Retention Of Urine Treatment – मूत्र रुक जाना

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जबकि मूत्र-ग्रन्थियों से चला हुआ मूत्र मूत्राशय में तो पहुँच जाये पर मूत्राशय से बाहर न निकल पाये तो उसे मूत्र-रोध कहा जाता है ।

पेशाब रुकने पर- सॉलिडेगो वर्ज Q- यदि पेशाब रुक गई हो या कैथेटर के बिना न होती हो तो ऐसी स्थिति में इस दवा की 5-6 बूंद आधे कप पानी में देने से पेशाब आसानी से, बिना कैथेटर के होने लगती है ।

पेशाब का रुक-रुककर आना- सैबाल सेरुलेटा Q और इक्विजिटम – 30 -अगर किसी व्यक्ति को पेशाब रुक-रुककर आता ही और इसका कोई स्पष्ट कारण भी समझ में न आये तो इन दोनों में से कोई एक दवा देनी चाहिये। कुछ चिकित्सक दोनों दवाओं को पर्याय-क्रम से लेने को भी कहते हैं और उनके अनुसार ऐसा करने से जल्दी लाभ होता हैं ।

पेशाब कम व जलन के साथ- कैन्थरिस 6, 30- यदि पेशाब रुकती हो, बूंद-बूंद हो तथा पेशाब करते समय अत्यधिक जलन हो तो ऐसी स्थिति में यह दवा देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं । इस दवा की क्रिया विशेष रूप से मूत्र-यंत्रों पर होती है तथा जलन के लिये यह एक अचूक औषधि है- ऐसा अनेक चिकित्सकों का अनुभव है ।

मूत्र-रोध में उत्तम दवा- कोलियस एरोमेटिकस Q- यह भी मूत्र-रोध की अच्छी दवा है । इसके मूल अर्क की 10 से 20 बूंद मात्रा आधे कप पानी में मिलाकर रोगी को पिलाने से स्वाभाविक मूत्र-त्याग होने लगता है। यदि पाषाणभेद या हिमसागर (जिससे यह दवा बनती है) के पत्तों को पीसकर मूत्राशय पर लगाया जाये तो रोगी को शीघ्र पेशाब हो जाती है ।

पेशाब का कम होना या एकदम रुक जाना- एकाइरेंथस एस्पेरा 30 – यह लटजीरा से बनती है । इसे गुर्दे की गड़बड़ी या पेशाब के परिमाण में कम होने या एकदम रुक जाने पर प्रयोग किया जाता है ।

पेशाब रुक जाने की प्रमुख दवा- ओपियम 30- कोई भी रोग, जिसका कारण न मालूम हो या फिर सुनिर्वाचित दवा अपना प्रभाव न दिखलाये, ऐसी स्थिति में पेशाब रुकने पर यह दवा देना उचित है । शरीर के अवयव जब शिथिलावस्था में अपना कार्य करना बन्द कर देते हैं जिसके कारण भूख न लगे, शौच बन्द हो जाये और पेशाव न उतरे तो ऐसी स्थिति में ओपियम 30 दिन में दो बार कुछ दिनों तक देते रहें, जब शरीर पर इसका निश्चित प्रभाव दिखने लगे, दवा देना तुरन्त बन्द कर देना चाहिये ।

अनुभव- इस सम्बन्ध में मेरी स्वर्गीया माताजी का एक प्रकरण यहाँ देना मैं उचित समझता हूँ । मेरी माताजी को मधुमेह व उच्च रक्तचाप की बीमारी थी, इसी मध्य उन्हें कब्ज की भी शिकायत रहने लगी थी । एलोपैथी के बड़े-बड़े चिकित्सक दवायें दे रहे थे । उस समय मैं अध्ययन हेतु बाहर रहता था, अतः जब कभी घर आता उन्हें होमियोपैथी की दवायें दे दिया करता था । इसी मध्य माताजी को पागलपन के दौरे पड़ते तो वे क्रोध में सांमान तोड़तीं व भाइयों को परेशान करतीं । शक्कर की मात्रा जब अधिक बढ़ जाती तो वे अचेत हो जातीं । एक बार तो वे कई दिनों तक बिस्तर में पड़ी रहीं व डॉक्टरों ने कह दिया कि ये अब नहीं बचेंगी । मैं जब घर लौटा तब मुझे मालूम हुआ कि माताजी को कई दिनों से शौच व पेशाब नहीं हुई, शरीर ठंडा-सा था । मैंने अनेक दवायें उनके लक्षणानुसार दीं, फिर शरीर की क्रिया करने के लक्षणों पर ध्यान देते हुए ओपियम 200 की दोतीन खुराकें दीं । इससे उन्हें पानी की तरह दस्त हुए व खुलकर पेशाब हुई, इस दवा को देने पर वही निर्देशित लक्षण सामने आ रहे थे जो मेटेरिया मेडिका में दिये थे । दस्त और ऐसी गिरती स्थिति को देखकर मुझसे मेरे बड़े भाई ने कहा कि अब माताजी नहीं बचेंगी । परन्तु मुझे पूरे परिणाम (मेटेरिया मेडिका के अनुसार) मिल रहे थे, इसलिये मैंने पूरे विश्वास व अधिकार से कहा- ‘नहीं ! माताजी का स्वास्थ्य कल से पूरी तरह से ठीक हो जायेगा और वे लम्बे समय तक जीवित रहेंगी ।’ दूसरे दिन से हालत में सुधार होने लगा । इसी मध्य मैंने ओपियम पूरी तरह से बन्द कर दी थी । हम लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब माताजी का स्वास्थ्य ऐसा सुधरा कि वे पाँच वर्षों तक जीवित तो रहीं ही, साथ ही उनका पागलपन, सामान तोड़ना, भाइयों को परेशान करना, क्रोधित होना जैसे लक्षण पूरी तरह से गायब हो गये थे । अब माताजी पूरी तरह शान्त व खुश रहा करतीं, जब तक वे जीवित रहीं- मधुमेह व उच्च रक्तचाप की बीमारी तो यथावत चलती रहीं। अतः जब कभी शरीर के अंग अपना कार्य न करें या शिथिल पड़ जायें तब अफीम से बनी इस दवा का प्रयोग अवश्य करना चाहिये ।

मूत्रद्वार की शिथिलता के कारण पेशाब का रुक जाना- प्लम्बम मेट 30, 200– शिथिलता के कारण यदि मूत्र रुक गया हो तो ऐसी स्थिति में प्लम्बम मेट दें । डॉ० केन्ट ने एक रोगिणी को, जो बेहोश पड़ी थी और उसकी पेशाब रुक गई थी, उसे प्लम्बम मेट 200 की एक मात्रा दी- इससे उसे होश आ गया और उसकी पेशाब भी आने लगा । अतः जब शिथिलता की वजह से पेशाब रुकी हो तो यह दवा देना उचित है । डॉ० सत्यव्रत ने इसी संदर्भ में अपनी पुस्तक में लिखा है कि प्लम्बम- शिथिलता चाहे मन की हो या शरीर की- सभी पर अच्छा कार्य करती है । ‘शिथिलता’ इस दवा का प्रधान लक्षण है । इसी शिथिलता को ध्यान में रखकर कुछ चिकित्सक इस दवा का प्रयोग लकवा या अंग-शिथिलता की बीमारियों में भी करते रहे हैं और उन्हें इसके अच्छे परिणाम भी मिलते रहे हैं ।

 

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