मानव नाक की संरचना और उसके कार्य

3,152

नाक की बनावट (Structure of the Nose)

जिस ज्ञानेन्द्रिय द्वारा हमें गन्ध का ज्ञान होता है उसे ‘घ्राणेन्द्रिय’ (नासिका या नाक) कहते हैं । नाक के दो भाग होते हैं –

(1) बाहरी ( बहिर्नासिका ) External Nose

(2) भीतरी ( नासागुहा ) Nasal Fossa

बाहरी ( बहिर्नासिका ) (External Nose)

इसका कड़ा भाग हड्डियों से बना होता है और नीचे का मुलायम भाग (जो दबाने से दब जाता है) मांस, कार्टिलेज और त्वचा का बना होता है । नाक के नीचे का भाग एक दीवार के द्वारा दो भागों में बँटा होता है जिन्हें ‘नथुने’ कहते हैं। इन नथुनों में बाल उगे रहते हैं जो छलनी का काम करते हैं। जब वायु नाक द्वारा अन्दर जाती है तो नथुनों के बाल वायु की धूल, मिट्टी और सूक्ष्म कीड़ों को बाहर ही रोक लेते हैं, अन्दर नहीं जाने देते हैं ।

नथुनों के भीतरी पृष्ठ पर श्लैष्मिक कला (Mucous Membrane) चढ़ी रहती है। इस श्लैष्मिक कला में रक्त की कोशिकाओं का जाल फैला हुआ होता है। जब वायु नाक द्वारा फेफड़ों में जाती है तो इन रक्त-कोशिकाओं में भरे हुए रक्त से गरम होकर वायु अन्दर न जाये और ठण्डी ही अन्दर चली जाये तो नसें फूल जायेंगी और ‘जुकाम’ हो जायेगा । नथुनों की श्लैष्मिक कला में अनेक ग्रन्थियाँ (ग्लैण्ड्स) होती है, जिनमें बलगम बनता है । यह बलगम नथुनों को गीला रखता है। जुकाम होने पर ये ग्रन्थियाँ अधिक परिमाण अर्थात् अधिक मात्रा में बलगम बनाने लगती है।

भीतरी ( नासागुहा ) Nasal Fossa

नथुनों में से देखने में जो नाली जैसी चीज दिखाई देती है बस वही ‘नासागुहा’ है। इसके बीच में पर्दा होता है। उसके बीच के पर्दे पर श्लैष्मिक कला चढ़ी रहती है। नासागुहा में जो श्लैष्मिक कला रहती है, वही ‘गन्ध’ को पहचानती है तथा वही ‘घ्राण-प्रदेश’ भी है। नासागुहा के प्रत्येक कोष्ठ (चैम्बर) के ऊपर वाले भाग से सूंघा जाता है तथा नीचे वाले भाग से श्वास (साँस) ग्रहण किया जाता है । वायु का अधिक भाग इसी के नीचे के भाग में होकर जाता है ।

नाक के पिछले भाग का सम्बन्ध कण्ठ से होता है। यही कारण है कि कभी-कभी पानी पीते समय हंसी आ जाने पर जल कण्ठ से नाक में आ जाता है ।
नाक की उपयोगिता (Utility of Nose)

नाक बहुत ही उपयोगी ज्ञानेन्द्रिय है। नाक की घ्राण नाड़ी द्वारा हमें गन्ध का ज्ञान होता है। यह श्वास मार्ग का बहुत ही आवश्यक भाग है। इसके नथुनों के बाल वायु की धूल, मिट्टी और सूक्ष्म कीड़ों को फेंफड़ों के अन्दर जाने से रोकते हैं। यही नहीं, बल्कि नथुनों के भीतर भी श्लैष्मिक कला की कोशिकाएँ वायु को गरम करके फेंफड़ों के अन्दर भेजती है। यदि वे ऐसा न करें तो हमें आये दिन जुकाम होता रहे।

नाक द्वारा ही ऑक्सीजन ग्रहण किया जाता है और कार्बन-डाई-ऑक्साइड छोड़ दिया जाता है। यह श्वास-प्रश्वास का साधन है। नाक की श्लैष्मिक कला में जो श्लेष्मा तैयार होता है उसमें रोग के कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति (Power) होती है। नाक मानव-जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी अंग है ।

Ask A Doctor

किसी भी रोग को ठीक करने के लिए आप हमारे सुयोग्य होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। डॉक्टर का consultancy fee 200 रूपए है। Fee के भुगतान करने के बाद आपसे रोग और उसके लक्षण के बारे में पुछा जायेगा और उसके आधार पर आपको दवा का नाम और दवा लेने की विधि बताई जाएगी। पेमेंट आप Paytm या डेबिट कार्ड से कर सकते हैं। इसके लिए आप इस व्हाट्सएप्प नंबर पे सम्पर्क करें - +919006242658 सम्पूर्ण जानकारी के लिए लिंक पे क्लिक करें।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.

पुराने रोग के इलाज के लिए संपर्क करें