उल्टी का होमियोपैथिक इलाज

4,025

उल्टी होना अपने आप में कोई रोग नहीं है। अधिकांश रोगियों में यह किसी अंदरूनी रोग का बाहरी संकेत मात्र है। कई बार उल्टी होना लाभदायक भी होता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति जाने-अनजाने कोई विषैला पदार्थ खा या पी ले, तो शरीर उसे बाहर निकालने का प्रयत्न करता है। हमारे मस्तिष्क में इस कार्य को करने के लिए एक केंद्र होता है, जिसे उल्टी केंद्र या सेंटर कहते हैं। इस केंद्र से ही आमाशय की क्रियाएं संचालित होती हैं कि अमुक वस्तु हानिकारक है। इसे निकालकर फेंक दो, लेकिन यदि उल्टियां लगातार हो रही हों, तो कभी-कभी शरीर के पानी तथा खनिज लवण जैसे आवश्यक पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं, जिनकी पूर्ति बाहर से करनी पड़ती है।

उल्टी के कारण

एपेंडिसाइटिस : ‘एपेंडिक्स’ में सूजन हो जाने पर रोगी पेट दर्द, उल्टियां तथा बुखार हो जाने की शिकायत करते हैं। रक्त में श्वेत कणिकाओं की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे रोगियों में ऑपरेशन प्राय: आवश्यक हो जाता है। अत: निराहार रखकर सर्जन से परामर्श लेना चाहिए।

कब्ज : कब्ज होने पर बड़ी आंत में रुकावटा जैसे सभी लक्षण मिल सकते हैं। इससे बचाव के लिए चोकर सहित आटे की रोटी लें, फल तथा हरी-पतेदार सब्जियां लें, मानसिक तनाव से बचे, उचित एवं नियमित व्यायाम करें। ईसबगोल की भूसी का प्रयोग भी कर सकते हैं। यदि कब्ज किसी रोग, जैसे-टी.बी., कैंसर, डायबिटीज, अमीबा आदि के कारण है, तो उसका उचित उपचार आवश्यक है।

हिपेटाइटिस : विषाणुजनित एवं दूषित जल एवं अन्य गंदे भोज्य पदार्थो से फैलने वाली, यकृत की सूजन का एक मुख्य लक्षण ‘उल्टियां’ होना है। खान-पान में स्वच्छता रखें।

लिवर सिरहोसिस : वायरा हिपेटाइटिस की जटिलता से अथवा अधिक शराब बहुत दिनों तक पीने से यकृत हमेशा के लिए खराब हो जाता है, जिससे यह सिकुड़कर कड़ा पड़ जाता है और इसकी आंतरिक संरचना गड़बड़ा जाती है। यह मुलायम न रहकर कड़ा रहता है और इसकी कार्यक्षमता बहुत कम हो जाती है। ऐसे रोगी को जी मिचलाने, भूख नहीं लगने, उल्टियां होने (खून की उल्टियां), पेट फूलने, पैरों में सूजन, जैसी शिकायतें रहती हैं। कभी-कभी प्लीहा (तिल्ली) का आकार भी बढ़ जाता है और खून की उल्टी होने लगती है। टट्टी के रास्ते भी खून आने लगता है, जिससे टट्टी कोलतार जैसी काली होने लगती है। बचाव के लिए आवश्यक है कि शराब का सेवन कभी न करें। वायरल (विषाणुजनित) यकृत की सूजन हो, तो इसकी समुचित और शीघ्रताशीघ्र चिकित्सा आवश्यक है।

गेस्ट्राइटिस : आमाशय की म्यूकस झिल्ली की सूजन, उल्टी होने का आम तौर पर देखे जाने वाला रोग है। इसके मुख्य कारणों में दर्द निवारक अंग्रेजी दवाओं का अधिक प्रयोग, शराब का सेवन, विषैले पदार्थों का सेवन, वायरल, जीवाणु या परजीवी जनित बुखार एवं उल्टी (गेस्ट्राइटिस के कारण) हो सकती है।

गेस्ट्रोएंट्राइटिस : दूषित जल, अन्य पेय पदार्थ या भोजन ग्रहण करने पर उनमें उपस्थित आंखों से न दिखने वाले अति सूक्ष्म जीव आंत में तीव्र सूजन उत्पन्न कर देते हैं, जिससे रोगी को कुछ ही घंटों में उल्टियां, पतले दस्त और पेट दर्द की शिकायत हो जाती है। इसका शीघ्र उपचार आवश्यक है, अन्यथा रोगी की जान को भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। बचाव के लिए खाने-पीने की वस्तुओं को मक्खियों से बचाकर रखें। खाना बनाने एवं परोसने में भी सफाई रखें और स्वच्छ जल ही ग्रहण करें। खाने-पीने से पहले हाथ भली-भांति धोएं।

पेप्टिक अल्सर : यह आमाशय, डयूओडिनम अथवा भोजन नली के निचले भाग में बनने वाला घाव है। इसकी जांच ‘एण्डोस्कोपी’ विधि से की जाती है। रोगी पेट के ऊपरी भाग में जलन तथा उल्टी की भी शिकायत करते हैं। कभी-कभी खून की भी उल्टी होती है।

आमाशय में रुकावट : पेप्टिक अल्सर का प्रारंभिक दशा में निदान न हो अथवा निदान होने के पश्चात् समुचित उपचार न किया जाए, तो जटिलता होने पर आमाशय का द्वार संकरा पड़ जाता है। इस स्थिति को पाइलोरिक स्टिवोसिस कहते हैं। यह दशा आमाशय के कैंसर से भी हो सकती है। इसके निदान के लिए एण्डोस्कोपी एवं बेरियम मील एक्सरे, चिकित्सीय परामर्श से कराने चाहिए। इसमें कभी-कभी ऑपरेशन की भी आवश्यकता पड़ती है।

छोटी आंत में रुकावट : रोगी उल्टी के साथ-साथ पेट दर्द, पेट का फूलना, टट्टी, हवा नहीं खारिज होने की शिकायत करते हैं। यह रुकावट आंत में सूजन हो जाने अथवा टी.बी. हो जाने, आंत का एक भाग दूसरे भाग में घुस जाने, आंत में मरोड़, ऐंठन पड़ जाने अथवा आंतों के कृमिर (राउण्ड वार्म या एस्केरिस) से हो सकती है। इसके निदान के लिए पेट का सादा एक्सरे आवश्यक है। रुकावट जटिल होने पर कभी-कभी ऑपरेशन भी करवाना पड़ सकता है।

बड़ी आंत में रुकावट : इसका मुख्य कारण कैंसर होता है। इसका रोगी भूख नहीं लगना, उल्टी, कब्ज, पेट दर्द और पेट फूलने की शिकायतें करता है।

पेट के कीड़े : बिना धुली सब्जियां, फल वगैरह खाने पर उसमें मौजूद कृमि अंडे आंत में पहुंच जाते हैं और उनमें से कृमि बड़े होकर पेट में दर्द एवं उल्टी जैसे लक्षण पैदा कर देते हैं। कभी-कभी उल्टी में भी कीड़े निकल आते हैं।

पित्ताशय की सूजन : गाल ब्लैडर (पित्ताशय) की तीव्र सूजन में रोगी पेट के बुखार एवं उल्टी की शिकायत करते हैं।

अग्नाशय की सूजन : पेंक्रियाज नामक अति महत्त्वपूर्ण ग्रंथि पेट के मध्य ऊपरी भाग में, भीतर की ओर स्थित होती है, जिसमें तीव्र सूजन हो जाने पर रोगी भयंकर पेट दर्द और उल्टियों की शिकायत करता है। ब्लड प्रेशर एवं मूत्र की मात्रा कम हो जाती है और नाड़ी तेज चलने लगती है।

डायबिटीज : मधुमेह पर यदि समुचित नियंत्रण न रखा जाए, तो बहुत-से रोगियों में ब्लड शुगर बढ़ जाता है, रोगी को पेट दर्द एवं उल्टियां होने लगती हैं, सांस गहरी एवं तेज चलने लगती है, रोगी बेहोश होने लगता है। ऐसे रोगी के मूत्र की जांच तुरन्त कराएं एवं खान-पान का परहेज रखते हुए उचित चिकित्सा करवाएं। इस दशा को डायबिटिक कीटोसिस कहते हैं।

सिर में चोट : ‘हेड इंजरी’ के रोगी को भी उल्टियों की शिकायत हो जाती है। यदि रोगी बेहोश है, तो उसे एक करवट से लिटाएं। कैट स्कैन जांच कराने पर यदि ‘रक्त का थक्का’ (ब्लड क्लाट) है, तो ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ सकती है। ‘मैनिटाल’ नामक बहुपयोगी घोल शिरा द्वारा दिया जाना उपयोगी माना जाता है।

माइग्रेन : आधा सीसी के रोगी सिर में एक तरफ दर्द होने के अलावा उल्टियों की भी शिकायत करते हैं। इन रोगियों को तनाव से बचना चाहिए। सादा व सुपाच्य भोजन और भरपूर नीद लेनी चाहिए। चिकित्सकीय परामर्श से उपचार कराएं।

हार्ट अटैक : जब हृदय के पिछले निचले भाग की मांसपेशी का रक्त प्रवाह अचानक रुक जाता है, तो रोगी अचानक छाती में दर्द और उल्टियों की शिकायत करने लगता है।

हार्टफेल्योर : बच्चों में जोड़ों के दर्द तथा बुखार से उत्पन्न हृदयरोग (रियूमैटिक हृदय रोग) के कारण संकरे अथवा फैले हुए हृदय के वॉल्व से कोरोनरी धमनी में जमे रक्त से, उच्च रक्तचाप से, वायरल बुखार से, हृदय की मांसपेशी पर दुष्प्रभाव से, क्रेनिक ब्रोंकाइटिस से, फेफड़ों के दीर्घकालीन रोगों से, जब हृदय फेल हो जाता है, तो पैरों पर सूजन आ जाती है, यकृत का आकार बढ़ जाता है, रोगी पेट दर्द बताता है, आमाशय तथा आंत की शिराएं रक्त एकत्र हो जाने से फूल जाती हैं, जिससे रोगी उल्टियों की शिकायत करते हैं। ऐसे रोगियों को दी जाने वाली अंग्रेजी औषधियां भी उल्टियों को बढ़ाती ही हैं। नमक कम मात्रा में लें, आराम करें, लेकिन पैरों को हिलाते-डुलाते रहें, जिससे उनकी शिराओं में रक्त न जमने पाए।

मस्तिष्क रोग : बेन ट्यूमर, मस्तिष्क में घाव या फोड़ा, विषाणुजनित मस्तिष्क सूजन (एनसिफलाइटिस), दिमाग की झिल्ली की सूजन (मेनिनजाइटिस) (चाहे क्षय रोग के कारण हो अथवा मवाद पैदा करने वाले जीवाणुओं से) इन सभी रोगों में उल्टियां होना एक मुख्य लक्षण होता है। ऐसे रोगी सिरदर्द, बुखार तथा आंखों की रोशनी कम होने की शिकायत करते हैं और बहुत-से रोगी पूर्ण रूप से चैतन्य नहीं रहते। यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि उल्टी पेट रोग के कारण है, तो रोगी प्राय: जी मिचलाने की शिकायत करेगा, किन्तु मस्तिष्क रोग के कारण होने पर प्राय: ऐसा नहीं होता।

फूड एलर्जी : कई रोगी खास भोज्य पदार्थ जैसे अंडे से (खानेके लगभग 2-3 घंटे बाद) उल्टी होने की शिकायत करते हैं। कुछ बच्चे दूध पीने के बाद उल्टियों की शिकायत करते हैं।

औषधियों से भी उल्टी : एस्प्रिन, डिजिटेलिस, मार्फिन आदि अंग्रेजी दवाएं अंततः उल्टी का कारण बनती हैं। अत: इन दवाओं का सेवन बिना चिकित्सकीय परामर्श के नहीं करना चाहिए।

गर्भावस्था : जी मिचलाना और दुल्टियां होना गर्भ धारण के महीनों में, खासकर प्रातः काल में, एक आम बात है।

व्रत रखने से : दीर्घकालीन उपवास से अथवा भोज्य पदार्थ तथा विटामिन की कमी से भी उल्टियां हो सकती हैं। पेशाब की जांच में क्रीटोनबाडीज मिलने पर उल्टी का उक्त कारण स्पष्ट हो जाता है।

मनोभाव से संबंधित प्रतिक्रियाएं : इसके कारण भी अक्सर उल्टियां होती हैं। जैसे, जब नवयौवना शादी के बाद ससुराल के नए वातावरण में जाती है, तब डर, घबराहट अथवा मानसिक तनाव की उल्टियां आ सकती हैं, लेकिन ये उल्टियां कुछ समय में ही ठीक हो जाती हैं।

उल्टी रोकने के उपाय

यदि रोगी को केवल एक या दो उल्टियां हुई हों, तो कोई खास उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। लगातार उल्टियां होने से पानी, नमक, पोटैशियम क्लोराइड एवं अन्य खनिज लवणों की कमी हो जाने से शरीर में अनेकानेक जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त उल्टी होने का मूल कारण मालूम करके उसका भी त्वरित एवं उचित उपचार आवश्यक है। अनावश्यक रूप से अंग्रेजी औषधियों का प्रयोग न करें।

विषैला पदार्थ खाने या पीने की स्थिति में, खून की उल्टी होने पर तथा आमाशय और आंत में रुकावट के लक्षण मालूम होते ही रोगी को अस्पताल ले जाना चाहिए। मस्तिष्कीय परेशानी का आभास होते ही तुरन्त उचित जांच करानी चाहिए।

बेहोश रोगी को करवट से लिटाएं व उसे एक बूंद भी पानी न दें।

लक्षणों की समानता, जैसे-समय यानी कब किस वक्त उल्टी होती है, कितनी मात्रा में होती है, उल्टी का रंग कैसा है, खाना, चाय, कॉफी, पानी, फल, सब्जी, दाल, दही, दूध, अंडा आदि में से क्या खाने के बाद उल्टी होती है, रोगी को खाने में क्या पसंद है, उल्टी में बदबू आती है या नहीं,पेट में दर्द रहता है या नहीं, टट्टी कैसी होती है, रोगी चिड़चिड़ा है या कमजोर है आदि अनेकानेक बिन्दुओं पर गौर करते हुए ही एक चुनिंदा दवा एक रोगी के लिए दी जाती है और तभी वह पूरा एवं तुरंत फायदा करती है।

प्रमुख रूप से निम्न होमियोपैथिक औषधियां निम्न लक्षणों के आधार पर दी जाती हैं।

सुबह 7 बजे – ‘इलेटेरियम’; 9 बजे -‘फोरमिका’, 10 बजे – ‘सोराइनम’; 11 बजे -‘चाइना’।

दोपहर में – ‘मैगकार्ब’, ‘मैगसल्फ’, ‘फॉस्फोरस’, ‘वेरेट्रम’।

दोपहर के बाद – ‘बेलाडोना’, ‘कोनियम’, ‘ग्रेफाइटिस’, ‘हिपरसल्फ’ आदि।

दोपहर 2 से 3 बजे के बीच – ‘प्लम्बममेट’ ।

4 बजे (दोपहर बाद) – ‘सल्फर’ ।

शाम को उल्टी होने पर – ‘काबोंवेज’, ‘नक्स’, ‘सोराइनम’, ‘ब्रायोनिया’, ‘सल्फर’।

आधी रात में उल्टी होने पर – ‘आसेंनिक’, ‘अर्जेण्टमनाइट’, ‘फेरममेट’ ।

रात में एक बजे – जागने पर ‘रेटेन्हीया’ ।

खट्टी चीजें खाने के बाद उल्टी होने पर – ‘फेरममेट’।
दौरों के साथ उल्टी होने पर – ‘सिक्यूटा’, ‘वाइगेसा’।
बिस्तर पर जाने के बाद उल्टी होने पर – ‘टेरेंट्यूला’
बियर पीने के बाद उल्टी होने पर – ‘फेरम’, ‘सल्फर’।
रोटी खाने के बाद उल्टी होने पर – ‘ब्रायोनिया’, ‘नाइट्रिक एसिड’।
सुबह नाश्ता करने से पहले उल्टी होने पर – ‘क्रियोजोट’, ‘नक्सवोम’, ‘टेबेरिंथ’।
नाश्ता करने के बाद उल्टी होने पर – ‘बोरैक्स’, ‘काबोंवेज’, ‘फेरममेट’।
दांतों में ब्रश करने से उल्टी होने पर – ‘काक्युलसा’
ठंड लगने के दौरान उल्टी होना – ‘आर्सेनिक’, ‘यूपेटोरियम’, ‘केप्सिकम’, ‘सिना’, ‘इग्नेशिया’, ‘इपिकॉक’, ‘नेट्रमम्यूर’, ‘पल्स’, ‘वेरेट्रम’।
ठंड लगने के बाद उल्टी – ‘अरेलिया’, ‘ब्रायोनिया’, ‘काबोंवेज’, ‘यूपेटोरियम’, ‘इपिकॉक’, ‘लाइकोपोडियम’, ‘नेट्रमम्यूर’
क्लोरोफार्म सूंघने के बाद उल्टी होने पर – ‘फॉस्फोरस’।
आंखें बंद करने के बाद उल्टी होने पर – ‘थेरीडियान’ (आंखें बंद करने के बाद आराम मिलने पर – ‘टेवेकम’)
कॉफी के बाद उल्टी होने पर – ‘कैमोमिला’, ‘कैम्फर’,’ग्लोनाइन’, ‘वेरेट्रम’।
मैथुन के बाद उल्टी होने पर – ‘मोस्कस’।
दौरों से (ऐंठन) पहले उल्टी – ‘क्यूप्रममेट’, ‘ओपियम’
दौरों के बाद उल्टी होने पर – ‘हायोसाइमस’, ‘ओपियम’
दौरे के दौरान उल्टी होने पर – ‘आर्सेनिक’, ‘कॉल्चिकम’, ‘क्यूप्रम’।
ऐंठन के साथ उल्टी होना – ‘बिस्मथ’, ‘क्यूप्रम’, ‘लेकेसिस’, ‘टैबेकम’
गुस्से के बाद उल्टी होने पर – ‘कैमोमिला’ 30 शक्ति में दें।
चाय या कॉफी पीने के बाद उल्टी होने पर – ‘कैमोमिला’ एवं‘नक्स’ 30 शक्ति में दें।
हरे, पीले रंग की उल्टी होने पर – ‘कैमोमिला’, ‘ब्रायोनिया’, ‘यूपेटोरियमपर्फ’, ‘पोडोफाइलम’ आदि औषधियां कारगर रहती हैं।
काले रंग की उल्टी होने पर – ‘आर्सेनिक‘, ‘क्रोकस’, ‘ओरनीथोगेलम’ एवं ‘हेमेमिलिस’ औषधियां कारगर रहती हैं।
रक्त मिश्रित उल्टी होने पर – ‘एकोनाइट’, ‘आर्सेनिक’, ‘फेरमफॉस’, ‘हेमेमिलिस’, ‘इपिकॉक, ‘फॉस्फोरस’, सिकेलकॉर’ आदि औषधियां लाभप्रद रहती हैं। 30 शक्ति में लें।
अधपचा पदार्थ बाहर निकलने पर – ‘एण्टिमकूड’, ‘फेरममेट’, ‘इपिकॉक’, ‘पल्सेटिला’ आदि औषधियां 30 शक्ति में कारगर रहती हैं।
दूध उलटने पर – ‘एथूजा’, ‘मैगकार्ब’ एवं ‘कैल्केरियाफॉस’ औषधियां 30 शक्ति में कारगर रहती हैं।
उल्टी में म्यूकस (श्लेष्मायुक्त) स्राव होने पर – ‘एण्टिमटार्ट’, ‘अर्जेण्टमनाइट’, ‘इपिकॉक’ एवं पल्स औषधियां उपयुक्त रहती हैं। 30 एवं बाद में कुछ खुराक 200 शक्ति में लें।
पानी जैसी उल्टी होने पर – ‘आर्सेनिक’, ‘यूफोर्बिया’, ‘क्रियोजोट’ एवं ‘मैगकार्ब’ औषधियां उचित रहती हैं (30 शक्ति में लें)।
यदि सदैव उल्टी की इच्छा रोगी में बनी रहे, तो – ‘इपिकॉक’ औषधि पहले 30 शक्ति में, तत्पश्चात् 200 शक्ति की दो-तीन खुराक लेना लाभप्रद रहता है।

‘आर्सेनिक’, ‘वेरेट्रम एल्बम’, ‘ब्रायोनिया’,’नक्सवोम’, ‘फॉस्फोरस’, ‘एथूजा’, ‘कार्बोवेज’, ‘चाइना’, ‘एण्टिमकूड’, ‘अर्जेण्टमनाइट’, ‘पल्सेटिला’ आदि अन्य उपयोगी औषधियां हैं (उल्टी में), जिनका विवरण पेट के रोगों के साथ दिया गया है।

दौरों के बाद उल्टी होने पर – ‘क्यूप्रममेट’ 30 शक्ति में दें।

 

Ask A Doctor

किसी भी रोग को ठीक करने के लिए आप हमारे सुयोग्य होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। डॉक्टर का consultancy fee 200 रूपए है। Fee के भुगतान करने के बाद आपसे रोग और उसके लक्षण के बारे में पुछा जायेगा और उसके आधार पर आपको दवा का नाम और दवा लेने की विधि बताई जाएगी। पेमेंट आप Paytm या डेबिट कार्ड से कर सकते हैं। इसके लिए आप इस व्हाट्सएप्प नंबर पे सम्पर्क करें - +919006242658 सम्पूर्ण जानकारी के लिए लिंक पे क्लिक करें।

2 Comments
  1. Dr Habib khan says

    I have patient who vomit after eating any time if he avoid lyingdown if he will try to move or rising from bad he will vomit. What is the remedy

    1. Dr G.P.Singh says

      you write to us your problem as we want for facilitating in the direction of selection of medicine to be beneficial for you. For this either you try to write us in detail (ie details of your disease, your ht. your colour your age,effect of coldness and heat, hurydness, fear, anger,sensitivity etc. or try to meet the doctor at Patna. For immediate relief you may try Arsenic 200 in morning, Ipecauk 30 in evening and Nux Vomica 30 at bed time daily. May God bless you.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.

पुराने रोग के इलाज के लिए संपर्क करें