लकवा (पैरालिसिस) रामबाण इलाज है होम्योपैथी [ Homeopathic Remedies For Paralysis In Hindi ]

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विवरण – किसी अंग के सम्पूर्ण अथवा एक हिस्से के स्पर्श-ज्ञान-रहित हो जाने तथा उसे इच्छानुसार हिलाने-डुलाने में असमर्थ हो जाने को लकवा अथवा पक्षाघात कहा जाता है । यह रोग कई प्रकार का तथा कई कारणों से होता है:-

(1) मेरुदण्ड में चोट के कारण, (2) मुखमण्डल पर, (3) निम्न तथा ऊपर के अंग का अथवा (4) कंपकंपी युक्त जिसमें कि हाथ-बाँह, सिर आदि अंग अथवा सम्पूर्ण शरीर निरन्तर कांपता रहता है ।

(1) संवेदनात्मक तथा (2) गतिरोधक नामक इसकी दो श्रेणियाँ भी मानी गई हैं। संवेदनात्मक-श्रेणी के पक्षाघात में शरीर के जिस भाग में रोग हो, उसे जानने – पहिचानने की शक्ति नहीं रहती तथा गतिरोधक श्रेणी के पक्षाघात में रोगी-अंग को हिलाया-डुलाया नहीं जा सकता । ये दोनों प्रकार के पक्षाघात एक साथ भी हो सकते हैं और अलग-अलग भी होते हैं ।

पक्षाघात किस श्रेणी का है तथा उसके क्या लक्षण हैं, इन्हें पूरी तरह से ध्यान में रखते हुए ही औषध का निर्वाचन करना चाहिए।

विभिन्न प्रकार के पक्षाघात में लक्षणानुसार प्रयुक्त होने वाली सामान्य औषधियाँ निम्नलिखित हैं :-

एकोनाइट 30 – डॉ० हैम्पेल के मतानुसार यह सब प्रकार के पक्षाघात की सर्वश्रेष्ठ औषध है। अंगों का सुन्न हो जाना, उनमें झनझनाहट एवं ठण्डी-खुश्क हवा लगने के कारण चेहरे आदि किसी अंग के पक्षाघात में विशेष लाभकर है ।

आर्निका 1M – अत्यधिक थक जाने के कारण टांगों का जवाब दे जाना अथवा टांगों के पक्षाघात में इसे दें ।

ऐलूमिना 30 – मेरुदण्ड के क्षय के कारण टांगों के पक्षाघात तथा पांवों की अनुभव-शक्ति के नष्ट हो जाने में हितकर है। बैठे-बैठे टांगों का भारी अनुभव होना तथा टांगों के भारीपन के कारण उन्हें घसीटते हुए चलना-इन लक्षणों में हितकर है।

कास्टिकम 30 – डॉ० के मतानुसार यह औषध हर प्रकार के पक्षाघात में काम करती है, भले ही इसके द्वारा पूरी तरह लाभ न हो । ठण्ड लगने से दानों के दब जाने अथवा किसी घातक रोग के ठीक होने के बाद हुए पक्षाघात में एवं चेहरे तथा जीभ के पक्षाघात में लाभ करती है ।

क्युप्रम 30 – आक्षेप आने के बाद मस्तिष्क की नस फट जाने का कारण होने वाले पक्षाघात में हितकर है ।

प्लम्बम 30 – यह हाथों के पक्षाघात में विशेष लाभ करती है । इस मुख्य लक्षण के रोगी को इस औषध से जबर्दस्त लाभ होता है ।

कोनियम 30 – पक्षाघात यदि नीचे से आरम्भ होकर ऊपर की जा रहा हो तथा रोगी की विचार-शक्ति ठीक हो तो इसे देना चाहिए ।

रस-टाक्स 30, 200 – ठण्ड लगने अथवा सीलन के कारण हुए किसी भी अंग के वात-व्याधि-जनित पक्षाघात में हितकर है ।

डल्कामारा 30 – बरसाती ठण्ड लगने के कारण हुए पक्षाघात में इसे सल्फर के साथ पर्यायक्रम से देना हितकर रहता हैं ।

बैराइटा-कार्ब 30 – जिहवा के पक्षाघात की यह सर्वश्रेष्ठ औषध है । कमर तथा घुटनों की शिकायत वाले वृद्ध लोगों के पक्षघात में भी हितकर है।

जेल्सीमियम 200 – भय, आतंक अथवा क्रोध आदि किसी मानसिक उत्तेजना के कारण हुए पक्षाघात में तथा आँख, गला एवं स्वर-यंत्र के पक्षाघात में हितकर है ।

स्थानिक पक्षाघात की चिकित्सा

प्लम्बम 30 – एक अथवा कुछ माँसपेशियों के पक्षाघात का कारण सीसे का विष न होने पर ही यह औषध लाभ करती है, क्योंकि यह औषध स्वयं सीसा है ।

कास्टिकम 30 – खाँसी, जुकाम आदि के कारण गला बैठ जाने, आवाज के बन्द अथवा भारी हो जाने (स्वर-यन्त्र के पक्षाघात) में यह लाभकर है ।

फाइसोस्टिग्मा 30 – आँख के पेशियों के पक्षाघात में यह लाभकर है । डिफ्थीरिया के बाद आंख की पेशियाँ यदि ठीक काम न करें तो इसे देना चाहिये ।

आर्निका 200, 1M – गले से अत्यधिक काम लेने पर आवाज बैठ जाने अर्थात् स्वर-यंत्र के पक्षाघात में यह औषध लाभकर है ।

जेल्सीमियम 30 – एक आँख का फैली और दूसरी का सिकुड़ी रहना, ऊपर की पलक का गिर जाना अथवा पलकों का भारी रहना, आँख, गला, स्वर-यंत्र, छाती और किसी भी खुले अंग का पक्षाघात होने में यह लाभकर है। इस औषध के रोगी को दस्त आते हैं, परन्तु वे भी मुश्किल से निकलते हैं । मासिक-धर्म के समय आवाज बन्द हो जाना अथवा किसी मानसिक कारण से हुये पक्षाघात में इसका प्रयोग हितकर सिद्ध होता है ।

कोनियम 30 – पेशाब की धार का रुक जाना, सोते समय आँखें बन्द करते समय सम्पूर्ण शरीर पर पसीना आ जाना, सिर पर किसी-किसी जगह गरम अनुभव होना तथा आँख के पेशी के पक्षाघात में यह लाभकर है। स्मरणीय है कि पेशाब की धार का निकलते हुए रुक-रुक जाना भी एक प्रकार के पक्षाघात का ही लक्षण है ।

काक्युलस 3, 30 – एक समय में ही एक हाथ में सुन्नपन तथा दूसरे में ठण्डा पसीना आना, घुटनों में सूजन तथा चलते समय दोनों घुटनों का आपस में टकराना एक ओर का पक्षाघात तथा कम्पन-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।

मुख-मण्डल के पक्षाघात की चिकित्सा

इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :- ऐकोनाइट 30, कास्टिकम 30, ग्रेफाइटिस 30, सिकेलि-कोर 30, नाइट्रिक एसिड 3 तथा हायोसायमस 3 ।

टांगों के पक्षाघात की चिकित्सा

इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-

मैगेनम 30, जेल्सीमियम 30, हाइपेरिकम 30, आर्निका 200, 1M, लैथाइरस 3, रस-टाक्स 30 तथा कैलि-आयोड ।

हाथ तथा बाँहों के पक्षाघात की चिकित्सा

इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं:- जेल्सीमियम 30, आर्जेण्टम-नाइट्रिकम 30, ऐगारिकस 30, स्ट्रिकनीनम 3, 30 तथा फाइसोस्टिग्मा आदि ।

नीचे अंगों से आरम्भ होकर ऊपर की ओर जाने वाले गतिरोधक पक्षाघात की चिकित्सा

कोनियम 3 – क्रमश: नीचे से ऊपर के अंगों की ऊपर चढ़ने वाले पक्षाघात में यह औषध लाभ करती है । इस औषध का एक विचित्र लक्षण यह है कि इसमें रोगी को आँखे बन्द करते ही पसीना आता है और सिर को थोड़ा-सा भी इधर-उधर हिलाते ही चक्कर आने लगते हैं । इसे प्रति एक घण्टे के अन्तर से देना चाहिए ।

जेल्सीमियम 3, 30 – थकान, दुर्बलता, माँस-पेशियो की शिथिलता भारीपन, सुन्नपन, तनिक-सी भी हरकत से शरीर में जबर्दस्त कम्पन तथा टाँगों का लड़खड़ाना-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती हैं ।

आधे अंग का पक्षाघात

बैराइटा-कार्ब 3, 30 – शारीरिक एवं मानसिक क्षीणता के बढ़ जाने पर बाएं अंग में पक्षाघात हो जाना, घुटनों से अण्डकोषों तक की सुन्नता एवं बैठने पर सुन्नता का दूर हो जाना, पांवों के तलवों तथा अँगूठों में जलन, दुखन एवं चलने पर दर्द होना – इन सब लक्षणों में यह लाभकर है । इस औषध का प्रभाव धीरे-धीरे होता है तथा इसे दुहराया जा सकता है ।

आरम-मेट 30 – शरीर के बाएं भाग का पक्षाघात, हृदय का धड़कना, निराशा, कमजोरी, जोड़ तथा अंगों का दुखना, कष्ट वाले अंगों पर से कपड़ा हटाने पर दर्द का बढ़ जाना-इन लक्षणों में लाभकर है।

लाइकोपोडियम 30 – यह औषध दाएं भाग के पक्षाघात में लाभकर है। कष्ट का दाएं भाग से आरम्भ होकर बाँई ओर को जाना तथा सायंकाल 4 से 8 बजे के बीच तकलीफ का बढ़ जाना-इन लक्षणों में हितकर है ।

कास्टिकम 30, 200 – डॉ. ज्हार के मतानुसार दायें, बाँयें, आधे, पूरे, ऊपरी अथवा निम्न अंगों के सभी प्रकार के पक्षाघात में यह औषध बहुत लाभ करती है, परन्तु रोग को पूरी तरह से ठीक नहीं कर पाती। फिर भी, दीर्घकालीन पक्षाघात में इस औषध का सहारा लिया जाता है ।

जेल्सीमियम 30 – शरीर की माँसपेशियों के काम न करने के कारण विभिन्न अंगों में समन्वय न हो पाने से पक्षाघात हो जाना, किसी मानसिक-उद्वेग, विक्षोभ तथा आतंक अथवा बुरे-समाचार के कारण रोगी को पक्षाघात हो जाना, सिर के पिछले भाग में दर्द, कम्पन, सुन्नता तथा बोल न पाना-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।

काक्युलस 3, 30 – शरीर के एक भाग का पक्षाघात, सोने के लिए आँखें बन्द करते ही पसीना आने लगना तथा नींद के बाद कष्ट का बढ़ जाना, हाथों का क्रमश: ठण्डा तथा गरम हो जाना एवं बाँहों का सो जाना-इन सब लक्षणों में हितकर है ।

नक्स-वोमिका 30 – अत्यधिक शारीरिक परिश्रम, अधिक शराब पीना, अधिक खाना खा लेने अथवा पानी में भीग जाने के कारण पक्षाघात हो जाने में यह औषध लाभ करती है । प्रात:काल हाथ-पावों का शक्तिहीन-सा प्रतीत होना, पिण्डलियों तथा तलुवों में ऐंठन, टाँगों तथा बाँहों का सो जाना तथा चलते समय टाँगों को जैसे घसीटते हुए चला जाय-इन लक्षणों में इसका प्रयोग करना चाहिए ।

कार्बोनियम सल्फ – अचानक बेहोश हो जाने के बाद दाँयें भाग के पक्षाघात में हितकर है ।

लैकेसिस 30 – बाँये भाग में पक्षाघात आरम्भ होने पर यह औषध महत्वपूर्ण सिद्ध होती है । बाँयें भाग से आरम्भ होने वाले किसी भी कष्ट का दाँयी ओर को जाना, रोगी का बहुत धीरे-धीरे बोलना, माँसपेशियों का इस तरह अकड़ जाना जैसे वे छोटी हो गई हों तथा डिफ्थीरिया होने के बाद का अर्धांग – इन लक्षणों में हितकर है ।

पक्षाघात का होम्योपैथिक चिकित्सा

विभिन्न कारणों से होने वाले पक्षाघात में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-

(1) कंपकंपी के साथ होने वाले पक्षाघात में – टैरेण्टुला 6, 30, स्टैफिसैग्रिया 30, फॉस्फोरिकम 2x, 3x, प्लम्बम 6, 30, हायोस 3, ऐण्टिमटार्ट 30 ।

(2) अधिक शराब पीने के कारण रीढ़ के पक्षाघात में, जबकि उसके साथ कष्ट, अरुचि, ओकाई आदि के लक्षण भी हो – नक्स-वोमिका Q, 3x ।

(3) अधिक धातु निकल जाने के कारण होने वाले ध्वजभंग अथवा पक्षाघात में – फास्फोरस 6, 30 ।

(4) सूखी-हवा लगने के कारण होने नया पक्षाघात, शरीर को छूने पर स्पर्श का अनुभव न होना, काँटा चुभने जैसा दर्द होना, रोगाक्रान्त स्थान में झुनझुनी उत्पन्न हो जाना, आधे अंग का अवश हो जाना, इन लक्षणों में – एकोनाइट 1x ।

(5) सम्पूर्ण शरीर के पक्षाघात में – प्लम्बम 6 ।

(6) बढ़ती हुई पेशियों की कृशता के साथ पक्षाघात में – प्लम्बम 6, फास्फोरस 6 ।

(7) जाँघ में वात जैसा दर्द, दृष्टि-क्षीणता, रात के समय पेशाब को न जाना तथा चलने में असमर्थता – इन लक्षणों में – बेलाडोना 3 ।

(8) लिखने का काम करने वालों की अँगुलियों के पक्षाघात अथवा कंपकंपी में – जेल्सीमियम 2x, 30 ।

(9) हाथ-पाँवों में फड़कन एवं स्नायु-मण्डल के रोग के कारण पक्षाघात हो जाने पर – मर्कसोल 6 ।

(10) काँटा चुभने पर दर्द का अनुभव, परन्तु छुने पर स्पर्श का अनुभव न होना तथा सन्धियों में चट-चट शब्द के साथ आधे अंग के पक्षाघात में – काक्युलस 2 ।

(11) पलकों के पक्षाघात में – जेल्सीमियम 1 ।

(12) खसरा आदि के दाने बैठ जाने के कारण पक्षाघात में – सल्फर 6, 200।

(13) सम्पूर्ण शरीर के पक्षाघात में – प्लम्बम 6।

(14) मस्तिष्क में अधिक रक्त-संचय हो जाने के कारण पक्षाघात में – बेलाडोना 3 ।

(15) बेहोशी जैसी नींद तथा चेहरा काला पड़ जाना, इन लक्षणों से युक्त पक्षाघात में – ओपियम 3 ।

(16) चोट लगने के कारण होने वाले पक्षाघात में – आर्निका 3 ।

(17) चेहरे, स्वर-नली, मूत्राशय के पक्षाघात में – कास्टिकम 6, 30 ।

(18) बढ़ती हुई पेशियों की कृशता के साथ पक्षाघात में – प्लम्बम 6, फास्फोरस 3 ।

(19) उन्माद रोगियों के पक्षाघात में – कैनाबिस-इण्डिका 3, मर्क-कोर 3, एगारिकस 30, बेलाडोना 3, फास 6 ।

(20) नीचे से ऊपर के अंग में बीमारी फैलने वाले नये पक्षाघात में – हाइड्रोफोबिनम 30 ।

(21) याददाश्त की कमी तथा कम्प के साथ वृद्धों के सब अंगों तथा चेहरा एवं जीभ के पक्षाघात में – बैराइट-कार्ब 30 ।

(22) वृद्धों के पक्षाघात में – कोनियम 6 ।

(23) कशेरुका मज्जाक्षय रोग के पक्षाघात में – आर्स, आर्ज-नाई, फास, आरम, ऐल्यूमिना ।

(24) डिफ्थीरिया सम्बन्धी पक्षाघात में – कोनियम, जेल्स ।

(25) आँखों की ऊपरी पलक के पक्षाघात में – स्टेमो, बेलाडोना, स्पाइजिलिया, जेल्सीमियम ।

(26) चेहरे के पक्षाधात में – बैराइटा-कार्ब, एकोन, बेलाडोना, कास्टिकम ।

(1) इस रोग में रोगी को समुद्री पानी में स्नान कराना लाभदायक रहता है। समुद्री पानी न मिलने पर ठण्डे-पानी में थोड़ा-सा नमक मिलाकर उससे स्नान कराना चाहिए ।

(2) हाथ-पाँव तथा सम्पूर्ण शरीर को रगड़ने तथा दबाने से लाभ होता है, रोगी अपनी सामर्थ्य के अनुसार जितनी तथा जिस प्रकार की भी कसरत कर सके, उतनी करनी चाहिए। इससे शारीरिक-अंगों की अकड़न में कमी आती है ।

(3) प्रदाह का उपसर्ग कम हो जाने पर बिजली लगाने से भी लाभ होता है।

टिप्पणी – इस रोग का पूर्ण रूप से दूर हो जाना प्राय: असम्भव ही होता है । सन्तोषजनक लाभ होने पर भी रोग के कुछ-न-कुछ लक्षण शेष रह ही जाते हैं ।

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