स्पाइजेलिया – Spigelia Anthelmia

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स्पाइजेलिया का होम्योपैथिक उपयोग

( Spigelia Anthelmia Homeopathic Medicine In Hindi )

स्नायु-शूल (दर्द) की दवा – इस औषधि का क्षेत्र स्नायु के शूल, अर्थात् दर्द के ऊपर विशेष रूप से है। हृदय, सिर, चेहरे, आंख के दर्द के ऊपर इसका मुख्य-प्रभाव है। हृदय-शूल तथा शिर शूल जो दायीं आंख के ऊपर आकर जम जाय – इन दोनों में इसका विशेष प्रयोग होता है। इन्हीं की यहां चर्चा की जायेगी।

(1) हृदय-शूल (Pain in the heart) – हृदय शूल के लिये यह अमूल्य-औषधि है। इस औषधि का हृदय का दर्द इतना ‘तेज’ होता है जितना कैक्टस में और इतना ‘उग्र’ होता है जितना कैक्टस और डिजिटेलिस दोनों में नहीं होता। स्पाइजेलिया का हृदय शूल इतना उग्र होता है कि कपड़ों के भीतर से हृदय धड़कता दीखता है, सारी छाती हिलती दीखती है, और कुछ दूरी से हृदय धड़कता सुनाई भी पड़ता है। हृदय के हाल ही के दौर पर ही इसका प्रभाव नहीं होता, परन्तु हृदय के पुराने वैल्व्यूलर-रोग में भी जिसमें तेज आवाज और उग्र धड़कन होती है इससे लाभ होता है। डॉ० नैश लिखते हैं कि हृदय की धड़कन के उग्र दौरों को उन्होंने इससे शीघ्र शांत होते देखा है। इस प्रकार के हृदय के शूल में रोगी केवल दाईं तरफ और सिर ऊंचा करके ही लेट सकता है। ऐन्जाइना पैक्टोरिस जो हृदय का रोग है, और जिसमें हृदय का दर्द सीने से प्रारम्भ होकर बायें कन्धे और बायीं बांह तक फैल जाता है, उसमें भी यह विशेष लाभदायक है।

(2) शिर:शूल (Neuralgic headache) – सिर-दर्द, चेहरे का दर्द तथा आंखों के दर्द में इस औषधि का प्रमुख स्थान है। सिर-दर्द प्राय: एक तरफ होता है। प्रात: काल सूर्य के उदय के साथ यह शुरू होता है, ज्यों-ज्यों सूर्य चढ़ता जाता है त्यों-त्यों यह बढ़ता जाता है, और सूर्य के अस्त होने के साथ यह समाप्त हो जाता है। यह दर्द सिर की गुद्दी से उठता है, सिर पर चढ़कर बायीं आंख के ऊपर जाकर ठहर जाता है। नैट्रम म्यूर और टैबेकम में भी सिर-दर्द सूर्य के उदय तथा अस्त के साथ बढ़ता और घटता है। स्पाइजेलिया में जिस आंख के ऊपर दर्द जमता है उसमें से पानी निकलने लगता है। चैलीडोनियम में दर्द बायीं आंख पर जमता है, और उसमें से पानी की धार बहा करती है। स्पाइजेलिया में रोगी को किसी तरफ भी देखने के लिए सारा सिर फिराना पड़ता है।

(3) शक्ति तथा प्रकृति – स्पाइजेलिया 6 , स्पाइजेलिया 30 (हरकत, शोर-गुल, आंख हिलाने से रोग बढ़ता है; ठंड, नमी तथा बरसात से रोग बढ़ता है; औषधि ‘सर्द’-प्रकृति के लिए है। )

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