यह मूत्रनली के प्रदाह, प्रोस्टेट-ग्लैंड के रोग, प्रमेह की ग्लीट वाली दशा, मिर्गी, हाइड्रोफोबिया व पागल जानवरों के काटने में उपयोग होता है। इसमें भोजननली में दबाव और जलन महसूस होता है, रोगी को ऐसा लगना की उसकी भोजन वाली नली सिकुड़ गई है। अलग-अलग भागों में गरम महसूस होना । स्पाइरिया में सैलिसिलिक अम्ल पाया जाता है ।
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