डिप्थीरिया के उपचार [ Diphtheria Treatment In Hindi ]

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यह ज्वर महामारी के रूप में डिप्थीरिया बेसिलस कीटाणु के संक्रमण से 2 वर्ष से 5 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को अधिकतर होता है । इसमें बच्चों को ज्वर तो होता है किन्तु टॉन्सिल शोथ ज्वर की भाँति तीव्र नहीं होता है । नाड़ी की गति बहुत तेज, बच्चे का चेहरा पीला, सिरदर्द, अत्यधिक कमजोरी, ज्वर चढ़ने के 3-4 दिन बाद गले के अन्दर एक दूषित मटियाली अथवा पीली झिल्ली बन जाती है। आवाज बैठ जाती है । झिल्ली स्वरयन्त्र की ओर बन जाने पर रोगी को साँस लेने में बहुत कष्ट होता है। मुँह से लार टपकती है तथा बदबू भी आती है। झिल्ली को खुरचने पर वहाँ से रक्त निकलने लगता है। टॉन्सिल सूज जाते हैं। समय पर उचित चिकित्सा के अभाव में बच्चे को पक्षाघात, वृक्कों की सूजन, दिल अधिक धड़कना जैसे रोग हो जाते हैं। गले के तरल की परीक्षा करने पर उसमें इस रोग के कीटाणु पाये जाते हैं। यदि बच्चे के गले में दर्द हो, खाँसी आती हो, आवाज बैठ जाये तो उसके गले का ध्यान से निरीक्षण करें । टॉन्सिल शोथ में भी एक प्रकार की झिल्ली बन जाती है किन्तु उसको सरलता से अलग किया जा सकता है ।

डिप्थीरिया का एलोपैथिक चिकित्सा

इस रोग की शर्तिया चिकित्सा एंटी टॉक्सिन सीरम है। यह 10 से 20 हजार की शीशियों में मिलता है ! थोड़ी-सी झिल्ली बनने और रोग मामूली होने पर 4 से 10 हजार यूनिट, टॉन्सिलों के दोनों ओर धब्बे व झिल्ली बन चुकने पर 20 हजार यूनिट तथा रोग की तीव्रता में 40 हजार यूनिट का इंट्रा मस्कुलर इन्जेक्शन लगा दें । इस रोग का सन्देह हो जाने पर भी 10 हजार यूनिट का इन्जेक्शन लगा देने से बच्चा इस रोग से ग्रसित हो जाने से बचा रहता है ।

फोर्टीलाइड पेनिसिलिन 2 लाख यूनिट का 1 मि.ली. वाटर फार इन्जेक्शन में घोलकर दिन में 2 बार 5 दिन तक नितम्ब में लगायें ।

सेलिन (ग्लैक्सो कम्पनी) विटामिन सी की 100 मि.ग्रा. की टिकिया दिन में दो बार खिलाते रहें ।

कष्टदायक खाँसी होने पर उबलते पानी में टिंक्चर बेन्जोईन की कुछ बूंदें डालकर सिर पर मोटा कपड़ा डालकर रोगी को मुंह व नाक से लम्बी सांस लेकर वाष्प ले जाने को कहें ।

सल्फा ड्रग की किसी औषधि का जैसे सल्फाडायाजीन (मे एण्ड बेकर) की प्रारम्भ में 4 टिकिया तदुपरान्त 1 से 2 टिकिया दिन में 2 बार खिलायें । साथ ही ग्लूकोज सेलाइन (बी. आई कम्पनी) बूंद-बूंद करके शिरा में प्रविष्ट करें।

इस रोग की एकमात्र चिकित्सा शल्यकर्म है । माउथ गैंग लगाकर कण्ठरोहिणी के कीटाणुओं द्वारा निर्मित झूठे पर्दे को कैंची से गोलाई में चारों ओर से काटकर एक अठन्नी परिमाण में पृथक कर दें । इसके बाद रोशिलीन (रेनबैक्सी कम्पनी) आवश्यकतानुसार 250 से 500 मि.ग्रा का माँस में प्रत्येक 12 से 24 घण्टे बाद इन्जेक्शन लगाते रहें ।)

डायनासिल (एच. ए. एल.) – का कैप्सूल अथवा इसी नाम से प्राप्य ड्राई सीरप यथोचित जल में भली-भाँति घोलकर तथा तीव्र दशा में इसी नाम से प्राप्य इन्जेक्शन भी लाभप्रद हैं ।

अन्य औषधियाँ – वालामाक्स कैप्सूल (वालेस) सावधानी पेनिसिलिन की भाँति बरतें । वेरिपेन टिकिया (एलेम्बिक कम्पनी) का 1 कैपसूल 250 मि.ग्रा का चौथाई भाग मधु में मिलाकर अथवा चौथाई से 1 टिकिया चूर्ण करके मधु में मिलाकर प्रत्येक 4-6 घण्टे पर चटायें ।

यदि टॉन्सिल में पीप उत्पन्न होकर काफी सूजन हो गई हो तो शल्य कर्म करके पीप का निर्हरण करें तथा उस पर हेरामायसिन मरहम (फाईजर कम्पनी) दिन में 3-4 बार लगायें। साथ में डाइक्रिसटीसिन पेडियाट्रिक इन्जेक्शन (साराभाई) माँस में प्रत्येक 6 से 12 घण्टे बाद पूर्ण लाभ होने तक लगाते रहें। घाव को सुखाने तथा पीप को पुन: पैदा नहीं होने देने के लिए सेप्ट्रान या बैक्ट्रिम पेडियाट्रिक टिकिया आयु के अनुसार आधी से 1 टिकिया मधु में मिलाकर प्रत्येक 6 से 12 घण्टे के अन्तराल से चटाते रहें । .

पथ्य में – मौसम्मी का रस पिलाते रहें । इसके अतिरिक्त रोगी को मीठे फलों का रस, दूध में ग्लूकोज मिलाकर पिलाते रहें।

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