अंगूर के फायदे – Grapes Benefits In Hindi

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फलों का मीठापन फ्रक्टोज’ है। फ्रक्टोज फलशर्करा है। यह अंगूरों में अधिक मिलती है। ताजा अंगूर कच्चे हरे, काले होते हैं। सूखने पर इन्हीं को किशमिश, मुनक्का कहते हैं। अंगूर नहीं मिलने पर किशमिश, मुनक्का काम में लें, समान लाभ होगा। किशमिश में दूध के सभी तत्त्व मिलते हैं। अत: जहाँ दूध का सेवन नहीं किया जा सकता हो, किशमिश सेवन करके दूध का लाभ ले सकते हैं। अंगूर, किशमिश और मुनक्का में वे सभी तत्त्व होते हैं जिनकी शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यकता होती है। बीमारी समाप्त होने के बाद अंगूर खाने से खोई हुई शक्ति शीघ्र आ जाती है। अंगूर पर रहकर मनुष्य अपना जीवन निर्वाह कर सकता है। अंगूर खाते रहने से रोग-प्रतिरोधरु शक्ति बढ़ती है। मन प्रसन्न रहता है, भूख अच्छी लगती है।

सामान्यतया अंगूर में 10% से 30% शर्करा होती है। इसीलिए फलों में शक्तिदाता के रूप में अंगूर का विशेष स्थान है। अंगूर-शर्करा ग्लूकोज के स्वरूप में होने से आसानी से पच जाती है और पाचनतंत्र पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं पड़ता। अत: दो किलो अंगूर खाकर दिनभर तरोताजा, फुर्तीला रहा जा सकता है।

मधुमेह के रोगियों को अंगूर नहीं खाना चाहिए। छोटे बच्चों को भी 50 से 100 ग्राम अंगूर-रस पिलाया जा सकता है।

अंगूरों में मेसिक साइट्रिक तथा टार्टरिक अम्ल प्राकृतिक रूप में होते हैं। अंगूर में कुछ मात्रा में पोटेशियम, सोडियम तथा कैल्शियम भी होते हैं। अंगूर का नैसर्गिक माधुर्य अम्लपित्त को दूर करने में सहायक है। अंगूर में प्रजीविक-बी तथा महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्व विशेष मात्रा में पाये जाते हैं। अंगूर में टार्टरिक अम्ल होता है। किन्तु वह पोटाश और टार्टरेट स्वतंत्र रूप में होता है। वह आँत एवं गुर्दो के रोगों में लाभदायक है।

शरीर में आँते गिजाई की तरह पड़ी रहती हैं। इनमें अनावश्यक द्रव्य पड़ा रहता है। वह कालांतर में विष बन जाता है। इससे पेट में दर्द होने लगता है। यह विष अाँत के म्युकस-मैम्बरिन के माध्यम से समस्त शरीर में फैल जाता है। इसका बुरा प्रभाव आँखों, गुर्दो तथा यकृत (Liver) पर पड़ता है। अंगूर-रस इस विष को बाहर खींच निकालता है। अंगूर रक्त-संचार को बदल डालता है। अंगूर से ब्लड ट्रान्सफ्यूजन प्रक्रिया गतिशील होती है। इससे उत्पन्न नया ताजा रक्त पुरानी पेशियों को बदलकर नयी पेशियाँ उत्पन्न करता है। ये नयी पेशियाँ महीनों तक कार्यरत रहती हैं तथा शरीर को निर्दोष बनाए रखती हैं। इससे जीवन-शक्ति बढ़ती है। इसलिए नित्य अंगूर खाना लाभदायक है।

अंगूर-रस पीने या खाने से पेट एवं अाँतें शुद्ध, स्वच्छ हो जाती हैं। नया लाल रक्त संचारित होने लगता है। त्वचा मुलायम और चमकीली होती है। चेहरे पर अद्भुत निखार आता है। आँखों की शक्ति बढ़ती है। सुनने और सूंघने की शक्ति बढ़ जाती है। अंगूर-सेवन से अन्य कोई दुष्प्रभाव नहीं होंगे, क्योंकि अंगूर नितांत निर्दोष है। रोगों को दूर करने के लिए अंगूर का सेवन धैर्यपूर्वक करना चाहिए। अंगूरों का प्रभाव एक-दो दिन में नहीं दिखाई देगा। अंगूरों का प्रभाव चार सप्ताह के उपरांत मालूम होने लगेगा। छठे सप्ताह के अंत तक मरीज के रूप-रंग में काफी परिवर्तन दिखाई देगा। चेहरे पर लाली छा जाएगी, अाँखों की आभा बढ़ जाएगी, कमजोर तथा क्षीण आवाज के स्थान पर मधुर आवाज निकलने लगेगी। आरम्भ में नित्य एक समय में 100 ग्राम अंगूर खाने चाहिए। फिर उसकी मात्रा बढ़ाकर चार-पाँच दिनों में दो से तीन किलोग्राम अंगूर आसानी से खाये जा सकते हैं। बच्चे अपनी इच्छानुसार खायें।

अंगूर खाना एकदम बंद नहीं करना चाहिए, अपितु अंगूर का परिमाण (मात्रा) शनै:शनैः घटाते चले जाना चाहिए। इस प्रकार अंगूर खाने से रोग दूर होकर शरीर स्वस्थ बनेगा। अंगूर स्वस्थ मनुष्यों के लिए पौष्टिक भोजन है और रोगी के लिए शक्तिप्रद हैं। जिन बड़े-बड़े भयंकर एवं जटिल रोगों में किसी प्रकार का कोई पदार्थ खाने-पीने को नहीं दिया जाता है उनमें अंगूर या दाख दी जाती है। भोजन के रूप में अंगूर कैंसर, क्षय (T.B.), पायोरिया, ऐपेण्डीसाइटिस, बच्चों का सूखा रोग, सन्धिवात, फिट्स, रक्तविकार, आमाशय में घाव, गाँठे, उपदंश (syphilis), बार-बार मूत्र-त्याग, दुर्बलता आदि में दिया जाता है। पक्का अंगूर थोड़ा-सा दस्तावर लेकिन शीतल, नेत्रों के लिए हितकारी, पुष्टिकारक, रस व पाक में मधुर, स्वरशोधक, रक्तशोधक, वीर्यवर्धक तथा शरीर में स्थित विजातीय द्रव्यों को निकालने वाला होता है। अंगूर अकेला खाने पर लाभ करता है। किसी अन्य वस्तु के साथ मिलाकर इसे नहीं खाना चाहिए। अंगूर सूख जाने पर किशमिश बन जाता है। जब अंगूर नहीं मिलता हो तो अंगूर की जगह किशमिश काम में ले सकते हैं।

रक्ताल्पता (Anaemia) – अंगूर रक्त बढ़ाता है। अंगूर में ग्लूकोज शर्करा पर्याप्त मात्रा में होती है। अंगूर में लौह प्रचुर मात्रा में होता है। केवल 10 औंस अंगूर रस एनीमिया (खून की कमी) होने से रोकता है। अंगूर खाने से लौह-तत्त्व की कमी तथा विटामिन और क्षारों की त्रुटियाँ दूर हो जाती हैं। एनीमिया में ताजे अंगूर पूरे मौसम खाने से खून की कमी दूर हो जाती है और चेहरे पर लाली निखर आती है। रक्त की कमी होने पर अंगूर से बढ़कर अन्य कोई औषधि नहीं है।

जुकाम – नित्य कम-से-कम 50 ग्राम अंगूर खाते रहने से बार-बार जुकाम लगना बन्द हो जाता है।

गठिया – अंगूर शरीर से उन लवणों को निकाल देता है जिनके कारण गठिया शरीर में बनी रहती है। गठिया की परिस्थितियों को साफ करने के लिए प्रातः अंगूर खाते रहना चाहिए।

कैंसर, हृदय रोग – शरीर में एन्टी-ऑक्सीडेंट और प्रो-आक्सीडेंट, दोनों पाये जाते हैं। यदि प्रो-आक्सीडेंट ज्यादा हों तो हृदय रोग, कैंसर व अन्य घातक बीमारियों के जल्दी होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। एन्टी-आक्सीडेंट्स की अधिक संख्या हानिकर नहीं होती। लाल, काले अंगूरों में एन्टी-आक्सीडेंट्स की संख्या बहुत अधिक होती है। इसलिए गहरे काले अंगूरों के खाने से कैंसर व हृदय रोग कम होते हैं। हरे रंग के अंगूरों में एन्टी-ऑक्सीडेन्ट्स की संख्या काले अंगूरों की अपेक्षा कम होती है। इसलिए कैंसर व हृदय रोगों को कम करने, दूर करने में काले अंगूर अधिक लाभदायक हैं। हृदय रोगों में अंगूर का रस बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। यह रक्त को जमने से रोकता है, जिससे हृदय में रक्त का संचार सुचारु रूप से होता रहता है परिणामतः शरीर में हृदय की बीमारी नहीं पनप पाती है। जिन लोगों का रक्तचाप कम होता है, उनके लिए काले अंगूरों का रस फायदेमंद होता है।

कैंसर – कैंसर में पहले तीन दिन रोगी को उपवास करायें। फिर अंगूर सेवन कराना आरम्भ करें। कभी-कभी एनिमा लगायें। एक दिन में दो किलो से अधिक अंगूर न खिलायें। कुछ दिन पश्चात् छाछ पीने को दी जा सकती है। अन्य कोई चीज खाने को न दें। इससे लाभ धीरे-धीरे, कुछ महीनों में होता है। इसकी पुल्टिस घावों पर लगा सकते हैं। इस रोग की चिकित्सा में कभी-कभी अंगूर का रस लेने से पेट दर्द, मलद्वार पर जलन होती है। इससे डरना नहीं चाहिए। दर्द कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। दर्द होने पर सेंक कर सकते हैं।

कैंसर के रोगी पालन करें।

1. रोगी को 6 माह तक चूल्हे पर पकाई खुराक नहीं दें।
2. प्रथम दो महीने कैंसर के रोगी का आहार केवल अंगूर ही रखें।
3. इसके बाद अंगूर के साथ अन्य फलों का सेवन किया जा सकता है। यह एक माह करें।
4. इसके बाद वाले एक महीने में अंगूर व फलाहार के साथ अपक्व (कच्चा) भोजन किया जा सकता है। फलों में टमाटर, संतरा, मौसमी, काजू, बादाम ले सकते हैं।
5. इसके बाद एक महीने तक कुछ पक्वाहार दिया जा सकता है।
6. अंगूर कल्प की सम्पूर्ण अवधि में पूर्ण आराम करना चाहिए।

चेचक – अंगूर गर्म पानी से धोकर खाने से चेचक में लाभदायक होता है।

मिरगी – मिरगी के रोगियों के लिए अंगूर खाना बहुत लाभदायक होता है।

आधे सिर का दर्द – अंगूर का रस एक कप नित्य प्रातः सूर्योदय से पहले पीने से आधे सिर का दर्द (आधा-सीसी का दर्द,- ऐसा दर्द जो सूर्य के साथ बढ़ता है) ठीक हो जाता है।

ज्वर – अंगूर सभी प्रकार के ज्वरों में लाभ करता है। टाइफॉइड, वायरसजन्य बुखार में भी लाभदायक है।

खाँसी-कफ – अंगूर खाने से फेफड़ों को शक्ति मिलती है। जुकाम-खाँसी दूर होती है। कफ बाहर आ जाता है। अंगूर खाने के बाद पानी न पियें। सूखी खाँसी ने नाक में दम कर रखा हो तो आँवला, छोटी पीपल, कालीमिर्च तथा समान मात्रा में लेकर एक-एक चम्मच सुबह-शाम शहद के साथ लें। इससे सूखी खाँसी दूर होती है।

दमा – दमे में अंगूर खाना बहुत लाभदायक है। यदि थूकने में रक्त आता हो तब भी अंगूर खाने से लाभ होता है।

हृदय में दर्द एवं धड़कन – रोगी यदि अंगूर खाकर ही रहे तो हृदय-रोग शीघ्र ठीक हो जाते हैं। अंगूर हृदय के लिये लाभदायक है। सोडियम और पोटाशियम हृदय की गति के लिये आवश्यक तत्त्व हैं जो अंगूरों में प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। जब हृदय में दर्द हो और धड़कन अधिक हो तो अंगूर का रस पीने से दर्द बन्द हो जाता है तथा धड़कन सामान्य हो जाती है। थोड़ी देर में ही रोगी को आराम आ जाता है तथा रोग की आपात-स्थिति (Emergency) दूर हो जाती है।

अंगूर के सेवन से रक्तसंचार और हृदय की गति संतुलित होती है। अंगूर एंटी-अॉक्सीडेंट है। इसे हृदयघात के पहले तथा बाद में सेवन करने से लाभ होता है। शारीरिक दुर्बलता दूर करने और अच्छी सेहत के लिए प्रतिदिन 100 ग्राम अंगूर या 20 ग्राम किशमिश दूध के साथ खाना अच्छा रहता है।

घबराहट – अंगूर खाने से घबराहट दूर हो जाती है।

दाँत निकलना – दाँत निकलने के समय अंगूरों का दो-दो चम्मच रस नित्य पिलाते रहने से दाँत सरलता और शीघ्रता से निकल आते हैं, बच्चा रोता नहीं है। वह हँसमुख रहता है। बच्चा सुडौल रहता है। उसे सूखे का रोग नहीं होता है। इससे बच्चों को दौरे (फिट्स) नहीं पड़ते और चक्कर भी नहीं आते। अंगूर मीठे हों। स्वाद के लिए चाहें तो शहद भी मिला सकते हैं।

शिशु कब्ज़ – शिशुओं का कब्ज़ दूर करने के लिये नित्य दो चम्मच अंगूर का रस सुबह-शाम पिलायें।

बड़ों की कब्ज़ – सेंधा नमक तथा कालीमिर्च के चूर्ण के साथ अंगूर खाने से कब्ज दूर होता है।

रक्तस्राव – 100 ग्राम अंगूर नित्य खाते रहें। इससे नाक, मुँह और पेशाब के रास्ते से आने वाला रक्तस्राव बन्द हो जाता है। इससे जीर्णज्वर, घबराहट, टी.बी. आदि रोगों में भी लाभ होता है।

दूध-पाचन – जिनको दूध नहीं पचता, दूध से गैस बनती है, वे दूध व मुनक्का एक साथ लें।

मुंह सूखना – अंगूर प्यास मिटाता है। ज्वर में जब मुँह, जीभ सूखने लगे तो अंगूर खाएं।

मासिक धर्म अनियमित, श्वेत प्रदर – 100 ग्राम अंगूर नित्य खाते रहने से मासिक धर्म नियमित रूप से आता है। इससे स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। इसके लिए यह एक अच्छा टॉनिक है।

गुर्दे का दर्द – अंगूर की बेल के 30 ग्राम पत्तों को पीसकर, पानी मिलाकर, छानकर, नमक मिलाकर पीने से गुर्दे के तड़पते रोगी को आराम मिलता है।

बार-बार पेशाब जाना मूत्राशय के लिए अच्छा नहीं है। अंगूर खाने से बार-बार पेशाब जाने की हाजत कम होती है। अंगूर का रस गुर्दो की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

पेशाब में जलन रहती हो और खुलकर पेशाब नहीं आता हो तो 50 ग्राम मुनक्के रात को पानी में भिगो दें और सुबह मसलकर, छानकर भुने जीरे के चूर्ण के साथ पिलायें। इससे पेशाब की जलन दूर होकर पेशाब खुलकर आता है।

शरीर में सुस्ती रहती हो तो 20 ग्राम मुनक्का गर्म दूध के साथ सुबह लें।

नकसीर – मीठे अंगूर का रस नाक से खींचने से नकसीर तुरन्त बन्द हो जाती है।

फेफड़ों के सब प्रकार के रोग – यक्ष्मा, खाँसी, जुकाम, दमा आदि के लिए अंगूर बहुत लाभदायक है।

दूध-वृद्धि – अंगूर खाने से दूध में वृद्धि होती है, कम दूध वाली स्त्री को अंगूर खाने चाहिए।

शक्तिवर्धक – अंगूर में फ्रक्टोज और ग्लूकोज होता है, अंगूर का रस जल्दी पचता है, शीघ्र ही शरीर में ताप और शक्ति देता है। अंगूर में 25% शर्करा और पर्याप्त मात्रा में लोहा होता है जो रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ा देता है। रक्त की कमी वालों के लिए यह सर्वोत्तम है। यह कीटाणुनाशक है। अंगूर प्रबल क्षारीय आहार है, शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है। शारीरिक शक्ति के लिए अंगूर उत्तम आहार है। जब शारीरिक शक्तियाँ बहुत दुर्बल हो गई हों तो कुछ दिन केवल अंगूरों का ही सेवन करें। ये नया जीवन प्रदान करते हैं तथा समस्त अंगों को बल देते हैं। लम्बी बीमारी के बाद शरीर में आई दुर्बलता दूर हो जाती है। ताजे अंगूरों का रस कमजोर रोगी के लिए लाभदायक है। यह रक्त बनाता है और रक्त पतला करता है, शरीर मोटा करता है। दिन में नित्य दो बार अंगूर का रस पीने से पाचनशक्ति ठीक होती है, कब्ज दूर होती है, वायु संचय नहीं होती। यह जल्दी पचता है, इससे दुर्बलता दूर होती है, सिरदर्द, बेहोशी के दौरे, चक्कर आना, छाती के रोग, क्षय में उपयोगी है। रक्तविकार को दूर करता है। श्वेत प्रदर में लाभ होता है। गर्भ का बच्चा स्वस्थ, बलवान होता है। अंगूर रक्त में लोहा बढ़ाता है। गर्भावस्था में स्त्री प्रातः अंगूर खाती रहे तो स्वयं स्वस्थ रहेगी तथा होने वाला बच्चा, स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट होगा। जिन महिलाओं के गर्भाशय कमजोर हों, उन्हें अंगूर का सेवन प्रतिदिन करना चाहिए। इससे गर्भाशय की निर्बलता दूर हो जाती है।

कील, मुंहासे, झाँइयाँ – विटामिन ‘सी’ एक एंटी-आक्सीडेंट है, जो फ्री-रेडिकल्म के प्रभाव को निष्क्रिय कर सकता है। प्रदूषण, पराबैंगनी विकिरण, धूम्रपान और तनाव आदि से फ्री-रेडिकल्स अणु पैदा होते हैं, जो शरीर को कई तरह से नुकसान पहुँचाते हैं, खासकर त्वचा पर इसका काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। चेहरे पर विटामिन ‘सी’ का लेप लगाया जाए तो इससे त्वचा पर एक रेशमी आवरण चढ़ जाता है और त्वचा (skin) एकदम तरोताजा रहती है। अगर आप कील-मुंहासों और झाँइयों से दुखी हैं तो इसका सबसे सहज उपाय यही है कि आप अपने भोजन पर ध्यान रखें। पौष्टिक और सही भोजन करने की आदत डालें। हरी सब्जियाँ और फल पर्याप्त मात्रा में लें। तली हुई चीजों से भरसक बचे। खूब पानी पियें और सबसे जरूरी बात है कि त्वचा को साफ करते रहें ताकि उस पर अतिरिक्त चिकनाहट न जमने पाए। त्वचा में मौजूद कई नुकसानदेह बैक्टीरिया को अंगूर मार डालता है। देखा गया है कि यदि अंगूर का लेप त्वचा पर लगाया जाए तो त्वचा खिल उठती है, लेकिन यहाँ यह याद रखना चाहिए कि अंगूर जितना हरा होगा, त्वचा पर निखार उतना ही बेहतर आएगा।

मुख-सौंदर्य, झुर्रियाँ – अंगूर का रस चेहरे पर रुई के फोहे से लगाकर दस मिनट बाद धोयें। रोमकूप साफ हो जायेंगे। यदि त्वचा शुष्क, रूखी हो तो दो भाग अंगूर का रस, एक भाग गुलाबजल मिलाकर लगाने से त्वचा कोमल हो जाती है। अंगूर का रस लगायें तथा अंगूर खायें। दो माह ऐसा करने से चेहरे की झुर्रियाँ दूर होकर चेहरा कान्तिवान हो जायगा।

उपवास – उपवास में अंगूर खाने से दुर्बलता प्रतीत नहीं होती।

दाँत दर्द हो, हिलते हो तो अंगूर चूसें, लाभ होगा।

घाव – नियमित अंगूर खाने से घाव शीघ्र भरते हैं।

अम्लपित्त (Acidity) में अंगूर व अनार का रस समान मात्रा में मिलाकर पीने से छाती की जलन दूर हो जाती है, उल्टी नहीं होती।

अाँखों के आगे अँधेरा – काले अंगूर आँखों के लिए लाभकारी होते हैं। काले अंगूर में ल्यूटीन नामक तत्त्व काफी मात्रा में पाया जाता है, जो आँखों के स्वास्थ्य के लिए टॉनिक का कार्य करता है। इतना ही नहीं, अंगूर में जीएक्स एनथिन नामक एक ऐसा तत्त्व पाया जाता है, जो अॉखों को रोगों से बचाता है। अाँखों में रेटिना के पीछे पीले रंग का द्रव्य होता है, जो अाँखों की हानिकारक तत्वों से रक्षा करता है। अंगूर इसी पीले रंग के द्रव्य को बढ़ाता है। लगातार कुछ महीने 100 ग्राम काले अंगूर खायें, क्षीण होती नेत्र-ज्योति बढ़ जायेगी।

नशीले पदार्थ – सिगरेट, चाय, कॉफी, जर्दा, शराब की आदत केवल अंगूर खाते रहने से छूट जाती है।

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