सुषुम्ना की संरचना और कार्य [ Structure of Spinal Cord In Hindi ]

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जहाँ पर लघु मस्तिष्क (Cerebellum) समाप्त होता है, वहीं से सुषुम्ना (Spinal Cord) शुरू हो जाती है । यह वास्तव में मस्तिष्क की ही एक शाखा है । यह वात नाड़ी संस्थान का वह भाग है जो रीढ़ की हड्डी के अन्दर रहता है। सुषुम्ना स्नायविक पदार्थों की बनी एक बेलनाकार रस्सी सी है, जो रीढ़ की हड्डी की कशेरुका नली में सुरक्षित है । यह खोपड़ी की पश्चादास्थि के महाछिद्र (Foramen Magnum) से आरम्भ होकर नीचे कमर के दूसरे मोहरे के पास स्नायुओं के गुच्छे के आधार पर समाप्त हो जाती है। ऊपर यह सुषुम्ना शीर्षक (Medulla Oblongata) से मिली हुई है। मस्तिष्क की तरह यह भी दो प्रकार के पदार्थों से निर्मित है – (1) श्वेत पदार्थ (white Matter), (2) भूरा पदार्थ (Grey Matter)

पुरुषों में सुषुम्ना की लम्बाई 18 इंच और स्त्रियों में लगभग साढ़े सत्रह इंच होती है। इसका भार कुल शरीर के भार का 1/2000 भाग होता है। (अर्थात् दो-तीन ग्राम के लगभग होता है) इसका आपेक्षिक गुरुत्व 1.035 के लगभग होता है । इसमें 31 जोड़ा नाड़ियाँ निकलकर सारे शरीर के विभिन्न भागों में जाती है ! सुषुम्ना से दो बड़ी खाइयां (Fissure) हैं, एक आगे और दूसरी पीछे । आगे की खाई को पूर्व परिखा (Anterior Fissure) और पीछे की खाई को पाश्चात्त्य परिखा (Posterior Fissure) कहते हैं । यह दोनों खाइयाँ सुषुम्ना को बराबर और एक ही जैसे भागों में विभक्त कर देती है । इन भागों के बीच में एक तंग नली है जो मस्तिष्क से मिली रहती है, इस नली को सुषुम्ना की मध्यनली कहते हैं ।

सुषुम्ना के अन्दर से समान दूरी पर 1-1 करके कुल 31 जोड़े स्नायुओं के निकलते हैं। इनको सुषुम्ना स्नायु कहते हैं। इन सुषुम्ना स्नायुओं का सम्बन्ध शरीर के भिन्न-भिन्न भागों से है । प्रत्येक सुषुम्ना स्नायुओं से दो जड़ें जुड़ी सी रहती हैं । अगली जड़ को पूर्व मूल (Anterior Root) और पिछली जड को पाश्चात्य मूल (Posterior Root) कहते हैं । पूर्व मूल भूरे पदार्थ के पूर्व श्रृंग से और पाश्चात्य मूल पाश्चात्य श्रृंग से निकलती है। इसमें भूरा पदार्थ अन्दर को और सफेद पदार्थ बाहर को होता है। दोनों जड़ें सुषुम्ना से बाहर निकलने पर तुरन्त ही आपस में भिन्न हो जाती हैं, तब देखने में ये दोनों जड़ें एक ही स्नायु प्रतीत होती है, किन्तु इनमें ज्ञानवाही और गतिवाही सूत्र बराबर अलग-अलग रहते हैं और अपना काम अलग-अलग करते हैं। पूर्व मूल के तार सुषुम्ना के भीतर से निकलते हैं और अंगों की ओर जाते हैं । इनका सम्बन्ध पेशियों की गति से है, इसीलिए यह गतिवाही अथवा चालक कहलाती है। पिछली जड़ (पाश्चात्य मूल) के तार अंगों की ओर से जाकर सुषुम्ना के भीतर घुसते हैं। इनसे अंगों के समाचार मिलते हैं और सम्वेदना का ज्ञान होता है, इसीलिए यह ज्ञानवाही अथवा संवेदानिक कहलाती हैं ।

सुषुम्ना के भीतर भूरा पदार्थ इस प्रकार स्थित है कि वह अंग्रेजी के बड़े लिखने के ‘कैपीटल’ अक्षर (H) के समान प्रतीत होता है । इस H के दोनों बाहु मुड़े हुए हैं और सुषुम्ना छिद्र के दोनों ओर आगे-पीछे को संकेत करते रहते हैं । यह दोनों एक पुल सरीखे अंग से मिले रहते हैं। भूरे पदार्थ का इस पुल के सामने वाला भाग पूर्व श्रृंग और पीछे वाला भाग पाश्चात्य श्रृंग कहलाता है ।

सुषुम्ना का श्वेत पदार्थ भी मस्तिष्क के भूरे पदार्थ की तरह ही है। सुषुम्ना का सफेद पदार्थ ऐसे सूत्रों से बना है जो चर्बीदार खाल से ढके होते हैं और भूरा भाग स्नायु सेलों से बना रहता है । सफेद भाग के स्नायु सूत्र मस्तिष्क के विभिन्न भागों में प्रेरणायें ले जाते हैं और मस्तिष्क से शरीर में प्रेरणायें लाते हैं । शरीर के दाहिने भाग के सूत्र मस्तिष्क के बाँये भाग में और शरीर के बाँये भाग के सूत्र मस्तिष्क के दाँये भाग में जाते हैं। यदि सुषुम्ना के चालक तार की कोई जड़ कट जाये अथवा नष्ट हो जाये तो उसके सम्बन्ध रखने वाली पेशी की गति रुक जाती है, किन्तु उस भाग में संवेदना पूर्व की भाँति ही अनुभव की जा सकती है और यदि पाश्चात्य मूल अर्थात् संवेदानिक तार की कोई जड़ कट जाये अथवा नष्ट हो जाये तो उससे सम्बन्ध रखने वाले अंग में पेशियों की गति तो बनी रहती है किन्तु संवेदना अनुभव नहीं हो सकती है। उस अंग में सुई चुभोने पर पीड़ा नहीं होगी। अत: सुषुम्ना का प्रत्येक स्नायु-मिश्रित स्नायु ही है ।

सुषुम्ना के कार्य (Functions of Spinal Cord)

सुषुम्ना भूरे और सफेद दोनों प्रकार के पदार्थों से बना है । ये दोनों ही पदार्थ अत्यन्त महत्त्व के हैं। इसके भूरे पदार्थ में स्नायु केन्द्र हैं और सफेद पदार्थ स्नायु सूत्रों का बना है । सफेद पदार्थ संवेदनिक पदार्थ है जो मस्तिष्क से शरीर के अन्य अंगों की ओर तथा अन्य अंगों से मस्तिष्क की ओर प्रेरणायें ले जाता है ।

यदि सच पूछा जाये तो सुषुम्ना वात सूत्रों का मण्डल है। नाना प्रकार के अनेक वात सूत्रों के सौत्रिक तन्तु आपस में मिल जाने से ‘सुषुम्ना’ बन जाती है। जिस प्रकार वात सूत्रों का काम ‘उत्तेजना’ को ले जाना है, उसी प्रकार सुषुम्ना का कार्य भी ‘संज्ञावाहन’ है । सुषुम्ना संज्ञाओं (Senses) को शरीर से मस्तिष्क तक पहुँचाती है और मस्तिष्क से आने वाली आज्ञाओं को माँसपेशियों तक प्रेषित करती है ।

यदि किसी कारणवश (सुषुम्ना से सम्बन्धित) तार कट जाये अथवा उसे हानि पहुँच जाये तो वहाँ कोई खराबी अवश्य आयेगी । उससे नीचे के अंगों में न तो गति हो सकेगी और न सम्वेदना का अनुभव ही हो सकेगा । वह भाग अचेत हो जायेगा। इसी को लकवा लग जाना अथवा फालिज (Paralysis) गिर जाना कहते हैं ।

यदि खराबी सुषुम्ना के उस भाग में हुई जो गरदन से नीचे है, तो जीवन तो बचा रहेगा, किन्तु ‘लकवा’ लग जायेगा और यदि खराबी गर्दन के अन्दर वाले भाग में आयेगी तब ऐसी स्थिति में रोगी की मृत्यु शीघ्र हो जायेगी । कारण यह है कि उस भाग में स्नायु तार महाप्रचीरा पेशी में जिसका सम्बन्ध श्वासोच्छवास से है, इससे इस भाग में खराबी आने पर साँस लेना असम्भव हो जायेगा और उसी के फलस्वरूप मृत्यु हो जायेगी ।

सुषुम्ना भूरे पदार्थ को बनाने वाले न्यूरान का सम्बन्ध उन पेशियों की गति से है जिसमें सुषुम्ना की स्नायुओं की अगली जड़ तथा चालक तार पहुँचते हैं। मस्तिष्क के भूरे पदार्थ में न्यूरान इच्छानुसार गतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं किन्तु ऐसी शक्ति सुषुम्ना के भूरे पदार्थ में न्यूरान में नहीं है। अत: वे इच्छानुसार संचालित न होंगी । मस्तिष्क से सम्बन्ध न रहने से वे अंग इच्छानुसार गति नहीं करेंगे । किन्तु फिर भी शरीर के उन अंगों में चुटकी ली जाये अथवा खुजलाया जाये तो उन अंगों में किसी न किसी प्रकार की गति तो होगी किन्तु उस गति में मस्तिष्क का हाथ न होगा । ऐसी अवस्था में सुषुम्ना से संवेदानिक तारों में प्रेरणा पहुँचती है और उसका प्रत्युतर सुषुम्ना ही चालक तार द्वारा उस अंग की पेशी तक पहुँचा देती है, जिससे उस अंग में मस्तिष्क की प्रेरणा के बिना ही गति हो जाती है । ऐसी गति को परावर्तित क्रिया (Reflex Action) कहते हैं । यह परावर्तित क्रिया सुषुम्ना द्वारा सम्पादित होती है ।

पलकों का जरा सा खटका होते ही झपक जाना, कहीं जोर का धमाका होने पर चौंक पड़ना, बदबू से नाक, मुँह तथा भौंह सिकुड़ना, चोट लगते ही छटपटाहट होना इत्यादि क्रियायें ही ‘परावर्तित क्रियायें’ कहलाती हैं ।

इन परावर्तित क्रियाओं का सुषुम्ना से विशेष सम्बन्ध होता है। परावर्तित क्रियाओं से मस्तिष्क की आज्ञा की प्रतीक्षा न देखकर तुरन्त ही सुषुम्ना अपना काम कर गुजरती है क्योंकि इन क्रियाओं में, सुषुम्ना में इनका समाचार पहले आता है।

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