Symphytum का व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) टूटी हुई हड्डी को जोड़ने में सहायक – होम्योपैथी में टूटी हुई हड्डयों को जोड़ने तथा हड्डयों के ऊपर आवरण (अस्थि-परिवेष्टन-Periosteum) पर चोट लगने पर उसे ठीक करने में Symphytum औषधि के चमत्कारी प्रभाव का अनेक स्थानो पर उल्लेख पाया जाता है। डॉ० हेरिंग ने एक ऐसे रोगी का उल्लेख किया है जिसके गिर जाने से जांघ की हड्डी टूट गई थी। उसे Symphytum 4 प्रति छः घंटे दिया जाता रहा और 20 दिन में उसकी हड्डी जुड़ गई। हड्डी टूट जाने पर उसको अगर अपने स्थान पर ठीक-से बैठा दिया जाय, तो बाकी काम Symphytum पर छोड़ा जा सकता है।
(2) हड्डी जुड़ जाने के बाद भी उस स्थान पर दर्द बने रहना – अगर हड्डी टूटने के बाद जुड़ जाय, और टूटे स्थान में आराम होने के बाद भी दर्द बना रहे, तो इस से ठीक हो जाता है। यह दर्द चुभता-सा अनुभव हुआ करता है।
(3) आँख पर बच्चे की मुट्ठी से चोट – अगर बच्चे की मुट्ठी से मां की आँख पर चोट लग जाय, तो भी इस से आराम हो जाता है। संक्षेप में, हड्डी पर या अस्थि-परिवेष्ठन पर जहां-कहीं भी चोट लगे, वहां इससे लाभ होता है। अगर कहीं भी, और किसी प्रकार भी हड्डी की चोट या हड्डी पर आघात हो, चाहे ऑपरेशन से ही क्यों न हो-ऐसी हालत में Symphytum औषधि का प्रयोग करने से लाभ होता है। होम्योपैथी में चोट में अनेक औषधियां हैं, प्राय: सब के लक्षण मिलते-जुलते हैं, किसी प्रकार की चोट में भी प्रत्येक औषधि थोड़ा-बहुत तो असर कर ही देती है, परन्तु फिर भी उनके भिन्न-भिन्न लक्षणों के आधार पर औषधि का चुनाव विशेष लाभ करता है।
चोट आदि लक्षणों में मुख्य-मुख्य औषधियाँ
आर्निका – इसका प्रभाव रूधिर की नाड़ियों और मांस-पेशियों की चोट पर विशेष होता है। शरीर की मांस-पेशियां इतनी दुखती हैं कि रोगी किसी को छूने के लिये पास नहीं आने देता। शारीरिक तथा मानसिक आघात में मांस-पेशियों-पुट्ठों-से सीमा से अधिक काम लेने पर उन में दर्द होने में इस से लाभ होता है। इसकी मात्रा मुंह में ली जाती है। बाहर अगर टिंचर का प्रयोग करना हो, तो तभी करना चाहिये अगर त्वचा कहीं से कटी न हो। कटी त्वचा पर इसका प्रयोग करने से सूजन हो जाती है।
कलैंडुला – यह गेंदे का नाम है। यह कटे हुये स्थान को सेप्टिक नहीं होने देता। खुले जुख्म पर-चाहे कहीं हो-इसके लोशन में गाज डुबोकर बांध देने से जख्म सड़ने नहीं पाता, उसमें पस नहीं पड़ती। प्रसव के बाद अपत्य-पथ में जख्म को इसके लोशन से धोने से जख्म नहीं बनता। चोट लगने की पहली हालत में इसका इस्तेमाल करने से वह स्थान पकता नहीं, उस में पस भी नहीं पड़ता। गले-सड़े घावों को इस से धोने से लाभ होता है। घाव पर मूल-अर्क से बना हुआ मरहम लगाया जा सकता है या गर्म पानी में मूल-अर्क डालकर उसे धोया जा सकता है। इस के साथ रोगी को शक्तिकृत कलैंडुला भी दे देना चाहिये।
हाइपेरिकम – शरीर के वे भाग जिन में स्नायु (Nerves) कट जाती या छिद जाती हैं, इस कटने-छिदने से दर्द करती हैं, उनका दर्द शान्त करने के लिये यह अमोघ औषधि है। कभी-कभी होंठ कट जाता है, अंगुलियों के अग्रभाग, जहां स्नायु बिछी हुयी हैं, उनमें चोट लग जाने पर इस से लाभ होता है। स्नायु-पीड़ा (Nerve-pain) में जब असह्य-दर्द होता हो, तब इस से लाभ होता है। मेरू-दण्ड की चोट, भले ही कितनी पुरानी हो, त्रिकास्थि की चोट-इन सब प्रकार की चोटों की दर्द में इस से लाभ होता है। हाइपेरिकम 200, शक्ति की दवा देते ही रोगी कहता है-ओह! दर्द तो गायब हो गया।
रूटा – यह भी सिमफाइटम की तरह हड्डियों की चोट तथा अस्थि-परिवेष्टन चोट में लाभ पहुंचाता है। सुई से काम करने, बारीक टाइप पढ़ने तथा आंख से ज्यादा काम लेने पर आँख के थकने आदि के कष्ट में यह लाभप्रद है। शक्ति 1 से 6 में प्रयुक्त होती है। आँख में इसका लोशन बना कर डाला जाता है।
अर्टिका युरेन्स – अगर त्वचा का कोई भाग जल जाय, दर्द होने लगे, तो इस से आश्चर्यजनक तौर पर तुरन्त लाभ होता है। अर्टिका युरेन्स टिंचर तथा निम्न-शक्ति की औषधि का प्रयोग होता है।
(4) शक्ति – सिमफाइटम के टिंक्चर का प्रयोग होता है।
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Sir MERI haddi feature ho gye this 3mah pahle or alophthic dvai CHL rhi to mein symphythm official le sakte hai
Yes you may take this medicine but you write details of your ht. your colour, your age your fear, anger etc and give all the answers asked to you.then appropriate medicine will be suggested to you for your better treatment.