पोलियो (पोलियोमेलाइटिस) का उपचार [ Polio Ki Dawa ]

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यह रोग बच्चों को एक छोटे से वाइरस के संक्रमण से हो जाता है। यह वाइरस बच्चों की स्पाईनल कार्ड (सुषुम्ना) की स्नायु के अन्दर और बाद में मस्तिष्क में पहुँच जाता है। इस वाइरस के बढ़ जाने पर मस्तिष्क की सेलें नष्ट होने लग जाती हैं। बच्चे को आरम्भ में ज्वर होता है। ज्वर, सिरदर्द, विभिन्न अंगों में दर्द, नजला, जुकाम और पाचनदोष हो जाते हैं। कुछ दिनों के बाद यह लक्षण दूर हो जाते हैं, परन्तु 7-8 दिनों के बाद पोलियो के लक्षण प्रकट होने लग जाते हैं। ज्वर, कै, दस्त, बेचैनी, दर्द, मस्तिष्क के पर्दे में खराश होने लग जाने से रीढ़ की हड्डी अकड़ जाती है, जिससे बच्चे को बैठकर घुटने तक मुँह ले जाने में बहुत दर्द होता है । मूत्राशय में दोष आ जाने से मूत्र रुक जाता है अथवा थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कष्ट से आता है । थोड़े दिनों के बाद ये लक्षण भी दूर हो जाते हैं, ज्वर उतर जाता है। परन्तु बच्चे की टाँगों या हाथ की गतिविधियों में दोष आ जाता है। रोग के लक्षण शुरू होने के 2 से 5 दिनों में उसके हाथों या टाँगों में पक्षाघात के लक्षण प्रतीत होने लग जाते हैं। तीन दिन तक यह रोग बढ़ता रहता है। तब रोग शुरू होने के 7-8 दिन बाद रोगी की अवस्था सुधरने लग जाती है। पक्षाघात में टाँगों या बाजुओं की मांसपेशियाँ ढीली पड़ जाती हैं । बाद में इन अंगों के माँस व पेशियाँ सूखने लग जाती हैं। परन्तु कई शिशुओं का रोग धीरे-धीरे घटने भी लग जाता है। सेरीब्रो स्पाईनल फ्लुइड (C. S. F. – सुषुम्ना के तरल) में अन्तर आ जाता है और उसकी परीक्षा करने पर इसमें इस रोग के वाइरस पाये जाते हैं। यह रोग सुषुम्ना के भूरे अंश वाले, भाग में वाइरस के संक्रमण और शोथ हो जाने से उत्पन्न हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप (उचित चिकित्सा के अभाव में) शिशु या बच्चे का हाथ अथवा पाँव अथवा दोनों अंग हिलने-डुलने और चलने-फिरने के अयोग्य हो जाते हैं ।

पोलियो की एलोपैथिक चिकित्सा

• मुख द्वारा प्रयोग करने की ओरल लिव पोलियो वैक्सीन (यह 5 मि.ली. के वायल में बाजार में उपलब्ध है) इसकी मात्रा तीन बूंद दें।

• पोलियो मायटिस ट्रीवेलेन्ट (ओरल) वैक्सीन – इसका कोर्स तीन मात्राओं का है। प्रत्येक मात्रा 4 सप्ताह के बाद पिलाई जाती है । चौथी मात्रा 1 वर्ष के बाद सेवन कराई जाती है। तीन बूंद वैक्सीन प्रत्येक बार मुख द्वारा दी जाती है। यदि बच्चा माँ का दूध पीता हो तो उसको माँ का दूध बन्द करके बोतल से दुग्धपान करायें ।

• जब यह रोग किसी नगर में महामारी के रूप में फैल रहा हो तो ज्वर होते ही शिशु को लिटा दें । उसे चलने-फिरने से रोक दें ।

• सिनरमायसिन (फाईजर कोम्पनी) – बच्चों को चौथाई से आधा कैपसूल खाण्ड या मधु में मिलाकर 6 से 12 घण्टे के अन्तराल से चटायें ।

• सुबामायसिन (डेज कम्पनी) – व्यस्को को 250 मि.ग्रा. का 1 कैपसूल प्रत्येक 4-6 घण्टे बाद सेवन करायें । शिशुओं को चौथाई से आधी कैपसूल मधु या फलों के रस में मिलाकर दिन में 2-3 बार चटायें ।

• बेरिन अर्थात् विटामिन बी-1 (ग्लैक्सो कम्पनी) 10 मि.ग्रा. की 1 टिकिया और विटामिन बी काम्पलेक्स विथ बी-12 (टी. सी. एफ.) 1 टिकिया । दोनों को पीसकर 4 मात्राएँ बनाकर प्रत्येक 4-4 घण्टे पर फलों के रस या दूध में मिलाकर पिलायें ।

• तीव्र दर्द होने पर कोड्रल (बरोज बेलकम) या कोडोपायरिन (ग्लैक्सो) आधी टिकिया, सेलिन (विटामिन सी) (ग्लैक्सो कम्पनी) 500 मि.ग्रा. 1 टिकिया मिलाकर दर्द के समय दें ।

• फेराडोल (पार्क डेविस) अथवा शार्क लिवर ऑयल आधा से 1 चम्मच तक दूध में मिलाकर पिलायें ।

• बेटुल ऑयल की बच्चे की रीढ़ की हड्डी पर और पोलियोग्रस्त अंगों पर मालिश करें । मालिश करना और बिजली से चिकित्सा भी लाभकारी है । मैडीक्रीम (रैलीज कम्पनी) की बच्चों की रीढ़ की हड्डी और पोलियोग्रस्त अंगों पर मालिश करना भी लाभकारी है । इसी प्रकार रिलैक्सील (फेन्क्रो इण्डियन कम्पनी) की मरहम का प्रयोग भी लाभप्रद है तथा डोलोपार आयण्टमेण्ट (माइक्रो लैब्स) या इयुथेरिया बाम (बी. सी. कम्पनी) की भी मालिश करना लाभकारी है ।

• कैम्पीसिलीन ड्राई सीरप (कैडिला कम्पनी) का तथा डेलामिन कैपसूल (एच. ए. एल. कम्पनी) का प्रयोग भी आयु तथा रोगानुसार परम लाभकारी है।

नोट – पेनिसिलीन के अतिसुग्राही रोगियों में इनका प्रयोग न करें ।

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