क्रियोजोटम – Kreosotum Homeopathy

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क्रियोजोटम के लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति

( Kreosotum Uses In Hindi )

 

लक्षण तथा मुख्य-रोग

लक्षणों में कमी

तीखे, बदबूदार स्रावगर्मी से रोग में कमी
सारे शरीर में तपकनगर्म भोजन से रोग में कमी
जरा-सी चोट से बहुत ज्यादा खून निकलना

लक्षणों में वृद्धि

दांतों के निकलते ही उनका क्षय शुरू होनाशीत से रोग में वृद्धि
बच्चे का पहली नींद में बिस्तर में पेशाब कर देनाबाहरी हवा से रोग में वृद्धि
रजोधर्म का लेटने से होना, बैठने या टहलने से रुक जाना और रुक-रुक कर होनादाँत निकलने पर वृद्धि

(1) तीखे, बदबूदार स्राव – इस औषधि का स्राव तीखा, काटने वाला, जलन पैदा करने वाला होता है। आँख से आँसू निकलते हैं तो तीखे और जलन पैदा करते हैं, आँख के कोरों को जलन द्वारा काट देते हैं, जहां-जहां आँसू लगते हैं, वहां-वहां जख्म की-सी लाली आ जाती है, वे स्थान दुखने लगते हैं। मुँह से जो लार निकलती है वह होठों को जला देती है, होठों के दोनों हिस्से जलते रहते हैं, कट से जाते हैं। प्रदर का स्राव योनि-मार्ग को काट देता है, उसमें जलन होती है, वह स्राव से लाल हो जाता है, जला करता है, कभी-कभी इस जलन से सूज भी जाता है, जलन तो हर समय होती रहती है। मैथुन के समय योनि जलती है, खून तक निकल आता है। मैथुन के दबाव के कारण रक्त-स्राव होने लगता है, जलन होती है, पुरुष को भी इस स्राव के संपर्क से इन्द्रिय में जलन होने लगती है। पेशाब जलन से आता है। स्राव के तीखेपन से हर अंग में जलन इस औषधि का चरित्रगत-लक्षण है। तीखेपन के साथ स्राव बदबूदार होता है। सोरिनम में भी अत्यन्त बदबू का लक्षण पाया जाता है।

जलने के साथ बदबूदार स्राव का आना – जलन के अतिरिक्त स्राव से बेहद सड़ांध और बदबू आती है। डॉ० टायलर लिखती हैं कि उनके अस्पताल में एक स्त्री लाई गई जिसे ब्रौंकाइटिस था। उसके सांस तथा थूक से इतनी बदबू आती थी कि दूसरे रोगियों से अलग रखे जाने पर भी उससे बदबू दूर-दूर फैलती थी। उसे क्रियोजोट 200 की दो-तीन मात्राएं देने से सारी स्थिति बदल गई। बदबू दूर हो गई और रोगिणी ने शीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर लिया।

(2) सारे शरीर में तपकन – छोटी-सी भी उत्तेजित करने वाली घटना से रोगी इतना उद्विग्न हो उठता है कि सारे शरीर में तपकन होने लगती है, यहां तक कि अंगुलियों के सिरे तक तपकने लगते हैं। प्रत्येक उद्वेग से रोगी को आँसू आ जाते हैं, और उद्वेगात्मक संगीत के आखों में जो आसू आते हैं, वे ढलते हुए गालों पर चरपराहट पैदा करते हैं, दिल में धड़कन होने लगती है, जो अंगुलियों तक महसूस होती है।

(3) जरा-सी चोट से बहुत ज्यादा खून निकलना – शरीर में कहीं भी पिन, सूई, कांटा चुभने से चमकदार, लाल खून एकदम निकलने लगता है। श्लैष्मिक-झिल्ली के किसी स्थान को जोर से दबाया जाय, तो वहां से स्राव निकलने लगता है। गले के शोथ में चम्मच से जीभ को दबायें तो उसका स्राव रिस पड़ता है, रुधिर के कुछ कतरे भी निकल आते हैं। जुकाम में नाक से खून टपक आता है। आँख आ जाने पर आंखों की लाली के साथ अगर सूजन हो जाये, तो आंख से खून आ जाता है। अंगुली में सूई चुभने से एक ही कतरा नहीं निकलेगा, कई कतरे बह पड़ेंगे। आंख, नाक, योनि, जरायु, गुर्दे आदि सब अंगों से आसानी से खून निकल पड़ना, मैथुन से भी रुधिर आ जाना, ट्यूमर में से आसानी से रुधिर बह पड़ना इस औषधि में पाया जाता है।

(4) दांतों के निकलते ही उनका क्षय शुरू होना – इसे दांत और मसूड़ों की सर्वोत्तम दवा कही जानी चाहिये। बच्चों के दांतों में कीड़े लग जाते हैं, मसूड़े फूल जाते हैं। बच्चों के दांत निकलते ही उनका क्षय होना शुरू हो जाता है। दांतों से खून जाने लगता है – इन सब उपद्रवों में यह अनुपम औषधि है। स्टैफ़िसैग्रिया में दांत काले पड़ जाते हैं, उन पर काली रेखाएं दीखती हैं, कितना ही मंजन करें काली रेखाएं मिटती नहीं। दांत भी टुकड़े-टुकड़े होकर टूटने लगते हैं। दांतों की जड़ें खुरने लगें तो मेजेरियम तथा थूजा से लाभ होता है। मेजेरियम में दांतों का क्षय एकदम शुरू होता है, दांतों का इनैमल पहले खुरदरा हो जाता है, फिर उतर जाता है। थूजा के भी दांत जड़ से सड़ते हैं, बाकी भाग ठीक दिखाई देता है। क्रियोजोट के दांत निकलते साथ ही सड़ने लगते हैं।

(5) बच्चे का पहली नींद में बिस्तर में पेशाब कर देना – पेशाब निकल जाने की हालत में यह महौषध है। जो बच्चे नींद में पेशाब कर देते हैं उनके लिये इसे प्रथम कोटि की औषधि समझना चाहिये। बच्चे के लिये ही नहीं, क्रियोजोट का रोगी पेशाब के लिये बाथरूम की तरफ लपकता है और बीच में ही उसका पेशाब निकल जाता है। बच्चे को स्वप्न आता है कि वह किसी अच्छी जगह पेशाब करने गया है, परन्तु बेचारा उठकर देखता है कि उसने अपना बिस्तर ही गीला कर दिया है। इस प्रकार की शिकायत में इससे लाभ होता है।

(6) रजोधर्म का लेटने से होना, बैठने या टहलने से रुक जाना और रुक-रुक कर होना – इसका एक अद्भुत लक्षण यह है कि रजोधर्म लेटने से तो होता है, परन्तु अगर स्त्री उठ बैठे, या टहलने लगे, तो रुक जाता है। रजोधर्म रुक-रुक कर होता है, कभी बिल्कुल रुक जाता है, कभी फिर होने लगता है। सल्फर में भी यह लक्षण पाया जाता है।

क्रियोजोटम औषध के रजोधर्म-संबंधी अन्य लक्षण

(i) रजोधर्म से पहले और होते समय सिर दर्द – रजोधर्म शुरू होने से पहले और रजोधर्म होते समय तेज सिर-दर्द होता है। सीपिया में भी यह लक्षण है।

(ii) जल्दी, अधिक देर तक, दुर्गन्ध वाला – रजोधर्म बहुत जल्दी, बहुत अधिक, बहुत देर तक होता है। मासिक-रुधिर बहुत ज्यादा दुर्गन्ध-युक्त होता है।

(iii) क्रियोजोट तथा सीपिया की तुलना – दुर्गन्धयुक्त मासिक-स्राव में क्रियोजोट और सीपिया की तुलना करना आवश्यक है। दोनों में मासिक दुर्गन्धयुक्त होता है, परन्तु सीपिया का रक्त-स्राव थोड़ा, क्रियोजोट का अधिक, सीपिया का रक्त-स्राव हरकत से अधिक, चुपचाप रहने से कम होता है, क्रियोजोट का रक्त-स्राव हरकत से कम, चुपचाप रहने से अधिक होता है। लेटने से रक्त-स्राव का होना-इस औषधि के इस लक्षण को हम पहले ही लिख चुके हैं।

(7) शक्ति तथा प्रकृति – 3, 6, 30, 200 (औषधि ‘सर्द’-प्रकृति के लिये है)

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