Homeopathic Medicine For Collapse Coma In Hindi [ जीवनी शक्ति का पतन ]

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मृत्यु दो प्रकार से होती है – (1) हृत्पिण्ड की क्रिया के बन्द हो जाने से तथा (2) श्वास-यन्त्र की क्रिया के रुक जाने से ।

अचानक रक्तस्राव, उचित रूप से शरीर का पोषण न होना एवं अनियमित खान-पान आदि कारणों से हृत्पिण्ड की क्रिया में रुकावट आ जाती है । विष खाने अथवा हृत्पिण्ड की किसी बीमारी की वजह से भी हृत्पिण्ड की क्रिया रुक सकती है। हृत्पिण्ड की क्रिया के रुक जाने पर आँखों की पुतलियों का फैल जाना, धुंधला दिखायी देना, नाड़ी का क्षीण हो जाना, श्वास लेने में बेहद कष्ट, खींचन भरी अथवा बिना खींचन की बेहोशी वाली स्थिति, दोनों होंठ तथा चेहरे का नीला पड़ जाना, हाथ-पाँवों का ठण्डा पड़ जाना, ठण्डा पसीना आना, सिर में चक्कर तथा बेचैनी आदि लक्षण प्रकट होते हैं । विष-सेवन अथवा हृत्पिण्ड की बीमारी के कारण जीवनी-शक्ति का पतन होने पर हाथ-पाँवों का ठण्डा हो जाना, नाड़ी का तीव्र तथा कमजोर होना, सम्पूर्ण शरीर में लसदार पसीना आना, परन्तु ज्ञान बना रहना – ये लक्षण दिखायी देते हैं ।

श्वास-यन्त्र की क्रिया के बन्द हो जाने पर तीव्र एवं पीड़ादायक श्वास-कष्ट, आँख के सफेद अंश का जैसे बाहर निकल पड़ना, गर्दन के पीछे की नसों का तथा चेहरे का फूल जाना, चेहरे का नीला हो जाना, प्राय: अकड़न के साथ बेहोशी आ जाना अथवा अचेतन नींद एवं श्वासावरोध आदि उपसर्ग प्रकट होते हैं । श्वास-यन्त्रों द्वारा अपना काम बन्द कर देना – इसका प्रमुख लक्षण है।

जीवनी-शक्ति के पतन तथा संज्ञा-हीनता की उक्त स्थिति में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती हैं :-

कार्बो-वेज 30, 200, 1M – रोगी का अत्यधिक क्षीण होकर मुर्दे की भाँति पड़ा रहना, परन्तु सिर का गरम रहना और उस पर गर्म पसीना भी आना, शेष शरीर का ठण्डा पड़ जाना, श्वास में ठण्डक, नाड़ी का पकड़ में न आना, श्वास का भारी होकर चलना तथा रोगी को श्वास-वायु मिल सके, इस हेतु पंखा झलने, खिड़कियाँ आदि खोल देने की आवश्यकता – इन लक्षणों वाले मरणासन्न रोगी को हर 30 मिनट बाद यह औषध देते रहने से लाभ की आशा की जा सकती है ।

कैम्फर Q – बाहर से त्वचा का ठण्डा होना, परन्तु शरीर के भीतर गर्मी होने के कारण रोगी द्वारा अपने शरीर पर कपड़ा सहन न कर पाना, हैजे की अवस्था में जब जीवनी-शक्ति का अत्यधिक ह्रास हो गया हो, अंग नीले पड़ गये हों तथा चेहरे पर मृत्यु के लक्षण प्रकट हो रहे हों, तब इस औषध के प्रयोग से अत्यधिक लाभ की आशा की जा सकती है ।

विरेट्रम-विरिडि 30 – माथे पर ठण्डा पसीना, शरीर का ठण्डा तथा नीला पड़ जाना, वमन तथा दस्त होना, हैजा-रोग में जीवनी-शक्ति का ह्रास हो जाना अथवा किसी ऑपरेशन के बाद चेहरे का पीला पड़ कर नाड़ी का कमजोर, परन्तु तीव्र चलना – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है । माथे पर ठण्डा पसीना आने के लक्षण हों तो इस औषध को किसी भी रोग में प्रयुक्त किया जा सकता है। हैजा के लिए यह अमोघ औषध मानी जाती है ।

पल्सेटिला 30 – मृत्यु के समय श्वास की घरघराहट को रोकने में यह विशेष हितकर है।

हेलोडर्मा 30 – सम्पूर्ण शरीर अथवा हाथ-पाँवों का अत्यधिक ठण्डा हो जाना, केवल कलेजे पर थोड़ी गर्मी का अनुभव होना एवं अन्तिम समय की ठण्डक, जो शरीर के ऊपर से नीचे की ओर उतरती हो अथवा नीचे से ऊपर की ओर जाती हो – इन लक्षणों में यह औषध बहुत लाभकारी सिद्ध हो सकती हैं ।

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