ऐसाफेटिडा ( Asafoetida ) का गुण, लक्षण

7,438

लक्षण तथा मुख्य-रोग का प्रकृति

(1) फूला हुआ चेहरा, स्थूल, ढीला-ढाला, रक्तनीलिमा युक्त (लाल-नीला) रंग
(2) हिस्टीरिया में पेट से गले की तरफ एक गोलक का चढ़ना
(3) पेट में वायु तथा बड़े-बड़े डकार
(4) आतशकी-मिजाज, भिन्न-भिन्न अंगों में जख्म
(5) हड्डियों में रात को दर्द
(6) बायीं तरफ आक्रमण

लक्षणों में कमी

(i) खुली हवा में घूमने से रोगी को आराम पहुँचना

लक्षणों में वृद्धि

(i) रात को रोग बढ़ जाना
(ii) बन्द कमरे में घबराना
(iii) स्रावों के रुक जाने पर
(iv) गर्म कपड़ा लपेटने पर
(v) बाईं ओर लेटने से वृद्धि

(1) फूला हुआ चेहरा, स्थूल, ढीलाढाला, रक्तनीलिमायुक्त रंग – हमारे शरीर में दो प्रकार की रक्तवाहिनियां हैं -‘घमनी’ तथा ‘शिरा’, जिन में से ‘धमनी’ में हृदय से शुद्ध-रक्त शरीर में जाता है, और ‘शिरा’ में अशुद्ध-रक्त फेफड़ों द्वारा शुद्ध होने के लिये हृदय में लौटता है। शिराओं का काम ढीला हो जाय, तो नीला खून शरीर में जगह-जगह रुक जाता है जिससे चेहरा फूला हुआ, शरीर ढीला-ढाला और रक्तनीलिमायुक्त रंग का हो जाता है। रक्त में कुछ लालिमा, कुछ नीलिमा मिली-जुली होती है। ऐसे रोगी को मोटा-ताजा देखकर सब लोग स्वस्थ समझते हैं, परन्तु शिराओं की शिथिलता के कारण उसका चेहरा फूला हुआ होता है, स्वास्थ्य के कारण नहीं। ऐसे रोगी के हृदय में कुछ विकार होता है जिसके कारण उसके शरीर में ‘शिरा-रुधिर-स्थिति’ पायी जाती है। ऐसे रोगियों का इलाज कठिन होता है, ये ‘शिरा-प्रधान-शरीर’ के रोगी होते हैं और इन्हें कई प्रकार के स्नायवीय रोग हुआ करते हैं जिनमें ऐसाफेटिडा लाभदायक है। इनमें से एक रोग हिस्टीरिया भी है।

(2) हिस्टीरिया में पेट से गले की तरफ एक गोलक का चढ़ना – ऐसाफेटिडा औषधि का प्रधान लक्षण है रोगी के पेट से गले की तरफ एक गोलक का चढ़ना। इसे नीचे उतारने के लिये रोगी बार-बार अन्दर निगलने की कोशिश करता है, परन्तु उसे ऐसा मालूम होता है कि यह गोलक पेट में से ऊपर चढ़ता.चला आ रहा है। इसका कारण यह है कि ऐसाफेटिडा औषधि में वायु की गति अधोगामिनी होने के स्थान में अर्ध्वगामिनी हो जाती है। हमारी आंतों में एक विशेष प्रकार की गति हुआ करती है जिससे भीतर का भोजन या मल आगे-आगे को धकेला जाता है। जैसे गिडोया अपने शरीर को आगे-आगे धकेलता है, कुछ वैसी ही आंतों में अग्रगामिनी-गति होती है जिससे मल गुदा-प्रदेश की तरफ बढ़ता है। इस गति को ‘अग्र-गति’ कहते हैं। ऐसाफेटिडा औषधि के रोगी में ‘प्रतिगामी अग्र-गति’ हो जाती है जिससे वायु आगे की तरफ जाने के बजाय पीछे की तरफ लौटती है, और इसी कारण रोगी हिस्टीरिया से पीड़ित हो जाता है जिसमें उसे एक गोलक का पेट से गले की तरफ चढ़ने का कष्टप्रद अनुभव होता है। इग्नेशिया में भी ऐसा गोलक गले की तरफ आता प्रतीत होता है। ऐसाफेटिडा में इस गोलक के अलावा पेट में वायु भी उर्ध्वगामी हो जाती है।

(3) पेट में उर्ध्वगामी वायु तथा बड़े-बड़े डकार – ऐसाफेटिडा का पेट उर्ध्वगामी वायु का मूर्त-चित्रण है। ऐसा लगता है कि वायु का निकास नीचे से बिल्कुल बन्द हो गया है। रोगी ‘प्रतिगामी अग्र-गति’ से पीड़ित हो जाता है। देखनेवाले को समझ नहीं पड़ता कि पेट में से इतनी हवा कैसे ऊपर से निकल रही है। हर सेकेंड बन्दूक की आवाज की तरह डकार छूटते हैं जिन पर रोगी का कोई बस नहीं होता।

(4) आतशकी-मिजाज, भिन्न-भिन्न अंगों में ज़ख्म आदि – सिफ़िलिस के पुराने मरीजों के जख्मों में, आंख के गोलक में स्नायुशूल, उसकी सफेदी, पर जख्म, आइराइटिस, अर्थात् आँख के उपतारा में प्रदाह आदि सिफ़िलिस से उत्पन्न होने वाले जख्मों में यह लाभप्रद है। आतशकी-मिजाज में कान, कान की हड्डी, घुटने के नीचे टांग की हड्डी पर भी जुख्मों का आक्रमण हो सकता है। गले में भी सिफ़िलिस के घाव हो सकते हैं, नाक के घाव जिनसे बदबूदार स्राव निकलता है। नाक की हडड़ी सड़ जाती है। अस्थिवेष्टन में दर्द होता है जो धीरे-धीरे हड्डियों पर आक्रमण कर देता है। इन सब में रोगी से पूछ लेना चाहिये कि उसे कभी आतशक का आक्रमण तो नहीं हुआ। घुटने के नीचे टांग की टीबिया हड्डी के जख्म में हनीमैन के कथनानुसार स्पंजिया बहुत लाभ करता है, यद्यपि ऐसाफेटिडा भी इस आतशकी जख्म में उपयोगी है।

(5) हड्डियों में रात को दर्द – आतशक के रोगियों की तकलीफें रात को बढ़ जाया करती हैं। रात को दर्द होता है। ऐसाफेटिडा दवा में भी आतशकी-मिजाज होने के कारण हड्डियों में और हड्डियों के परिवेष्टन में रात को दर्द होता है। दर्द हड्डी के अन्दर से बाहर की तरफ आता है। सिर-दर्द, किसी भी अंग में हड्डी के भीतर से उठने वाला दर्द-इस औषधि के रोगी में पाया जाता है।

(6) बायीं तरफ आक्रमण – ऐसाफेटिडा औषधि का पेट, हड्डी या शरीर के किसी अंग पर भी प्रभाव हो सकता है, परन्तु इसका आक्रमण शरीर के बायें भाग पर विशेष होता है। उदाहरणार्थ, हम नीचे बायीं, दायीं तथा दायें से बायीं, बायें से दायीं तरफ विशेष रूप से प्रभाव रखने वाली कुछ औषधियों का विवरण दे रहे हैं।

बायीं तरफ के रोग में औषधियां – अर्जेन्टम नाइट्रिकम, ऐसाफेटिडा, असरम, लैकेसिस, ओलियेन्डर, फॉसफोरस, सिलेनियम, सीपिया स्टैनम।

दायीं तरफ के रोग में औषधियां – आर्सेनिक, ऑरम, बैप्टीशिया, बेलाडोना, सारसापैरिला, सिकेल कौर, सल्फ्यूरिक ऐसिड।

दायीं तरफ से चलकर बायीं को जाना – लाइकोपोडियम।

बायीं तरफ से चलकर दायीं को जाना – लैकेसिस

एक तरफ से दूसरी तरफ और फिर पहली तरफ आ जाना – लैक कैनाइनम

(7) शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (औषधि ‘गर्म’ है)

Ask A Doctor

किसी भी रोग को ठीक करने के लिए आप हमारे सुयोग्य होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। डॉक्टर का consultancy fee 200 रूपए है। Fee के भुगतान करने के बाद आपसे रोग और उसके लक्षण के बारे में पुछा जायेगा और उसके आधार पर आपको दवा का नाम और दवा लेने की विधि बताई जाएगी। पेमेंट आप Paytm या डेबिट कार्ड से कर सकते हैं। इसके लिए आप इस व्हाट्सएप्प नंबर पे सम्पर्क करें - +919006242658 सम्पूर्ण जानकारी के लिए लिंक पे क्लिक करें।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.

पुराने रोग के इलाज के लिए संपर्क करें