स्टैनम ( टीन ) – Stannum Metallicum

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स्टैनम का होम्योपैथिक उपयोग

( Stannum Metallicum Homeopathic Medicine In Hindi )

लक्षण तथा मुख्य-रोगलक्षणों में कमी
छाती में बेहद कमजोरी; इसमें अर्जेन्टम मेटैलिक से तुलनाबलगम निकल जाने से कमी
छाती या पेट में खालीपन का अनुभव; रोगी सीढ़ियाँ चढ़ने में नहीं थकता, उतरने में थकता है।किसी नोकीली वस्तु के साथ जोर से दबाने से रोग में कमी (कोलोसिन्थ में भी ऐसा लक्षण है)
दर्द का सूर्य के बिना या सूर्य की गति के साथ धीरे-धीरे बढ़ना, धीरे-धीरे घटना; सिर-दर्द में भी यही लक्षण है।तेज हरकत से रोग में कमी
सूर्य के चढ़ने-उतरने के साथ दर्द में कैलमिया, नैट्रम म्यूर, सैंग्विनेरिया से तुलनालक्षणों में वृद्धि
पेट-दर्द में दबाव से आराम – कोलोसिन्थ से ठीक न हो तो स्टैनम लाभ करता हैबोलने से रोग में वृद्धि
स्नायु-शूल के दबने के बाद प्रदर का हो जानाहंसने से रोग में वृद्धि
स्वप्न-दोषगाने से रोग में वृद्धि
तपेदिक की खांसी और स्टैनम दायीं तरफ लेटने से वृद्धि
मानसिक-लक्षण – दुःखी, निराश, रोने का स्वभावगर्म पेय पीने से वृद्धि

(1) छाती में बेहद कमजोरी; इसमें अर्जेन्टम मेटैलिकम से तुलना – इस औषधि में छाती में बेहद कमजोरी अनुभव होती है। रोगी को छाती में इतनी कमजोरी अनुभव होती है कि वह बोलने, हंसने, जोर-से पढ़ने, गाने, बात करने से एकदम थक जाता है। इन सब कमजोरी का केन्द्र-स्थल उसकी छाती होती है। अपने दैनिक काम के लिये उसे बार-बार आराम करना पड़ता है। बोलते हुए भी वह हांफने लगता है, सांस लेने के लिये बोलते-बोलते रुकना पड़ता है। छाती में कमजोरी इतनी होती है कि रोगिणी सवेरे कपड़े आदि पहनते और तैयार होने में कई बार आराम करने को बैठ जाती है। सारी कमजोरी छाती से प्रारंभ होकर संपूर्ण शरीर पर छा जाती है। जरा-से भी श्रम से हृदय में धड़कन होने लगती है। जो व्यक्ति देर से कमजोर होते चले आ रहे हैं, उनके लिये यह उपयुक्त है। यह कमजोरी इतनी गहरी होती है कि इसे देखकर कहना पड़ता है कि रोगी के शरीर में कोई ‘धातुगत-दोष’ (Constitutional defect) है। रोगी का अगर इतिहास पूछा जाय, तो पता चलेगा कि उसके खांसी-जुकाम या स्नायु-शूल आदि रोगों के पीछे चिर-काल से किसी प्रकार की कमजोरी चली आ रही है, इस चिरकालीन कमजोरी से ही उसे खांसी-जुकाम-दर्द आदि होने लगे हैं। छाती की इस प्रकार की बेहद कमजोरी सब से अधिक स्टैनम में, या इस से उतरकर अर्जेन्टम मेटैलिकम में पायी जाती है। इन दोनों में भेद यह है कि स्टैनम के थूक का रंग अंडे की सफेदी जैसा या पीलिमा लिये हरे रंग का होता है, मीठा होता है; अर्जेन्टम का थूक भूरे (Grey) रंग का होता है। थूक का स्वाद नमकीन हो तो सीपिया या कैलि आयोडाइड पर, और कड़वा हो तो पल्स पर ध्यान जाता है।

(2) छाती या पेट में खालीपन का अनुभव; रोगी सीढ़ियाँ चढ़ने में नहीं थकता, उतरने में थकता है – छाती में जिस कमजोरी का हमने अभी वर्णन किया उसका स्वरूप क्या है? इस खालीपन का वर्णन करते हुए रोगी कहता है कि उसे छाती खाली-खाली अनुभव होती है, उसमें कुछ नहीं-ऐसा लगता है, दिल बैठा जाता है, नीचे को धंसता जाता है, ऐसा प्रतीत होता है कि सारी छाती एक खोल है। यह खालीपन का अनुभव पेट के संबंध में भी हो सकता है। चैलीडोनियम, फॉस और सीपिया में भी इस प्रकार का खालीपन का अनुभव होता है। छाती या पेट का खालीपन अनुभव होना कमजोरी का ही एक रूप है। पेट के खालीपन के अनुभव की औषधियों का वर्णन हम सीपिया में कर आये हैं।

रोगी सीढ़ियाँ चढ़ने में नहीं थकता, उतरने में थकता है – इसका एक विलक्षण-लक्षण यह है कि रोगी सीढ़ियां चढ़ने में इतनी थकान अनुभव नहीं करता जितनी थकान वह सीढ़ियां उतरने में अनुभव करता है। कैलकेरिया कार्ब में भी यह लक्षण पाया जाता है। नीचे आने की गति में भय खाना बोरैक्स का लक्षण है। बोरैक्स औषधि के रोगी बच्चे को जब पालने में नीचे लिटाते हैं तब वह डर जाता है।

(3) दर्द का सूर्य के बिना या सूर्य की गति के साथ धीरे-धीरे बढ़ना, धीरे-धीरे घटना; सिर-दर्द में भी यही लक्षण है – किसी प्रकार का भी दर्द हो चेहरे का, आंखों का, पेट का, आतों का-दर्द धीरे-धीरे बढ़ता है और धीरे-धीरे घटता है। कई बार यह दर्द सूर्य के उदय होने के बाद ज्यों-ज्यों वह चढ़ता जाता है त्यों-त्यों दर्द भी बढ़ता जाता है, और ज्यों-ज्यों सूर्य ढलता जाता है दर्द भी कम होता जाता है और सूर्यास्त के साथ समाप्त हो जाता है। यह भी हो सकता है कि दर्द सूर्योदय के साथ न शुरू हो, किसी समय भी शुरू हो जाय, 10 बजे प्रात: शुरू हो, दस-बीस मिनट तक बढ़ता चला जाय, और फिर धीरे-धीरे हट जाय। सिर-दर्द में भी ऐसा ही होता है। स्टैनम का सिर-दर्द धीरे-धीरे बढ़ता है, धीरे-धीरे ही घटता है। बढ़कर अगर ठहर जाता है, तो प्राय: बायीं आख पर ठहरता है।

(4) सूर्य के चढ़ने-उतरने के साथ दर्द में कैलमिया, नैट्रम म्यूर, सैंग्विनेरिया से तुलना – अनेक औषधियों में सूर्य के उदय के साथ सिर-दर्द का शुरू होने तथा सूर्यास्त के साथ सिर-दर्द का समाप्त होना पाया जाता है जिनमें से कुछ एक का उल्लेख हम यहां कर रहे हैं:

सूर्योदय तथा सूर्यास्त के साथ सिर-दर्द में मुख्य-मुख्य औषधियां

कैलमिया – सूर्योदय के साथ सिर-दर्द शुरू होता है, सूर्यास्त के साथ समाप्त हो जाता है, परन्तु इस में अनियमितता भी पायी जाती है, यद्यपि हर हालत में दोपहर को दर्द शिखर पर होता है।

नैट्रम म्यूर – इसका सिर-दर्द 10 बजे प्रारंभ होता है, 2-3 बजे शिखर पर पहुंच जाता है और सूर्यास्त के साथ समाप्त हो जाता है।

सैंग्विनेरिया – इसका सिर-दर्द सवेरे सूर्योदय से शुरू होता है, दोपहर को शिखर पर पहुंच जाता है, जब शिखर पर पहुंचता है तब रोगी खाये-पीये की या पित्त की कय कर देता है, और सूर्यास्त के साथ सिर-दर्द समाप्त हो जाता है।

स्टैनम – इस औषधि, में सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ सिर-दर्द के बढ़ने-उतरने के अतिरिक्त छाती की कमजोरी भी पायी जाती है।

(5) पेट-दर्द में दबाव से आराम – कोलोसिन्थ से ठीक न हो तो स्टैनम लाभ करता है – पेट के दर्द में पेट पर दबाव पड़ने से आराम आने के लक्षण में सब से पहले कोलोसिन्थ की तरफ़ ध्यान जाता है, परन्तु अगर पेट-दर्द के ये दौर पुराने हो जायें और ऐसा प्रतीत हो कि रोग लम्बा होता जा रहा है, ठीक होने में नहीं आता, तो स्टैनम का प्रयोग करना चाहिये। अगर रोगी बच्चा होगा तो कन्धे से लगाने में उसके पेट-दर्द को आराम पहुँचेगा, क्योंकि कन्धे से लगाने पर पेट के ऊपर दबाव पहुँचता है और बच्चे को चैन पड़ता है।

(6) स्नायु-शूल के दबने के बाद प्रदर का हो जाना – कभी-कभी ऐसी रोगिणी आती है जिसे स्नायु-शूल था, उसे किसी तेज दवा से दबा दिया गया। अगर वह कहे कि जब से उसका स्नायु-शूल तेज दवा से दबा है, तब से उसे बहुत ज्यादा, गाढ़े, पीले-हरे प्रदर का स्राव जारी हो गया है, तो यह रोग स्टैनम से ठीक हो जायेगा। इस रोगिणी को छाती में कमजोरी का अनुभव होगा। प्रकृति शरीर के आन्तरिक रोगों को श्लैष्मिक-स्रावों के रूप में बाहर निकाल फेंका करती है, अगर वह ऐसा न करे तो रोग भीतर ही किसी नाजुक अंग पर हमला कर देता है। तेज दवा से स्नायु-शूल दबा देने के बाद इस रोगिणी को प्रदर हो जाने से वह तपेदिक की मरीज होने से बच गई है, परन्तु स्टैनम उसे तपेदिक और प्रदर दोनों से बचा लेगा।

(7) स्वप्न-दोष – डॉ० चौधरी अपनी ‘मैटीरिया मैडिका’ में लिखते हैं कि इस औषधि का प्रभाव विशेष रूप से मन की काम-वासना पर है। इस औषधि की परीक्षा (Proving) में शीघ्र वीर्य-पात हो जाता है। काम को जागृत करने की कोई चेष्टा या विषय-वासना का कोई भी विचार आते ही वीर्य-पात हो जाता है। इसीलिये स्वप्न-दोष में या जिनको सहज वीर्य-स्राव हो जाता है, जिन्हें स्नायु-शैथिल्य का रोग हो, उनके लिये यह औषधि उपयुक्त है। रोगी की यह हालत हो जाती है कि बांह की खुजली से ही जननांगों में हर्षोद्रेक होकर पुरुष या स्त्री को विषय-भोग के हर्ष का-सा अनुभव होने लगता है। जिन्हें यूं ही वीर्य-स्राव होता रहता है उनके लिये यह उपयोगी है।

(8) तपेदिक की खांसी और स्टैनम  – यह औषधि श्वास-प्रणालिका के रोगों को शान्त करने के लिये विशेष महत्व की है, खासकर फेफड़ों के तपेदिक में इसका प्रमुख स्थान है। रोगी को तपेदिक का शाम को बुखार आया करता है, रात को भारी पसीना आता है, खांसी भी फेफड़े की गहराई से आती है, शरीर को हिला देती है, फेफड़ा खोखला-सा लगता है। थूक की मात्रा बहुत होती है, उसका रंग अंडे की सफेद जैसा, परन्तु प्राय: पीलिमा लिये हरा होता है, थूक का स्वाद मीठा या कभी-कभी नमकीन भी हो सकता है। जरा-से बोलने से खांसी छिड़ जाती है, छाती में खालीपन का अनुभव होता है। इन लक्षणों में रुटीन के तौर से दवा देने वाले ब्रायोनिया की निम्न-शक्ति की मात्रा देंगे जिस से कफ बाहर निकल जाय, परन्तु स्टैनम देने से साइलीशिया की तरह यह जीवनी-शक्ति को सचेत कर रोगी को सुधार की राह पर ला सकती है। अगर शुरू में रोग की कुछ वृद्धि हो तो घबराना नहीं चाहिये क्योंकि उसके बाद रोग धीमा पड़ जायेगा। स्टैनम से हानि नहीं हो सकती। अगर स्टैनम देने के बाद ढीला और आसानी से निकल जाने वाला कफ सूख जाये, खांसी का ठसका बढ़ जाय, तो पल्स देने से खांसी फिर ढीली हो जायेगी।

(9) मानसिक-लक्षण – दुःखी, निराश, रोने का स्वभाव – रोगिणी इतनी दु:खी, निराश होती है कि हर समय रोने को मन किया करता है। वह अपना रोना रोक लेती है क्योंकि रोने से उसका चित्त और दु:खी होता है। रोने का लक्षण पल्स, नैट्रम म्यूर और सीपिया में भी है।

पल्सेटिला और रोना – यह कभी रोती है, कभी हंसती है, लक्षण एक-से नहीं रहते, अपना दु:ख सब से कहती फिरती है, आंसू बहाती है, मृदु स्वभाव की, कोमल प्रकृति की होती है, सांत्वना देने से इसका दु:ख हल्का हो जाता है।

नैट्रम म्यूर और रोना – यह भी दु:खी रहती है, रोया करती है, परन्तु अगर कोई तसल्ली की बात कहे, तो खिज उठती है, तसल्ली देने से इसको क्रोध आ जाता है।

सीपिया और रोना – यह भी दु:खी रहती है, रोया करती है, सांत्वना देने से इसे भी तसल्ली नहीं होती, परन्तु इसका मुख्य लक्षण पुत्र, पति या घर के लोगों के प्रति उदासीनता है।

स्टैनम और रोना – यह भी दु:खी रहती है, रोने को दिल किया करता है, परन्तु रोने से जी और खराब हो जाता है, इसलिये रोना रोक लिया करती है।

(10) शक्ति – स्टैनम 30, स्टैनम 200

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