Leucorrhoea Treatment In Homeopathy – श्वेत प्रदर

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इस रोग में रोगिणी की योनि से एक प्रकार का स्राव निकलता रहता है जो प्रायः सफेद रंग का होता है लेकिन यह स्राव पीला, नीला, काला या लाल भी हो सकता है । कुछ व्यक्ति लाल रंग के स्राव को रक्त-प्रदर भी कहते हैं । इस रोग में कमजोरी, सिर-दर्द, आलस्य, भूख न लगना, पीठ में दर्द, शरीर में खून की कमी हो जाना, बेचैनी आदि लक्षण प्रकट होते हैं । यह रोग मुख्यतया गन्दे रहने, अधिक भोग-विलास, पौष्टिक भोजन का अभाव, मासिक के विकार, शारीरिक श्रम का अभाव, कम आयु में विवाह हो जाना, ठण्ड लग जाना आदि के कारण होता है ।

पल्सेटिला 30- यह समस्त प्रकार के प्रदर रोग में लाभकर है । इसकी रोगिणी मोटी तथा सहानुभूति की भूखी होती है ।

सीपिया 200- योनि से ऐसा प्रदर आये जो आस-पास की त्वचा छील दे, वहाँ खुजली मचती रहे, तलपेट में भार का अनुभव हो, भीतरी अंगों के बाहर निकल पड़ने की अनुभूति हो- इन लक्षणों में देवें ।

हाइडैस्टिस कैन 30- पीला अथवा लालिमायुक्त स्राव आये जो गाढ़ा हो तथा जलन उत्पन्न करता हो ।

एल्युमिना 30- स्राव निकलते समय जलन हो, स्राव इतनी अधिक मात्रा में आये कि टाँगों तक बहने लगे- तब लाभ करती है ।

बोविस्टा 12, 30- अण्डे की सफेदी जैसा प्रदर, रोगिणी को अपना सिर बढ़ा हुआ तथा भारी प्रतीत हो ।

सल्फर 30- पुराने रोग में इस दवा को देने से रोगी को निश्चय ही आराम आ जाता है ।

ग्रेफाइटिस 30- रोगिणी मोटी हो, गोरे रंग की हो, स्राव में जलन हो, पेडू व कमर में दर्द हो तो लाभप्रद है ।

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