लाइकोपोडियम का होम्योपैथिक उपयोग
( Lycopodium uses in hindi )
लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
मानसिक-लक्षण – अपनी योग्यता पर सन्देह, लोभ, कंजूस, लड़ाकूपन ( नक्स वोम से तुलना ) | गर्म पेय, गर्म भोजन पसन्द करना |
शाम के 4 से 8 तक रोग का बढ़ना | हरकत से रोगी को आराम |
दाहिनी तरफ का रोग, या रोग का दाहिने से बायें को जाना; या क्षीणता का ऊपर से नीचे को आना | डकार आने से आराम |
पेट में अफारा (कार्बो वेज-लाइको-चायना की तुलना) | सिर खुला रखने से आराम |
अर्जीण-रोग – बेहद भूखा किन्तु दो कौर के बाद उठ जाता है (अजीर्ण में लाइको तथा नक्स की तुलना) | लक्षणों में वृद्धि |
पेशाब में बालू की तरह का लाल चूरा – मूत्राशय की पथरी; सिर-दर्द, गठिया | 4 से 8 शाम तक रोग-वृद्धि |
नपुंसकता की औषधि | दाहिनी ओर रोग होना |
दाहिनी तरफ का हर्निया | सर्दी से रोग बढ़ना क्योंकि औषधि शीत-प्रधान है |
न्यूमोनिया के बाद से रोगी कभी अच्छा नहीं हुआ | ठंडा खाने-पीने से रोग-वृद्धि |
रोगी शीत-प्रधान होता है। |
(1) मानसिक-लक्षण – अपनी योग्यता पर सन्देह, लोभ, कंजूस, लड़ाकूपन (नक्स से तुलना) – मानसिक-लक्षणों को लाइको और नक्स में इतनी समानता है कि चिकित्सक को यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि किस औषधि को दें। दोनों तीव्र-बुद्धि हैं, शरीर से कमजोर; शरीर के विकास और मानसिक-विकास में अन्तर पाया जाता है; शारीरिक-विकास पिछड़ा हुआ और मानसिक-विकास आगे बढ़ा हुआ। कमजोर पतले-दुबले व्यक्ति जो पहली नजर में देखने वाले पर कुछ प्रभाव नहीं छोड़ते, परन्तु कुछ देर तक उनसे बातचीत करने पर पता चलता है कि इस दुबले-पतले शरीर में किसी बुद्धिमान आत्मा का निवास है। बड़े नाजुक (Sensitive) होते हैं। जरा-सी बात पर पारा चढ़ जाता है। धैर्यहीन, असंतुष्ट, किसी पर विश्वास न करने वाले। यहां तक मानसिक-लक्षणों में दोनों में समानता है। परन्तु इनमें भेद भी हैं। नक्स का गुस्सा, उसकी चिड़चिड़ाहट तब जाहिर होती है जब कोई दूसरा उसके नजदीक झगड़ने जाय, लाइको तो खुद लोगों से झगड़ा मोल लिया करता है। लाइको का मरीज दूसरे पर हावी होना चाहता है, हर बात में नुक्स निकाला करता है, तेज मिजाज का होता है, कोई उसकी बात को काटे तो सह नहीं सकता। डॉ० एलन ने उसकी ऐसी व्यक्ति से तुलना की है जो डंडा लिये यह सोचा करता है कि किस पर वह प्रहार कर सकता है। इसके अतिरिक्त नक्स के रोग प्रात: काल बढ़ते हैं, लाइको के सायंकाल 4 बजे के बाद; नक्स भरपेट खाना खा लेता है, बाद को उसकी पेट की तकलीफ शुरू होती है. लाइको तो दो-चार कौर खाकर आगे खा ही नहीं सकता, दो-चार कौर के बाद ही पेट भारी लगने लगता है। लाइको लोभी, कंजूस, लालची, और लड़ाकू होता है।
अपने योग्यता पर संदेह – इसके रोगी में प्राय: देखा जाता है कि व्यक्ति को अपनी योग्यता में संदेह होता है। उदाहरणार्थ, वकील की जज के सामने अपने केस पेश करने में यह संदेह बना रहता है कि वह अपना केस सफलतापूर्वक रख सकेगा ‘या नहीं। नेता को जनता के समक्ष भाषण करने में यही सन्देह बना रहता है कि उसका भाषण सफल होगा या नहीं। यद्यपि ये दिन-प्रतिदिन केस लड़ते तथा भाषण करते हैं, तो भी इन्हें अपनी योग्यता पर सन्देह बना ही रहता है। जब ये भाषण करते हैं तब बड़ी सफलता से अपना कार्य निबाहते हैं, परन्तु शुरू-शुरू में यह डर सताता रहता है कि कहीं भाषण करते हुए अटक न जायें, अपनी युक्तियों को भूल न जायें। अपनी योग्यता में इस प्रकार सन्देह, अपनी कार्य-क्षमता में आत्म-विश्वास का अभाव साइलीशिया में भी पाया जाता है। इस प्रकार का आत्म-विश्वास का अभाव इन दो औषधियों में सबसे अधिक है। इस लक्षण को दूसरे शब्दों में ‘घटना होने से पहले चिन्ता’ (Anticipatory fear) कहा जा सकता है। यह लक्षण अर्जेन्ट नाइट्रिकम तथा जेलसीमियम में भी है।
एकान्त से डरना भी, और एकान्त चाहना भी – रोगी उन्हीं के पास रहना चाहता है जो सदा उसके साथ रहें, अपरिचितों से वह दूर रहना चाहता है। एक छोटे-से कमरे में एकान्त रहना वह पसन्द करता है, परन्तु यह भी चाहता है कि उसके पास एक दूसरा भी कमरा हो जिसमें कोई उसका जान-पहचान का व्यक्ति रहे। इस दृष्टि से लाइको एकान्त चाहता भी है, और एकान्त से डरता भी है।
झट रो देता है – जब कभी कोई मित्र मिलता है, तो उसकी आखों में आँसू आ जाते हैं। अगर कोई मित्र कुछ भेंट दे, तो धन्यवाद देने के साथ-साथ उसके आँसू टपक पड़ते हैं। वह इतना स्नायु-प्रधान होता है कि जरा-सी खुशी के मुकाम पर रो देता है, अत्यंत भावुक होता है।
अन्धकारमय पागलपन का दृष्टिकोण – उसके चित्त में अजीब तरह के बुरे-बुरे विचार आते रहते हैं। अगर जगत का नाश हो जाय, अगर घर के सब लोग मर जायें, अगर मकान को आग लग जाय, भविष्य के विषय में इस तरह के विचारों को सोचते-सोचते पागलपन आ जाता है।
(2) शाम को 4 से 8 तक रोग का बढ़ना – इसके रोग के बढ़ने का समय निश्चित है। इसकी शिकायतें शाम को 4 से 8 तक बढ़ा करती हैं। नये तथा पुराने रोगों में प्राय: उनके बढ़ने का यही समय होता है। रोगी कहता है कि बुखार 4 बजे आता है, 8 बजे तक रहकर हट जाता है। मलेरिया हो या कोई भी बुखार हो, अगर – उसका यह समय निश्चित है, तो इस औषधि से अवश्य लाभ होगा। मलेरिया, टाइफॉयड, गठिये का दर्द, वात-रोग के बुखार, न्यूमोनिया, दमा आदि कोई रोग भी क्यों न हो, अगर 4 बजे तबीयत गिर जाती है, 4 से 8 बजे रोग के बढ़ने का समय है, तो इस औषधि को भुलाया नहीं जा सकता। लाइको से अपचन के ऐसे अनेक रोगी ठीक हुए हैं जिनमें पेट में जलन 3 बजे दोपहर शुरू हुई और शाम 8 बजे पित्त की उल्टी के बाद जलन दूर हो गई।
(3) दाहिने तरफ का रोग, या रोग का दाहिने से बायें जाना; या क्षीणता का ऊपर से नीचे आना – कोई भी रोग जो शरीर के दाहिने हिस्से पर आक्रमण करे, या दाहिने पर आक्रमण करके बायीं तरफ जाय, तो इसकी तरफ ध्यान जाना चाहिये। टांसिल का शोथ जो पहले गले के दाहिने हिस्से पर आक्रमण करता है इसके द्वारा शुरू में ही संभल जाता है। लाइकोपोडियम, लैकेसिस, लैक कैनाइनम, फाइटोलैका में से लक्षणानुसार किसी भी औषधि से टांसिल को एकदम रोका जा सकता है। पेट, डिम्बकोश, जरायु – इनके दर्द में अगर पीड़ा दाहिने से शुरू होती हो, या दाहिने से शुरू होकर बायीं तरफ जाती हो, फुन्सियाँ दायीं तरफ से बायीं तरफ जायें, शियाटिका का दर्द दायीं तरफ से बायीं तरफ जाय, कोई भी शिकायत हो दायीं तरफ से शुरू होती, दायीं तरफ ही रह जाती, या दायीं से बायी तरफ बढ़ती है – उसमें इस औषधि का कार्य-क्षेत्र है।
क्षीणता का ऊपर से नीचे आना – अगर रोगी का नीचे का भाग सही सलामत हो, ऊपर का भाग क्षीण हो जाय, गर्दन से क्षीणता शुरू हो, या यह क्षीणता सिर से छाती की तरफ चले, तो यह इस औषधि का लक्षण है। नीचे से शुरू होकर दुबलापन ऊपर की तरफ बढ़े तो ऐब्रोटेनम दवा है।
(4) पेट में अफारा (कार्बो वेज, लाइको, चायना की तुलना) – पेट के अफारे या पेट में हवा बनने के संबंध में तीन औषधियां मुख्य हैं – कार्बोवेज, लाइको, चायना। यह गैस की औषधियों का ‘त्रिक’ है। कार्बोवेज में पेट के ऊपर के हिस्से में हवा भर जाती है, नाभि से उपर वाला भाग भरा रहता है, रोगी ऊपर से डकारा करता है। लाइको में पेट का निचला हिस्सा वायु से भरा रहता है, आतों में भोजन पड़ा-पड़ा सड़ा करता है, हर समय गुड़-गुड़ होती है, नीचे के पेट में हवा फिरती रहती है। लाइको का रोगी कहता है कि मैं जो कुछ खाता हूँ सब हवा बन जाता प्रतीत होता है। हवा की गुड़गुड़ाहट विशेष तौर पर बड़ीआंत के उस हिस्से में पायी जाती है जो तिल्ली की तरफ है, अर्थात् पेट के बायीं तरफ। हवा उठती तो दायीं से ही है, परन्तु निकल न सकने के कारण बायीं तरफ अटक जाती है। दायीं तरफ उठने के कारण बायीं तरफ होते हुए भी पेट में ऐसी गैस लाइको का ही लक्षण है। चायना की हवा सारे पेट में भरी रहती है, रोगी यह नहीं कहता कि हवा ऊपर है या नीचे, वह कहता है कि सारा पेट हवा से भरा पड़ा है।
(5) अजीर्ण-रोग – बेहद भूखा परन्तु दो कौर खाने के बाद उठ जाता है (अजीर्ण में लाइको तथा नक्स की तुलना) – डॉ० चौधरी अपनी ‘मैटीरिया मैडिका’ में लिखते हैं: ‘मैं साहसपूर्वक कह सकता हूं कि अपचन या अजीर्ण रोग के 50 प्रतिशत रोगी लाइको से ठीक हो सकते हैं।’ हम पहले ही कह चुके हैं कि लाइको तथा नक्स एक दूसरे के अत्यन्त निकट है। अजीर्ण-रोग में भी दोनों औषधियों में भोजन के उपरान्त बेचैनी होने का लक्षण है, परन्तु लाइको में रोगी बेहद भूखा होता है किन्तु दो कौर खाने के बाद ही पेट की बेचैनी शुरू हो जाती है, पेट भरा-भरा लगता है। इस प्रकार का लक्षण कि रोगी भूखा तो बैठे किन्तु दो कौर खाने के बाद भूख न रहे, अन्य किसी औषधि में नहीं पाया जाता। नक्स का रोगी भर पेट खा लेता है, परन्तु उसकी बेचैनी तब शुरू होती है जब पाचन-क्रिया शुरू हो चुकी होती है, लाइको के रोगी की बेचैनी तो पाचन-क्रिया के शुरू होने के पहले ही शुरू हो जाती है।
(6) पेशाब में बालू की तरह का लाल चूरा – मूत्राशय की पथरी, सिर दर्द, गठिया – पेशाब में बालू की तरह का लाल चूरा इस औषधि का बड़ा मुख्य लक्षण है। जिन रोगियों के पेशाब में इस प्रकार का लाल चूरा प्रचुर मात्रा में पाया जाय, उनके हर-किसी रोग में यह औषधि लाभकारी है। लाल चूरे का मतलब सिर्फ लाली नहीं, अपितु बालू की तरह के लाल ठोस कण हैं, जो पेशाब को किसी बर्तन में रख देने से नीचे बैठ जाते हैं। अगर शुरू-शुरू में लाइको से इसका इलाज न किया जाय, तो गुर्दे में पथरी पैदा हो जाती है, जो अत्यंत दर्द पैदा करती है। अगर यह दर्द गुर्दे के दाहिनी तरफ हो, तब तो लाइको निश्चित औषधि है। बायें गुर्दे के दर्द के लिये बर्बेरिस दवा है। सार्सापैरिला में पेशाब के नीचे सफेद-चूरा जमता है, लाल नहीं। बच्चों तथा बड़ों में भी पेशाब में लाइको का लाल चूरा पाया जाता है, इसके साथ कमर में दर्द होता है, और यह दर्द पेशाब करने से जाता रहता है। इन लक्षणों के होने पर लाइको की तरह और दूसरी कोई औषधि इतना लाभ नहीं करती और इन लक्षणों में लाइको पथरी को गलाकर निकाल देती है।
पेशाब में लाल चूरा हो तो सिर-दर्द चला जाय – रोगी के सिर-दर्द का पेशाब के लाल चूरे के साथ विशेष संबंध पाया जाता है; जब तक पेशाब में लाल चूरा निकलता रहता है, तब तक रोगी सिर-दर्द से मुक्त रहता है, जब यह लाल चूरा निकलना बन्द हो जाता है तब सिर दर्द भी शुरू हो जाता है। यह लाल चूरा यूरिक ऐसिड होता है जो शरीर के भीतर होने से सिर दर्द का कारण बना रहता है।
पेशाब में लाल चूरा हो तो गठिया रोग चला जाय – जो लोग गठिये के शिकार होते हैं उनमें जब पेशाब में लाल चूरा आता रहता है, तब जैसे सिर दर्द नहीं रहता वैसे गठिये का दर्द भी नहीं रहता, जब लाल चूरा आना बन्द हो जाता है तब सिर-दर्द और गठिये का दर्द भी आ जाता है। पेशाब में लाल चूरे का सिर के दर्द और गठिये के दर्द – इन दोनों के साथ संबंध है। लाल चूरा होगा तो न सिर-दर्द होगा, न गठिये का दर्द होगा; लाल चूरा नहीं होगा तो या सिर-दर्द होगा या गठिये का दर्द होगा, या दोनों होंगे। इस लाल चूरे का यूरिया से संबंध है और इसलिये लाल चूरे के रूप में जब यूरिया निकलना बन्द हो जाता है तब यही यूरिया सिर-दर्द या गठिये का दर्द पैदा कर देता है।
खा लेने पर सिर-दर्द चला जाय – इस औषधि के रोगी का सिर-दर्द खाना खा लेने से घट जाता है। निश्चित समय पर भोजन न मिले तो सिर-दर्द शुरू हो जाता है। फॉसफोरस और सोरिनम में भी समय पर भोजन न खाने से सिर दर्द शुरू हो जाता है, परन्तु फॉसफोरस और सोरिनम में सिर-दर्द शुरू होने से पहले पेट में भूख की धबराहट पैदा होती है, जो भोजन करने पर भी नहीं जाती। कैक्टस में ठीक समय पर भोजन न करने से सिर-दर्द हो जाता है, और भोजन कर लेने के बाद और बढ़ जाता है।
जुकाम के पुराने मरीज को ठंड लगने से दोबारा जुकाम होने पर सिर दर्द – जो रोगी सदा जुकाम के शिकार रहते हैं, गाढ़ा, पीले रंग का स्राव सिनका करते हैं, अगर उन्हें ठंड लगकर नया जुकाम हो जाय, और गाढ़े की जगह पतला पानी आने लगे, तो उन्हें तब तक सिर-दर्द होता रहता है जब तक उनका जुकाम फिर गाढ़ा नहीं हो जाता है। उनके जुकाम के फिर से गाढ़ा हो जाने पर सिर-दर्द जाता रहता है। ऐसे रोगियों के सिर-दर्द में लाइकोपोडियम लाभ करता है।
(7) नपुंसकता की औषधि – नपुंसकता दूर करने की मुख्य औषधियों में यह एक है। जो लोग बहुत थके-मांदे रहते हैं, जिनके शरीर में जीवनी-शक्ति की कमी है, जननांग कमजोर हैं, उन्हें फॉसफोरस की अपेक्षा लाइको की आवश्यकता होती है। जिन नवयुवकों ने दुराचरण, व्यभिचार, हस्त-मैथुन आदि दुष्कर्मों से अपने को क्षीण कर लिया है, जननेन्द्रिय में उत्तेजना नहीं होती, उनका यह परम मित्र है। डॉ० नैश लिखते हैं कि वृद्ध लोग जो दुबारा विवाह कर अपनी नव यौवना पत्नी को संतुष्ट नहीं कर सकते उनको इस औषधि की उच्च-शक्ति की एक मात्रा उनके कष्ट दूर कर देती है।
(8) दाहिनी तरफ का हर्निया – बायीं तरफ के हर्निया में नक्स वोमिका तथा दाहिनी तरफ के हार्निया में लाइको दिया जाता है।
(9) न्यूमोनिया के बाद से रोगी कभी अच्छा नहीं हुआ – ब्रौंकाइटिस या न्यूमोनिया के बाद कई रोगी अपने को ठीक हुआ नहीं पाते। ब्रौंकाइटिस या न्यूमोनिया का ठीक-से इलाज न होने के कारण या अधूरा इलाज होने के कारण रोगी को क्षय हो जाता है। ऐसे रोगियों के लिये यह उत्कृष्ट दवा है। इसके अतिरिक्त न्यूमोनिया में इसका उपयोग किया जाता है।
(10) रोगी शीत-प्रधान होता है – रोगी शीत-प्रधान होता है, उसमें जीवनी-शक्ति की कमी होती है, जीवन के लिये जिस गर्मी की जरूरत है वह उसमें नहीं होती। समूचा शरीर ठंड तथा ठंडी हवा को नहीं चाहता। रोगी गर्म खाना और गर्म पीना चाहता है। उसके दर्द गर्मी से शान्त होते हैं। इसमें एक अपवाद है। इसके सिर तथा मेरु-दंड के लक्षण गर्मी से बढ़ जाते हैं, बिस्तर की गर्मी को सिर के लक्षण में वह बर्दाश्त नहीं कर सकता। सिर-दर्द गर्मी से और हरकत से बढ़ जाता है। सूजन के स्थान, गले की शोथ, पेट का दर्द – ये सब गर्मी चाहते हैं, सिर्फ सिर के लक्षणों में रोगी को ठंड की जरूरत पड़ती है।
लाइकोपोडियम औषधि के अन्य लक्षण
(i) कब्ज में नक्स से तुलना – हम जान ही चुके हैं कि लाइको और नक्स बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं। कब्ज में भी ये मिलते हैं। दोनों में कब्ज की जबर्दस्त शिकायत रहती है। लाइको का रोगी कई दिन तक पाखाना नहीं जाता यद्यपि मल-द्वार भारी और भरा रहता है। टट्टी की ख्वाहिश नहीं होती, मल-द्वार क्रियाहीन होता है। दोनों में बार-बार जाना और एक बार में पूरा मल न आना पाया जाता है, परन्तु नक्स में आँतों की मल को आगे धकेलने की शक्ति की कमी के कारण बार-बार जाना पड़ता है, लाइको में मल-द्वार के संकुचित होने या उसकी क्रियाशीलता के अभाव के कारण ऐसा होता है। देखना यह है कि क्या रोगी ऐसा अनुभव करता है कि मल-द्वार तो भरा पड़ा है परन्तु टट्टी नहीं उतरती? तब लाइको उपयोगी होगा।
(ii) खाँसी – हलक में पर लगने की-सी सरसराहट प्रतीत होती है। सूखी, खांसी आती है। गले में धुआँ-सा उठकर खांसी आती है।
(iii) बच्चा दिनभर रोता रातभर सोता है – इसका एक लक्षण यह है कि बच्चा दिनभर तो रोता रहता है, रातभर चैन से सोता है। जेलापा और सोरिनम में बच्चा दिनभर सोता और रातभर रोता है।
(iv) योनि की खुश्की – यह स्त्रियों की योनि की खुश्की को दूर करता है जिसके कारण संगम में कष्ट होता है। योनि में हवा निकलना इसका विचित्र-लक्षण है।
(v) दुबली लड़कियां – जो लड़कियां 16-18 वर्ष की हो जाने पर भी नहीं बढ़ती, जिनकी छाती दबी रहती है, शरीर पुष्ट नहीं हो पाता वे इस औषधि से पुष्ट होने लगती है।
(vi) पसीना न आना – अगर रोगी को पसीना न आता हो तो इस औषधि को ध्यान में रखना चाहिये।
(vii) कन्धों के बीच जलन – इस प्रकार की जलन फॉस में भी है।
(viii) सोते हुए बिस्तर में पेशाब कर देगा – जिन बच्चों को दिन को तो पेशाब ठीक आता है, परन्तु रात को पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है, बिस्तर में पेशाब कर देते हैं, उसके लिये लाइको उपयोगी है।
(ix) फ्लू के बाद – फ्लू के आक्रमण के बाद दिमागी काम करने वालों की दिमागी कमजोरी को लाइको दूर कर देता है और वे फिर से काम करने लगते हैं। स्नायु-प्रधान रोगियों को फ्लू के बाद दिमागी कमजोरी के लिये स्कुटेलेरिया लाभप्रद है। बहुत लम्बी बीमारी हो जाय तो चायना उपयुक्त है।
(12) लाइकोपोडियम का सजीव तथा मूर्त-चित्रण – पतला-दुबला पीला चेहरा, पिचके हुए गाल, चेहरे पर जवानी में भी बुढ़ापा लिखा हुआ, अपनी उम्र से ज्यादा बूढ़ा; अगर बच्चा है तो बड़ा सिर और ठिगना, रुग्ण शरीर, ऊपर से नीचे की तरफ क्षीण होता हुआ; शरीर के क्षीण होते हुए भी बुद्धि में तेज; लड़ने पर आमादा; किसी की बात न सहने वाला, जरा-सी बात पर तिनक जाने वाला; बदहजमी का शिकार, मीठे का प्रेमी, गर्म भोजन और गर्म चाय का इच्छुक; पेट में अफारा; शाम को 4 से 8 बजे की शिकायतों को लेकर आने वाला – यह है सजीव मूर्त-चित्रण लाइकोपोडियम का।
(13) शक्ति तथा प्रकृति – 30, 200 तथा ऊपर।
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good great excellence
Thanks.
Lycopodium 1m ka dose kis prkaar aur kitna lena hai
Adhik mathun + hathmathun ki vajah se sabhi sex problem ho gaya hai
Isme maine ek homiopathic dr. Se salaah liya tha
To unhone bataya lycopodium 1m ka sevan kro
Par lycopodium ka dose kaise lena hai yahi nahjn pata hai
Please help me
Licopodium ko kit ne matra me leni hai or kit na time lene hai or kitna power ka leni hai
Bimari janane ke bad hi dawa ki matra tatha pawar batlaya ja sakta hai. kripya detail me likhen.
मेरी उम्र 19वर्ष हैं मेरा लिंग छोटा और पतला हैं |
मेरे लिंग का आकार सामान्य से कम हैं |कृपया समस्या का उचित समाधान बताये |ताकि में अपना जीवन सहीं प्रकार व्यतित कर सकुँ |
Use Lycopodium 200 daily in morning.
Dear sir
I have pharyngitis on right side. Its recurrence after every two weeks. Pain in right ear. No ulceration. White patches in right side of pharynx.
If you are blackis or sanwala then you may use Lycopodium 200 in morning. May God bless you.
आपकी साईट से बहुत उपयोगी जानकारी प्राप्त हुई …पोस्ट को हम सब के साथ शेयर करने के लिए शुक्रिया
Thanks.