Ghee Khane Ke Fayde – घी के फायदे

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घी में पान का पत्ता डालकर गर्म करें। फिर छानकर रखें। इससे घी बहुत दिन तक अच्छा रहता है। घी देर से पचता है। अत: कम मात्रा में खायें।

यहाँ बताये गये प्रयोगों में गाय का घी तथा गाय के अन्य उत्पाद गोबर के छाणे, कंडे आदि काम लेना सर्वश्रेष्ठ है। गाय के घी के अभाव में अन्य घी काम में लें।

धी की शुद्धता की पहचान – (1) असली घी की शुद्धता में मिलावट का शक हो तो सूखी मटकी पर कुछ घी रगड़कर रख दें। यदि कुछ समय पश्चात् वहाँ सफेदी की परत जम जाए तो ऐसी दशा में वह घी नकली होगा। (2) काँच की कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल लेकर उसमें थोड़ा-सा देसी घी डाल दें। यदि उस घी में मिलावट होगी तो वह घी तेल के बीच में टंगा हुआ तैरता दिखेगा और घी शुद्ध होगा तो पेंदे में बैठ जायेगा।

हवन – कमरे में गोबर का छाणा (कंडा) जलाकर उस पर चौथाई चम्मच चावल एक चम्मच घी में मिलाकर डालें। इसके धुएँ से वातावरण शुद्ध होगा। कमरे में ऑक्सीजन भर जायेगी।

चेहरे के काले दाग – रात को सोते समय घी को चेहरे पर मलने से चेहरे के काले दाग और चोट के दाग मिट जाते हैं।

होंठ फटना – घी में जरा-सा नमक मिलाकर होंठों व नाभि पर सुबह व रात को लगाने से होंठ फटना बन्द हो जाते हैं। चेहरे पर दूध की मलाई लगाने से भी लाभ होता है।

नेत्र-ज्योति बढ़ाने हेतु गाय का ताजा घी और मिश्री मिलाकर तीन महीने खायें। घी खाना भी आँखों के लिए उपकारी है।

अम्लपित्त – देशी घी की मालिश दोनों तलवों पर नित्य दस मिनट रात को सोते समय करने से अम्लपित्त में लाभ होता है।

बाला – 50 ग्राम घी गर्म करके नित्य एक बार तीन दिन तक पीने से बाला रोग चला जाता है।

रक्तार्श – एक चम्मच तिल पीसकर एक चम्मच घी में मिलाकर नित्य एक बार खायें।

बवासीर (रक्तस्रावी) – घी, तिल और मिश्री – प्रत्येक की एक-एक चम्मच मिलाकर नित्य तीन बार खायें। बवासीर में से रक्त गिरना बन्द हो जायेगा।

सिरदर्द, घने बाल – (1) प्रतिष्ठित परिवार की एक रोगिणी ने अपना अनुभव बताया कि उसे नित्य रात को जब वह गहरी नींद में सोती रहती थी, अचानक तेज सिरदर्द होता था। इसके लिए उसने कई डॉक्टरों से चिकित्सा कराई, लाभ नहीं हुआ। बातों ही बातों में सिरदर्द की चर्चा करते समय एक बुजुर्ग ने उससे कहा कि वह रात को सोते समय पैर को तलियों में देशी घी की मालिश करके सोया करे। उसने ऐसा ही किया। चार दिन की मालिश से ही उसका सिरदर्द ठीक हो गया। (2) नकसीर आने के कारण सिरदर्द हैं, तो घी की दो बूंदें नित्य रात में सोते समय नाक में डालें। सिर में घी की मालिश करने से बाल काले, घने हो जाते हैं।

आधे सिर में दर्द – सिरदर्द सूर्य के साथ घटता-बढ़ता हो तो सुबह-शाम घी सूँघे व तीन बूंद नाक में टपका दें। सिरदर्द गर्मी से हो तो ठण्डा और बादी का हो तो गर्म घी से सिर की मालिश करें। प्रात: सूर्योदय से पहले एक-एक चम्मच घी व मिश्री मिलाकर 4 दिन खायें।

दाग-धब्बे – चेहरे पर घी की मालिश कुछ दिन करने से झाँइयाँ, दाग-धब्बे हट जाते हैं।

दस्तावर – दस्तावर औषधि लेने से पहले यदि तीन दिन तक घी कालीमिर्च के साथ पी लें तो अतेिं मुलायम होकर मल फूल जाता है और दस्तावर औषधि लेने से पेट की सब गन्दगी बाहर निकल जाती है। गर्म दूध और घी मिलाकर पीने से दस्त नरम हो जाता है। यह अर्श में लाभदायक है। कब्ज़ दूर होगी।

घाव – एक कटोरी में एक चम्मच देशी घी डालकर गर्म करें। इसमें रुई का फोहा पानी में भिगोकर, निचोड़कर डाल दें। फोहे का सारा पानी जल जाने के बाद यह फोहा सहन हो उतना गर्म करके घाव पर रखकर पट्टी बाँध दें। इस तरह नित्य पट्टी बाँधते रहें। घाव भर जायेगा। इससे फोड़े, फुसी भी ठीक हो जायेंगे।

छाले (Stomatitis) – रात को सोते समय छालों पर घी लगाने से लाभ होता है। जलने से हुए छालों, छाले फूटने से हुए घावों पर भी घी लगायें।

घी खायें – घी का सेवन हृदय के लिए हानिकारक है। घी कम मात्रा में खायें तो शरीर के लिए लाभदायक है। घी में विटामिन ‘ए’ की प्रचुर मात्रा होती है। इसलिए घी का सेवन बन्द नहीं करना चाहिए। इसे पचाने के लिए शारीरिक श्रम, व्यायाम, भ्रमण करना चाहिए।

नाक, गला और स्मरण – शक्तिवर्धक-नित्य रात को दो-दो बूंद गुनगुना घी दोनों नाक के नथुनों में डालें तथा भीतर खींच लें। इससे रात्रि भर ऑक्सीजन (प्राणवायु) मस्तिष्क को मिलती रहेगी। इससे हम अपनी मानसिक शक्ति का अधिक उपयोग कर सकेंगे। यदेि इस क्रिया को दिन में 3 बार-प्रात:, दोपहर व रात को सोने से पहले दो माह तक करेंगे, तो वह वायु के प्रवाह के बीच आने वाली बाधा दूर करने और अनेक पुराने रोगों को ठीक करने में प्रभावी औषधि का काम करता है। इसके द्वारा प्रमुख ग्रंथियों, जैसे-तृतीय-नेत्र ग्रंथि, पोष ग्रंथि के माध्यम से कोशाओं का उपस्नेहन (लुब्रिकेशन) होता है और शुष्कता, सूजन, आंतचल (कोएम्युलेशन) रक्तस्राव (हैमरेज) जैसे रोगों का निवारण होता है। शीत, कोटर-संक्रमण (साइनस इन्फेक्शन) अथवा नासिका-गिल्टी (नेजल पाऑलीपस) आदि वायुमार्ग के खुल जाने से और ग्रसनि-कपाट (फैरेन्जाइल वॉल्व) ढीले होने से निवारण हो जाते हैं, और श्वसन को रोकने वाला श्लथ (फ्लैसिड) दूर हो जाता है। बाल गिरने बन्द हो जाते हैं।

स्मरण-शक्ति के लिए विशेष रूप से बच्चों व विद्यार्थियों के लिए नाभि पर 2 बूँद घी डालें फिर कपड़े की गीली पट्टी और उसके ऊपर सूखे कपड़े की पट्टी रखें। करीब 15-20 मिनट नित्य प्रति करें। इससे पेट की तमाम बीमारियाँ दूर होकर स्मरण-शक्ति बढ़ती है।

अनिद्रा – रात को नाक के नथुनों में 2-2 बूँद गुनगुना घी डालें और भीतर खींच लें। फिर 2-3 बूँद घी नाभि पर डाल लें फिर तीन-तीन बार क्लॉकवाइज व एन्टी-क्लॉकवाइज अँगुली घुमा लें। साथ ही घी से पाँव के तलवे पर मालिश करें, बहुत अच्छी नींद आएगी। शान्ति व आनन्द का अनुभव होगा। मस्तिष्क निद्रा-प्रेरक हारमोन्स को मुक्त करेगा और चार घण्टे की नींद का काल, 90 मिनट गहरी नींद और हल्की नींद का चक्र बना रहेगा। सामान्य कार्य के लिए इतनी नींद पर्याप्त है।

शक्तिवर्धक – नित्य दो चम्मच घी इतनी ही पिसी मिश्री में मिलाकर रोटी के साथ दो महीने खाने से कब्ज़ से उत्पन्न दुर्बलता दूर होकर शक्ति बढ़ जाती है। हृदयरोगी और मधुमेह ग्रस्त अपने परहेजों पर विचारकर खायें। सुन्नपन, बेहोशी, जोड़ों का दर्द, गठिया, जलन, सिर के बाल गिरना आदि में घी की मालिश करने से लाभ होता है।

बाँयटे (Cramps) – हाथों, पैरों, पिंडलियों, शरीर के जिस भाग में भी बाँयटे आयें, उसी ओर के हाथ या पैरों की सबसे छोटी अँगुली (कनिष्ठा) और अँगूठे के पास वाली अँगुली (तर्जनी) दोनों को एक साथ हाथ या पैर सीधे रखकर खेंचें। बाँयटे तुरन्त बन्द हो जायेंगे। यदि पैर में बाँयटा आ रहा हो तो उसी पैर की बताई गई दोनों अँगुलियाँ सीधी एक साथ खेंचें और इसी तरह हाथ की। गर्म दूध पियें। बाँयटों से हुए दर्द पर घी की मालिश करें।

हृदय रोग – बाईपास सर्जरी से बचने के लिए एवं हृदय रोग में या धमनियों में अवरोधों (Blockage) को दूर करने के लिए गौमूत्र चिकित्सा के साथ पंचगव्य लें और निम्न उपचार 30-40 दिन करें – 20 ग्राम काले उड़द की छिलके वाली दाल रात्रि को भिगों दें, फिर सुबह उसमें बीस ग्राम गुग्गुल मिलाकर चटनी के समान पीसें, फिर उसमें एरंडी का 20 ग्राम तेल मिलायें, फिर देशी गौ का ताजा मक्खन 20 ग्राम मिलायें – इस पेस्ट को रात्रि को छाती पर अच्छी तरह लगायें, ऊपर एरंडी का पता बाँधकर रात्रि भर रखें। सुबह उसको साफ करके फिर लेप लगायें और दिन भर रखें। 30-40 दिन में धमनियों का कोलेस्ट्रॉल साफ हो जायेगा। साथ में लौकी का प्रयोग करें।

स्मरण-शक्तिवर्धक – सिर पर गाय के घी की मालिश करने से स्मरण-शक्ति बढ़ती है सिर के रोग भी दूर होते हैं। नाक में घी की बूंदें भी डालें। तलवों, हाथ-पैरों में जलन हो तो घी मलने से मिट जाती है।

पैरों में जलन – पैरों में घी या मक्खन मल कर आग से तपायें, इससे जलन दूर होगी।

हिचकी – थोड़ा-सा गर्म-गर्म देशी घी पी लेने से हिचकी बन्द हो जाती है। नाभि पर घी गर्म करके लगायें। गर्म दूध जितना पिया जा सके, घी में एक चम्मच मिलाकर पिलायें। हिचकी बन्द हो जायेगी।

मोटापा घटाना – नित्य प्रात: पैर के तलवों पर घी की मालिश करके दो किलोमीटर घूमें। मोटापा कम होगा।

मोटापा बढ़ाना – धी और शक्कर मिलाकर खाने से शरीर मोटा हो जाता है।

नकसीर – रोगी की गर्दन पीछे झुकाकर लेटा दो और उसके नाक के दोनों नथुनों में पाँच – पाँच बूंद देशी घी की डालकर रोगी को इसे साँस से अन्दर खेचने को कहो। इस तरह घी को सूंघने से नकसीर आना बन्द हो जाता है। यह क्रिया एक सप्ताह करें।

कैंसर – लिनोलैनिक – फैटी एसिड कैंसर को रोकने में सक्षम है जो घी में प्रचुर मात्रा में मिलता है। जो लोग घी नित्य खाते हैं उनको कैंसर से बचाव होता है। दूध में घी मिलाकर पीने से और हलवे में घी मिलाकर खाने से कैंसर में लाभ होता है। शरीर निर्विष रहता है।

प्रसूता – गर्भधारण होने पर नियमित रूप से घी खाते रहने से गर्भस्थ शिशु का पूर्ण रूप से पोषण होता है, प्रसव सरलता से होता है। प्रसव के बाद घी खाने से कमजोरी दूर होती है।

विष का प्रभाव – जिसने विष खाया हो, जिसे साँप ने काटा हो, जिसे प्लेग हो गया हो, उसे आधा पाव देशी घी, चार बार दूध के साथ या केवल घी पिला देने से सब प्रकार के विष बाहर निकल आते हैं। घी पीने के चार घण्टे बाद तेज गर्म पानी अधिकाधिक पिलायें। इससे उल्टी, दस्त होंगे। आवश्यकता हो तो दूसरे दिन भी पिलायें।

जलना – (1) चालीस ग्राम सफेद राल बारीक पीसकर मैदा को चलनी से छानकर भगोने में डालकर गर्म करें। भली प्रकार सिक (Fried) जाये तब ठण्डा पानी डालकर चम्मच से हिलायें। ठण्डी होने पर इसमें मिला हुआ पानी निथारकर फेंक दें एवं सौ ग्राम घी मिलाकर इसे सौ बार पानी से धोयें। इसका लेप जले हुए पर नित्य करें। पट्टी नहीं बाँधे। जला हुआ शीघ्र ठीक हो जायेगा। एक वृद्ध सज्जन ने मेरे सामने इसकी सफलता की बहुत प्रशंसा की है। (2) अग्नि से जलने पर घी लगाने से लाभ होता है।

बिवाइयाँ (Chilblains) – देशी घी और नमक मिलाकर बिबाइयों पर लगायें। इससे त्वचा कोमल रहती है। जाड़ों में हाथ-पैर नहीं फटते।

पित्ती (Urticaria) – पित्ती या छपाकी निकलने पर देशी घी और सेंधा नमक को मिलाकर मालिश करें। फिर कम्बल ओढ़कर पसीना लें। पित्ती मिट जायेगी।

शराब का नशा होने पर दो चम्मच घी और इतनी ही चीनी मिलाकर पीने से नशा उतर जाता है।

नाभि पकने पर घी गर्म करके नाभि पर लगायें।

नाक में खुश्की तथा नथुनों पर पपड़ी जमने पर घी सूंघने और रूमाल पानी में भिगोकर सिर पर रखने से लाभ होता है।

खाँसी, गला बैठना – घी एक चम्मच, मिश्री एक चम्मच और 15 काली मिर्चे मिलाकर सुबह-शाम चाटने से गला बैठना और सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसे चाटने के बाद कुछ घण्टे पानी न पियें। घी, कालीमिर्च गर्म कर ठण्डी करके खाने से भी लाभ होता है।

खाँसी – 125 ग्राम दूध में एक चम्मच घी और एक कप पानी मिलाकर उबालें। उबालते-उबालते आधा भाग रहने पर स्वादानुसार मिश्री मिलाकर बच्चों को यह दूध नित्य चार बार पिलायें। खाँसी ठीक हो जायेगी।

पुरानी खाँसी – देशी घी और गुड़ आग पर गर्म करें, पिघलने पर खिलायें। छाती पर घी और सेंधा नमक मिलाकर मालिश करें। इससे पुरानी खाँसी ठीक हो जाती है।

क्षय रोग में मक्खन, मिश्री मिलाकर खाने से क्षय रोग का नाश होकर बल मिलता है।

फफोला – मकड़ी मूतने से फफोले हो जाते हैं। इन पर घी और नमक मिलाकर लगाने से लाभ होता है।

आमवात में पीड़ित स्थान पर घी में सेंधा नमक मिलाकर मालिश करें, सूजन व दर्द में आराम मिलेगा। असगंध के पत्ते या धतूरे के पत्ते पर घी लगाकर गर्म करके बाँधने से शीघ्र लाभ होता है।

निमोनिया – निमोनिया पीड़ित बच्चे के कमरे में चौबीस घण्टे घी का मोटी बत्ती का दिया जलाने से और उसी कमरे में पीड़ित बच्चे को रखने से निमोनिया ठीक हो जाता है।

जुकाम – विशेष रूप से बहने वाला व जुकाम के कारण सिरदर्द आदि में थोड़ा-सा घी गुनगुना करें। गुनगुने घी को अँगुली में लगाकर नाक के दोनों नथुनों में लगायें, एक-एक बूंद घी डालें और घी को ऊपर खींचें। तुरन्त आराम मिलना शुरू हो जायेगा। इस क्रिया को लगभग 10 मिनट बाद, फिर एक घण्टे बाद और आवश्यकतानुसार करते रहें, जुकाम जल्दी पककर ठीक हो जाता है।

टी.बी. – 50 ग्राम मिश्री और 10 ग्राम पीपल पीसकर 250 ग्राम दूध में 250 ग्राम पानी मिलाकर उबालें, जब मिलाया हुआ पानी जल जाए और मात्र दूध ही बचे तब उसमें दो चम्मच घी और चार चम्मच शहद घोल लें और फिर दूध में मिलाकर इतना फेंटें कि दूध का झाग पैदा हो जाये। इसको चूसते रहें। अगर फेफड़ों में छेद व घाव भी हो गए हों तो वे भी भर जायेंगे।

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