मूत्रपिण्ड ( मूत्र पथरी ) रोकने की चिकित्सा

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विवरण – मूत्रपिण्ड कोष में उत्पन्न पथरी अपने उत्पत्ति स्थान पर ही बहुत समय तक रुकी रह सकती है तथा उस हालत में रोगी को किसी कष्ट का अनुभव भी नहीं होता। कभी-कभी कमर में हल्का दर्द अथवा पेशाब के साथ रक्त या पीव आने के लक्षण प्रकट होते हैं, परन्तु यही पथरी जब मूत्रपिण्ड से हटकर मूत्रनली में आ जाती है, तब कमर से अण्डकोष तक तीव्र वेदना उत्पन्न करके रोगी को व्याकुल बना देती है। कभी-कभी यह दर्द पांव की एड़ी से पीठ या छाती तक जा पहुँचता है। यह दर्द अचानक ही उत्पन्न हो उठता है और अचानक ही बंद हो जाता हैं ।

चिकित्सा – मूत्रपिण्ड की पथरी के लिए लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ हितकर सिद्ध होती है :-

लाइकोपोडियम 6, 200 – पेशाब में लाल रंग के बालूकण जैसी तलछट होने पर दें।

आर्टिका युरेन्स Q – यदि लाइको से लाभ न हो तो इसे पाँच बूंद की मात्रा में देना चाहिए।

कैक्कस कैक्टाई Q – यह भी मूत्रपिण्ड की पथरी में लाभ करती है, इसे पाँच बूंद की मात्रा में देना चाहिए।

एसिड-फॉस 2x – यदि पेशाब में सफेद रंग का तलछट जाता हो तो इसे दें।

ग्रेफाइटिस 6, 30 – यदि पेशाब को थोड़ी देर तक रखा रहने पर उसके नीचे कोई सफेद एवं खट्टी गन्दयुक्त तलछट जमती हो तो इसे देना चाहिए।

किनिनम सल्फ 3x – यदि पेशाब में ईंट के चूरे जैसा लाल या भूरे रंग की अथवा पीले दाने जैसी तलछट जमें तो इसे देना हितकर रहेगा ।

सिपिया 6, 30 – यदि पेशाब की तलछट लसदार, सफेद रंग की अथवा कुछ लाल जैसी हो तो इसे देना चाहिए ।

सार्सा पैरिल्ला 3, 30 – यदि पेशाब करते ही वह पानी जैसा गंदला हो जाय तो इसे दें ।

नाइट्रम-म्यूर एसिड 2x, आक्जैलिक एसिड 3, 12 – यदि पेशाब की तलछट में कैल्सियम आक्जेलेट एकत्र हो जाय तो इस औषध का सेवन लाभकारी सिद्ध होता है ।

टिप्पणी – उक्त सभी औषधियों को नित्य चार-चार बार सेवन कराना चाहिए। इन औषधियों के अतिरिक्त लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों के सेवन की भी कभी-कभी आवश्यकता पड़ सकती है :- बेलाडोना 3x, 30, नक्स-वोमिका 1x, 30, साइलीशिया 6, 30 तथा ओपियम 3, 30, ऐकोन, एसिड, लोरो, कैलेण्डुला, आर्निका, कैमो, चायना, क्युप्रम, विरो ।

मूत्र-पथरी रोकने की चिकित्सा

मूत्र-पिण्ड में पथरी को गला देने के लिए निम्नलिखित उपचार हितकर हैं :-

लाइकोपोडियम 200 – इस औषध का कभी-कभी सेवन कराते रहना चाहिए।

बर्बेरिस वल्गेरिस 1x – मूत्र के साथ रेत के कण निकलने पर तथा पीठ एवं कमर में दर्द होने के लक्षणों में इस औषध का प्रतिदिन चार बार सेवन करें ।

आर्टिका युरेन्स Q – जिन्हें गठिया वात की बीमारी हो अथवा जिनके तन्तुओं में यूरिक एसिड अधिक मात्रा में इकट्ठा हो गया हो, उन्हें यह औषध पाँच-पाँच बूंद की मात्रा में आठ-आठ घण्टे के अन्तर से देनी चाहिए ।

  • पथरी के रोगी को चूना, चूने युक्त कुएँ का पानी, चूने का पानी, मछली, माँस, नशीले पदार्थ एवं सोडा – इन सभी वस्तुओं का सर्वथा परित्याग कर देना चाहिए ।
  • डिस्टिल्ड वाटर को अधिक मात्रा में पीना लाभकर रहता है । यदि डिस्टिल्ड वाटर उपलब्ध न हो तो स्वच्छ एवं शीतल जल का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए। पेट को खाली नहीं रखना चाहिए । उन सब कारणों से बचना चाहिए, जिनसे कि पेट में वायु इकट्टी होती हो ।

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