काली फॉस्फोरिकम – Kali Phosphoricum

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काली फॉस्फोरिकम लक्षण तथा मुख्य-रोग

( Kali Phosphoricum uses in hindi )

स्नायु संस्थान की निर्बलता (Weakness of Nervous System) – शुस्लर के 12 लवणों में यह भी एक लवण है। शुस्लर का कहना है कि यह मस्तिष्क के कोष्ठकों का घटक है। इसकी कमी के कारण मस्तिष्क-सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो जाते हैं। निराशा, नींद न आना, चिन्ता, भय, रोने की इच्छा, स्कूल के बच्चों में घर जाने की आकांक्षा, शक्कीपन, स्मृति-शक्ति की कमी तथा अन्य मानसिक-व्याधियों में यह लाभप्रद है। ज्ञान-तन्तुओं में काली फॉस की कमी के कारण उनमें निर्बलता आ जाती है, इस निर्बलता से हृदय की नाड़ी भी निर्बल हो जाती है। इस आती हुई निर्बलता की प्रतिक्रिया के रूप में पहले तो बड़ी तेजी आती है, किन्तु पीछे नाड़ी शिथिल हो जाती है। इसी प्रकार ज्ञान-तंतुओं में काली फॉस की कमी के कारण पहले दर्द अनुभव होता है, बाद को अर्धांग आ जाता है। पहले दर्द इसलिये होता है क्योंकि अर्धांग जैसी अवस्था में जाने से पहले ज्ञान-तंतु अपनी स्वाभाविक-प्रतिक्रिया करते हैं ताकि अर्धांग की अवस्था न आये, परन्तु क्योंकि ज्ञान-तंतु निर्बल होते हैं, उनमें काली फॉस की कमी होती है, इसलिये पीछे जाकर अर्धांग हो जाता है। यही कारण है कि रोगी को दर्द भी होता है, और दर्द की विरोधी वस्तु अर्धांग भी। काली फॉस की कमी के कारण शरीर की मांस-पेशियां ढीली हो जाती है। कभी-कभी इतनी ढीली कि अर्धांग होने का भय रहता है, कभी-कभी हो भी जाता है। ऐसे समय काली फॉस्फोरिकम औषधि लाभप्रद साबित होती है।

कभी-कभी ज्ञान-तंतु को काली फॉस न मिलने के कारण यह सूज जाता है। परिणामस्वरूप उस ज्ञान-तंतु का शरीर में जहां प्रभाव होता है, वहां रोग दिखलाई देता है। उदाहरणार्थ, सिर में कहीं-कहीं गंज का गोल निशान दिखलाई पड़ता है। इसका क्या कारण है? शुस्लर का कथन है कि इसका कारण यह है कि उस स्थान के ज्ञान-तंतुओं में काली फॉस की कमी आ गई है, और वे उस स्थान में उचित मात्रा में रुधिर का संचार नहीं कर रहे। इस प्रकार के गंज में यह औषधि लाभ देगी। कभी-कभी पेट में गोल-अल्सर हो जाते हैं। यह भी इसलिए होता है क्योंकि इस स्थान तक रुधिर लाने वाले नाड़ियों के ज्ञान-तंतुओं में काली फॉस की कमी है, इसी कमी के कारण ज्ञान-तंतु सूख गये हैं, ऐसे व्रण इस लवण से ठीक हो जाते हैं। अगर शरीर के किसी स्थान में मांस-पेशियां धीरे-धीरे सूखती जा रही हों तो इसका कारण काली फॉस की कमी होता है। टाइफॉयड में रोगी से बदबू आने लगती है। कई फोड़े सड़ कर बदबू देने लगते हैं। कई लोगों के दांतों से बदबू आने लगती है। इस सब बदबू का कारण यह है कि इन स्थानों के ज्ञान-तंतुओं में काली फॉस की कमी के कारण वे सूख जाते हैं, काम नहीं करते, इन तक रुधिर का पूरा संचार नहीं हो पाता, रुधिर न पहुंचने से ये स्थान गलने-सड़ने लगते हैं। ऐसी अवस्था में काली फॉस ज्ञान-तंतुओं को सड़ने से बचा लेगा और बदबू देने वाला अंगों में रुधिर का पूरा संचार होने के कारण सड़ांद नहीं पैदा होगी। बायोकैमिस्ट इस औषधि का 3x, 6x, 12x में प्रयोग करते हैं।

काली फॉस का होम्योपैथिक उपयोग

(1) स्नायु-सम्बन्धी रोग (Nervous disease) – होम्योपैथ इस औषधि का बायोकैमिक तथा होम्योपैथिक दोनों दृष्टियों से उपयोग करते हैं। बायोकैमिक-दृष्टि से तो 3x, 6x, 12x में ही प्रयोग होता है, परन्तु होम्योपैथिक दृष्टि से डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि उच्च-शक्ति, और उच्चतम शक्ति से उत्तम परिणाम दिखाई दिये हैं। उच्च-शक्ति में लक्षणानुसार इसका प्रयोग करते हुए एक ही मात्रा देनी चाहिये, उसे दोहराना नहीं चाहिये। होम्योपैथिक दृष्टि से इस औषधि का स्वस्थ-व्यक्तियों पर परीक्षण (Proving) बहुत कम हुआ है। आयोवा विश्वविद्यालय के डॉ० ज्योर्ज रॉयल तथा उनके छात्रों ने इस औषधि के परीक्षण किये हैं, परन्तु उन्हें विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। इस औषधि पर जो कुछ ज्ञान है वह अनुभव के आधार पर ही आश्रित है।

(2) रोगी शीत-प्रधान होता है – रोगी शीत-प्रधान होता है, उसके दर्द आदि में भी शीत से वृद्धि होती है। वह ठंडी हवा नहीं पसन्द करता है। ठंडी हवा लगने से वह रुग्ण हो जाता है। ठंड, ठंडी हवा, ठंडी हवा का झोंका उसके रोग को बढ़ा देता है।

(3) प्रातः सांय और रात्रि को तथा विश्राम से रोग-वृद्धि – रोगी का रोग प्रात:काल, सायंकाल और रात को बढ़ जाता है। उसकी अधिकांश शिकायतें आराम के समय बढ़ती हैं। धीरे-धीरे चलने-फिरने से उसे राहत मिलती है।

(4) एकांगी रोग – रोगी के लक्षणों का शरीर के एक हिस्से पर ज्यादा प्रभाव दिखलाई देता है। कमजोरी बढ़ते-बढ़ते शरीर के एक हिस्से में पक्षाघात हो जाता है।

(5) स्नायु-सम्बन्ध रोग – रोगी स्नायविक-प्रकृति (Nervous temperament) का होता है। जो लोग नाजुक मिजाज के स्नायु-प्रधान होते हैं, छोटी-सी बात से परेशान हो जाते हैं, या जिनको देर तक दु:ख और बेचैनी में से गुजरना पड़ा होता है, देर तक मानसिक-कार्य में लगे रहने के कारण जिनका स्नायु-संस्थान थक चुका होता है, उनके लिये यह औषधि उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति दुर्व्यसनों के शिकार होते हैं, व्यभिचार, दुराचार से जिनका स्नायु-संस्थान छिन्न-भिन्न हो जाता है, उनके लिये भी यह लाभप्रद है। बुरे, दु:खद समाचारों से जो रोग उत्पन्न हो जाते हैं, रोगी बैठा-बैठा दु:ख की बात सोचा करता है, सोचते-सोचते हृदय धड़कने लगता है, अन्य भी कई स्नायविक-उपद्रव उठ खड़े होते हैं – इन सब में काली फॉस की उच्च-शक्ति की एक मात्रा देना लाभकारी है। मानसिक-कार्य, स्नायविक शिथलिता, दीर्घकालीन चिन्ता, भीषण दु:ख आदि में इस औषधि की आवश्यकता पड़ती है।

भय – रोगी को सायंकाल भय सताता है। वह भीड़ में जाने से डरता है, मृत्यु का भय उस पर सवार रहता है, बीमारी का भय, लोगों का भय, एकांत का भय, वह अकेला रहने से डरता है। वह आसानी से डर जाता है और इस डरने के कारण उसके अनेक मानसिक-रोग उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में काली फॉस से लाभ होता है।

दुःख तथा चिरस्थायी-शोकातुरता – दुःख तथा चिरस्थायी शोकातुरता से जो लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें यह लाभप्रद साबित हुआ है।

जलन (Burning) – पीठ के नीचे के हिस्से में जलन होना इसका एक लक्षण है। पैरों में जलन, पैर के तलवों और पैर की अंगुलियों में भी जलन पायी जाती है।

निद्रा – प्रगाढ़ निद्रा, बेचैनी करने वाले या प्रेम-सम्बन्धी स्वप्न, ऊपर से नीचे गिरने का भयजनक-स्वप्न, नंगा हो जाने के स्वप्न; सोती हालत में शरीर में गर्मी उत्पन्न हो जाना; शाम को खाने की बाद नींद का एकदम आवेग; मध्य-रात्रि के बीच नींद न आना; मानसिक कार्य से, मानसिक उत्तेजना से, झुंझलाहट के बाद नींद न आना; नींद अनुभव करना परन्तु नींद न आना; भय अनुभव करते हुए नींद से जल्दी उठ पड़ना; नींद में चलना आदि लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग होता है।

(6) शक्ति तथा प्रकृति – 30, 200, 1000; नींद के लिये अनेक चिकित्सक काली फॉस 200x तथा एकोनाइट 30 या 200 पर्याय-क्रम से दिया करते हैं।

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2 Comments
  1. Mahendra Kumar Pandey says

    Mai bachpan me kuch kha liya jaise chote bache Jo bhi pate hai utha kar kha lete hai wahi aadat hoti hai ma bap bacho ka khayal rakhate hai chahe wah apana Jo bhi saririk kriya kare agar chuk se bacha kuch uta kar matar Jo pet me thik se pacha na ho ye thekh kar ki o khane wala hai jis par najar padati hai ma ki aage chal kar ye bat usake ghar wale use batate hai to use ek ajab si bimari ho jati hai mansik taur par jiske man se ye bat nahi khatam hoti hai bhir Kali phosphoricum Lena padata hai Jo dawa asardar hogi ya nahi

    1. Dr G.P.Singh says

      You write your problem and your nature, age, colour, physique etc and then medicine can be selected to you. So please write in detail about your disease and only then any thing can be done. May God bless you.

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