लैथाइरस [ Lathyrus Sativus Homeopathy Uses, Benefits And Side Effects In Hindi ]

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[ खेसारी की दाल की जाति के एक प्रकार के अनाज से इसका मूल-अर्क तैयार होता है ] – निम्नांग का पक्षाघात, गतिशक्ति – राहित्य ( लोकोमोटर एटैक्सी ), बेरी-बेरी आदि कई बीमारियों में इससे फायदा होता है।

पक्षाघात – अर्ध अंग का पक्षाघात ( नीचे या ऊपर ) जो एकाएक पैदा हो जाता है। वात से पैदा हुआ पक्षाघात ( rheumatic origin ), पैर का आंशिक पक्षाघात – चलने में पैर कांपना, ठोकर खाना, पैर कड़े पड़ जाना, इसमें रोगी लेटे-लेटे तो हाथ-पैर फैला और सिकोड़ सकता है, किन्तु बैठकर न तो हाथ-पैर फैला सकता है और न सिकोड़ सकता है। नितम्ब की मांसपेशियां ( gluteal muscles ) और निम्नांग शीर्ण हो जाता है।

लोकोमोटर एटैक्सी – अर्थात गतिशक्ति-राहित्य में – चलने के समय शरीर ढलमलाया करना, पैर से पैर जुड़ जाना, चोट लगना, आँख बन्द करके खड़े होने को कहा जाए तो शरीर काँपना और ढलमलाया करना, गिर जाने का उपक्रम हो जाना, कोई चीज उठाने या रखने के समय हाथ-काँपना, स्थिर होकर खड़े रहने पर भी हाथ काँपा करना, गिर जाने की सम्भावना रहना, बैठने के समय सामने की ओर झुककर और कुबड़े की तरह बैठना, सिर उठाकर सीधे बैठ नहीं सकता।

लैथाइरस का एक और भी विशेष लक्षण है – घुटने और पैर की एड़ी कड़ी हो जाना और अकड़ जाना। जमीन पर पैर का अंगूठा उठा नहीं सकना और पैर की एड़ी जमीन में लगा नहीं सकना, बच्चों का पक्षाघात।

पैर फूलना – कुर्सी या बेंच पर पैर लटकाकर बैठने की वजह से पैर फूल जाना।

बेरी-बेरी – इन्फ्लुएंजा, चेचक, प्लेग, हैजा, बेरीबेरी आदि कई बीमारियां बहुव्यापक एपिडेमिक रूप से प्रकट होती है, तो कहीं-कहीं वे ऐसा भयंकर रूप घारण कर लेती है कि वह स्थान प्रायः जनशून्य हो जाता है। कई साल की बात है कि कलकत्ते में भयानक रूप से बेरीबेरी का रोग हुआ, उस समय किसी ने कहा कि मिल के छंटे हुए चावल, मिलावटी सरसों के तेल और नकली वेजिटेबल्स से बनी चीजें खाने से ही यह रोग पैदा होता है, किसी-किसी का यह भी कहना था बहुत ज्यादा पानी बरसने से यह रोग पैदा होता है और यही इसका प्रधान कारण है। परन्तु इस रोग के मूल कारण का पता न लग सकने के कारण उस समय एलोपैथ चिकित्सक बड़ी गड़बड़ी में पड़ गए थे। उनके इंजेक्शन के प्रयोग से भी कुछ विशेष लाभ न हुआ। होमियोपैथी में कारण जाने बिना जाने भी केवल लक्षणों के आधार पर सब तरह की बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। यही कारण है कि उस मारात्मक बहुव्यापक रोग की चिकित्सा में होमियोपैथी को बहुत सफलता मिली। मैंने खुद एपिस, आर्सेनिक, कैलि फॉस, एपोसाइनम, क्रेटिगस, डिजिटेलिस, नेट्रम सल्फ, लैथाइरस, -इन कई दवाओं के सहारे चिकित्सा करके बहुत से बेरी-बेरी के रोगी ठीक किये हैं। बेरी-बेरी रोग का चरित्रगत लक्षण है – बहुत कमजोरी, पैर फूलना और कलेजा धड़कना। जहाँ सूजन के साथ हृत्पिण्ड पर भी बीमारी का दौरा हो वहाँ एपोसाइनम Q और 200 शक्ति और जहाँ हृत्पिण्ड में कोई गड़बड़ी न हो, केवल कमजोरी व सूजन ही एक प्रधान उपसर्ग हो वहाँ एपिस और लैथाइरस आदि का प्रयोग करना चाहिए।

क्रम – 3x से 6 शक्ति।

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