एम्ब्रा ग्रीसिया ( Ambra Grisea ) का गुण, लक्षण

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व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति

(1) जवानी में वृद्धावस्था के-से स्नायविक लक्षण
(2) चक्कर (Vertigo)
(3) घरेलू विपत्ति के कारण या व्यापार में हानि के कारण स्नायु-दौर्बल्य तथा निद्रा-नाश
(4) गाना-बजाना सहन न होना, गाना सुनने से खांसी आ जाना
(5) शरीर के पीड़ित अंग में शिकायतें

लक्षणों में कमी

(i) भोजन के बाद रोग में कमी
(ii) ठंडी हवा, ठंडा खाने-पीने से लक्षणों में कमी

लक्षणों में वृद्धि

(i) दूसरों की उपस्थिति से वृद्धि
(ii) चिंता, व्यावसायिक चिंता से
(iii) वृद्धावस्था में लक्षणों में वृद्धि
(iv) प्रात: तथा सायं रोग में वृद्धि

(1) जवानी में वृद्धावस्था से स्नायविक लक्षण – दुबले-पतले युवक या पतली-दुबली स्त्रियों जो जवानी में ही बुढ़ापे जैसी अवस्था में पहुंची जाती हैं, 50 वर्ष की आयु हो और 70 वर्ष की लगती हैं, चाहे ऐसे बच्चे हों जो बूढ़े-से लगने लगे, ऐसों के लिये एम्ब्रा ग्रीसिया औषधि उत्तम हैं। उनके अंगों में कमजोरी के कारण कंपन, चलने में लड़खड़ाहट, विचार-शक्ति की कमी, सब-कुछ भूल जाना – ये लक्षण दिखाई देते हैं। वे बात करते हुए भूल जाते हैं कि क्या कहा था, प्रश्न करेंगे और उत्तर सुने बिना दूसरा प्रश्न कर डालेंगे। कई नवयुवकों में मन की ऐसी कमजोरी आ जाती है, वे पागल तो नहीं होते, परन्तु मन कमजोर हो जाता है। वृद्ध लोगों में स्नायु-दौर्बल्य का यह लक्षण पाया जाता है कि एक क्षण में तो वे बिल्कुल हतोत्साह, निराश दिखाई पड़ते हैं, फिर कुछ देर बाद, स्वभाव की उग्रता दर्शाते हैं। इस प्रकार के स्नायु-दौर्बल्य में वृद्ध-पुरुषों के लिये भी एम्ब्रा ग्रीसिया दवा से लाभ होता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि व्यक्ति सुख-दु:ख, शुभ-अशुभ सब बातों के प्रति उदासीन हो जाता है। जिन बातों से दूसरों का दिल टूट जाय उन बातों का उन पर कोई असर नहीं होता, यह इसलिये नहीं कि वे मानसिक-दृष्टि से गीता के निस्संग-योग तक पहुंच चुके होते हैं, परन्तु इसलिये क्योंकि उनकी सोच-विचार की मानसिक-शक्ति का ही ह्रास हो गया होता है। प्रात:काल सोकर उठने पर इन लोगों की मानसिक-स्थिति सजग नहीं होती, वे अपने को स्वप्न की-सी अवस्था में पाते हैं। अगर यह अवस्था बढ़ती जाय, तो सांयकाल तक वे पागल-से पाये जाते हैं।

(2) चक्कर आना (Vertigo) – समय से पहले ही जिन लोगों में वृद्धावस्था के लक्षण प्रकट होने लगते हैं वे चक्करों के भी शिकार हो जाते हैं। यह नहीं समझना चाहिये कि जिसे चक्कर आये वह वृद्धावस्था की बीमारी का शिकार है। चक्कर तो कई कारणों से आ सकते हैं, परन्तु अगर जवानी में वृद्धावस्था के लक्षण प्रकट होने लगें और चक्कर आने लगें, तो इस औषधि पर भी विचार करना चाहिये। वह अकेला गली में नहीं निकल सकता। जिस विषय पर विचार कर रहा है, उस पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये उसे बार-बार प्रयत्न करना पड़ता है, अन्यथा विचार का विषय ही समाने नहीं रहता।

(3) घरेलू विपत्ति या व्यापार में हानि के कारण स्नायु-दौर्बल्य तथा निद्रा-नाश – तन्दुरुस्त मजबूत आदमी जिसे व्यापार में घाटे की चिन्ता एकदम आ घेरे या जिस पर घरेलू विपत्ति आ पड़े, परिवार में एक के बाद दूसरे के मरने से जिस के मन पर ऐसा आघात पहुँचे कि उसे संसार निस्सार दीखने लगे, जो इन दुर्घटनाओं को देखकर सोचने लगे कि जीने का कुछ लक्ष्य ही उसके सामने नहीं रहा, दु:ख, निराशा से जो ग्रस्त होकर जीवन से निराश हो जाय, इन्हीं विचारों से जिसकी निद्रा भी नष्ट हो जाय, ऐसे रोगी का यह सहारा है।

एम्ब्रा तथा नैट्रम म्यूर की तुलना – एम्ब्रा के सामने भयंकर, काल्पनिक शक्लें आती-जाती रहती हैं जिनके कारण वह नहीं सो सकता, और नैट्रम का रोगी भूतकाल की घटनाओं को सोचता रहता है, इससे उसे नींद नहीं आती। एम्ब्रा की अवस्था व्यापारिक चिंताओं, घरेलू दुर्घटनाओं द्वारा मस्तिष्क के कमजोर हो जाने के कारण होती है, इसी कारण से उसे चक्कर भी आता है।

(4) गाना-बजाना सहन न होना, गाने से खाँसी आ जाना – गाना सुनने से उसके अनेक कष्ट उभर आते हैं। गाने के स्वरों को वह भौतिक, साकार-धातु अनुभव करता है, और उसे ऐसी अनुभूति होती है कि वे स्वर उसे जकड़े जा रहे हैं। गाना सुनने से उसे खांसी आने लगती है।

(5) शरीर के पीड़ित अंग में शिकायतें – इसमें शरीर के एक अंग की शिकायतें होती हैं। उदाहरणार्थ, उसे शरीर के उसी अंग में पसीना आता है जो अंग पीड़ित या रोगग्रस्त होता है, दूसरे में नहीं। शरीर के एक तरफ ही पसीने का लक्षण पल्सेटिला में भी हैं, परन्तु पीड़ित अंग में ही पसीना एम्ब्रा में ही है।

(6) इस औषधि के अन्य लक्षण

(i) स्त्री-प्रसंग करते समय दमे का दौरे पड़ना इसका विलक्षण-लक्षण है।
(ii) मेरु-दण्ड के प्रदाह (Spinal irritation) से जो लोग रोग-ग्रस्त हैं उनकी स्नायविक-खांसी (Nervous cough), डकार आदि में इससे लाभ होता है। यह स्नायु-प्रधान दवा है।
(iii) अंगुली, बांह आदि किसी एक अंग का सुन्नपना।
(iv) दूसरों के बीच में जाने से रोगी परेशान हो जाता है।

(7) शक्ति – 2 या 3 शक्तियों का बार-बार प्रयोग किया जा सकता है। सांयकाल इस औषधि को नहीं देना चाहिये, इससे रोग बढ़ सकता है। यह व्हेल मछली से निकलता है और नोसोड (Nosode) है।

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