लाल बुखार का इलाज [ Scarlet Fever Treatment In Hindi ]

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इस बुखार में रोगी को एकाएक ज्वर होकर गला सूज जाता है। दूसरे दिन समस्त शरीर पर (विशेषकर कानों के पीछे, गर्दन और छाती पर) लाल धब्बे उत्पन्न हो जाते हैं । यह तीव्र ज्वर स्ट्रेप्टो कोक्कस कीटाणुओं के संक्रमण से हो जाता है। इसमें रोगी को तीव्र ज्वर होता है, सिर में तीव्र दर्द, कै (वमन) गला दुखना और त्वचा में भूसी उतरने लग जाना, गले का रंग भी लाल हो जाना, जीभ सफेद और उस पर लाल उभार हो जाना, ज्वर के कारण हृदय 110 से 140 बार प्रति मिनट धड़कने लग जाना इत्यादि लक्षण प्रकट होते हैं । समय पर उचित चिकित्सा के अभाव के फलस्वरूप कान के अन्दर सूजन, जोड़ों का दर्द और सूजन, वृक्क-शोथ (नेफ्राइटिस) जैसे अन्य भयानक रोग तक हो सकते हैं ।

लाल बुखार का एलोपैथिक चिकित्सा

• 103 डिग्री फारेनहाईट से अधिक ज्वर होने पर मामूली गरम पानी से स्पंज डुबोकर और निचोड़कर शरीर पर मलें ।

• गले में शोथ व दर्द को दूर करने के लिए 600 मि.ग्रा. पोटाश क्लोरास 60 से 90 मि.ली. जल में घोलकर गरारें करायें, तदुपरान्त बोरो ग्लिसरीन लगे रुई की फुरेरी से गले में लगायें ।

• गर्दन के दर्द को दूर करने के लिए उस पर गरम टकोर करके गरम रुई बाँधे। प्रोकेनपेनिसिलिन (P.P.F.) 4 लाख यूनिट का इन्जेक्शन सुबह-शाम मांस में लगायें। रोग कम हो जाने पर 24 घण्टे में एक बार इन्जेक्शन लगाना काफी है ।

• वयस्क रोगी को बेक्ट्रिम (रोश) 1-1 टिकिया 12-12 घण्टे बाद दिन में दो बार एक गिलास जल से खिलायें ।
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• टेरामायसिन कैप्सूल (फाईजर कम्पनी) और सेप्ट्रान टिकिया (वरोज वेल्कम) 2-2 टिकिया प्रत्येक 5-6 घण्टे बाद खिलायें । रोग तीव्र होने से बच्चा कमजोर हो जाने पर स्कारलेट फीवर में एंटी टॉक्सिन सीरम 12 हजार यूनिट का मांसपेशी में इन्जेक्शन लगायें।

• औरियो मायासिन कैप्सूल (सायनेमिड) – वयस्कों को एक कैप्सूल दिन में 4 बार दें । साथ ही रूब्राप्लेक्स एलिक्जिर (साराभाई कम्पनी) 5 से 10 मि.ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में दो बार पिलायें ।

• होस्टा सायक्लिन 500 (हैक्स्ट कंपनी) – एक टिकिया दिन में दो बार जल से दें साथ ही वीटाजाइम (ईस्ट इण्डिया) 5 से 10 मि.ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में दो बार पिलायें ।

• लिनेमेदद 333 या 500 (मर्करी कंपनी) – आवश्यकतानुसार 1-2 टिकिया प्रतिदिन कई मात्राओं में बाँटकर दें । नोट – वृक्कों की विकृति में प्रयोग न करें ।

• मीठे फलों का रस, दूध और केवल पेय ही दें । ठोस भोजन बिल्कुल न दें।

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