बार बार पेट खराब होने का होम्योपैथिक दवा [ Homeopathy For Gastric Derangements In Hindi ]

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बार बार पेट खराब होना, पेट की विभिन्न बीमारियों में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-

नक्स-वोमिका – मानसिक-श्रम की अधिकता, शारीरिक-परिश्रम की कमी, माँस-मदिरा आदि का सेवन, बैठे रहना, व्यभिचार, रात्रि-जागरण तथा अनियमित जीवन व्यतीत करने के कारण उत्पन्न पेट की बीमारियों में यह औषध श्रेष्ठ लाभ करती है। इस औषध का रोगी चिड़चिड़े स्वभाव का, तेज तथा गरम मिजाज वाला, सायंकाल के समय सुस्ती से घिर जाने वाला, प्रात:काल चुस्त दिखाई न पड़ने वाला, परेशान तथा सिर में हल्के दर्द वाला होता है । उसे खाना खाने के एकाध घण्टे बाद पेट में दर्द अथवा परेशानियाँ अनुभव होने लगती हैं। भूख मारी जाती है और कभी-कभी असाधारण भूख दिखाई पड़ती हैं, परन्तु असाधारण भूख अपच-रोग की सूचक होती है। ऐसी असामान्य भूख अपच रोग आरम्भ होने के 24 से 36 घण्टे पूर्व लगने लगती है । खाना खाने के बाद जी घबराना, तबियत ठीक करने के लिए वमन हो जाने की इच्छा करना, परन्तु वमन न होना, छाती के निचले भाग से दर्द का उठ कर इधर-उधर फैल जाना तथा इस शिकायत का प्रात:काल बढ़ना एवं आँतों में चिरमिराहट का अनुभव होना-आदि लक्षण प्रकट होते हैं। पेट का पानी पेट से उछल कर ऊपर की ओर आता है तथा अन्न-नली में जलन भी होती हैं ।

कार्बो-वेज – पेट की बीमारियों में औषध का मुख्य लक्षण सड़ाँध है। खाया हुआ भोजन पेट में जाकर सड़ जाता है तथा उसके कारण बुसी हुई डकारें आती हैं, इस औषध के रोगी को प्राय: दस्तों की शिकायत होती हैं । वायु का प्रकोप पेट के ऊपर की ओर होने से डकार आने पर चैन का अनुभव होता है । पेट के ऊपरी भाग में हवा भर जाने के कारण दमा-रोग की भाँति श्वास फूलता है और 4 से 8 बजे के मध्य सायंकाल अधिक कष्ट का अनुभव होता है। वृद्ध व्यक्तियों के पुराने अपच रोग में यह विशेष लाभकारी है । जीवनी-शक्ति का पतन, अत्यधिक कमजोरी तथा रोगी द्वारा ‘हवा करने’ की माँग करना, इस औषध का मुख्य लक्षण है। पेट के रोगी में इस औषध को 3x शक्ति में तथा पुराने रोग एवं जीवनी-शक्ति की पतनावस्था में 30, 200 शक्ति में देना चाहिए ।

चायना 30 – इस औषध का चरित्रगत लक्षण कमजोरी के कारण शरीर में से किसी जीवन-तत्व, जैसे-रक्त, वीर्य, पानी, दस्त आदि का निकल जाना होता है । इस औषध को रोगी को भूख नहीं लगती, परन्तु जब वह खाने बैठता है तो पेट भर कर खा भी लेता है। मुँह में भोजन के एक-दो ग्रास डालते ही उसे अपना पेट भरा-भरा सा अनुभव होने लगता है । उसे अफारे की शिकायत भी हो सकती है । सम्पूर्ण पेट में हवा भरी रहती है । दुर्गन्धित, फीकी, खट्टी अथवा कड़वी डकारें आती हैं, परन्तु डकार आने के कारण क्षणिक-आराम ही मिल पाता है तथा ऐसा अनुभव होता है कि खाया हुआ भोजन अन्न-नली में वक्षास्थि के समीप ज्यों-का-त्यों पड़ा हुआ हो । यदि भोजन हज्म न हो, वह पेट में देर तक पड़ा रहे, डकारें आती रहें तथा अन्न में बिना पचा भोजन वमन के रूप में निकल जाय तो इस औषध के प्रयोग से बहुत लाभ होता है।

लाइकोपोडियम 30 – इस औषध का मुख्य लक्षण यह है कि इसके रोगी को बड़े जोर की भूख लगती है, परन्तु जब वह खाने बैठता है, तब थोड़ा-सा खाते ही पेट फूल जाता है और वह खाना छोड़ बैठता है । पेट की पुरानी बीमारी, जिगर अथवा गठिया-रोगी के उदर-कष्ट में यह औषध विशेष लाभ करती है । इसके रोगी को खाने खाते ही तुरन्त पेट में कष्ट होने लगता है, कमर पर दबाब बर्दाश्त नहीं होता। इसमें पाचन-क्रिया धीमी गति से होती है, भोजन कठिनाई से पचता है तथा खाना खाने के बाद जबर्दस्त नींद आ जाती है । शाम को खाना खाने के बाद पेट इतना फूल जाता है कि रोगी बेचैन हो जाता है और उसे बहुत देर रात बीते तक नींद नहीं आती । खट्टी डकारें आना, मुँह में खट्टा स्वाद, डकारें आने पर भी आराम का अनुभव होना, खट्टी वमन एवं खाने के तुरन्त बाद कष्ट की शुरुआत हो जाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं । रोगी गरम पानी पीना पसन्द करता है तथा उसे मीठा खाने की इच्छा भी बनी रहती है ।

पल्सेटिला 30 – मुँह का स्वाद हर समय बिगड़ा रहना, प्रात:काल उठते समय ऐसा अनुभव होना कि रात में खाया हुआ खाना छाती में पड़ा हुआ है । चर्बीदार भोजन, माँस, मक्खन तथा घी आदि का सेवन करने के कारण उत्पन्न पेट के रोगों में यह विशेष लाभ करती है । इस औषध के रोगी की जीभ पर सफेद अथवा पीला मैल जमा रहता है । उसे ठण्डे पानी, आइसक्रीम आदि सेवन से कष्ट होता है । प्यास न लगना-इस औषध का मुख्य लक्षण है। खाना खाने के एक दो घण्टे बाद पेट में भारीपन का अनुभव तथा उस स्थिति में कुछ खा लेने से आराम का अनुभव, हवा का पेट में इधर-उधर चलते रहना और उसके कारण छाती में दर्द होना तथा डकार आने अथवा अपान-वायु के निस्सरण से आराम का अनुभव होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं । इस औषध का एक विचित्र लक्षण यह है कि इसके रोगी को हर समय ठण्ड लगती रहती है, परन्तु वह गर्मी को पसन्द नहीं करता, क्योंकि गर्मी के कारण उसकी तकलीफ अधिक बढ़ जाती है । खाने के बाद दिल में धड़कन होना, अन्न-नली में जलन अधिक होना तथा खाये हुए भोजन का स्वाद आते रहना-यह इसके विशेष लक्षण हैं । इस औषध का रोगी सहनशील तथा मृदु-स्वभाव का होता है ।

सीपिया 30, 200 – यह औषध प्राय: स्त्री रोगों के लिए उत्तम मानी गई है, परन्तु लक्षणों में समानता होने पर पुरुषों के उपयोग में भी आती है। इस औषध का रोगी गरम-मिजाज, रुदनशील, निराशावादी, काम-काज से आराम तथा गरम हाथ एवं ठण्डे पाँवों वाला होता है। इस औषध का विशेष लक्षण नाक से होता हुआ दोनों गालों पर घोड़े की जीन जैसे दाग का पड़ जाना है। दूसरा विशेष लक्षण पेट के गड्ढ़े में खालीपन का अनुभव होना है, जिसमें कि भोजन करने से भी आराम नहीं मिलता। भोजन को देख कर अथवा भोजन की गन्ध पाते ही जी मिचलाने लगता है, जिगर में तीव्र दर्द होता है, परन्तु दाँयी करवट लेटने से वह शान्त हो जाता है। इस औषध के रोगी को खट्टी वस्तुएँ तथा अचार आदि विशेष प्रिय लगते हैं ।

ऐनाकार्डियम 6, 30, 200 – इस औषध का मुख्य लक्षण यह है कि खाना खाने के दो घण्टे बाद रोगी को अपना पेट धंसता हुआ सा लगता है तथा पेट से हल्का सा दर्द उठकर रीढ़ की हड्डी तक जा पहुँचता है। इस धंसनेपन के अनुभव को दूर करने के लिए रोगी पुनः खाना खा लेता है, जिसके कारण उसे थोड़ी देर तक आराम का अनुभव होता है, परन्तु कुछ घण्टों बाद ही पूर्ववत् अनुभव हो उठता हैं और वह पुन: खाना खाने के लिए बाध्य होता है। इस प्रकार वह खाता ही रहता है। इस औषध के रोगी के पेट में, विशेष कर रात के समय तीव्र वेदना होती है तथा पाखाने की हाजत होती है, परन्तु टट्टी करने के लिए बैठते ही हाजत समाप्त हो जाती है तथा गुदा में डाट सी लगी हुई प्रतीत होती है ।

इग्नेशिया 200 – यह औषध परस्पर विरोधी लक्षणों में हितकर सिद्ध होती है। भूख के साथ उल्टी आने के लक्षण में इसका प्रयोग उचित रहता है। यह मिर्गी रोग की मुख्य औषध है । मिर्गी के साथ पेट की शिकायत में पूर्वोत विरोधी-लक्षण दिखाई देते हैं । हिस्टीरिया के रोगियों के लिए भी यह विशेष लाभकारी है। रात्रि के समय खाना खाने के बाद पेट का दर्द आरम्भ होना, हरकत अथवा दबाव से उसका बढ़ना तथा पेट में हवा भर जाना-इन सब लक्षणों में यह लाभ करती है ।

ग्रैफाइटिस 3, 30 – यह औषध त्वचा पर विशेष प्रभाव डालती हैं । इसका रोगी ढीली माँस-पेशियों वाला, मोटा तथा शीत-प्रकृति का होता है । इसकी त्वचा पर फोड़े-फुन्सी आदि भी हो सकते हैं। पेट में दर्द तथा खाने से आराम का अनुभव, माँस खाने से घृणा, गरम पानी का अनुकूल न पड़ना तथा मिठाई न खा पाना – अपचन के इन सब लक्षणों में यह औषध विशेष लाभ करती हैं ।

अर्जेण्टम नाइट्रिकम 3, 30 – पेट में हवा का भरा रहना तथा डकार आने पर हवा का भारी मात्रा में बाहर निकलना, जख्म की भाँति पेट में दर्द होना, कुतरने रहने जैसे दर्द का पेट के गर्त से उठकर चारों ओर को फैल जाना, सामान्य भोजन से भी दर्द में वृद्धि, पेट में अण्डे जैसे श्लेष्मा की वमन होना-जो तारों में खिंचती हो । मीठा खाने की अत्यधिक इच्छा, परन्तु मीठा खाते ही तबियत का और अधिक बिगड़ जाना तथा दस्त आना, पेट के किसी एक भाग में खुरचन-सी अनुभव होना, खाने या दबाने से उस तकलीफ का बढ़ जाना, पेट में अल्सर होने पर श्लेष्मा मिश्रित रक्त की वमन होना तथा किसी मानसिक-उद्वेग, निद्रा विनाश अथवा ऋतुधर्म की गड़बड़ी के कारण स्त्रियों के पेट में दर्द होना-इन सब लक्षणों में इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।

हाइड्रेस्टिस 30 – यह पेट की बीमारियों की आश्चर्यजक दवा है । पेट में सूजन, पेट से खट्टा पानी निकल कर अन्न-नली के ऊपर उछल आना, भूख मारी जाना, चित्त में म्लानता, जीभ केन्द्र के पीछे तक मैली तथा किनारों एवं नोंक पर लाल तथा कब्ज रहना-इन सब लक्षणों में यह औषध विशेष लाभ करती है । पेट के अल्सर में भी यह बहुत हितकर है ।

कैलि-कार्ब 30, 200 – इस औषध का रोगी जो कुछ खाता है उसकी गैस बन जाती है। वह मीठे का भी बहुत शौकीन होता है। किसी लम्बी बीमारी में जीवनप्रद-तत्वों के शोषण से टूटे हुए रोगी के लिए यह बहुत हितकर है। इस औषध का मुख्य लक्षण यह है कि खाना खाने से पूर्व पेट धंसता चला जाता है तथा बहुत कमजोरी का अनुभव होता है, जो कि भूख की तुलना में अत्यधिक होती है। वृद्ध, कमजोर, रक्तहीन, शीघ्र थक जाने वाले तथा कमर-दर्द वाले रोगियों के अपच-रोग की अत्युतम औषध है ।

नेट्रम-कार्ब 6 – इस औषध का रोगी अपने स्वास्थ्य के प्रति अत्यधिक, चिन्तित तथा म्लान-चित्त बना रहता है। प्रात:काल उसका जी मिचलाता है तथा खाली उबकाई आती हैं। वह घर के कामकाज से विमुख बना रहता है। खट्टी डकारें आती रहती हैं । पेट में अम्लता बढ़ जाती है तथा मेदा कमजोर हो जाता है । उसे दोपहर को 11 बजे के लगभग भूख लगती है। पेट भीतर को धंस जाता है। खाना खाने के बाद चित्त म्लान हो जाता है । भोजन में तनिक भी गड़बड़ी हो जाने पर उसका पेट खराब हो जाता है । इसका रोगी दूध भी नहीं पी सकता तथा गर्म शरीर में ठण्डा पानी पीने के कारण पेट सम्बन्धी कोई शिकायत उभर आती है। ऐसे सब लक्षणों में यह औषध लाभकर है ।

सल्फर 30, 200 – इस औषध के विशिष्ट लक्षण हैं – प्रात: 11 बजे तीव्र भूख का लगना, पेट का धंसना, पेट में गर्मी की लहरें उठना, सिर का गरम तथा पाँवों का ठण्डा रहना, कुत्ता जैसी नींद सोना, खाना कम खाना तथा पानी अधिक पीना, स्नान करने से परहेज, जबर्दस्त भूख लगने के कारण रात के समय भी उठ कर खाना खा लेना तथा खाने के बाद पेट का फूल जाना, कभी-कभी भूख का बिल्कुल न रहना, थोड़ा-सा खा लेने पर पेट भर जाने के लक्षण, मीठा खाने की जबर्दस्त इच्छा, परन्तु मीठा खा लेने पर दस्त आने लगना, दूध तथा अल्कोहल आदि पीने की इच्छा, जिसे पी लेने पर पेट में अम्ल की वृद्धि होना तथा वमन आना-इन सब लक्षणों में यह औषध लाभकारी है ।

फास्फोरस 3, 30 – इस औषध का रोगी ठण्डा भोजन तथा ठण्डे पेय पदार्थों का सेवन करना चाहता है, जिनके कारण उसे कुछ देर के लिए तो शान्ति अनुभव होती है, परन्तु जैसे ही ये पदार्थ पेट में पहुँच कर गरम होते हैं, वैसे ही उसे उल्टी आ जाती हैं । बिना जी मिचलाये वमन होना, दोपहर को 11 बजे के लगभग पेट में खालीपन का अनुभव तथा कमजोरी की प्रतीति, आँतों तक खालीपन का अनुभव, रात्रि के समय भूख का अनुभव होना तथा कुछ खाये बिना सो न पाना-ये सब इस औषध के प्रमुख लक्षण हैं । इसका विशेष लक्षण यह है कि रोगी अपने कन्धे के दोनों फलकों के बीच जलन का अनुभव करता है। पेट में कैंसर, उसमें कठोर गांठें, जलन, पेट के भीतर किसी द्वारा खरोंचे जाने की अनुभूति तथा किन्हीं गोल-स्थानों में दर्द होना आदि इसके लक्षण हैं। बीमारी के कारण रोगी का मांस क्षीण होता चला जा रहा हो और वह रक्तहीन हो गया हो, तब इसकी 3 शक्ति श्रेष्ठ काम करती है। पेट से रक्त आने में भी यह लाभकारी है ।

कुछ मुख्य दवा और पेट रोग

खाना-खाते ही पेट में परेशानी शुरू हो जाने पर – नक्स-मस्केटा ।

बीयर पीने वालों के पेट के रोग में गड़बड़ी – कैलिबाई-क्रोम ।

छाती के नीचे वाले भाग में पेट-दर्द – मर्कसोल, कैल्केरिया ।

खट्टी डकारों में – सल्फ्यूरिक-एसिड।

पेट मे अफारा होने पर – लाइको, कोलचिकम ।

मिर्गी के रोगी को खाना खाते ही कष्ट होना – नक्स-मस्केटा ।

खाना खाते ही आराम का अनुभव, होना – पेट्रोलियम, चेलिडोनियम, ग्रैफाइटिस ।

खाना खाते ही तकलीफ का बढ़ जाना – अर्जेण्टम नाइट्रिकम ।

भोजन के विचार से ही जी मिचलाने लगना – कोलचिकम ।

भोजन की गन्ध अथवा उसे देखने से जी मिचलाने लगना – सिपिया ।

रात को खाने के लिए उठना – फास्फोरस, सल्फर ।

विशेष – उत्त औषधियों का प्रयोग अन्य लक्षणों का भी मेल होने पर ही करना चाहिए ।

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2 Comments
  1. Deen Dayal Chouhan says

    I am suffering from sever constipation since last 2 years. Stool is very hard. Gas not passes. Some times bleading also without pain. Can u suggest homeopathic medicine to release smooth and easy passes of stool.

    1. Dr G.P.Singh says

      Don’t be dis hearten. Every thing is possible in this world if you try patiently. you write to us your problem as we want for facilitating in the direction of selection of medicine to be beneficial for you. For this either you try to write us in detail (ie details of your disease, your ht. your colour your age,effect of coldness and heat, hurydness, fear, anger,sensitivity etc. or try to meet the doctor at Patna. For immediate relief you may try Merc Sol 200 at 7 days interval, and Nux Vomica 30 at bed time daily . May God bless you.

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