जेलसीमियम – Gelsemium Uses In Hindi

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जेलसीमियम लक्षण तथा मुख्य-रोग

1थकावट, सर्वांगीण दुर्बलता, मांसपेशियों की शिथिलता, पलक का गिर पड़ना पक्षाघात
2स्नायविक कंपन, कम्पनशील दवा (Trembling remedy) है।
3निद्रालुता, जड़ता तथा सिर में चक्कर आना
4सिर की गुद्दी में दर्द या वहां से दर्द का उठना
5स्नायु-प्रधान’ (Nervous) होने के कारण किसी बात के होने से पहले उसकी कल्पना से रोग की उत्पत्ति
6भय, खिजाहट, मानसिक-आघात आदि से रोग होना
7प्यास-रहित-ज्वर तथा मेरुदंड में ऊपर-नीचे शीत का चढ़ना-उतरना (इन्फ्लुएन्जा); मलेरिया तथा टाइफॉयड ज्वर में जेलसीमियम के लक्षण

(1) थकावट, सर्वांगीण दुर्बलता, मांसपेशियों की शिथिलता, पलक का गिर पड़ना पक्षाघात – इस औषधि का होम्योपैथी में प्रवेश अमरीका के डॉ० हेल के परीक्षणों का परिणाम है। डॉ० हेल ने ‘मैटीरिया मैडिका ऑफ दी न्यू रेमेडीज़’ का प्रकाशन किया था और अनेक नवीन दवाओं का अनुसंधान किया था। उन्हें उनके मित्रगण ‘डिक्शनरी ऑफ दि. न्यू रेमेडीज़’ कहा करते थे। डॉ० क्लार्क अपनी पुस्तक ‘डिक्शनरी आफ प्रैक्टिकल मैटीरिया मैडिका’ में जेलसीमियम के विषय में लिखते हैं: “जे० एच० नानकीवाल ने शेरी-शराब पीने के स्थान में गलती से जेलसीमियम के मूल-अर्क के दो औंस पी लिये। उसका शरीर एकदम इतना शिथिल हो गया कि कुछ दूर ही सहारा लेकर चल पाया था कि अगले मिनट उसकी टांगे पक्षाघात से लड़खड़ा गई। वह अपने हाथों के सहारे अपने को खींच कर बिस्तर तक गया, परन्तु बिस्तर पर भी उसे उठा कर लिटाना पड़ा। जब तक वह बिस्तर में निश्चल पड़ा रहा उसे कष्ट महसूस नहीं हुआ, परन्तु जरा-सी भी हरकत से उसे ‘जबर्दस्त कंपन का अनुभव हो रहा था। अगले 24 घंटों में उसे उल्टी आ गई, ज्वर 101.5 डिग्री तक चढ़ गया। हृदय की गति तेज हो गई, नाड़ी कुछ स्पंदन छोड़ कर चलने लगी। आंख की सब पेशियों पर औषधि का प्रभाव पड़ा परन्तु दाईं तरफ की मांसपेशियों पर प्रभाव सबसे अधिक था। निद्रालुता थी, परन्तु मानसिक-उत्तेजना का अभाव था।”

यह स्पष्ट है कि जो लक्षण जेलसीमियम ने स्वस्थ-व्यक्ति पर प्रकट किये, उन्हीं लक्षणों के होने पर यह दवा रोग के उन लक्षणों को दूर करती है। इस दृष्टि से इस औषधि का मुख्य-लक्षण थकावट, सर्वांगीण दुर्बलता, भारीपन, मांसपेशियों की शिथिलता आदि है। शरीर की समस्त मांसपेशियां सुन्न-सी हो जाती हैं, रोगी के लिये हाथ-पैर हिलाना तक भारी हो जाता है। धीरे-धीरे पक्षाघात हो जाता है, परन्तु इसका प्रारंभ मांसपेशियों के सुन्न होने, शरीर के अंगों के भारी होने, सदा बनी रहने वाली थकावट से होता है। जैसा नानकीवाला के ऊपर इस औषधि के प्रभाव में हमने देखा, इसका शरीर की सब पेशियों पर प्रभाव पड़ता है। आंख के भी ऊपर की पलकें लटक पड़ती हैं, उन्हें इच्छानुसार रोगी उठा नहीं सकता, उन्हें हाथ से उठाना पड़ता है। शरीर के अन्य अंगों पर भी इस शिथिलता का प्रभाव पड़ता है। बाजा बजाते हुए अंगुलियां ठीक काम नहीं करती, रोगी चलते हुए लड़खड़ाता है, जाँघों में भारीपन अनुभव होता है। शरीर के सब अंगों में पक्षाघात-जैसी दुर्बलता आ जाती है। खाना-पीना भोजन-नलिका में से गुजर नहीं सकता, खाया-पीया नाक से बाहर निकल पड़ता है क्योंकि भोजन-नलिका की मांसपेशियां काम नहीं करतीं। जिहवा की क्रिया में बाधा पड़ जाती है, उसका काम ठीक से नहीं हो पाता। यद्यपि शुरू-शुरू में पक्षाघात अपने प्रकट रूप में नहीं दीखता, तो भी अंगों का एक-दूसरे के साथ समन्वय बिगड़ जाता है, जिस प्रकार रोगी चाहता है उस प्रकार अंगों की मांसपेशियां काम नहीं करतीं। पकड़ना किसी चीज को चाहता है, पकड़ी कोई दूसरी चीज जाती है, और जब किसी चीज को पकड़ पाता है तब हाथ अपने को कमजोर पाते हैं।

(2) स्नायविक-कंपन, कंपनशील दवा – ऊपर जिस नानकीवाल का उदाहरण दिया गया है उसमें हमने देखा कि जेलसीमियम के मूल-अर्क लेने के बाद उसके शरीर में ‘कंपन’ (Tremor) शुरू हो गया। इस औषधि में कंपन इतना अधिक होता है कि डॉ० नैश ने इसे ‘कंपन की दवा’ (Trembling remedy) का नाम दिया है। चलते समय टांगें कांपती हैं, किसी चीज को उठाते समय हाथ कांपते हैं। कभी-कभी यह कंपन इतना उग्र रूप धारण कर लेता है कि रोगी का शरीर ऐसे कांपता है मानो जाड़े से कांप रहा हो, हालांकि न उसके भीतर न बाहर जाड़ा होता है। यह कंपन बढ़ते-बढ़ते पक्षाघात में परिणत हो सकता है, और आंख की पलकों का गिर पड़ना आदि पक्षाघात, जिनका ऊपर जिक्र किया गया, हो सकते हैं। इस कंपन की विशेष बात यह है कि रोगी को इस बात का ज्ञान रहता है कि उसके अंग उसकी इच्छा के अनुसार काम नहीं कर रहे, उसके ‘गति-संचालक स्नायु-सूत्रों’ (Motor nerves) पर उसका अधिकार नहीं रहा।

(3) निद्रालुता, जड़ता तथा सिर में चक्कर आना – यह औषधि मुख्य तौर पर स्नायु-प्रधान (Nerve remedy) है, इसलिये इसका प्रभाव मस्तिष्क, मेरुदंड तथा स्नायु-मंडल पर पड़ता है। इसीलिये स्नायु-मंडल की दुर्बलता के कारण पक्षाघात भी हो सकता है। मस्तिष्क पर इसके प्रभाव के कारण मस्तिष्क संबंधी अन्य विकार भी इसमें पाये जाते हैं। उदाहरणार्थ, रोगी ‘निद्रालु’ (Drowsy) रहता है, मानसिक दृष्टि से जड़-समान प्रतीत होता है, औंघाई, तन्द्राभाव उस पर सवार रहते हैं, आंखों में नींद भरी रहती है, ज्वर में भी निंदासा पड़ा रहता है, चौकस नहीं हो पाता। मस्तिष्क की इसी निद्रालुता के कारण मस्तिष्क के ज्ञान-सूत्रों का नियंत्रण की कमी से उसे ‘चक्कर’ (Vertigo) आया करता है। निद्रालुभाव के साथ चक्कर आने में यह एक बढ़िया दवा है। चक्कर सिर की गुद्दी से उठता है, आंख से एक वस्तु के दो दीखते हैं, दृष्टि क्षीण हो जाती है, रोगी नशे में होता है।

(4) सिर की गुद्दी में दर्द या वहां से दर्द का उठना – सिर-दर्द सिर के पीछे से आरंभ होता है। ऐसा सिर-दर्द तब होता है जब सिर में रक्त का अधिक संचय हो जाय। यह स्वाभाविक है कि ऐसे सिर-दर्द में रोगी ऊँचे तकिये पर सिर रख कर पड़ा रहे ताकि सिर में रक्त का अधिक संचार न हो। दबाने से रोगी को आराम मिलता है। रोगी को सिर की गुद्दी में धीमा-धीमा दर्द होता है, सिर थका-थका अनुभव होता है। रोगी चुपचाप पड़ा रहना पसन्द करता है। मानसिक-परिश्रम से, या सिर नीचा करने से सिर-दर्द बढ़ जाता है। जेलसीमियम के सिर-दर्द की विशेषता यह है कि अधिक परिमाण में पेशाब होने पर इस दर्द में कमी आ जाती है। फ्लोरिक ऐसिड में भी अधिक मात्रा में पेशाब होने से सिर-दर्द में कमी हो जाती है, परन्तु फ्लोरिक में सिर-दर्द तब तक बढ़ता जाता है जब तक पेशाब नहीं हो जाता। जेलसीमियम में एक ऐसा भी सिर-दर्द होता है जिसके प्रारंभ होने से पहले रोगी देख नहीं सकता। ज्यों ही सिर-दर्द शुरू हो जाता है, त्यों ही उसकी दृष्टि-शक्ति लौट आती है।

(5) ‘स्नायु-प्रधान’ (Nervous) होने के कारण किसी बात के होने से पहले उसकी कल्पना (Anticipation) से रोग – हम कह चुके हैं कि यह औषधि मुख्य तौर पर स्नायु-मंडल पर प्रभाव रखती है, इसलिये इसका प्रभाव मस्तिष्क, मेरु-दंड तथा स्नायु पर पड़ता है। इसका स्नायु-मंडल इतना सुस्त रहता है कि रोगी हर समय थका-थका रहता है, किसी बात में चित्त नहीं लगा सकता, अगर कोई बात होने वाली हो, तो उसे सोच-सोच कर, और यह समझ कर कि वह इस स्थिति का मुकाबला कैसे करेगा, परेशान हो जाता है। अगर किसी सभा-सोसाइटी में जाना है, तो यह सोच कर कि उसके मिलने-जुलने वाले वहां आयेंगे-उनसे कैसे मिलेगा-उसे दस्त आ जाता है। कोई वक्ता हो, उसे सभा में भाषण देना हो, इस कल्पना से ही उसे सभा में जाने से पहले कई बार पेशाब-टट्टी जाना पड़ेगा। लड़के ने परसों आना है, उसने तार दे दिया, बस रात भर नींद हराम हो गई। थियेटर या मन्दिर जाना है। इतने सोच से जी घबराने लगा। इस प्रकार की घटना होने से पहले उसकी कल्पना मात्र (Anticipation) से टट्टी या दस्त आ जाना – अर्जेन्टम नाइट्रिकम में भी पाया जाता है। कहीं भी जाते समय, बड़े आदमियों से मिलते समय की घबराहट में दस्त आ जाना इन दोनों औषधियों में पाया जाता है, और इसका कारण स्नायवीय-दुर्बलता है। जेलसीमियम में थकान विशेष रूप से है अर्जेन्टम नाइट्रिकम में मीठा खाने की इच्छा विशेष रूप से है।

(6) भय, खिजाहट, मानसिक-आघात आदि से रोग – भय, खिजाहट, मानसिक-आघात आदि से जो रोग हो जाते हैं, उनमें भी यह औषधि उत्तम कार्य करती है। यह लक्षण लगभग वैसा ही है जिसका हम अभी ऊपर वर्णन कर आये हैं। यह लक्षण भी स्नायविक दुर्बलता के कारण ही प्रकट होता है। घर बैठे किसी सैनिक को तार आ जाता है कि लड़ाई के लिये तैयारी करे। उसे दस्त आने लगते हैं। अचानक के किसी समाचार से जिस में भय, खिजाहट या मानसिक-आघात हो, व्यक्ति घबराकर बेहोश हो सकता है, अंगों में इतनी थकावट अनुभव कर सकता है कि चल-फिर न सके, दिल धड़कने लग जाय। यह सब इसलिये होता है कि उस व्यक्ति का स्नायु-मंडल एकाएक उत्पन्न हुई इस अप्रत्याशित, अकल्पित परििस्थति का मुकाबला नहीं कर सकता। इस समय जेलसीमियम, अर्जेन्टम नाइट्रिकम या लाइकोपोडियम विशेष लाभ करते हैं। विद्यार्थियों में परीक्षा से पहले जो भय (Anticipatory fear) उत्पन्न हो जाता है उसके लिये भी इसका उपयोग हो सकता है।

(7) प्यास-रहित – ज्वर तथा मेरु-दंड में ऊपर-नीचे शीत का चढ़ना-उतरना (इन्फ्लुएन्जा) – इन्फ्लुएन्जा, मलेरिया तथा टाइफॉयड ज्वरों में इस औषधि की विशेष उपयोगिता पायी जाती है। ज्वर में प्यास का न होना तथा शीत का मेरु-दंड में तरंग की तरह ऊपर-नीचे चढ़ना इसका विशेष लक्षण है। इन दो लक्षणों के अतिरिक्त रोगी का नींद-की-सी खुमारी में पड़े रहना भी इन ज्वरों में पाया जाता है। जिस इन्फ्लुएन्जा में रोगी की टांगें भारी हो जाती हैं, उन्हें उठाना तक मुश्किल हो जाता है, सिर तथा मस्तिष्क में भारीपन आ जाता है, मेरु-दंड में शीत ऊपर-नीचे लहर मारता है, रोगी नींद-में पड़ा रहता है, उसमें जेलसीमियम 30 की एक मात्रा से बुखार टूट जाता है। कई बार ऐसे रोगी आते हैं जो कहते हैं कि जब से ‘फ्लू’ हुआ तब से तबीयत गिरी-गिरी रहती है, जिस्म भारी रहता है, 99 डिग्री तापमान रहता है, उन्हें जेल्स से एकदम लाभ होता है। जब ‘फ्लू’ फैल जाता है, तब स्वस्थ व्यक्तियों को जेल्स देने से उन पर इस रोग का आक्रमण नहीं होता, उस अवस्था में यह फ्लू का प्रतिरोधक है।

जेलसीमियम औषधि के अन्य लक्षण

(i) बिना हरकत के दिल रुकने का डर – रोगी अनुभव करता है कि अगर वह हिले-डुलेगा नहीं तो हृदय की गति रुक जायेगी। इसलिये वह दिल के रोग में हिलता-डुलता है। इसके विरुद्ध डिजिटेलिस का रोगी अनुभव करता है कि अगर वह हिले-डुलेगा तो हृदय की गति रुक जायेगी।

(ii) बच्चे को गिरने का डर – बच्चा बिना किसी कारण के गिर जाने के डर से माता से चिपटा रहता है। बोरेक्स में भी गिर जाने का भय रहता है, परन्तु बोरेक्स में जब माता शिशु को नीचे उतारने लगती है तभी उसे भय लगता है, जेल्स में बिना कारण के यह भय बना रहता है, बच्चा माँ या नर्स को चिपटा ही रहता है. नीचे पालने में डालें तो उन्हें छोड़ता ही नहीं। किसी भी रोग में इस लक्षण के होने पर यह दवा दी जा सकती है। यह लक्षण मुख्य तौर पर इन्हीं दो दवाओं में पाया जाता है।

(iii) नींद न आना – मस्तिष्क की थकान से या स्नायविक चिड़चिड़ाहट (Nervous irritation) से नींद न आती हो, सोच-विचार की उलझन से छूट सकने के कारण नींद न आती हो, तो यह दवा लाभ करती है। ये लक्षण कॉफिया में भी हैं, परन्तु उसमें अधिक तौर पर खुशी से नींद नहीं आती।

(8) जेलसीमियम का सजीव मूर्त-चित्रण – संपूर्ण शरीर की शिथिलता, हाथ-पैर की थकान, सुस्ती, नींद आते रहना, ऊंघते रहना, अर्ध-निद्रित अवस्था में रहना, टाँगों का लड़खड़ाना, शरीर के अंगों का कांपना या सारे शरीर का कंपन। बाजा बजाते समय अंगुलियों का ठीक जगह न पड़ना, शरीर के अंगों का पारस्परिक-समन्वय न होना, किसी एक अंग का पक्षाघात, आँख की पलक का भारी पड़ जाना या झूल पड़ना, हल्का बुखार, जाड़ा न रहने पर भी शरीर का काँपना, रोगी का अपनी इच्छानुसार अंगों से काम न ले सकना – यह है सजीव तथा मूर्त-चित्रण जेलसीमियम का।

(9) शक्ति तथा प्रकृति – 3, 6, 30, 200 ( डॉ० नैश का कथन है कि उनके अनुभव के अनुसार 30 शक्ति के नीचे इस औषधि से कोई लाभ नहीं होता। औषधि ‘सर्द’-प्रकृति के लिये है। )

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2 Comments
  1. Anij kumar says

    Gale me pan jo one month se ha

    1. Dr G.P.Singh says

      Don’t be dis hearten. Every thing is possible in this world if you try patiently. you write to us your problem as we want for facilitating in the direction of selection of medicine to be beneficial for you. For this either you try to write us in detail (ie details of your disease, your ht. your colour your age,effect of coldness and heat, hurydness, fear, anger,sensitivity etc. or try to meet the doctor at Patna. For immediate relief you may try Diptherinum 30 in morning . May God bless you.

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