मिर्गी का इलाज इन हिंदी [ Homeopathic Remedies For Epilepsy In Hindi ]

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विवरण – इस रोग के वास्तविक कारण का निर्णय अभी तक नहीं हो सका है। फिर भी माता-पिता के वंश में यह रोग रहने, उपदंश, हस्त-मैथुन, संक्रामक रोग, सिर पर चोट लगना, भय, अर्बुद, अधिक शराब पीना, कृमि, अधिक बोलना अथवा जड़ हो जाना, शारीरिक अथवा मानसिक अवसन्नता , अत्यधिक शक्तिहीनता एवं अजीर्ण आदि कारणों से यह रोग हो सकता है ।

किशोरावस्था में किसी अन्य व्यक्ति के मिर्गी रोग की खींचन को देखने अथवा दूसरी बार दाँत निकलने के समय इस बीमारी का हो जाना गौण कारण माना जाता है ।

इस रोग में रोगी अचानक ही बेहोश होकर जमीन पर गिर जाता है । किसी-किसी को रोग का आक्रमण होने से पूर्व सिर में चक्कर आने लगते हैं, सिर में दर्द होने लगता है तथा ऐसा अनुभव होता है, जैसे सिर के भीतर कोई कीड़ा रेंग रहा हो । कान में भौं-भौं शब्द होना, सम्पूर्ण शरीर में कंपकंपी, शरीर में दर्द, सिर का अवश हो जाना, धुंधला दिखाई देना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। बेहोशी की अवस्था में अंगूठे मुड़ जाते हैं, हाथों की मुट्ठियाँ बन्द हो जाती है, आँखों में चमक नहीं रहतीं तथा आँखों के ढेले स्थिर हो जाते हैं और शरीर अकड़ने लगता है ।

किसी-किसी के मुँह से झाग निकलने लगते हैं, दाँती भिंच जाती है तथा रोगी पूरी तरह से बेहोश हो जाता है । बेहोशी आते समय रोगी प्राय: अचानक ही जोर से रोता हुआ गिर जाता है । हाथों की अँगुलियाँ सिकुड़ने लगती हैं । आँखों की पुतलियाँ नीचे-ऊपर उठने लगती हैं तथा कलेजे की धड़कन बढ़ जाती है । चेहरा पहले पीला, बाद में लाल रंग का हो जाता है। बेहोशी की हालत में रोगी हाथ-पाँव पटकता हैं तथा उसके शरीर से ठण्डा एवं लसदार पसीना भी निकलता है । बीस-पच्चीस मिनट बाद इन उपसगों के कम हो जाने पर रोगी गहरी नींद में सो जाता है तथा जब होश में आता है तब स्वयं को अत्यधिक अशक्त अनुभव करता है। बेहोशी के समय की कोई बात उसे याद नहीं रहती । जब यह रोग पुराना पड़ जाता है, तब धीरे-धीरे मानसिक-वृत्तियाँ क्षीण हो जाती हैं । उस समय रोगी पागलपन अथवा पक्षाघात का शिकार भी हो सकता है ।

यह रोग प्राय: 25 वर्ष की आयु से पूर्व ही आरम्भ होता है तथा बाद में दीर्घकाल तक अथवा जीवन भर चलता है । सन्यास रोग में लगातार खींचन नहीं बनी रहती, परन्तु मिर्गी रोग में खींचन बनी रहती है।

इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित होम्योपैथिक औषधियाँ लाभ करती हैं :-

इग्नेशिया 6, 200 – डॉ० ज्हार के मतानुसार यदि किसी औषध के लक्षण स्पष्ट न हों तो मिर्गी रोग में इसी औषध से उपचार आरम्भ करना चाहिए । इससे लाभ न होने पर लक्षणों का मिलान करके अन्य औषधियों का व्यवहार करना चाहिए । भय, आतंक तथा वेदना एवं मानसिक-गड़बड़ी के कारण मिर्गी के दौरे पड़ने की यह श्रेष्ठ औषध है ।

क्युप्रम 3x, 6, 30 – यह भी मिर्गी रोग की उत्तम औषध है । मिर्गी रोग में हवा की लहर का घुटनों से उठ कर पेट के निम्न भाग तक चढ़ जाना, माँसपेशियों में थिरकन, पिण्डलियों तथा तलवों में ऐंठन, अंगूठे का अँगुलियों में भिंच जाना, कभी-कभी अंगुलियों तथा अंगूठों से ऐंठन का आरम्भ होना तथा शुक्लपक्ष में मिर्गी रोग के दौरे आना – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती हैं ।

डॉ० हेलबर्ट के मतानुसार किसी भी अन्य औषध की अपेक्षा यह औषध मिर्गी के दौरे में कमी लाती है तथा पुराने अथवा कठिन मिर्गी रोग की बहुत ही अच्छी दवा है । अत्यधिक खींचन तथा चेहरा नीला पड़ जाने के लक्षणों में लाभकर है।

ब्यूफो 6, 30 – हस्तमैथुन अथवा अधिक कामुकता के कारण उत्पन्न मिर्गी रोग में यह औषध हितकर है। मैथुन करते समय मिर्गी के दौरे का आक्रमण होना, घबराहट के साथ रोगी का बेहोश हो जाना, आँख की पुतलियों का फैल जाना तथा आँखों के सामने रोशनी करने पर भी पुतलियों के ऊपर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ना इन लक्षणों में लाभकारी है ।

बेलाडोना 1x, 30 – यह औषध नवीन मिर्गी रोग में लाभ करती है । विशेष कर बच्चों की बीमारी में हितकर है। इसकी ऐंठन हाथों से आरम्भ होकर चेहरा मुख तथा आँख की ओर जाती है। आँखों का चमकीला लाल होना, श्वास-कष्ट, चेहरे का लाल होना, रोशनी सहन न होना, आँखों का फैल जाना तथा रोगी का चौंक पड़ना आदि लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।

कैल्केरिया-कार्ब 30, 200 – यह औषध भी प्राय: बच्चों के मिर्गी-रोग में ही प्रयुक्त होती है, परन्तु बड़ों की बीमारी में भी काम आती है। इस औषध के रोग में वायु नाभि-संस्थान से उठकर ऊपर की ओर चढ़ती हैं, जिसके कारण रोगी का शरीर ऐंठने लगता है। किसी-किसी को अपनी बाँह पर चूहे की भाग-दौड़ जैसा भी अनुभव होता है, कभी-कभी इस औषध के रोग की वायु-लहर पेट के ऊपरी भाग से चलकर स्त्री के जरायु अथवा अन्य अंगों की ओर चली जाती है । भय तथा आतंक के कारण किसी रोग के दानों के निकले बिना ही दब जाने के कारण अथवा अत्यधिक विषय-भोग के कारण उत्पन्न मिर्गी-रोग में यह बहुत हितकर सिद्ध होती है । यह औषध मूलत: प्रकृति को बदलने का काम करती है, अत: मिर्गी के दौरे के लिए ही इसका सीधा प्रयोग नहीं किया जाता । चुकी मिर्गी रोग भी प्रकृतिगत-विकृति के कारण होता है अत: इस औषध द्वारा रोगी की प्रकृति बदल जाने पर, उसके रोग में स्वत: लाभ होने लगता है । गण्डमाला-धातुग्रस्त रोगियों तथा मोटी एवं ढीली माँसपेशियों वाले रोगों के लिए यह लाभकर है ।

साइलीशिया 30, 200 – रोग-लहर का नाभि-प्रदेश से आरम्भ होना, प्रतिपदा तथा पूर्णिमा तिथि को रोग का बढ्ना, सम्पूर्ण सिर पर तथा गर्दन तक दुर्गन्धित पसीना आना, रोगी का निर्बल तथा चिड़चिड़े स्वभाव का होना तथा किसी भी मनोभाव के कारण रोगी को ऐंठन अथवा मिर्गी का दौरा पड़ जाना-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।

सल्फर 30, 200 – रोगी को अपनी बाँह पर चूहे के भागने जैसा अनुभव होना, किसी रोग के दानों का दब जाना, अत्यधिक विषय-भोग, भय अथवा आतंक आदि कारणों से उत्पन्न मिर्गी-रोग में हितकर है । यदि इन लक्षणों में सल्फर से लाभ न हो तो ‘कैल्केरिया’ देने से लाभ होता है ।

साइक्यूटा-विरोसा 6, 30, 200 – अचानक ही शरीर का अकड़ जाना, तत्पश्चात् अंगों में फड़कन, मोड़-तोड़, भयानक खींचन तथा अन्त में अत्यधिक शक्तिहीनता-मिर्गी रोग के इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है । विशेषकर, बच्चों के लिए हितकर है ।

नक्स-वोमिका 30, 200 – यदि रोग-लहर नाभि-प्रदेश से उठती हो तथा रोगी चिड़चिड़े एवं तीखे स्वभाव का हो एवं रोग का आरम्भ कब्ज से हुआ हो तो इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।

आर्टेमिसिया वलगैरिस 1, 1x, 3 – यह औषध बाल्यावस्था में ऐंठन तथा युवावस्था में लड़कियों के मिर्गी रोग में हितकर है । इस औषध के रोगी को मिर्गी रोग के लगातार अथवा एक के बाद दूसरा दौरा पड़ते हैं । यदि दौरे एक बार एक साथ लगातार पड़ें तो फिर वे दीर्घ काल तक उसी प्रकार पड़ते रहते हैं । भय, आतंक, दु:ख-शोक, हस्त-मैथुन, कृमि, दाँत निकलने में कष्ट, अथवा किसी तीव्र मानसिक-उद्वेग-जनित मिर्गी रोग में यह लाभकर है । इस औषध का रोगी रोग का आक्रमण होने से पूर्व ही भयानक रूप में उत्तेजित हो जाता है ।

हाइड्रोसियैनिक-एसिड 3, 6, 30 – डॉ० ह्यूजेज के मतानुसार यह इस रोग की स्पेसिफिक औषध है ।

इनान्थि क्रोकेटा 3x, 3 – युवा मनुष्यों के मिर्गी रोग के नये आक्रमण की पहली अवस्था, तीव्र, खींचन, अकड़न तथा मुँह से फेन निकलने के लक्षणों में लाभकर है ।

एसिड-हाइड्रो 3x – आँख की पुतलियाँ फैली हुई, स्थिर तथा तीव्र दृष्टि, रोगी का चिल्लाकर तथा बेहोश होकर गिर पड़ना एवं मुँह से फेन निकलना-इन लक्षणों में हितकर है ।

कैलि-सायोनेटस 3 – तीव्र खींचन अथवा अकड़न, श्वास-कष्ट, शरीर का नीला पड़ जाना तथा रोगी का बेहोश होकर पड़े रहना-इन लक्षणों में लाभकर है।

कैनाबिस इण्डिका 1x, 3 – मिर्गी रोग के साथ ही पाकाशय अथवा जननेन्द्रिय में दोष उत्पन्न हो जाने पर इसका प्रयोग करें ।

ओपियम 6 – खींचन के बाद रोगी का अधिक देर तक सोते रहना, रोगी का चिल्ला कर बेहोश हो जाना, मुँह से फेन निकलना, आँखें अधखुली, ऊपर को चढ़ी हुई तथा उनकी पुतली फैली हुई अथवा सिकुड़ी हुई हों-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।

(1) भय-जनित अथवा नींद के समय बेहोशी वाले मिर्गी रोग में – ओपियम, एकोनाइट ।

(2) हस्त-मैथुन एवं बहु-मैथुन आदि के कारण उत्पन्न मिर्गी रोग में – फास्फोरस, एसिड-सल्फ, चायना, फेरम, एसिड-फास ।

(3) कृमि के कारण उत्पन्न मिर्गी रोग में – फिलिक्स 6x, सेण्टोनाइन 1x वि०, ट्युक्रियम 6, चायना 2x ।

(4) धातु-दौर्बल्यजनित मिर्गी रोग में – चायना 6, फेरम 6, एसिड-फास 6।

(5) नये मिर्गी रोग में – एसिड-हाइड्रो, कैलिब्रोम, इग्नेशिया, चेलिडोनियम, हायोसायमस, एब्सिन्थियम, आर्ज-नाई तथा कैलिब्रोम ।

(6) पुराने मिर्गी रोग में – क्युप्रम-एसेट, सल्फ, इनान्थि-क्रोकेटा, कैल्के-कार्ब, बेलाडोना, प्लम्बम, सिलिका, जिंकम-फास, ऐगारिकस ।

टिप्पणी – जिन औषधियों के नाम के आगे शक्ति का उल्लेख नहीं है, उन्हें 6 क्रम में देना उचित रहता है ।

  • यदि रोगी की दाँती लग गई हो तो उसे छुड़ाकर दाँतों के बीच में कोई कार्क अथवा कपड़े की पोटली लगा देनी चाहिए ।
  • यदि रोगी की जीभ बाहर निकल आई हो तो उसे भीतर डाल देना चाहिए ।
  • बेहोश रोगी की नाक के पास एमिल नाइट्रेट रखना लाभकर होता है। यदि रोग का आक्रमण तीव्र हो तो क्लोरोफार्म सुंघाने की आवश्यकता भी पड़ सकती है ।
  • रोगी को जोर की हवा करनी चाहिए तथा उसके मुँह पर पानी के छोटे मारने चाहिए ।
  • यदि बेहोशी गहरी हो तो रोगी को जबर्दस्ती जगाने का प्रयत्न न करके, उसे सोने देना चाहिए ।

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