पीलिया का होम्योपैथिक इलाज

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पीलिया से यकृत की विषाणुजनित सूजन, आकार बढ़ना, दर्द जिसके कारण संपूर्ण पाचन प्रक्रिया एवं शरीर की वह प्रक्रिया जिससे भोजन जीवित पदार्थ में बदल जाता है अर्थात् पाच्य प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है। यह दो प्रकार की होती है – हिपेटाइटिस ‘ए’, हिपेटाइटिस ‘बी’।

हिपेटाइटिस ‘ए’ : डी.एन.ए.वायरस (संभवतया) जनित, 15 से49 दिनों में अपने लक्षण प्रकट करने लगता है, मुख्यतया बच्चों में, संक्रामक पाखाने पर बैठी मक्खियों द्वारा संक्रमण, किन्तु अधिक घातक नहीं।

हिपेटाइटिस ‘बी’ : निश्चित तौर पर डी.एन.ए.वायरस जनित, 50 से 180 दिन के भीतर लक्षण प्रकट होते हैं (विषाणु के शरीर में प्रवेश रोकने के पश्चात्), खून के द्वारा संक्रमण एवं घातक।

हिपेटाइटिस ‘बी’ एण्टीजिन नामक पदार्थ रोगी के शरीर में खून की जांच के दौरान पाया जाता है।

पीलिया का मुख्य लक्षण –

• हिपेटाइटिस ‘ए’ एवं ‘बी’ दोनों की शुरुआत में थकान, कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, उल्टी एवं दो-चार दिन बाद पीलिया के लक्षण प्रकट होते हैं।

• पेशाब बहुत पीला (सरसों के तेल जैसा) एवं पाखाना एकदम सफेद हो जाता है।

• भूख न लगना, यकृत के दाहिने हिस्से में दर्द महसूस होना, शरीर पर खुजली, जिन व्यक्तियों में धूम्रपान की आदत होती है, उनमें धूम्रपान के प्रति अनिच्छा, जोड़ों में दर्द मुख्य लक्षण होते हैं।

• आंखों में गहरा पीलापन, जलन, जुकाम, गले में खराश भी होने लगती है।

• शारीरिक जांच करने पर पीलिया की प्रारंभिक अवस्था में यकृत अपने आकार से बढ़ जाता है। साथ ही गर्दन के लिम्फनीडस भी कुछ रोगियों में बढ़े होते हैं।

• हिपेटाइटिस ‘बी’ के कुछ प्रतिशत रोगियों में विभिन्न जोड़ों में दर्द, शरीर पर खुजली एवं पित्ती उछलना, सूजन इत्यादि के लक्षण मिलते हैं।

• पहले कुछ दिन तक पीलिया बढ़ता है, किन्तु कुछ दिन बाद स्वतः एवं दवाओं के माध्यम से कम होने लगता है। पीलिया के साथ ही खून में ट्रांसफरेंज एंजाइम भी बढ़ने लगते हैं।

पीलिया का बचाव एवं रोकथाम

हिपेटाइटिस ‘ए’ गंदे पानी से, गंदे फलों से एवं संक्रामक रोगी के पाखाने पर बैठी मक्खियों द्वारा फैलता है। इसमें रोगी की सफाई, कपड़ों को गर्म पानी में धोना, पाखाना खुले में न करना आवश्यक है। गंदा एवं सीवर का पानी और गंदे फल अथवा अन्य खाद्य पदार्थ, जिन पर मक्खियां बैठ रही हों, नहीं खाने चाहिए। ऐसे रोगियों को तरणताल वगैरह में जाने से रोकना चाहिए एवं पाखाने को ढक देना चाहिए।

हिपेटाइटिस ‘बी’ मुख्यतया खून के द्वारा फैलता है। वे लोग जो इंजेक्शन द्वारा बहुधा मादक पदार्थ लेते हैं अथवा ‘लेबोरेट्री’ में कार्य करने वाले कर्मचारी, जो कभी-कभी संक्रामक रोगी का खून निकालने वाली सुई चुभ जाने के कारण इसके शिकार हो जाते हैं एवं यदि ऐसे मरीज के खून की एक बूंद भी गलती से स्वस्थ मनुष्य में चली जाए, तो वह भी इसका शिकार हो जाता है। हिपेटाइटिस ‘बी’ में पाया जाने वाला एच.बी.एस.ए.जी.एण्टीजिन यकृत के लिए घातक होता है।

पीलिया का उपचार

समान लक्षणों के आधार पर ‘ब्रायोनिया’, ‘मरक्यूरियस’, ‘लेकेसिस’, ‘नेट्रम सल्फ’, ‘पुनर्नवा’, ‘चेलीडोनियम’, ‘कालमेग’, ‘काडुअस’, ‘डोलीकास’ दवाएं अत्यंत लाभदायक हैं।

खट्टी डकारें, ठंडे पेय पदार्थों को पीने की तीव्र इच्छा, कमजोर पाचन, अत्यधिक भूख लगना, पेट में छूने भर से दर्द, खाने के बाद उल्टी हो जाना, मुंह का स्वाद कसैला, मुंह से लार बहना, जीभ मोटी सफेद, गला सूजा हुआ, कमजोर याददाश्त, यकृत के हिस्से में जैसे कोई छुरी मार रहा हो, इस प्रकार का दर्द, गैस बनना, पेट फूल जाना, यकृत बढ़ा हुआ, छूने पर दर्द, पीला-हरा पाखाना, कभी-कभी खून एवं म्यूकस एवंढंग से न हो पाने की प्रवृत्ति, बार-बार पेशाब जाना, कम मात्रा में पीला पेशाब, रात में, नमीदार मौसम में एवं दाहिनी करवट लेटने से परेशानी बढ़ना, पसीने से एवं गर्म कमरे और बिस्तर की गर्मी से भी परेशानी बढ़ना आदि लक्षण मैिलने पर ‘मरक्यूरियस’ नामक दवा 30 एवं 200 शक्ति की अत्यंत उपयोगी है।

पेट दर्द, अत्यधिक भूख, खाना खाने के बाद राहत महसूस करना, लार निगलने में गले में दर्द, यकृत वाले हिस्से में दर्द, कमर के चारों ओर कुछ भी बांधन हीं सकना, पेट फूला हुआ, अत्यधिक बोलने वाला, बदबूदार सख्त पाखाना, छींक अथवा खांसी आने पर पाखाने के रास्ते पर दर्द महसूस होना, दांत के साथ ही कान में भी दर्द, बेचैनी, बाईं तरफ लेटना दुष्कर, गर्म पेय पदार्थ पीने में असमर्थ, किन्तु गर्म चीजों के बाहरी स्पर्श से आराम एवं शरीर के विभिन्न द्रव्यों, जैसे-पेशाब, वीर्य आदि के स्खलन के बाद संतुष्टि अनुभव करने वाले मरीज को ‘लेकेसिस’ 200 एवं 1000 शक्ति की दवा उपयोगी है।

इनके अलावा ‘ब्रायोनिया 30’, ‘नेट्रम सल्फ 6 x’, ‘पुनर्नवा’ एवं ‘चेलीडोनियम’ दवाएं, मूल अर्क में यकृत संबंधी रोग में अत्यंत कारगर हैं। इन्हें 15 मिनट के अंतर पर लें।

गंदा पानी पीलिया का मुख्य कारण –

त्वचा एवं श्लेष्मा झिल्लियों का रंग शरीर के द्रव्यों (मुख्यतया रक्त) में, ‘सीरम बिलिरुबिन’ नामक तत्त्व की सांद्रता बढ़ जाने के कारण अत्यधिक पीला हो जाता है। इसीलिए इस रोग को पीलिया या जॉन्डिस कहते हैं।

रोग की अवस्था में (जब तक सीरम बिलिरुबिन बढ़ा रहे) तली हुई चीजें, दूध, दाल (प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ) आदि का पूर्ण परहेज रखना चाहिए। हरी सब्जियां, मूली, गन्ने का रस, नीबू, ग्लूकोज (पानी में घोलकर), आलू एवं अन्य शर्करायुक्त पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए। रोग की अवधि में रोगी को शारीरिक अथवा मानसिक परिश्रम नहीं करना चाहिए और तनावरहित होकर पूरी तरह बिस्तर पर ही आराम करना चाहिए। वैसे गर्मी के मौसम में, गन्ने का रस अथवा लस्सी आदि की दुकानों पर सफाई की कमी, गंदगी की अधिकता, छूत एवं संक्रमण के कारण उक्त रोग अधिक फैलता है। सफाई का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। रोगी को छाछ पीनी चाहिए।

पीलिया के इलाज का कुछ देसी नुस्खे

1. एक केला, सुबह निहार मुंह, बीच से काटकर, उसमें एक मटर के दाने के बराबर चूना रखकर, उसे लगातार तीन दिन तक खाने पर पीलिया का असर कम होने लगता है।
2. फिटकरी तवे पर गर्म कर लें (भूनकर फुला लें)। सुबह-शाम, आधा-आधा ग्राम पानी के साथ फांकना चाहिए।
3. सुबह मुंह, देसी पान में पुनर्नवास घास मिलाकर (थोड़ी मात्रा) खाने से (3-4 दिन) लाभ मिलता है।

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