इन्फ्लूएंजा रोग के लिए होम्योपैथिक दवा

775

जेलसीमियम – डॉ० टैम्पलटन लिखते हैं कि 100 रोगियों में से 36 प्रतिशत जेल्स से ठीक हुए हैं। ‘फ्लु’ के लक्षणों में अगर सारा शरीर दुखता हो, सिर-दर्द, खांसी-जुकाम हो, अत्यन्त कमजोरी हो, रोगी नींद की-सी हालत में पड़ा रहे और साथ ही प्यास बिल्कुल न हो, तब इस औषधि का मुख्य क्षेत्र है। ठंड लगने पर जैसे पहले-पहल एकोनाइट की तरफ ध्यान जाता है, वैसे ‘फ्लु’ होने पर पहले-पहल जेलसीमियम या नक्स पर ध्यान दिया जाता है।

नक्स वोमिका – जब इन्फ्लुएन्जा संक्रामक रूप से फैल रहा हो, तब नक्स 200 की एक मात्रा दे देनी चाहिये, वह ‘प्रतिरोधक’ का काम करेगी। रोग का आक्रमण होते ही इसके प्रयोग से लाभ होता है। अगर ‘फ्लु’ में ठंड महसूस हो, कितनी भी गर्मी पहुंचायी जाय ठंड न जाती हो, पैर हिलाते ही शरीर में ठंड की कंपकंपी दौड़ जाती हो, कपड़ा ओढ़ने पर गर्मी आती हो, रोगी उसे उतारना चाहता हो, परन्तु कपड़ा उतारते ही शरीर थरथरा जाता हो – ऐसी हालत में खांसी, जुकाम, शरीर-दर्द आदि ‘फ्लु’ को अन्य लक्षण होने पर नक्स वोमिका दो।

यूपैटोरियम – इसमें रोगी के हड्डियों में दर्द होता है, रोगी बेचैन होता है और हिलने-डोलने से उसे आराम अनुभव होता है। त्वचा गर्म होती है परन्तु पसीना या तो आता नहीं, या बहुत थोड़ा आता है। इस औषधि में रोग का मुख्य-केन्द्र-स्थल हड्डियों में दर्द है, श्वास-प्रणालिका उतना नहीं। आंखों के डेलों तक में उनके बिना हिलाये भी उनमें रोगी को दर्द होता है।

ब्रायोनिया – इसमें भी रोगी को हड्डियों में दर्द होता है, परन्तु रोगी आराम से पड़े रहना चाहता है, हिलना-डोलना नहीं चाहता, उससे उसका दर्द बढ़ जाता है; जेल्स का रोगी नींद में होने के कारण हिलना नहीं चाहता, ब्रायोनिया का हिलने से शरीर दुखता है। रोगी को पसीना बहुत आता है, आसानी से आता है। इस औषधि में रोग का मुख्य केन्द्र स्थल श्वास-प्रणालिका होती है। जैसे जेल्स में प्यास का न होना है, वैसे उससे उल्टा इसमें भारी प्यास का होना है। ब्रायोनिया के रोगी में खांसने से सिर तथा पसलियां तक दुखने लगती हैं।

ऐमोनिया कार्ब – इन्फ्लुएन्जा के बाद जब रोगी की खांसी बची रहे, जाने का नाम न ले, तब इस औषधि की 200 शक्ति की एक मात्रा से यह खांसी चली जाती है। डा० यूनान ने लिखा है कि यह उनका निजी अनुभव है।

आर्सेनिक – यह औषधि नक्स की तरह इन्फ्लुएन्जा के शुरू में उपयोगी है या जब रोग का आक्रमण धीमा पड़ जाय, तरुण-लक्षण (Acute symptoms)चले जायें, परन्तु भिन्न-भिन्न प्रकार के दर्द, ज्वर कभी चढ़ जाय, कभी उतर जाय या न उतरे – ऐसी अवस्था में आर्सेनिक 200 की एक दो मात्रा से ये बचे-खुचे लक्षण वैसे ही चले जाते हैं जैसे ऐमोनिया कार्ब 200 की मात्रा से इन्फ्लुएन्जा के बाद की बची-खुची खांसी चली जाती है। ‘फ्लु’ के अन्य लक्षणों के साथ अगर थोड़ी-थोड़ी प्यास के साथ हिलने-डुलने से आराम पहुंचे तो रस टॉक्स अगर इस प्यास के साथ चेहरा लाल, तमतमा जाय तो बेलाडोना, और अगर प्यास के साथ रोगी को मानसिक बेचैनी हो जिसके कारण वह कहीं न टिक से तो आर्सेनिक उपयोगी है। ‘फ्लु’ में प्यास के साथ आर्स की बेचैनी शारीरिक न होकर मानसिक होती है।

रस टॉक्स – अगर ‘फ्लु’ होने से पहले रोगी पानी से भीगा हो। आँखों के डेलों को इधर-उधर हिलाने से जेल्स, ब्रायो, रस टॉक्स – इन तीनों में दर्द होता है, परन्तु अगर शरीर की हरकत से आराम हो तो रस टॉक्स देना चाहिये। रस टॉक्स में भी रोगी आर्सेनिक की तरह थोड़ा-थोड़ा और बार-बार पानी पीता है। रस टॉक्स और आर्स बहुत कुछ समान हैं, परन्तु रस टॉक्स की बेचैनी शारीरिक होती है, आर्स की मानसिक। रस टॉक्स हिलता-डुलता है जिससे शरीर को आराम मिलता है, आर्स कहीं टिकता नहीं जिसका कारण उसकी मानसिक बेचैनी है।

Ask A Doctor

किसी भी रोग को ठीक करने के लिए आप हमारे सुयोग्य होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। डॉक्टर का consultancy fee 200 रूपए है। Fee के भुगतान करने के बाद आपसे रोग और उसके लक्षण के बारे में पुछा जायेगा और उसके आधार पर आपको दवा का नाम और दवा लेने की विधि बताई जाएगी। पेमेंट आप Paytm या डेबिट कार्ड से कर सकते हैं। इसके लिए आप इस व्हाट्सएप्प नंबर पे सम्पर्क करें - +919006242658 सम्पूर्ण जानकारी के लिए लिंक पे क्लिक करें।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.

पुराने रोग के इलाज के लिए संपर्क करें