खांसी ( Cough ) की 10 सबसे महत्वपूर्ण होम्योपैथिक दवा – Top 10 Homeopathic Medicine For Cough In Hindi

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अक्सर लोग Cough से बहुत परेशान हो जाते हैं, और इसके लिए Cough की टेबलेट, बलगम स‍िरप या सूखी Cough का बढ़िया घरेलू उपचार या बलगम वाली Cough की दवा को तलाशते हैं। कई लोगों को तो सालों से बलगम की समस्या बनी रहती है। बलगम वाली या सूखी Cough से पीड़ित रहते हैं। होमियोपैथी में Cough का सबसे अच्छा इलाज है, बस लक्षणों को समझने की जरुरत है, लक्षण के अनुसार अगर दवा पकड़ में आ जाये तो सालों पुरानी Cough जड़ से ठीक हो जाती है।

इस लेख में मैं 10 होम्योपैथिक दवा के बारे में बताऊंगा जिससे हर प्रकार की Cough ठीक हो जाती है। बस ध्यान से लक्षणों पर गौर कीजियेगा।

Rumex crispus 30 – सांस में जरा-सी भी ठंडी हवा के आने से गले में सुरसुराहट के साथ लगातार सूखी Cough छिड़ जाना – होम्योपैथी में ऐसी दूसरी कोई दवा नहीं है जिसमें ठंडी हवा का श्वास प्रणालिका पर इतना जबर्दस्त प्रभाव होता हो जितना रुमेक्स का होता है। रोगी अपने सिर को बिस्तर में ऐसे ढांप लेता है कि किसी कोने से भी ठंडी हवा सांस में न आने पाये। डॉ० चौधरी एक गर्भवती स्त्री की Cough का विवरण करते हुए लिखे हैं कि उसे ऐसी सूखी Cough थी कि खांसते-खांसते सारा जिस्म हिल जाता था, गर्भपात न हो जाय ऐसा भय लगता था। अनेक औषधियां जो उनके लक्षण से मिलती थी दी गई परन्तु कोई लाभ न हुआ। अन्त में, इस लक्षण पर कि वह ठंडी हवा बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, उसे रुमेक्स की कुछ मात्राएं दी गई और Cough जाती रही। जब भी उसे देखा गया वह अपने मुंह को कपड़े से ढांपे पड़ी होती थी और ठंडी हवा को सांस में लेने की परेशानी से बचने की कोशिश करती थी।

ठंडी सांस लेने से Cough के लक्षण में रुमेक्स, स्पंजिया और फॉस्फोरस की तुलना – ठंडी सांस लेने से Cough उभर आने का लक्षण रुमेक्स के अतिरिक्त स्पंजिया और फॉस में भी पाया जाता है, परन्तु रुमेक्स में यह सब से ज्यादा है। स्पंजिया की Cough में खांसने के समय सूखा हिस-हिस या आरे से लकड़ी को चीरने का-सा शब्द सुनाई देता है, फॉस में बाईं करवट सोने से Cough बढ़ जाती है।

रुमेक्स औषधि की Cough रात के 11 बजे छिड़ती है। 11 बजे Cough छिड़ने वाली दो हैं औषधियां – रुमेक्स तथा लैकेसिस है। बच्चा 11 बजे तक जागता रहे तो Cough न हो, किन्तु अगर जल्दी सो जाय तो 11 बजे Cough छिड़ जाय, ऐसी हालत में लैकेसिस औषधि है क्योंकि नींद में रोग का बढ़ना इसका लक्षण है। लैकिसस में बच्चा 11 बजे तक नहीं सोया तो Cough नहीं छिड़ी, सो गया तो 11 बजे Cough ने जगा दिया। रुमेक्स में तो बच्चा चाहे जागता रहे, चाहे सो-जाय, 11 बजे रात को उसे Cough आती ही है।

Antium tart 30 – फेफड़े में श्लेष्मा के जमा होने के कारण जब घड़-घड़ शब्द सुनाई देने लगे, बलगम भरा हो, परन्तु प्रयत्न करने पर भी वह न निकले, निकले तो अत्यंत थोड़ा, बच्चों तथा बूढ़ों के फेफड़ों की ऐसी अवस्था में ऐन्टिम टार्ट कभी-कभी रोगी को मृत्यु से खींच निकालता है। फेफड़े के हर प्रकार के रोग में जब छाती में बलगम भरा हो, घड़-घड़ करता हो, चाहे जुकाम हो, ब्रोंकाइटिस हो, क्रूप हो, खासी हो, न्यूमोनिया हो, प्लूरो-न्यूमोनिया हो, तब ऐन्टिम टार्ट प्रमुख औषधि का काम करती हैं। न्यूमोनिया में Cough का घट जाना उत्तम लक्षण नहीं है। यह बढ़ती हुई कमजोरी को सूचित करता है।

श्वास प्रणालिका के शोथ में, ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया आदि में शुरू में ब्रायोनिया, इपिकाक आदि औषधि से काम चल जाता है। सांस लेने में दर्द हो, दर्द की तरफ लेटने से आराम हो, Cough हो, तब ब्रायोनिया के लक्षण समझने चाहियें: न्यूमोनिया में श्लेष्मा के साथ घड़-घड़ शब्द हो और रोगी में श्लेष्मा को निकालने की ताकत हो, तब इपिकाक के लक्षण समझने चाहियें: श्लेष्मा के साथ घड़-घड़ शब्द हो परन्तु रोगी इतना निर्बल हो जाय कि बलगम को निकाल न सके, अन्दर ही घड़-घड़ करता रहे, तब ऐन्टिम टार्ट के लक्षण समझने चहियें। ऐन्टिम टार्ट की अवस्था बाद को आती है जब रोगी अत्यन्त कमजोर हो जाता है, बलगम को निकाल सकने की ताकत भी नहीं रहती।

श्लेष्मा न निकाल सकने पर बच्चों में कैलि सल्फ तथा बूढ़ों में ऐन्टिम टार्ट – अगर बच्चा सशक्त हो, कमजोर न हो गया हो, अगर उसके फेफड़ों का श्लेष्मा कमजोरी के कारण घड़-घड़ न करता हो, वह उसे निकाल सकता हो, तब कैलि सल्फ उत्तम औषधि है। बूढ़े लोगों में जिनका छाती का श्लेष्मा कमजोरी के कारण नहीं निकल पाता, ऐन्टिम टार्ट उपयोगी है क्योंकि कमजोरी इसका प्रधान लक्षण है। एकोनाइट, बेलाडोना, इपिकाक तथा ब्रायोनिया में रोग प्रबल वेग से आक्रमण करता है, इसलिये एकाएक रोग के वेग से आक्रमण होने पर ऐन्टिम टार्ट नहीं दिया जाता, ऐन्टिम टार्ट का रोग धीरे-धीरे, हल्का बुखार, ठंडा पसीना, शीत का अनुभव और अत्यंत शक्तिहीनता के साथ श्वास नालिका में श्लेष्मा की घड़घड़ाहट होना है। यह अवस्था वृद्धावस्था में विशेष रूप से पायी जाती है।

Bryonia 30 – श्लैष्मिक-झिल्ली की शुष्कता का असर फफड़ों पर भी पड़ता है। खांसते-खांसते गला फटने-सा लगता है, परन्तु बलगम भीतर से नहीं निकलता। ठंड से गरम कमरे में जाने से Cough बढ़ने में ब्रायोनिया और गरम कमरे से ठंडे कमरे में जाने से Cough बढ़े तो फॉसफोरस या रुमेक्स ठीक हैं। ब्रायोनिया की शिकायतें प्राय: नाक से शुरू होती हैं। पहले दिन छीकें, जुकाम, नाक से पानी बहना, आंखों से पानी, आंखों में और सिर में दर्द। इसके बाद अगले दिन शिकायत आगे बढ़ती है, तालु में, गले में, श्वास प्रणालिका में तकलीफ बढ़ जाती है। अगर इस प्रक्रिया को रोक न दिया जाय, तो प्लुरिसी, न्यूमोनिया तक शिकायत पहुंच जाती है। इन सब शिकायतों में रोगी हरकत से दु:ख मानता है, आराम से पड़े रहना चाहता है। श्वास-प्रणालिका की शिकायतों-जुकाम, Cough, गला बैठना, गायकों की आवाज का पड़ जाना, गले में टेटवे का दर्द आदि-में इस औषधि पर विचार करना चाहिये।

Drosera 30 – कुक्कुर खाँसी (Whooping cough) – हनीमैन का कथन था कि कुत्ता-Cough की यह मुख्य दवा है। रोगी भौं-भौं करके खांसता है, तारदार श्लेष्मा निकलता है। हनीमैन का कथन था कि कुत्ता-Cough में Drosera 30 शक्ति की एक मात्रा देने से सात-आठ दिन में रोग चला जाता है। उनका यह भी कहना था कि इस औषधि की दूसरी मात्रा नहीं देनी चाहिये क्योंकि इतना ही नहीं कि दूसरी मात्रा पहली मात्रा के असर को दूर कर देती है, अपितु रोगी को हानि भी पहुंचती है। इस Cough का विशेष प्रभाव श्वास-नलिका के ऊपरी भाग (Larynx) पर होता है, वहीं सरसराहट होती है, ज्यों रोगी सोने के लिये बिस्तर पर सिर रखता है कि Cough शुरू हो जाती है, ठंडी वस्तुओं के खाने पीने से यह Cough बढ़ जाती है।

Ipecacuanha 30 – इस औषधि में Cough के साथ मिचलाहट होती है, खांसते-खांसते कय भी आ जाती है। यह सूखी Cough होती है, जिसमें रोगी खों-खों करता है, इसमें रोगी का दम घुटने लगता है। बच्चों के ‘ब्रौंकाइटिस’ (श्वास-नली के शोथ) में इपिकाक का महत्वपूर्ण स्थान है, इसलिये इसे डॉ० कैन्ट ने बच्चों का मित्र कहा है। बच्चों के ब्रौंकाइटिस में प्राय: इसी की आवश्यकता पड़ती है। बच्चों को शुद्ध निमोनिया तो कम ही होता है, प्राय: श्वास-नालिका का शोथ-ब्रौंकाइटिस-हो जाता है, सांस से घड़घड़ की आवाज आती है। बच्चा खांसता है, उसका दम घुटता है, और कमरे में दूर से सांस में घड़-घड़ की आवाज आती है। रोग शुरू होते ही यह अवस्था आ जाती है। घड़-घड़ की आवाज ऐन्टिम टार्ट में भी आती है, परन्तु इनमें भेद यह है कि इपिकाक के लक्षण रोग शुरू होते ही दीखने लगते हैं, रोग शुरू होते ही घड़घड़ाहट और सांय-सांय शुरू हो जाती है, ऐन्टिम में यह अवस्था देर में, धीरे-धीरे प्रकट होती है; इपिकाक में शुरू में और ऐन्टिम में रोग ढलने पर, इपिकाक में एकदम, ऐन्टिम में क्रमश:, जब रोगी बलगम को निकालने में असमर्थ हो जाता है तब ऐन्टिम में अन्दर अटका हुआ बलगम घड़घड़ाता रहता है, मालूम पड़ता हैं जरा-सा ही खांसने से बलगम़ निकल आयेगा, परन्तु ज्यादा खांसने पर भी बलगम़ नहीं उठता। ऐन्टिम में Cough कम आती है परन्तु फेफड़े में बलगम़ ज्यादा जमा होता है – रोगी चुपचाप आंखें बन्द करके पड़ा रहता है। इपिकाक में ऐसा नहीं होता, इसका बलगम़ कुछ-कुछ निकलता रहता है।

Justicia 30 – इस मेडिसिन का हिन्दी नाम अडूसा है। प्रायः हर प्रकार की Cough के रोग में वैद्य की चिकित्सा और घरेलू चिकित्सा में इसकी छाल व पत्ता बहुतेरे गृहस्थ उपयोग में लाते हैं। सर्दी, खाँसी, ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया, थाइसिस की प्रथमावस्था में, रक्त-पित्त, ज्वर, स्वरभंग, इन्फ्लुएंजा के बाद की Cough में, हर साल जाड़े में होने वाली Cough इत्यादि में इससे विशेष फायदा होता है। शिशुओं की हूपिंग-Cough में – जहाँ पर खांसते-खांसते मानो जैसे शिशु का दम ही अटक जाता है, शरीर मानो कड़ा होते जाता है, शरीर का रंग नीला पड़ जाता है, कै होती है, वहाँ इसका व्यवहार करना चाहिए। उक्त रोग में एन्टिम टार्ट की तरह – छाती मानो सर्दी से भरी पड़ी है, गले में घड़-घड़ शब्द होता है, किन्तु खांसने पर मामूली सी सर्दी निकलती है, यह लक्षण रहने पर इससे अवश्य ही फायदा होगा। इसका रोगी थोड़े में ही गुस्सा हो जाता है, मिजाज अच्छा नहीं रहता।

Spongia 30 – इस औषधि का श्वास-प्रणालिका पर विशेष प्रभाव है। रोगी की आवाज बैठ जाती है, खुश्क Cough होती है, कुत्ते की तरह की भौं-भौं की-सी आवाज होती है जिसे ‘कुत्ता Cough’ कहते हैं। क्रूप Cough भी हो जाती है। क्रूप में सारी श्वास-नलिका-लेरिंग्स तथा ट्रेकिया-की सूजन हो जाती है, सांस रुक जाता है और श्वास-नलिका के भीतर श्लैष्मिक झिल्ली बन जाती है। जहां जीभ समाप्त होती है वहां से चलने वाली श्वास-नलिका को ‘लेरिंग्स’ कहते हैं, हिन्दी में इसे ‘स्वर-यंत्र’ कहते हैं। लेरिंग्स के आगे की श्वास-नलिका को ‘ट्रेकिया’ कहते हैं, हिन्दी में इसे ‘श्वास-नली’ कहते हैं। इनमें सूजन और झिल्ली पड़ जाने का रोग ‘क्रूप’ कहलाता है। इस रोग में खुश्क Cough होती है, झिल्ली पड़ जाने से सांस रुक-रुक कर आता है, छाती में भारीपन अनुभव होता है, प्राय: देखा जाता है कि अगर बच्चे को खुश्क ठंडी हवा लग जाय, तो उसी दिन रात के पहले हिस्से में ही उसे खुश्क Cough आ दबोचती है और पहली नींद में ही उठकर वह खांसने लगता है। ‘क्रूप’ के इस प्रकार ठंड लगते ही पहली रात में और पहली रात के भी प्रथम भाग में ही प्रकट होने के लक्षण में एकोनाइट दिया जाता है। स्पंजिया का ‘क्रूप’ ठंड लगने के पहली रात में ही नहीं उभर आता है। बच्चे को कल ठंड लगी या परसों लगी। परसों ठंड लगने के बाद आज उसे कुछ छीकें आयीं, नाक सूखने लगी, और फिर खुश्क Cough शुरू हो गई या कुत्ता-Cough जारी हो गई। इस प्रकार ठंड लगने के एक-दो दिन बाद आने वाली ‘क्रूप’ या ‘कुत्ता-Cough’ स्पंजिया के क्षेत्र में आ जाती है। एकोनाइट में ठंड लगने की पहली रात, और पहली रात के पहले हिस्से में Cough छिड़ती है; स्पंजिया में ठंड लगने के एक-दो दिन बाद, और मध्य-रात्रि के बाद के हिस्से में Cough छिड़ती है। अगर एकोनाइट से यह Cough ठीक होती होगी, तो पहले दिन ही ठीक हो जायेगी; अगर यह पहले दिन ठीक न हो, अगली रात फिर ‘क्रूप’ Cough आये, उससे अगले दिन फिर आये, तो एकोनाइट का क्षेत्र जाता रहता है, स्पंजिया का क्षेत्र आ जाता है। डॉ० नैश कहते हैं कि ‘क्रूप’ में Cough खुश्क होती है, सांय-सांय की आवाज आती है, ऐसी आवाज जैसी लकड़ी को आरे से चीरने के समय निकलती है बलगम का प्रत्येक ठसका आरे को धकेलने की-सी आवाज जैसा होता है। अनेक अनुभव के अनुसार एकोनाइट 30 या 200 की मात्रा से रोग का शमन हो जाता है, परन्तु अगर ऐसा न हो, रोगी का नींद से उठने पर दम घुटता प्रतीत होता हो, तो स्पंजिया देना आवश्यक हो जाता है। जब यह खुश्क ‘क्रूप’ तर हो जाय, बलगम ढीला पड़ जाय, और Cough प्रात:काल बढ़े, तब हिपर सल्फ का क्षेत्र आ जाता है। इस प्रकार क्रूप में पहले एकोनाइट, फिर स्पंजिया, फिर हिपर सल्फ देने की आवश्यकता पड़ सकती है। डॉ० नैश का कहना है कि अगर क्रूप के लक्षण शाम को बढ़े तो फॉसफोरस से लाभ होगा।

बोनिनघॉसन का क्रूप-Cough का नुस्खा – क्योंकि क्रूप-Cough एकोनाइट, स्पंजिया, हिपर सल्फ में से किसी से ठीक हो जाती है, और प्राय: शुरू में एकोनाइट से ही ठीक हो जाती है, उससे न हो तो स्पंजिया से ठीक हो जाती है, उस से भी नहीं तो हिपर से ठीक हो जाती है. इसलिये डॉ० बोनिंगघॉसन ने अपना एक रूटीन नुस्खा बना लिया था जिसे ‘बोनिंगघॉसन का क्रंप का नुस्खा’ कहा जाता है। वे तीन पाउडर दिया करते थे – एकोनाइट 200, स्पंजिया 200 तथा हिपर सल्फ 200 जिन्हें एक के बाद – दूसरा दिया जाता था। अगर इन से भी ‘क्रूप’ ठीक न हुआ, तब तीन पाउडर देने के बाद फिर स्पंजिया 200 और उसके बाद हिपर 200 देते थे। परन्तु इस का यह अभिप्राय नहीं है कि इस प्रकार एक के बाद दूसरा पाउडर दिया ही जाय। जिस औषधि के बाद रोग थम जाय उसके बाद अगली औषधि की मात्रा रोक देनी चाहिये।

Heper sulph 200 – आधी रात के बाद, सवेरे की तरफ और ठंडी हवा में रोग बढ़ जाना। हीपर की Cough कभी सूखी, कभी घड़-घड़, आवाज शुदा, कभी नरम और घड़-घड़ या सांय-सांय आवाज शूदा होती है। हीपर में श्लेष्मा इतना तरल रहता है कि ऐसा मालूम होता है जैसे खांसने से बाहर निकल जायेगा, किन्तु वह सहज में निकलता नहीं, खांसते-खांसते जी मिचलाने लगता है, पसीना होता है।

क्रूप Cough की पहली अवस्था में ऊँचा बुखार करीब 103-104 डिग्री, बेचैनी, चमड़ी सूखी, सांस और पसली में खिंचाव, गले में सांय-सांय आवाज, छाती में सर्दी बैठ जाना इत्यादि कई लक्षण रहें तो पहले Aconite 200 शक्ति की 1 मात्रा दें, इससे ज्वर और Aconite के चरित्रगत अन्य उपसर्ग दब जायेंगे। इसके बाद spongia 200 शक्ति की एक-दो मात्रा दें, इससे बलगम ढीला पड़ जायेगा। उसके बाद Hepar 200 शक्ति की एक मात्रा प्रयोग करें। बस, इतने ही से बीमारी में आराम हो जाएगी।

Causticum 30 – Cough बहुत सूखी आती है, ऐसा की सारा शरीर हिल जाता है, रोगी बलगम को बाहर निकालने की कोशिश करता है, निकाल नहीं पाता, वह इसे अन्दर ही निगल जाता है। खांसते हुए गले में, छाती में फोड़े के समान दर्द होता है। अगर इस Cough में ठंडे पानी का घूंट पीने से आराम पड़े, तो कॉस्टिकम ही दवा है। इस बलगम़ में लेटने से Cough बढ़ती है, और अद्भुत-लक्षण ये है कि खांसते हुए कुल्हे के जोड़ में दर्द होता है। इस औषधि में अनेक रोग- ठंडे पानी से आराम- इस ‘विलक्षण-लक्षण’ के आधार पर ही ठीक हो जाते है।

Senega 30 – वृद्ध-पुरुषों को परेशान करने वाली Cough में यह विशेष रूप से उपयोगी है जबकि छाती में अत्यधिक परिमाण में बलगम इकट्ठा हो जाता है, और खांसने में खड़खड़ या सांय-सांय शब्द निकलता है। डॉ० क्लार्क ने एक स्थूल-काय वृद्धा का, जो तपेदिक की मरीज थी और जिसके दोनों फेफड़ों में न्यूमोनिया का प्रभाव था, सेनेगा की कुछ ही मात्राओं से बलगम दूर कर दिया। उसे Cough के दौरे पड़ते थे और फेफड़ों से रक्त-मिश्रत बलगम निकलता था। वृद्ध-पुरुषों का यह खखार आसानी से नहीं निकलता, लसदार होता है, वायु-नली में जम जाता है, निकालने में तकलीफ होती है। दमे में भी इसी प्रकार की Cough आती है, लसदार बलगम होता है, भीतर से जमा हुआ। इस प्रकार के लसदार जमे हुए बलगम में कैलि बाईक्रोम भी लाभ करता है, बलगम भीतर से मुश्किल से निकलता है, लसदार और तारदार होता है। बलगम की घड़घड़ाहट में ऐन्टिम टार्ट भी लाभ करता है, ऐसा लगता है कि फेफड़ा बलगम से भरा पड़ा है, परन्तु बलगम आसानी से नहीं निकलता। वृद्ध-पुरुषों की श्लेष्माभरी Cough में सेनेगा बहुत अच्छा काम करती है।

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