ऑटिज्म का होम्योपैथिक इलाज [ Autism Homeopathy Treatment Hindi ]

Autism ka homeopathic ilaj

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Is article me hum autism ka homeopathic ilaj ke bare me janege, homeopathy me kai acchi dawayein hain jo autism ke case me accha kaam karti hai, aaiye samjhte hain:-

आजकल ऑटिज्म बीमारी बहुत बढ़ गई है। पहले लोग शिशु विशेषज्ञ के पास जाते थे, परन्तु अब होमियोपैथी के पास अधिक आने लगे हैं। पहले तो हम इसे कैसे पहचाने की बच्चे को ऑटिज्म है की नहीं ? आइये पहचानने की कोशिश करें। पहले हम यह जानने की कोशिश करें क्या बच्चा असामान्य रूप से बहुत ज्यादा जिद करता है, जल्दी कुछ सीखता नहीं, चीजों को तोडना और पटकना अधिक करता है, अपनी हरकतों को बार-बार दोहराता है, थोड़ी भी आवाज से डर जाता है , ऐसा होने पर उसके मां-बाप को लगता है कि वह बहुत शैतान हो गया है और उसे डांटकर शांत कर देते हैं, लेकिन जरुरी नहीं कि आपका बच्चा शैतान ही हो। उसकी हरकतों को ध्यान से देखिये और उसे समझने की कोशिश करें।

क्या है ऑटिज्म ?

ऑटिज्म ब्रेन के विकास में बाधा डालने और विकास के दौरान होने वाला विकार है। ऑटिज्म एक ऐसा रोग है, जिसमे रोगी बचपन से ही बाहरी दुनिया से अनजान अपनी ही दुनिया में खोया रहता है। यह एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है, जो बातचीत और दुसरे लोगों से व्यवहार करने की क्षमता को सीमित कर देता है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे का विकास सामान्य बच्चे की तुलना में बहुत धीमी गति से होता है।

ऑटिज्म के लक्षण

  • बोलचाल व शाब्दिक भाषा में कमी आना
  • अन्य लोगों से खुलकर बात न कर पाना
  • अकेले रहना अधिक पसंद करना
  • किसी भी बात में प्रतिक्रिया देने में बहुत समय लेना
  • रोजाना एक जैसा काम या खेल खेलना
  • सुने-सुनाये व खुद के इजाद किये शब्दों को बार-बार बोलते रहना
  • किसी दुसरे व्यक्ति की आँखों में आँखें डालकर बात करने से घबराना
  • कई बच्चों को बहुत ज्यादा डर लगना

ऑटिज्म होने के कारण

अभी तक शोधों में इस बात का पता नहीं चल पाया है कि ऑटिज्म होने का मुख्य कारण क्या है, लेकिन कुछ कारण इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं जैसे –

  • जन्म संबंधी दोष होना।
  • बच्चे के जन्म से पहले और बाद में जरुरी टीके न लगवाना।
  • गर्भवती का खान-पान सही न होना।
  • गर्भावस्था के दौरान माँ को कोई गंभीर बीमारी होना।
  • दिमाग की गतिविधियों में असामान्यता होना।
  • दिमाग के रसायनो में असामान्यता होना।
  • बच्चे का समय से पहले जन्म या बच्चे का गर्भ में ठीक से विकास ना होना।
  • बच्चा जन्म के समय देरी से रोना।

लड़कियों के मुकाबले लड़कों को इस बीमारी की चपेट में आने की ज्यादा संभावना होती है। इस बीमारी को पहचानने का कोई निश्चित तरीका नहीं है, हालांकि जल्दी इसका निदान हो जाने की स्थिति में सुधार लाने ले लिए कुछ किया जा सकता है। यह बीमारी दुनिया भर में पाई जाती है और इसका गंभीर प्रभाव बच्चों, परिवारों, समुदाय और समाज सभी पर पड़ता है।

Autism ka homeopathic ilajपढ़ें – ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) स्क्रीनिंग के बारे में

आपको अभिभावक को क्या कहें।

  • बच्चों को शारीरिक खेल के लिए प्रोत्साहित करें।
  • पहले उन्हें समझाएं, फिर बोलना सिखाएं।
  • खेल-खेल में उन्हें नए शब्द सिखाएं।
  • छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें।
  • खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका बताएं।
  • बच्चे को तनाव मुक्त रखें।

होम्योपैथिक के चिकित्सा से कई बच्चों को फायदा होते देखा गया है। अगर बच्चे को लम्बे समय तक होम्योपैथिक औषधि में रखा जाये तो बच्चे ठीक होते देखे गए हैं। पहले बच्चे पर न जाएँ आप भलीभाँति से लक्षण लें और टोटालीटी लक्षण पर सदा बने रहें वही आपकी दवा है।

Autism ka homeopathic ilaj

बोरेक्स 30 बच्चा सीढ़ी से उतरने में डरता है। जरा सी भी आवाज में जरुरत से ज्यादा रोना और चुप न होना। ऐसा लक्षण मिले तो इस दवा का सेवन कराएं।

कैल्केरिया कार्ब 30 माथे पर पसीना, डरपोक, मोटा थुलथुला, शाम के समय डरना, चिड़चिड़ापन, बातें भूलना, बार-बार वही शब्द को बोलना।

बेराइटा कार्ब 30 रोगी का बुद्धि बालक की तरह होना, दिमाग ठीक से काम नहीं करना, मंदबुद्धि, शरमाना, किसी के साथ खेलने की इच्छा न होना, एक कोने में बैठे रहना, घुटने के बल चलना।

हिलीयम 30 – दुनिया से कोई लेना देना नहीं, अपने ही दुनिया में रहना, उसके आसपास कोई रहना नहीं चाहिए, किसी से भी आँख मिला कर बात न करना। किसी से फर्क न पड़ना, अपने आप को बंद कर रखना, किसी से घुलना-मिलना नहीं, जिंदगी से कोई मतलब न होना।

हाइड्रोजिनम 30 – लिखने बोलने में गलती करना, हड़बड़ाना, मंदबुद्धि।

टेरेन्टुला एच् 30 चीजों को तोडना, मारना, जरुरत से ज्यादा उछल-कूद करना, झूठ बोलना, चीजें चुराना, मार से डर, एक जगह न बैठना, बहाना बनाना।

एगरिकस 30 बोली साफ न होना, गीत बनाने में व्यस्त रहना, बात बदलते रहना, निडर रहना, अंग फड़कना।

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