सैंग्विनेरिया – SANGUINARIA CANADENSIS

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सैंग्विनेरिया का होम्योपैथिक उपयोग

SANGUINARIA CANADENSIS IN HINDI

लक्षण तथा मुख्य-रोगलक्षणों में कमी
दाहिनी तरफ आधे सिर में दर्द जो सूरज के चढ़ने के साथ दाहिनी आँख पर आकर जम जायठंडी हवा से रोगों में कमी
सैंग्विनेरिया में सिर के दायीं और स्पाइजेलिया में बाईं तरफ दर्द होता है; सिर-दर्द का सूर्योदय-सूर्यास्त के साथ सम्बन्धलेटने से रोग का घटना
दाहिनी बाँह और कन्धे में वात-दर्द (Rheumatic pain in right arm and shoulder)खट्टी चीज खाने से घटना
तीसरे या सातवें दिन का सिर-दर्दलक्षणों में वृद्धि
गालों पर लाल रंग का गोल दागसूर्य की गर्मी से रोग वृद्धि
ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया, तपेदिक में ढीले खखार से ऐसी दुर्गन्ध जिस से रोगी को भी धिन लगती हैसामयिक तौर पर (Periodically) रोग का बढ़ना
रजोनिवृत्ति की शिकायतें (Complaints of climacteric period)रजोनिवृत्ति से रोग-वृद्धि

 

(1) दाहिनी तरफ आधे सिर में दर्द जो सूरज के चढ़ने के साथ दाहिनी आँख पर आकर जम जाय – ऐसा सिर-दर्द जो प्रात: काल सूर्य के चढ़ने के साथ शुरू हो, सिर की गुद्दी से चलता हुआ ऊपर से होकर दाहिनी आंख के ऊपर और सिर के दाहिनी तरफ आकर ठहर जाय, सैंग्विनेरिया औषधि से अवश्य ठीक होता है। दिन को दर्द बढ़ता है, प्रकाश में दर्द और बढ़ता है, रोगी अंधेरे कमरे में बिस्तर पर जा लेटता है, इससे उसे कुछ आराम मिलता है। दर्द के बाद उल्टी आ जाती है और उल्टी आने पर दर्द चला जाता है। यह दर्द शाम तक रहता है। अगर रात को बिस्तर पर लेटते हुए रोगी के हाथ-पैर जलते हों, वह उन्हें ओढ़ने से बाहर रखना चाहता हो, तो यह इस औषधि को पुष्ट करने वाला एक अतिरिक्त लक्षण है। सोने से रोगी को आराम मिलता है। इस प्रकार के दाहिनी तरफ के सिर-दर्द में यह औषधि बहुत लाभ करती है। बेलाडोना में भी सिर के दाहिनी तरफ दर्द होता है, परन्तु बेलाडोना के सिर-दर्द में सिर में रक्त की अधिकता होती है, उठकर बैठने से रक्त का वेग ऊपर जाना कम हो जाता है, इसलिये उठकर बैठने से उसे आराम मिलता है, सिर गर्म रहता है। सैंग्विनेरिया में उठकर बैठने से नहीं, परन्तु लेटने से रोगी को आराम मिलता है।

(2) सैंग्विनेरिया में सिर के दायीं और स्पाइजेलिया में बाईं तरफ दर्द होता है; सिर-दर्द का सूर्योदय-सूर्यास्त के साथ सम्बन्ध – इस औषधि का दाहिनी तरफ प्रभाव है। अगर सिर की गुद्दी से उठकर दर्द दाहिनी आंख पर आकर जम जाय, तो सैंग्विनेरिया, और अगर बायीं आंख के ऊपर आकर जम जाय, तब स्पाइजेलिया उचित औषधि है। इस औषधि के सिर-दर्द का सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ संबंध है। यह सिर-दर्द प्रात:काल शुरू होता है, दोपहर तक बढ़ता जाता है, और दोपहर के बाद सूर्यास्त के साथ-साथ घटता जाता है। सिर की गुद्दी से यह दर्द शुरू होकर, सिर पर से होता हुआ, दायीं आँख के ऊपर आकर ठहर जाता है। रोगी प्रकाश, गंध, शोर, शब्द को सहन नहीं कर सकता। जब दर्द शिखर पर पहुंच जाता है तब उसे पित्त की तथा खाये-पीये की कय हो जाती है।

(3) दाहिनी बाँह और कन्धे में वात-दर्द (Rheumatic pain in right arm and shoulder) – जैसा हमने ऊपर कहा, इस औषधि का शरीर के दाहिने भाग पर विशेष प्रभाव है। जैसे यह सिर के दाहिने भाग में दर्द को ठीक करता है, वैसे दाहिनी बांह और दाहिने कन्धे के वात के दर्द को भी ठीक करता है। अगर रोगी का चेहरा लाल हो जाय, वात-दर्द रात को बढ़े, दाहिनी तरफ हो, हरकत से दर्द तेज हो जाय, चुप पड़े रहने से आराम हो, तो सैंग्विनेरिया औषधि है; अगर रोगी का चेहरा पीला पड़ जाय, वात-दर्द रात के बजाय दिन को हो, दर्द बायीं तरफ हो, और हल्की हरकत से रोगी को आराम मिले, तो फेरम मेटेलिकम औषधि है। बायीं तरफ की बांह और कन्धे के दर्द में नक्स मौस्केटा से भी लाभ होता है।

(4) तीसरे या सातवें दिन का सिर-दर्द – इस औषधि में तीसरे या सातवें दिन सिर-दर्द का लक्षण पाया जाता है। सातवें दिन के सिर-दर्द में सैंग्विनेरिया, साइलीशिया तथा सल्फर लक्षणानुसार तीनों उपयुक्त हैं। जो सिर-दर्द हर दो सप्ताह बाद आता है वह आर्सेनिक से ठीक होता है।

(5) गालों पर लाल रंग का गोल दाग – ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया और तपेदिक में दोपहर के बाद अगर रोगी के गालों पर लाल रंग का गोल दाग पड़ जाय, तो यह सैंग्विनेरिया औषधि का विशेष-लक्षण है।

(6) ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया, तपेदिक में ढीले खखार से ऐसी दुर्गन्ध जिस से रोगी को भी धिन लगती है – जब ब्रोंकाइटिस या न्यूमोनिया का तीव्र आक्रमण हो, तब रोगी की छाती से ढीली खखार आती है जिसमें से ऐसी दुर्गन्ध उठती है जिस से रोगी को स्वयं बदबू आती है, दूसरों की तो बात ही क्या है। ऐसा लगता है कि रोगी को तपेदिक हो जायेगी। रोगी श्वास-प्रणालिका के इस रोग से अत्यन्त कमजोर हो जाता है, ठंड को बर्दाश्त नहीं कर सकता, ऋतु परिवर्तन, हवा का झोंका उसे परेशान कर देता है। वक्षोस्थि (Sternum) के पीछे छाती में जलन होती है, छाती से गाढ़ा, लसदार, सूत-सा कफ निकलता है, हाथ-पैर जलते हैं, रोगी को क्षय होने वाला ही होता है। ऐसे रोगियों को प्राय: हाथ-पैर की जलन के कारण चिकित्सक सल्फर दिया करते हैं, परन्तु इससे रोगी को नुकसान होता है। इस अवस्था में सल्फ़र नहीं देनी चाहिये। हनीमैन का कथन है कि क्षय-रोग को आता देखकर इस अवस्था में फॉसफोरस भी नहीं देनी चाहिये, उससे भी हानि होगी। इस अवस्था में सैंग्विनेरिया रोग को दूर तो नहीं करेगा, परन्तु रोगी के कष्ट को कुछ हद तक कम कर देगा।

(7) रजोनिवृत्ति की शिकायतें (Complaints of climacteric period) – एक खास आयु में आकर स्त्रियों का रजोधर्म बन्द हो जाता है। रजोनिवृत्ति के समय के निम्न-प्रकार के अनेक कष्ट इससे दूर हो जाते हैं। लैकेसिस और सल्फर से लाभ न हो, तो सैंग्विनेरिया से लाभ होता है –

(i) रजोनिवृत्ति के समय आधे सिर में दर्द होने लगता है।
(ii) माहवारी बन्द होने से रोगिणी की हथेली और तलुओं से आग के शोले-से निकलते हैं।
(iii) रज के बन्द होने से स्तनों का बढ़ जाना और उनमें दर्द होना – इस औषधि से ठीक हो जाता है।

(8) शक्ति तथा प्रकृति – सिर-दर्द में मूल अर्क, वात-रोग में 6 शक्ति प्राय: प्रयुक्त होती है, परन्तु  sanguinaria 200 शक्ति का भी प्रयोग हो सकता है। औषधि ‘गर्म’-प्रकृति के लिये है।

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