अल्फाल्फा टॉनिक का उपयोग और लाभ
संवेदी तंत्रिका पर अपनी विशिष्ट क्रिया के कारण अल्फाल्फा का पोषण पर उत्तम प्रभाव है तथा भूख एवं पाचन शक्ति नियमित हो जाती है, जिसके फल स्वरूप मानसिक व शरीरिक शक्ति में भारी सुधार होने वाली बीमारियां इसी औषधि के प्रभाव क्षेत्र में आती है, जिनमें प्रमुख हैं – आमाशयिक विकार, स्नायविकता, स्नायविक दुर्बलता, अनिद्रा, स्नायविक अपच आदि। यह वसा बनाती है और ऊतकों को नष्ट होने से बचाती है। स्तनों में दूध कम हो जाने की अवस्था में स्तनपान कराने वाली स्त्रियों में दूध की गुणवत्ता एंव मात्रा बढ़ाती है। मूत्र संस्थान पर होने वाली इसकी विशेष क्रिया के कारण उदकमेह (diabetes insipides) तथा मूत्र में फास्फेट आने की हालत में इसका प्रयोग किया जाता है तथा पुर:स्थग्रन्थि बढ़ जाने की अवस्था में यह मूत्राशय की उत्तेजना को कम करती है। आमवती प्रवणता को नष्ट करने वाली यह विशेष गुणकारी औषधि है।
मन – यह हर्ष एंव प्रफुल्छता की भावना पैदा करती है, अर्थात रोगी स्वंय को पूर्णतया स्वस्थ महसूस करता है। उसका मन अति प्रसन्न एंव स्वच्छ रहता है और वह स्वयं में नवीनता पाता है। तंद्रालु, सुस्त, जड़ (जेल्सी) खिन्न और चिड़चिड़ा सायंकालीन वृद्धि।
सिर – जड़, पिछले भाग में, आंखों के अन्दर ऊपर भारीपन महसूस होता है, जो शाम को अधिक लगता है। सिर के बायीं ओर दर्द, प्रचण्ड सिर दर्द।
कान – रात को ऐसा महसूस होता है जैसे कम्बुकर्णी नलियाँ (eustachian tubes) बंद हो गई हों (काली-म्यूर); प्रात: काल खुली हुई या फैली हुई लगती है।
आमाशय – अत्यधिक प्यास। भूख गड़बड़ा जाती है, परन्तु कभी-कभी इतनी बढ़ जाती है कि रोगी असाधारण मात्रा में खाने लगता है। उसे बार-बार इतना खाना पड़ता है कि वह नियमित भोजन काल की प्रतीक्षा नही कर सकता, दोपहर से पहले ही भूख लग जाती है (सल्फ) । भोजन में अनेक प्रकार के दोष निकालता रहता है और मीठी चीजें खाने को लालायित रहता है। इसमें अल्फाल्फा लाभ करता है।
उदर – अफारे के साथ फुलाव, पेट में हवा इधर-उधर घूमती रहती है, भोजन करने के कई घन्टे बाद वृहयंत्र के साथ-साथ दर्द। पीला दर्दनाक मल, साथ ही आध्यानयुक्त जलन में लाभ करता है।
मूत्र – वृक्क निष्क्रिय, मूत्रत्याग की निरंतर इच्छा। मूत्रमेह (फास्फो – एसिड) यूरिया, इडिकैन और फास्फेट की बढ़ी हुई मात्रा।
नींद – पहले की अपेक्षा अच्छी नींद, विशेषकर सुबह-सबेरे। यह औषधि निर्विध्न, प्रगाढ़ एंव स्फूर्तिदायिनी निद्रा लाती है।
सम्बन्ध – आवेना-सैटा, डिपोडियम पंक्टा, जेल्सी, हाइड्रे, काली फास्फो, फास्फोएसिड, जिंक से तुलना कीजिए।
मात्रा – बड़ी मात्रा में (अर्क की 5 से 10 बूंदे) दिन में कई बार देने से उत्तम परिणाम मिले हैं। इसका उपयोग तब तक करते जाना चाहिए, जब तक शरीर में शक्ति नही आ जाती।
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Problem spast likhen.