु का रोग होता है प्राय: उसकी गालों पर ऐसे दाग पड़ जाया करते हैं। इस स्त्री के मुख के इन दागों को देखकर चिकित्सक पहचान जाता है कि इसे कोई जरायु-संबंधी रोग है और इसकी औषधि सीपिया ही है। ये दाग पीले या भूरे रंग के होते हैं, रोगिणी रक्त-शून्य होती है, 35 वर्ष की हो, तो 50 की दीखती है।
(3) मानसिक-लक्षण – घरेलू कार्यों में चित्त न लगा, पुत्र-पति आदि के प्रति उदासीनता का भाव; रुदन – इस औषधि का सबसे प्रमुख-लक्षण इसकी मानसिक-अवस्था है। रोगिणी का मन घरेलु कार्यों में नहीं लगता, उसका अपने पुत्र तथा पति से प्रेम भी नहीं रहता। माता कहती है: मैं अपने पुत्रों से प्रेम करती थी, पति से प्रेम करती थी, परन्तु अब न जाने क्या हो गया है। इस से यह नहीं समझना चाहिये कि अपने पुत्र आदि से प्रेम का अभाव, उनके प्रति उदासीनता की भावना केवल स्त्रियों में पायी जाती है, अगर किसी पुरुष में भी ऐसी उदासीनता पायी जाय, तब भी सीपिया ही औषधि होगी। इस प्रकार की उदासीनता पल्सेटिला, नैट्रम म्यूर, लिलियम टिग्रिनम तथा प्लैटिना में भी पायी जाती है, परन्तु इन सबकी उदासीनता में निम्न भेद है:
पल्सेटिला और उदासीनता – इसकी उदासीनता के साथ रोगिणी में नम्रता, कोमलता, मधुर स्वभाव पाया जाता है, परन्तु सीपिया की उदासीनता के साथ क्रोध, हठीलापन पाया जाता है। पल्स घरेलू काम-काज करती रहती है, सीपिया घर का काम-काज भी छोड़ देती है। पल्स मोटी ताजी होती है, सीपिया कमजोर, पतली-दुबली होती है।
नैट्रम म्यूर और उदासीनता – इसकी उदासीनता में रोगी के साथ सहानुभूति दर्शायी जाय तो उसे क्रोध आ जाता है, सीपिया में ऐसा नहीं है।
लिलियम टिग्रिनम और उदासीनता – इसकी उदासीनता के साथ रोगिणी सदा काम में लगे रहना चाहती है जो सीपिया में नहीं है।
प्लैटिना और उदासीनता – इसकी उदासीनता में रोगी में घमंड पाया जाता है, वह दूसरों को अपने से बहुत छोटा समझता या समझती है। यह लक्षण अन्य किसी औषधि में नहीं है।
सीपिया तथा रुदन; रुदन में सीपिया की पल्स तथा नैट्रम म्यूर से तुलना – रोगिणी अपने भूत या भावी जीवन से ही असन्तुष्ट नहीं होती, उसे अपने वर्तमान जीवन से भी असंतोष होता है। इस असंतोष के कारण उसका मन सदा हतोत्साह रहता है, गिर-गिरा, और वह अपनी हालत को देख-सोच कर आंसू बहाया करती है। इस प्रकार आंसू बहाने और रोने की प्रवृति में उसकी पल्सेटिला तथा नैट्रम म्यूर से बहुत समानता है। सीपिया तथा पल्स दोनों दु:खी रहती हैं, रोया करती हैं, उन्हें यह भी पता नहीं होता कि वे क्यों रोती है। दोनों जरायु-संबंधी रोग से पीड़ित होती है। ऐसी अवस्था में अगर रोने के लक्षण को देखकर पल्स से लाभ न हो, तो सीपिया देना चाहिये। सीपिया का आधारभूत लक्षण है-अपने काम-काज के प्रति अरुचि, उपेक्षा, उदासीनता, अपने घरेलू काम के प्रति भी ध्यान न देना, परिवार के सदस्यों पुत्र, पति, मित्र या जिनको भी वह प्रेम करती थी-सब के प्रति उदासीन हो जाना। नैट्रम म्यूर और सीपिया – इन दोनों में भी रोने का लक्षण पाया जाता है, दोनों में सहानुभूति से रोग बढ़ता है, परन्तु नैट्रम म्यूर ‘गर्म’-प्रकृति की है, सीपिया ‘सर्द’-प्रकृति की है। डॉक्टर को अपने रोग के लक्षण सुनाते हुए सीपिया स्त्री रोती है – इसमें यह पल्स जैसी है, सहानुभूति को सीपिया बर्दाश्त नहीं कर सकती-इसमें यह नैट्रम म्यूर जैसी है क्योंकि पल्स तो सहानुभूति चाहती है, परन्तु पल्स और नैट्रम म्यूर गर्म-प्रकृति की, और सीपिया सर्द-प्रकृति की है-इस विवरण से इन तीनों का भेद स्पष्ट हो जाता है।
(4) मानसिक-लक्षण – रोगिणी का जीवन उत्साहहीन पड़ जाना; चुपचाप बैठे रहना – अनेक कारणों से रोगिणी का जीवन जो कभी स्फूर्तिमय था, घर तथा बाहर के काम में वह उत्साह प्रदर्शित करती थी, अब ठंडा पड़ जाता है, स्फूर्ति जाती रहती है, उत्साह समाप्त हो जाता है, वह चुपचाप बैठी रहती है, किसी से कुछ नहीं कहती, बोलती-चालती नहीं, जीवन में उसे किसी प्रकार का आनन्द नहीं दिखलाई देता, अपने स्वास्थ्य के विषय में चितित रहती है, कभी-कभी आत्मघात करने की सोचती है। ऐसा क्यों होता है, वह जीवन जो कभी उत्साह से पूर्ण था अब उल्टी दिशा में क्यों चल पड़ा, इसके अनेक कारण है। ऐसी अवस्था प्रसव-काल में, जरायु से लगातार रक्त-स्राव होते रहने में, दीर्घकालीन अपच के रोग में, शरीर तथा मन के कमजोर हो जाने पर, अति हृष्ट-पुष्ट बच्चे को दूध पिलाने पर जो माता का सारा सत खींच कर उसे नि:सत्व बना देता है, अति विषयी पति के कारण स्वास्थ्य नष्ट हो जाने पर हो जाती है। वह ठंडी पड़ जाती है, उत्साहहीन, चुपचाप बैठी अपने दु:खी जीवन से छुटकारा पाने की सोचा करती है। उसे अन्य किसी वस्तु की नहीं, सीपिया की जरूरत होती है।
(5) गर्भाशय और भीतर के यंत्र भग से बाहर निकल पड़ने-जैसा अनुभव – रोगिणी को सदा अनुभव हुआ करता है कि उसके भीतर के यन्त्र-गर्भाशय आदि – भग से बाहर निकल पड़ेंगे, इसलिये वह सदा जांघ पर जांघ रखकर बैठती है। भीतर का अंग बाहर निकल पडेगा – ऐसा अनुभव होना सीपिया का विश्वासयोग्य-लक्षण है। इस लक्षण के होने पर गर्भाशय का किसी प्रकार का भी स्थान-भ्रंश हो, सीपिया से लाभ होगा। रोगिणी के भीतर के अंग इतने शिथिल हो जाते हैं कि उन अंगों के बाहर निकल पड़ने के डर से वह उन अंगों पर पट्टी बांधकर रखना चाहती है या उन्हें हाथ से दबाये रखना चाहती है, और जब बैठती है तब एक जांघ को दूसरी जांघ पर दबा कर बैठती है। एगैरिकस, बेलाडोना, लिलियम, म्यूरेक्स और सैनिक्यूला में भी जननांगों के निकल पड़ने के लक्षण हैं।
(6) गुदा-प्रदेश या भीतरी अंगों में गोले-का-सा अनुभव – माहवारी के दिनों में, गर्भावस्था में या जरायु-संबंधी रोगों में रोगिणी को गुदा-प्रदेश में एक गोले का-सा अनुभव होता है। इसके अतिरिक्त प्रदर में, बच्चे को दूध पिलाते समय या बवासीर में – किसी भी रोग में अगर रोगिणी को अनुभव हो कि उसके शरीर के किसी स्थान में गोला-सा लुढ़क रहा है, तो सीपिया से लाभ होगा।
(7) भूख लगने, और खाने पर भी पेट का खाली अनुभव होना – इस औषधि के रोगी को आंतें को काटती-सी भूख लगती है, परन्तु खाने से भी रोगी को संतोष नहीं होता। रोगी कितना ही क्यों न खा जाय, और खाता भी वह भर-पेट है, परन्तु खा लेने पर भी पेट में भूख का अनुभव बना ही रहता है, पेट खाली-खाली अनुभव होता है। हम आगे देखेंगे कि सीपिया के रोगी को अक्सर कब्ज रहती है, परन्तु कब्ज के कारण पेट भरा हुआ हो और भूख भी महसूस होती जाय – यह विचित्र-लक्षण है, ध्यान देने योग्य है क्योंकि विचित्र-लक्षणों का बड़ा महत्व है।
पेट के खाली लगने की अनुभूति कौक्युलस, इग्नेशिया, कैलि कार्ब, लोबेलिया, पैट्रोलियम, फॉसफोरस, स्टैनम और सल्फर में भी है।
(8) रजोरोध के समय उत्ताप की लहरों के साथ पसीना आना – रोगिणी को उत्ताप की लहरें अनुभव होती हैं। भिन्न-भिन्न अंगों में ये लहरें प्रकट होती हैं। इन लहरों के बाद शरीर में एकदम पसीना छूटता है। हथेली और पांव के तले जलते हैं। जरा-से भी श्रम से शरीर में गर्मी की लहरें उठने लगती है। प्राय: रजोरोध के समय जब बड़ी उम्र में माहवारी बन्द हो जाती है तब ऐसे लक्षण उत्पन्न होते हैं, उस समय सीपिया से लाभ होता है। इन लहरों के साथ संपूर्ण शरीर में हृदय की धड़कन होने लगती है और यह धड़कन शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में अनुभव होती है। उत्ताप की लहरों का यह लक्षण सीपिया के अतिरिक्त सल्फर में भी पाया जाता है, परन्तु सीपिया में उत्ताप की इन लहरों का संबंध जरायु से होता है।
(9) मल-द्वार में एक भारी ढेला-सा मालूम होना (कब्ज) – रोगी को मल-द्वार में एक भारी ढेला-सा मालूम होता है जिसकी अनुभूति पाखाना हो आने पर भी बनी रहती है। मल थोड़ा, सख्त, मेंगनी की तरह का होता है, छोटी-छोटी गांठे निकलती है। जब स्पष्ट लक्षण किसी दवा के न हों, तब कब्ज में सीपिया या नक्स देने की रुटीन प्रथा है, सीपिया तथा नक्स दोनों में पाखाने के समय रोगी जोर लगाता है, जोर लगने पर भी थोड़ा पाखाना आता है, गुदा-प्रदेश में भारीपन बना रहता है, ऐसा लगता है कि गुदा में एक भारी ढेला-सा अटका पड़ा है। सीपिया के रोगी को कई दिन तक पाखाना न आये-ऐसा भी हो सकता है। आंतों में मल को निकालने की शक्ति नहीं रहती। यद्यपि वह टट्टी जाता है, परन्तु गुदा में भारीपन, ढेले-का-सा अनुभव बना रहता है। जब तक बड़ी आंतों में बहुत-सा मल इकट्ठा नहीं हो जाता, तब तक मल नहीं निकलता। अगर मल-द्वार से निरन्तर कुछ स्राव रिसता रहे, और वहां भारी ढेले का-सा अनुभव बना रहे, तब भी सीपिया लाभ करता है।
सीपिया औषधि के अन्य लक्षण
(i) तीसरे, पांचवे, सातवें मास गर्भपात – जिन स्त्रियों को 3रे, 5वें या 7वें मास गर्भपात हो जाया करता है उनके लिये उपयोगी है।
(ii) जरायु-रोग के कारण अध-सीसी दर्द – जिन स्त्रियों को जरायु-रोग के कारण आधे सिर का दर्द होता है, सिर की गुद्दी से शुरू होकर सिर पर से होता हुआ आंखों पर आ जाता है, उनके अध-सीसी दर्द को यह ठीक करता हैं यह दर्द प्रात:काल शुरू होता है, दोपहर या शाम तक बना रहता है, आराम से और अंधेरे में पड़े रहने से रोग कम हो जाता है। सीपिया स्त्री के सब कष्टों का कारण प्राय: जरायु-संबंधी कोई-न-कोई रोग होता है।
(iii) रजः निवृत्ति के बाद बालों का झड़ना – वृद्धावस्था में जब माहवारी बन्द हो जाती है तब स्त्रियों के बाल प्राय: झड़ने लगा करते हैं। सीपिया इसमें भी सहायक है।
(iv) हाथ गर्म तो पैर ठंडे, पैर गर्म तो हाथ ठंडे – इसका एक विचित्र-लक्षण यह है कि अगर रोगी के हाथ गर्म अनुभव होते हैं तो पैर ठंडे हो जाते हैं, और अगर पैर गर्म होते हैं तो हाथ ठंडे हो जाते हैं।
(v) पहली नींद में खाँसी – रोगी को पहली नींद में खांसी आती है। मध्य-रात्रि तक खांसी छिड़ती है, बाद को नहीं।
(vi) पहली नींद में पेशाब कर देना – जो बच्चे पहली नींद में पेशाब कर देते हैं, उनके लिये यह उपयोगी है। सीपिया – रोगिणी को हर समय अपने मूत्र-मार्ग पर ध्यान जमाये रखना पड़ता है ताकि पेशाब निकल न जाय। सोते ही वह ध्यान हट जाता है और पेशाब अनायास निकल पड़ता है।
(vii) दांतों के निकलने के समय दूध न पचा सकने से बच्चों को हरे दस्त आना – सीपिया का रोगी दूध नहीं पचा सकता। गर्म दूध पीने से उसे हरे दस्त आने लगते हैं। सीपिया का बच्चा दूध बिल्कुल सहन नहीं कर सकता।
(viii) चर्म-रोग में त्वचा पर भूरे रंग के दाग पड़ना, उनमें खुजली होना – त्वचा के रोग में सीपिया और सल्फर में समानता है। दोनों सोरा-दोष नाशक हैं, और दोनों एक-दूसरे के पीछे सफलापूर्वक दी जा सकती हैं, एक-दूसरे की पूरक हैं। इसकी खुजली मुंह, हाथ, पांव, पीठ, पेट किसी जगह भी हो सकती है। त्वचा पर भूरे रंग के दाग पड़ जाते हैं। पहले त्वचा पर दाद-जैसा एक खुश्क दाना निकलता है, खुजलाने से वह बड़ा गोलाकार हो जाता है। इस प्रकार के गोलाई लिये हुए चकते अगर झुंड-के-झुंड भी हों, तो 1000 शक्ति की सीपिया से ये ठीक हो जाते हैं।
(10) शक्ति तथा प्रकृति – सीपिया 30, सीपिया 200, सीपिया 1000 (डॉ० ज्योर्ज रायल अपनी पुस्तक ‘दी होम्योपैथिक थेरेप्यूटिक्स ऑफ डिजीजेज ऑफ दी ब्रेन एण्ड नर्वस’ में लिखते हैं कि सीपिया 30 शक्ति से नीचे काम नहीं करता। 500 या 1000 शक्ति, 30 से भी अच्छा काम करती है। यह ‘अनेक-कार्य-साधक’ दवा है। डॉ० गिबसन मिल्लर का कहना था कि अगर होम्योपैथी में उन्हें सिर्फ एक औषधि से सब रोग ठीक करने को कहा जाय, तो से सीपिया को चुनेंगे।
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Bahut hi achha kaam do. Sahab kar rhe h
Do. Sahab agar sepia ke लक्षण kisi me bahut milte ho. Or agar sepia 200 se kam fayda ho rha ho. To kya sepiya 1000 di ja sakti he. Agar ha fo din me kitni bar
किडनी सिकुड़ कर क्रिटेनिन बढने साथ मे उच्च रक्तचाप व मधुमेह हो तो ईलाज लिखे।
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मेरी शादी हो चुकी है और यह 5 साल हो गए और मेरी पत्नी के साथ मासिक धर्म नहीं हो रहा है सर मॅडम मुझे सही उपाय करने
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Hallo sir
sir agar ye sabhi laxn kisi main ho to vo sepiya 200 ko kase upyog kar sakta hai.kise thara use karni hai.
One drop per day in morning.