घुटने में दर्द, कट-कट की आवाज, जकड़न का होम्योपैथिक इलाज

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इस लेख में हम घुटने में दर्द कट-कट की आवाज आने के एक केस की चर्चा करेंगे कि कैसे होम्योपैथिक दवा से बीमारी पूरी तरह से ठीक हुई।

20 साल के एक लड़के के घुटनों में लम्बे समय से दर्द हो रहा था। वह न तो जमीन पर बैठ सकता है और न ही अपने पैर मोड़ सकता है। वह तरह-तरह के इंजेक्शन और पेन किलर का इस्तेमाल करता था।

घुटनों के जोड़ों में दर्द चलने से बढ़ जाता था, या खड़े रहने से भी दर्द बढ़ता था। जांच करने पर पाया घुटने के जोड़ लाल और गर्म थे, थोड़ी सूजन दिखाई दी, जकड़न भी थी

अन्य शिकायतें: – रोगी को खांसी और जुकाम, नाक से पानी आना और बार-बार छींक होता था। उसे अक्सर सिरदर्द भी होता था।

इसके अलावा, एक लक्षण था अगर वह धूप में जाता तो उसे अचानक कुछ देर के लिए आँख के सामने अंधेरा छा जाता था।

शारीरिक लक्षण पूछने पर पाया कि: – मीठा और कोल्ड ड्रिंक पीने की तीव्र इच्छा रहती थी। गर्म भोजन पसंद नहीं था । प्यास अच्छी थी और ठंडा पानी पीने की इच्छा होती थी। गर्मी बर्दास्त नहीं होता था, रोगी ग्रीष्म प्रकृति का था।

मानसिक लक्षण देखें तो :- वह हमेशा बहुत गुस्से में रहता था। जब भी उसे गुस्सा आता था तो वह किसी को जवाब देना पसंद नहीं करता था। बार-बार पूछने पर वह चिड़चिड़ा हो जाता था । उसकी मां ने बताया कि जब भी उसे सिरदर्द होता था तो वह बदतमीजी करता है। वह गर्म पानी से नहाता है।

वह हमेशा अकेला रहना चाहता है और दूसरों के साथ घुलना-मिलना नहीं चाहता। वह गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सकता। यहाँ ध्यान देने योग्य बात कि रोगी ग्रीष्म प्रकृति का होते हुए भी वह गर्म पानी से नहाता है।

वह “आलसी” है और उसे 12 घंटे से अधिक की नींद की आवश्यकता होती है। वह बहुत उदार, स्नेही और छोटे बच्चों और जानवरों से प्यार करता है परन्तु अंदर से कायर है

कॉलेज में, हर कोई उसे धमकाता या चिढ़ाता है, लेकिन यह वापस नहीं लड़ सकता है । वह रोते हुए जवाब देता है । बचपन में उन्हें अँधेरे और खून से डर लगता था। वह बिजली और आंधी से भी डर जाता था।

अब पूरे मामले का विश्लेषण करते हैं :-लक्षणों का चयन करने पर पता लगा कि :रोगी डरपोक और जिद्दी है, अशिष्ट और कभी-कभी बतमीज़ हो जाता है। उदास प्रवृति

घुटने में दर्द जोकि चलने से बढ़ता है, घुटने में गर्माहट और कठोरता भी है। मीठा और ठंडी चीज खाने की लालसा

रिपर्टरी के बाद जो दवा सबसे उचित आती है वो है bryonia यह रोगी के सभी लक्षण को कवर करता है। ऐसे में मैंने bryonia 1M सिंगल डोज़ लेने की सलाह दी।

दवा लेने से खांसी-जुकाम बढ़ गया था, पैरों में दर्द वैसे ही था, लेकिन उसने अच्छा महसूस करने की बात की। साथ ही उसकी भूख भी बढ़ गई थी। अपने जीवन में पहली बार उसने अपने किसी सहपाठी से लड़ाई की।

सहपाठी उसकी पीठ पर लिख रहा था, इसलिए वह गुस्सा हो गया और सहपाठी को थप्पड़ मार दिया। लड़ना-झगड़ना को आम तौर पर हम सिफिलिस की बीमारी समझते हैं

लेकिन यहां हमें यह समझने की कोशिश करनी होगी कि वह सबसे नहीं लड़ता, बल्कि सिर्फ अपनी रक्षा के लिए लड़ रहा था। इसलिए यह एक सोरिक मामला है।

एक महीने के बाद उसे अब गहरी नींद आने लगी थी। उसने बताया कि सुबह उठने के बाद वह फ्रेश महसूस करता है और पढ़ाई में भी मन लग रहा है।

पैरों में दर्द कम है, लेकिन अभी भी उकड़ू नहीं बैठ सकता है। Bryonia 1M की 1 डोज और मैंने लेने की सलाह दी।

एक महीने बाद वह आराम से चल सकता था। अब उनके घुटनों का दर्द कम था। सांस की तकलीफ नहीं थी। उसकी भूख बढ़ गई थी। यहां तक कि उनकी मां भी उसकी तारीफ करने लगी थीं।

धीरे-धीरे उसकी सहनशक्ति बढ़ गई थी। वह पहली बार साइकिल से क्लीनिक आया था। यह लगभग 5-6 किमी की सवारी थी, बीच में बिना किसी विश्राम के। सांस की तकलीफ नहीं थी। उनके पैर का दर्द कम था।

बैठने में सुधार हुआ था। वह अब फुटबॉल खेल रहा था। वह अब घर में रहना पसंद नहीं करता था, बल्कि बाहर जाकर जीवन का आनंद लेना चाहता था।

वह अब बेहतर तरीके से उकड़ू बैठ सकता था। उसकी नींद अब सामान्य थी और सपने अच्छे थे।

जोड़ों की कड़ी लचीली हड्डी में कुछ अज्ञात कारणों से ऊतकों के निष्क्रिय होने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है, जिसके कारण जोड़ों की साइनोवियल झिल्ली में सूजन आ जाती है। यह लगातार बढ़ती जाती है, जिस कारण जोड़ों की सामान्य संरचना छिन्न-भिन्न हो जाती है और एक्स-रे कराए जाने पर जोड़ों की संरचना में विषमता पाई जाती है।

Ghutno me Dard, kat kat, Sujan ka Homeopathic Ilaj

यदि जोड़ों के भीतर पाये जाने वाले ‘साइनोवियल द्रव्य’ की सूक्ष्मदर्शी द्वारा जांच करवाई जाए, तो उसमें ‘मोनोसोडियम यूरेट’ नामक रसायन के कण पाए जाते हैं, जो जोड़ों पर जमा होने लगते हैं और सामान्य क्रियाओं में बाधक बनते हैं। इस अवस्था को गठिया कहते हैं। इसकी शुरुआत प्राय: हाथों एवं पैरों की उंगलियों के जोड़ों से होती है। दुनिया के लगभग सभी देशों में यह बीमारी पाई जाती है। लगभग 2.5% आबादी इस रोग से पीड़ित है। वैसे तो यह बचपन से नब्बे साल तक कभी भी प्रारम्भ हो सकता है, किन्तु 40 से 60 वर्ष की उम्र में अधिक होता है। यह स्त्रियों में अधिक होता है।

आरथ्राइटिस : इसके होने के दो कारणहैं -1.अज्ञात 2.मानसिक तनाव(सम्भावित)।

जोड़ों का दर्द के लक्षण

1. जोड़ों में दर्द एवं अकड़ाव रहता है।
2. जोड़ों में सूजन आ जाती है।
3. जोड़ों को चलाना-फिराना मुश्किल हो जाता है।
4. हाथों की पकड़ने की ताकत (ग्रिप) क्षीण हो जाती है।
5. जोड़ों के साथ ही मांसपेशियों में कमजोरी आने लगती है।
6. लेटने के बाद उठने पर जोड़ों में जकड़न महसूस होती है।
7. सुबह उठने पर लगभग आधे घटे तक जकड़न बनी रहती है।
8. इसकी शुरुआत कभी-कभी अचानक होती है। यह प्राय: धीरे-धीरे प्रारम्भ होता है।

गाउट (वात रोग या गठिया) : इसमें उपापचय संबंधी (मुख्यत: ट्यूरी उपापचय संबंधी) गड़बड़ियां शरीर में होने लगती हैं। उसकी वजह से खून में अधिक यूरिक अम्ल पहुंचने लगता है और यूरेट क्रिस्टल ऊतकों में जमा होने लगते हैं। यहां से यही क्रिस्टल जोड़ों में जमा होने लगते हैं (हड्डी पर), जिससे हड्डियों में सूजन आ जाती है।

गठिया का लक्षण

1. यह आनुवंशिक रोग है (10% रोगियों में)।
2. 30-40 वर्ष की उम्र के बाद में यह रोग शुरू होता है।
3. इसकी शुरुआत अव्यवस्थित होती है और चोट लगने, बुखार, व्रत रखने, ऑपरेशन के बाद अथवा खान-पान की गड़बड़ियों के कारण कभी भी यह रोग प्रारम्भ हो सकता है और बहुत तेजी से विकसित होता है।
4. कलाई, कुहनी, घुटना एवं एंकिल (पैर को टांग से जोड़ने वाला जोड़) एवं हाथ-पैरों की उंगलियों के जोड़ों में इसकी शुरुआत होती है।
5. स्नायु एवं मांसपेशियां (संबंधित जोड़ों की) भी प्रभावित होने लगती हैं।
6. शुरुआत किसी एक जोड़ से (प्राय: पैर के अंगूठे अथवा एंकिल जोड़ से) होती है और शीघ्र ही अन्य जोड़ों में भी बीमारी के लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं।
7. 101 से 103 डिग्री फारेनहाइट तक बुखार रहता है।
8. प्रभावित जोड़ में सूजन आ जाती है और दर्द रहने लगता है।
9. छूने मात्र से ही तीव्र-दर्द रहने लगता है। कभी-कभी तो मरीज प्रभावित जोड़ बिस्तर के कपड़ों तक से छू जाने पर दर्द महसूस करता है।
10. घुटने आदि जोड़ों में द्रव्य इकट्ठा होने लगता है।
11. पुरानी गठियाजनित जोड़ों में अकड़ाव, दर्द, सूजन, जोड़ों को घुमाना-फिराना मुश्किल हो जाता है।
12. साइनोवियल झिल्ली मोटी हो जाती है।

गठिया का रोकथाम एवं बचाव

(गठिया एवं जोड़ों की सूजन, दोनों ही स्थितियों में) –

1. रोग की अवस्था में (तीव्रता में) बिस्तर पर आराम आवश्यक है।
2. गठिया रोग होने पर प्यूरीनयुक्त भोजन,जैसे ग्रंथियुक्त विशेष प्रकार का मांस नहीं खाना चाहिए।
3. वजन कम नहीं होने देना चाहिए।
4. पानी अधिक से अधिक पीना चाहिए, ताकि गुर्दो में पथरी न बने।
5. अलग से सूक्ष्म मात्रा में सोडियम बाईकार्बोनेट लेना, गुर्दो में पथरी की सम्भावना को रोकता है, किन्तु अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि अधिकता होने पर (सोडियम की) उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी विकार आदि उत्पन्न हो सकते हैं।
6. शारीरिक चोटों से जोड़ों को बचाना चाहिए, अन्यथा सूजन और बढ़ जाएगी।
7. जोड़ों के व्यायाम (फिजियो थेरेपी) मांसपेशियों, स्नायुओं एवं जोड़ों की ताकत बढ़ाने एवं इनके सही संचालन में अत्यंत मददगार होते हैं।

घुटने में दर्द, कट-कट की आवाज, जकड़न का होम्योपैथिक इलाज 

ग्वाएकमः रुमेटिक दर्द, कंधों में, बांहों में, हाथों में, गर्दन में दर्द, अकड़ाहट, गठिया का तीव्र दर्द, जोड़ों को चलाने में असमर्थ, एंकिल (पैर को टांग से जोड़ने वाला जोड़) में दर्द, पैर में दर्द, चल पाने में असमर्थ, पैरों को मोड़कर बैठने पर दर्द, सूजन, अकड़ाहट, प्रभावित पैरों में गर्मी महसूस होना, जरा-सा चलने-घूमने से, गर्मी से, ठंडे मौसम में, जरा-सा छूने पर भी परेशानी महसूस होना, जोड़ों की सूजन की प्रारम्भिक अवस्था, सारे शरीर से बदबू आना, सेब खाने की प्रबल इच्छा आदि लक्षण मिलने पर 3 शक्ति में कुछ दिन खिलाने पर अवश्य ही लाभ मिलता है।

ब्रायोनिया : धुटनों में अकड़न, दर्द, गर्मी एवं पैरों में सूजन, जोड़ों में सूजन, गर्मी और लाली महसूस होना, खिंचाव एवं इस प्रकार का दर्द, जैसे किसी ने जोड़ों को तोड़ दिया हो,जरा सा चलने-फिरने पर भयंकर दर्द, दबाने पर हर जगह दर्द महसूस होना, गर्दन में अकड़ाहट, कमर में दर्द, बाएं हाथ और पैर को बार-बार हिलाने की आदत, अधिक प्यास, दर्द वाली तरफ करवट करके लेटने पर आराम, गर्मी में परेशानी, ठंडी वस्तुओं की इच्छा आदि लक्षण मिलने पर 30 शक्ति की दवा उपयोगी रहती है।

कॉल्चिकम : जोड़ों में तीव्र दर्द, हाथों में, कलाई में सुई जैसी चुभन, हाथों की उंगलियों के अग्रभाग में चेतनाशून्यता, जांघों में पीड़ा, पैर कमजोर, पतले, लड़खड़ाना, शाम को एवं गर्मी में परेशानी बढ़ना, जोड़ों में कठोरता, हलका बुखार,जोड़ों की सूजन रात में अधिक, पैर के अंगूठे की सूजन, एड़ी में वात रोग का असर, छूना तथा घुमाना सम्भव नहीं, उंगलियों के नाखूनों में सनसनाहट, जोड़ों में जलीय शोथ, सूजन एवं पैरों और टांगों में ठंडी, खाने की खुशबू से जी मिचलाना, आगे की तरफ झुककर बैठने पर आराम आदि लक्षण मिलने पर 12 × एवं 30 शक्ति में दवा लेनी चाहिए। साथ ही ‘बेंजोइक एसिड’ 6 × शक्ति में लेनी चाहिए।

रसटॉक्स : जोड़ों में दर्द, सूजन, स्नायुओं में, मांसपेशियों में दर्द, कमर एवं गर्दन में दर्द, पैरों में कठोरता, पक्षाघात जैसी स्थितैि, ठंड-ताजा हवा बर्दाश्त नहीं हो पाती, हाथों एवं उंगलियों में चीटियों के चलने एवं आराम करने पर लेटने पर परेशानी बढ़ना एवं लगातार घूमते रहने पर परेशानी कम महसूस होने पर 30 शक्ति में लेनी चाहिए।

लीथियम कार्बः दीर्घ स्थायी जोड़ों की सूजन व गठिया हृदय रोग के साथ-साथ बनी रहती है, जोड़ों मेंगांठे बन जाती हैं, सारे शरीर में टीस बनी रहती है, हाथ-पैरों के जोड़ों में कड़ापन आ जाता है, गर्म पानी से धोने पर एवं चलते-फिरते रहने पर थोड़ा आराम मिलता है, दाईं तरफ लेटने पर एवं सुबह के समय परेशानी तीव्रतम होती है, तो 3x शक्ति में नियमित औषधि सेवन से आशातीत लाभ मिलता है।

फारमिकारुफा : जोड़ों का दर्द, कड़े एवं न खुलने वाले जोड़, पैरों की कमजोरी, जोड़ों की सूजन व गठिया अचानक शुरू होती है, मध्य रात्रि के बाद एवं रगड़ने से कुछ आराम मिलता है, त्वचा लाल रहती है और खुजलाने से आराम मिलता है। इसे 6 × शक्ति में लें।

फारमिक एसिडः फिलाडेल्फिया के हैनीमैन कॉलेज की हेरिंग रिसर्च लेबोरेटरी के डा. सिलवेस्ट्रोविक्ज ने उक्त औषधि पर काफी काम किया है और आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए। गठिया एवं जोड़ों की सूजने के बिगड़े रोगी, जिनके जोड़ों में गांठ पड़ चुकी हों, त्वचा पर अकौता बनने लगे, मांसपेशियों में अपरिवर्तनीय परिवर्तन होने लगे, गुर्दे भी ठीक काम न कर पा रहे हों, पेशाब में यूरिक अम्ल की मात्रा काफी बढ़ी हो, यानी कुल मिलाकर लाइलाज हो चुके ऐसे रोगियों के लिए उक्त औषधि 6× शक्ति में अंधेरे में रोशनी की किरण का काम करती है।

यदि जोड़ों का दर्द नीचे से ऊपर की तरफ चले, तो लीडम नामक औषधि 30 शक्ति में एवं यदि दर्द ऊपर से नीचे की तरफ चले, तो ‘काल्मिया लेटिफोलिया’ औषधि 30 शक्ति में, दिन में तीन बार तीन-चार दिन खाने पर आशातीत लाभ मिलता है। दोनों ही औषधियों में प्राय: पैरों के जोड़ों से ही दर्द शुरू होता है।

बेंजोइक एसिड : यदि चलने पर जोड़ों में टूटन महसूस हो तो कालचिकम औषधि के बाद यह दवा उपयुक्त रहती है। 30 शक्ति में प्रयोग करें इस दवा के रोगी के पेशाब में दुर्गध आती है व पेशाब की जांच में यूरिक एसिड भी मिलता है।

लाभदायक होमियोपैथिक टिप्स

• आंख आना, कीचड़ होना, रोशनी सहन नहीं होना, दर्द, जलन – अर्जेटम नाइट
• किसी तरह की गंध सहन न होना, इसके कारण घृणा व अरूचि हो – आर्सेनिक एल्ब
• नई सर्दी, छींक आना, नाक और गले में जलन, नाक में घाव हो जाना, पपड़ी जमना – आर्सेनिक एल्ब

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4 Comments
  1. Pankaj says

    सर
    मेरे हाथ की उंगली की हड्डी ऊपर जुड़ गयी है
    और उस पर सूजन बहुत है डॉकटर बोलता है
    ओप्रेशन किया तो चाल नही आएगी
    एक महीने से ज्यदा हो गया है
    सर अब आप ही कोई उपाय बताये

    1. Dr G.P.Singh says

      Send details of your nature. Start treatment with Antim crud 30 once in morning.

  2. Pankaj says

    सर
    मेरे हाथ की उंगली की हड्डी जोल्ट से टूट गही है और ऊपर ऊपर जुड़ गयी है
    और उस पर सूजन बहुत है जोल्ट पर गाँठ पढ गही है डॉकटर बोलता है
    ओप्रेशन किया तो चाल नही आएगी
    एक महीने से ज्यदा हो गया है
    सर अब आप ही कोई उपाय बताये

    1. Dr G.P.Singh says

      you please tell us which hand and which finger has broken . Whats your height, figure, colour, when swelling increases. are you affected by cold easily. nature of stool, Gas problem etc. Anger and fear are also two vital points to be known. Do you drink more water as usual. If you will give these information’s you will get better result. you may start your treatment as follows 1- Arnica mont. 200 one drop in morning after 3 days interval, 2-Symphitum 30 one drop daily in morning.3-Calcaria Phos 6x thrice in a day. and Antim Crud 30 one drop alternate day.

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