स्पंजिया – Spongia Tosta

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स्पंजिया का होम्योपैथिक उपयोग

( Spongia Tosta Homeopathic Medicine In Hindi )

(1) खुश्क खांसी, सांय-सांय की आवाज, कुत्ते की तरह की-सी भौं-भौं की आवाज, क्रूप खांसी – इस औषधि का श्वास-प्रणालिका पर विशेष प्रभाव है। रोगी की आवाज बैठ जाती है, खुश्क खांसी होती है, कुत्ते की तरह की भौं-भौं की-सी आवाज होती है जिसे ‘कुत्ता खांसी’ कहते हैं। क्रूप खांसी भी हो जाती है। क्रूप में सारी श्वास-नलिका-लेरिंग्स तथा ट्रेकिया-की सूजन हो जाती है, सांस रुक जाता है और श्वास-नलिका के भीतर श्लैष्मिक झिल्ली बन जाती है। जहां जीभ समाप्त होती है वहां से चलने वाली श्वास-नलिका को ‘लेरिंग्स’ कहते हैं, हिन्दी में इसे ‘स्वर-यंत्र’ कहते हैं। लेरिंग्स के आगे की श्वास-नलिका को ‘ट्रेकिया’ कहते हैं, हिन्दी में इसे ‘श्वास-नली’ कहते हैं। इनमें सूजन और झिल्ली पड़ जाने का रोग ‘क्रूप’ कहलाता है। इस रोग में खुश्क खांसी होती है, झिल्ली पड़ जाने से सांस रुक-रुक कर आता है, छाती में भारीपन अनुभव होता है, प्राय: देखा जाता है कि अगर बच्चे को खुश्क ठंडी हवा लग जाय, तो उसी दिन रात के पहले हिस्से में ही उसे खुश्क खांसी आ दबोचती है और पहली नींद में ही उठकर वह खांसने लगता है। ‘क्रूप’ के इस प्रकार ठंड लगते ही पहली रात में और पहली रात के भी प्रथम भाग में ही प्रकट होने के लक्षण में एकोनाइट दिया जाता है। स्पंजिया का ‘क्रूप’ ठंड लगने के पहली रात में ही नहीं उभर आता है। बच्चे को कल ठंड लगी या परसों लगी। परसों ठंड लगने के बाद आज उसे कुछ छीकें आयीं, नाक सूखने लगी, और फिर खुश्क खांसी शुरू हो गई या कुत्ता-खांसी जारी हो गई। इस प्रकार ठंड लगने के एक-दो दिन बाद आने वाली ‘क्रूप’ या ‘कुत्ता-खांसी’ स्पंजिया के क्षेत्र में आ जाती है। एकोनाइट में ठंड लगने की पहली रात, और पहली रात के पहले हिस्से में खांसी छिड़ती है; स्पंजिया में ठंड लगने के एक-दो दिन बाद, और मध्य-रात्रि के बाद के हिस्से में खांसी छिड़ती है। अगर एकोनाइट से यह खांसी ठीक होती होगी, तो पहले दिन ही ठीक हो जायेगी; अगर यह पहले दिन ठीक न हो, अगली रात फिर ‘क्रूप’ खांसी आये, उससे अगले दिन फिर आये, तो एकोनाइट का क्षेत्र जाता रहता है. स्पंजिया का क्षेत्र आ जाता है। डॉ० नैश कहते हैं कि ‘क्रूप’ में खांसी खुश्क होती है, सांय-सांय की आवाज आती है, ऐसी आवाज जैसी लकड़ी को आरे से चीरने के समय निकलती है कफ का प्रत्येक ठसका आरे को धकेलने की-सी आवाज जैसा होता है। अनेक अनुभव के अनुसार एकोनाइट 30 या 200 की मात्रा से रोग का शमन हो जाता है, परन्तु अगर ऐसा न हो, रोगी का नींद से उठने पर दम घुटता प्रतीत होता हो, तो स्पंजिया देना आवश्यक हो जाता है। जब यह खुश्क ‘क्रूप’ तर हो जाय, कफ ढीला पड़ जाय, और खांसी प्रात:काल बढ़े, तब हिपर सल्फ का क्षेत्र आ जाता है। इस प्रकार क्रूप में पहले एकोनाइट, फिर स्पंजिया, फिर हिपर सल्फ देने की आवश्यकता पड़ सकती है। डॉ० नैश का कहना है कि अगर क्रूप के लक्षण शाम को बढ़े तो फॉसफोरस से लाभ होगा।

(2) बोनिनघॉसन का क्रूप-खांसी का नुस्खा – क्योंकि क्रूप-खांसी एकोनाइट, स्पंजिया, हिपर सल्फ में से किसी से ठीक हो जाती है, और प्राय: शुरू में एकोनाइट से ही ठीक हो जाती है, उससे न हो तो स्पंजिया से ठीक हो जाती है, उस से भी नहीं तो हिपर से ठीक हो जाती है. इसलिये डॉ० बोनिंगघॉसन ने अपना एक रूटीन नुस्खा बना लिया था जिसे ‘बोनिंगघॉसन का क्रंप का नुस्खा’ कहा जाता है। वे तीन पाउडर दिया करते थे – एकोनाइट 200, स्पंजिया 200  तथा हिपर सल्फ 200 जिन्हें एक के बाद – दूसरा दिया जाता था। अगर इन से भी ‘क्रूप’ ठीक न हुआ, तब तीन पाउडर देने के बाद फिर स्पंजिया 200 और उसके बाद हिपर 200 देते थे। परन्तु इस का यह अभिप्राय नहीं है कि इस प्रकार एक के बाद दूसरा पाउडर दिया ही जाय। जिस औषधि के बाद रोग थम जाय उसके बाद अगली औषधि की मात्रा रोक देनी चाहिये। क्योंकि बोनिंनघॉसन रोगियों को देखने नहीं जाते थे, अपने घर पर ही नुस्खा लिख देते थे इसलिये ऐसी प्रथा चल पड़ी।

(3) तपेदिक में लेरिंग्स (स्वर-यंत्र) गले का बैठ जाना – जिन रोगियों में तपेदिक की प्रवृत्ति वंशानुगत चली जाती है, फेफड़े कमजोर हों, भले ही फेफड़ों में तपेदिक के प्रत्यक्ष-लक्षण न मौजूद हों, उनमें अचानक, एकदम गला बैठ जाया करता है, उनके स्वर यंत्र (गले) पर ठंड का एकदम प्रभाव हो जाता है। गले पर ठंड का जो असर होता है उसमें घड़घड़ाहट नहीं होती सिर्फ गला बैठ जाता है, बोलने में तकलीफ होती है। इस प्रकार के तपेदिक की प्रवृत्ति के रोगियों के गला बैठ जाने के लक्षण में स्पंजिया उत्तम औषधि है। अगर गले में घड़घड़ाहट हो, तब यह इसका क्षेत्र नहीं है।

(4) सांय-सांय या सीटी की-सी आवाज का दमा – जैसा हमने कहा, इस औषधि का श्वास-प्रणाली पर विशेष प्रभाव है। यही कारण है कि दमे में यह औषधि लाभ करती है। दमे के रोगी के सांस में सांय-सांय की या सीटी-की-सी आवाज आनी चाहिये, घड़घड़ाहट की आवाज नहीं। रोगी बिस्तर में आगे झुक कर बैठा रहता है। कभी-कभी, सांस रुकने के घोर कष्ट के बाद श्वास-प्रणालिका में कुछ श्लेष्मा बनता है जिसे रोगी थूक नहीं सकता, यह आता है और इसे निगलना पड़ता है। रोगी लेट नहीं सकता, लेटते ही सांस रुक जाता है।

(5) दिल की धड़कन तथा दिल में बेचैनी – दिल की धड़कन और दिल की बेचैनी में भी यह उत्तम औषधि है। रोगी को घबराहट, मृत्यु का भय-आ पकड़ता है, दम घुटता है, ऐसा लगता है कि न जाने क्या होने वाला है, मृत्यु-जैसी कुछ भयंकर घटना का डर समा जाता है, रोगी भय से सोते से जाग उठता है। यह सब घबराहट और भय हृदय के रोग के कारण होता है। छाती में, हृदय-प्रदेश में रोगी की बोझ-सा अनुभव होता है। ये सब लक्षण-भय, मृत्यु-भय, घबराहट – एकोनाइट के भी हैं।

(6) गण्डमाला ( Goitre )  – यह औषधि शरीर की ग्रन्थियों को भी प्रभावित करती है। गले की थायरॉयड-ग्रन्थि के बढ़ जाने से गलपड़े का रोग इस से दूर हो जाता है।

(7) शक्ति तथा प्रकृति – 3, 6, 30, 200 (औषधि ‘सर्द’-प्रकृति के लिये है; ठंडी चीज पीने से रोग बढ़ जाता है, और सोने के बाद खांसी-दमा आदि रोग बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।)

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