Kutki ( Picrorhiza kurroa ) का उपयोग और लाभ

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Katuki (Picrorhiza kurroa) एक जड़ी बूटी है। जिसे हिंदी में आम तौर पर ‘कुट्टी’ और संस्कृत में इसे ‘कुटकी’ के नाम से जाना जाता है।
कुटकी में एक कड़वा सिद्धांत होता है, जो अणुओं का मिश्रण होता है जिसे इरोओइट, ग्लाइकोसाइट्स और पिकोसाइट्स के रूप में जाना जाता है। पिकोसाइट्स को कुटकोसाइट्स भी कहा जाता है और समग्र मिश्रण को कुटकिन या पिकरोलिव कहा जाता है। कुल मिला कर यह सक्रिय घटक है।
कुटकी मुख्य रूप से पुराने बुखार, त्वचा के विकार और मधुमेह के इलाज में उपयोग की जाती है। इसका उपयोग पंचकर्मा प्रक्रिया में भी किया जाता है। कुटकी का पेड़ हिमालय क्षेत्र में कश्मीर से लेकर सिक्किम मेंं 2700 से 4500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह समुदाय से बहुत दूर पाया जाता है और इसके बढ़ते आवास पर जाने के लिए कई घंटों से लेकर कई दिन भी लग जाते हैं।

कुटकी चम्मच के आकार की तरह एक छोटी जड़ी बूटी होती है। इसकी पत्तियां 5-15 से.मी लंबी होती हैं। इसकी पत्तियां एक पंख वाले डंठल से संकुचित होती हैं। इसके पौधे के rhizomes 15 से 20 से.मी लंबे होते हैं। इसके फूल छोटे, पीले और बैंगनी नीले होते हैं जो सिलेंडरिक स्पाइक्स में पैदा होते है। फूलों की उपज, आम तौर पर पत्तियों की तुलना में लंबी होती है। इसके पौधों की पत्तियां फ्लैट और अंडाकार होती है। इसके पौधे जून-अगस्त के महीने में दिखाई देते हैं।

कुटकी को सहयोगी यकृत और ऊपरी श्वसन मार्ग के विकारों का इलाज करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह जड़ी बूटी स्वाद में अत्यंत कड़वी होती है। और इसकी पैदावार चट्टानी और रेतीली मिट्टी पर होती है। इसका पौधा शांत और नम जल वायु में तेजी से बढ़ता है। बलुई मिट्टी इसके विकास के लिए सबसे अच्छी होती है। इसे छिद्रित मिट्टी पर परतों की आवश्यकता होती है, जो नीचे के rhizomes क्षैतिज फैलाने की सुविधा प्रदान करता है और जो नोड्स से हवाई अंकुरित पैदा करता है। यह पौधा छायांकृत स्थानों को पसंद करता है।

रोपण स्टॉक शुरू में रोपण के माध्यम से उठाया जा सकता है। लेकिन राइजोम के माध्यम से भी प्रचारित किया जा सकता है। अगस्त-सितंबर में नर्सरी बढ़ाने के लिए बीज एकत्र किए जा सकते हैं। लगभग 6 महीने की अवधि के लिए बीज की व्यवहारियत 60% से अधिक है।

कुटकी की संरचना

सूखे राइजोम स्टेम में कुटकीन एक प्रकार का ग्लूकोसाइट होता है। कुटकिस्ट्रोल, इसमे मौजूद अत्यंत कड़वा यौगिक है।

इस जड़ी बूटी को कहां और कैसे रखा जाए?

कुटकी गर्मी के प्रति संवेदनशील है। यह बहुत आसानी से घटता है। इसलिए इसे संग्रहित करते समय उच्च सावधानी की आवश्यकता होती है। 50 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर इसे भंडारित किया जा सकता है। इस से यह 6 महीनों तक ज्यादा खराब नहीं होती है।

कुटकी के विभिन्न नाम

कटुकी को अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इनमें से कुछ इस प्रकार है:-

लैटिन भाषा में – Picrorhiza kurroa

संस्कृत भाषा में – Katuki, Katu Rohini, Katvi, Katumbhra

अंग्रेज़ी भाषा में – Picrorhiza, Hellebore, Yellow gentian

हिंदी भाषा में – Kutki, Katuka

गुजरती भाषा में – Kadu, Katu

बंगाली भाषा में – Katuki, Katki

मलयालम भाषा में – Kadugu Rohini

पंजाबी में – Kaundd, Kaud, Karru

तेलुगु में – Katuka Rohini

मराठी में – Kali Katuki,

उर्दू में – Kutki

अरब और फ़ारसी में – Kharabake

ओरिया में – Katuki

कन्नड़ में – Katuka rohini

चीनी में – Hu Huang Lian के नाम से जाना जाता है।

कुटकी के औषधीय उपयोग

कुटकी के बहुत से औषधीय उपयोग हैं जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं –

  • कुटकी को दूध में मिला कर गठित किया जाता है फिर इसमें पर्याप्त मक्खन मिला कर बुखार में बच्चों को दिया जा सकता है।
  • कुटकी में यष्टिमधु को बराबर मात्रा में मिला कर (कुल 10 ग्राम), उसमे चीनी को पीस कर उसे भी पर्याप्त मात्रा में मिला कर इसका एक पेस्ट बनाया जाता है। जो अम्लता और दिल की जलन को दूर करता है।
  • अतिविशा, चंदाना और कुटकी को बराबर मात्रा में मिला कर इसका एक पेस्ट बनाया जाता है, जो त्वचा रोगों से पीड़ित मरीजों को नियमित रूप से दिया है जाता है।
  • यकृत विकारों में कुटकी एक उत्कृष्ट जिगर सुरक्षात्मक दवा है। जिस व्यक्ति को जिगर से जुड़ी कोई भी शिकायत है तब वह कुटकी और चिराता को बराबर मात्रा में मिला कर एक काढ़ा बनाये और इसे दिन में दो बार पीए।
  • कुटकी की जड़ी बूटियाँ मलेरिया में भी लाभदायक होती हैं। मलेरिया में इसे चिरायता, हरीतकी (फल) को बराबर मात्रा में लेकर एक काढ़ा बनाया जाता है जिसमे पर्याप्त मात्रा में गुड़ और किशमिश मिलाया जाता है। ये काढ़ा अगर मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति पियेगा तो उसे तुरंत लाभ होगा। ये काढ़ा हर हल्के रोचक के रूप में काम करता है और शरीर को पूरी तरह से detoxified करता है।
  • एनीमिया में भी कुटकी का काढ़ा बहुत मुफीद है। एनीमिया में कुटकी का काढ़ा बना कर पिया जाए तो यह कम हुए रक्त को बढ़ाने और एक कायाकल्प के रूप में काम करता है। किसी भी छिद्र से अत्यधिक खून बहने के कारण यह विशेष रूप से एनीमिया में उपयोगी होता है।ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और साइनसाइटिस में कुटकी को घरेलू उपचार के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
  • यदि अगर आप अपचन से पीड़ित हैं तो कुटकी इसमे बहुत उपयोगी है। ये गैस्ट्रिक रस के स्राव को बढ़ाता है। यह भूख में सुधार करता है। यह पेट को मजबूत करता है और अपचन के विभिन्न कार्यों को बढ़ावा देने में मदद करता है।

कुटकी का उपयोग सामग्री के रूप में निम्नलिखित आयुर्वेदिक दवाओं में होता है :-

महायोगराज गुग्गुल

इसका मुख्य रूप से तब उपयोग किया जाता है जब आप त्वचा से सम्बंधित विकारों का सामना करते हैं।

Mahatiktaka Ghrita

यह एक हर्बल दवा है। इस दवा का प्रयोग त्वचा रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है।

सरिवाद्यासव

इस किण्वित तरल दवा द्वारा मधुमेह या त्वचा विकार ठीक हो जाते हैं।

आरोग्य योगिनि वटी

त्वचा की बीमारियाँ, यकृत और बुखार आदि का इलाज इससे किया जाता है।

सुरक्षा और सावधानी पूर्वक उपाय

  • आप इस जड़ी बूटी का सेवन बहुत देखभाल के साथ करें यदि ऐसा न किया गया तो यह उल्टी, मतली और चकत्ते का कारण बन सकता है।
  • गर्भावस्था और स्तनपान कराने वाली महिलाएं इस जड़ी बूटी से बचें।
  • जब तक इस जड़ी बूटी का उचित ज्ञान न हो इस का सेवन न करें।

कुटकी की चिकित्सा शक्ति और उपचारात्मक गुण

कुटकी सभी पीथा-रक्त प्रमुख बीमारियों को शांत करता है। इसकी ठंडी शक्ति के कारण कुटकी जलती हुई सनसनी को राहत देने में मदद करती है। कुटकी से बाल चिकित्सा, बुखार, पाचन आग और कब्ज कम करने में मदद मिलती है। कुटकी जड़ी बूटी जिगर के काम में सुधार करती है और जिगर से जुड़ी अन्य प्रकार की बीमारियों में भी अत्यधिक फायदेमंद है।

कुटकी का दुष्प्रभाव

  • गर्भावस्था के दौरान इसका उपयोग करते समय इसकी सुरक्षा से संबंधित कोई ज्यादा जानकारी नहीं है इसलिए बेहतर है कि गर्भावस्था में इसे लेने से बचें।
  • ये जड़ी बूटी प्रतिरक्षा प्रणाली को बहुत मजबूत बनाती है। इसलिए आप को यदि एकाधिक स्क्लेरोसिस या ल्यूपस जैसी कोई भी शिकायत है तो इस जड़ी बूटी का सेवन करने से जरूर बचें।
  • ये जड़ी बूटी आप के शरीर में चीनी के स्तर को घटाती है। यदि आपको Diabetes की शिकायत है तो इसके सेवन के बाद आप के रक्त में चीनी के स्तर की जांच करें। अगर आप को लगता है कि आप के रक्त में चीनी का स्तर इस जड़ी बूटी के सेवन से कम हो रहा है तो इसे लेना तुरंत बंद करें।
  • अगर आप का किसी प्रकार का ऑपरेशन जारी है तो ऑपरेशन पूरा होने के दो हफ्ते बाद से ही आप इस जड़ी बूटी का सेवन करें।

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