जन्मांध होने के अलावा कुछ और ऐसी बातें भी हैं, जिनका ध्यान रखा जाए, तो अंधेपन के अभिशाप से बचा जा सकता है। मोतियाबिंद (कैटेरैक्ट), ग्लोकोमा (काला पानी)। अंधेपन का सबसे जिम्मेदार कारण है कुपोषण, जिससे होने वाले अंधेपन को जेरोफ्थेलमिया कहते हैं।
कुपोषण से होने वाली यह बीमारी अधिकतर विकासशील देशों में ही पाई जाती है। भारत में हर साल लगभग चालीस हजार बच्चे पूरी तरह और इससे दो गुने से भी अधिक आंशिक रूप से अंधेपन के शिकार हो जाते हैं। इस रोग का सर्वाधिक प्रकोप 1-2 साल के बच्चों पर होता है। लैटिन भाषा में जेरो का मतलब है सूखना और अफ्थेलमिया यानी आंख अर्थात् जेरोफ्थेलमिया का अर्थ हुआ आंख का सूखना।
दृष्टि के लिए सबसे जरूरी तत्त्व है विटामिन ‘ए’। विटामिन ‘ए’ एक ऐसा कार्बनिक मिश्रण है जो शरीर के लिए जरूरी तो बहुत है पर शरीर में स्वत: बनता नहीं है। इसकी आपूर्ति के लिए बाहरी खाद्य पदार्थों की सहायता लेनी पड़ती है। इस विटामिन की कमी से शरीर में बहुत से विकार हो जाते हैं, जिनमें प्रमुख है, आंखों की ज्योति खो बैठना इसके अतिरिक्त विटामिन ‘ए’ की कमी से त्वचा खुरदुरी हो जाती है, शरीर का विकास रुक जाता है, प्रतिरोधक शक्ति दिन-प्रतिदिन कम होती चली जाती है। ऐसी हालत में किसी भी रोग की छूत लगने की संभावना पैदा हो जाती है।
अतिसार जैसे साधारण रोग बार-बार होने पर शरीर से विटामिन निकल जाते हैं और एक कमी हमेशा बनी रहती है। इसी के साथ सही और समय पर उपचार न मिलने पर अंधापन भी हो जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि किसी रोग के हमला करने पर उसके उपचार के साथ-साथ विटामिन ‘ए’ उपयुक्त मात्रा में दिया जाता रहे, जिससे भविष्य में स्वास्थ्य ठीक ठाक बना रहे। विटामिन की अत्यधिक कमी होने पर मृत्यु भी संभव है।
इस बीमारी में आंख देखने से ही खुरदुरी लगती है, जिसे जेरोसिस कहते हैं।
विटामिन ‘ए’ की कमी के प्रारंभिक लक्षण स्वरूप रतौंधी होती है। इसमें शाम और रात में दिखना कम हो जाता है। छोटी उम्र में ही बच्चों को प्रभावित करने वाले इस रोग में पहले श्लेष्मा या कंजक्टाइवा में बिटांट स्पांट नामक स्लेटी, मटमैले से धब्बे दिखाई देते हैं। यदि इस समय विटामिन ‘ए’ की कमी की पर्याप्त आपूर्ति नहीं को जाए, तो कार्निया प्रभावित होना शुरू हो जाता है। वह सूखकर खुरदुरा होने लगता है और उसमें घाव हो जाते हैं उसकी चमक भी जाती रहती है। पहले धुंधला दिखाई देता है, फिर कार्निया सफेद हो जाता है और फिर अंधेपन की नौबत आ जाती है। इस स्थिति के बाद आंखों की ज्योति लौटना मुश्किल होता है। फेफड़ों और पेट के रोगों में विटामिन ‘ए’ की कमी शीघ्र हो जाती है।
बचाव
जेरोफ्थेलमिया का मुख्य कारण है कुपोषण।यदि बच्चे को जन्म के बाद ही नहीं, बल्कि जन्म से पहले ही (गर्भ में) अच्छी खुराक मिलने लगे, तो जेरोफ्थेलमिया होगा ही नहीं। अत: गर्भवती महिलाओं को भरपूर विटामिनयुक्त पोषक खुराक मिलनी चाहिए। इससे गर्भस्थ शिशु की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।
जब बच्चा ठीक से खाने लगे, तो उसके खाने में हरी पतेदार सब्जियां, पीले रंग के फलं, दूध आदि का समावेश अवश्य करें।
नेत्र रोग होमियोपैथिक उपचार
मुख्य रूप से उक्त प्रकार के अंधत्व की शुरुआत में ये औषधियां कारगर रहती हैं -‘ओरममेट’, ‘सिनकोना’, ‘कोनियम’, ‘जेलसीमियम’, ‘मरक्यूरियस’, ‘फॉस्फोरस’, ‘प्लम्बममेट’, ‘साइलेशिया’, ‘टेबेकम’, ‘जिंकममेट’, ‘नेट्रमम्यूर’।
• वस्तुएं अपने आकार से अधिक बड़ी दिखाई पड़े – ‘हायासाइमस’, ‘आक्जेलिक एसिड’, ‘बोविस्टा’, ‘हिपर सल्फ’।
• वस्तुएं अपने आकार से बहुत छोटी दिखाई पड़े – ‘प्लेटिना’, ‘ग्लोलाइन’, स्ट्रामोनियम’ ।
बीथ्रीपस लेंसिचोलेट्स : अंधत्व, आंखों के अंदरूनी भाग, जहां चित्र बनता है (रेटिना) में रक्तस्राव होने के कारण अंधत्व, दिन में दिखाई नहीं देता, सूर्योदय के बाद रोगी को रास्ता तक दिखाई पड़ना बंद हो जाता है, कंजवटाइवा (आंखों की झिल्ली) में भी रक्तस्राव होता है। दाहिनी आंख ज्यादा प्रभावित होती है, तो पहले 6 × शक्ति में कुछ दिन औपधि सेवन करना चाहिए। लाभ होने पर कुछ दिन 30 शक्ति में भी औषधि लेनी चाहिए।
फाइसोस्टिग्मा : रोगी को रात में दिखाई नहीं पड़ता, रोगी किसी भी प्रकार रोशनी बर्दाश्त नहीं कर पाता, पुतलियों में संकुचन रहता है, आंखों को घुमाने वाली मांसपेशियों में ऐंठन, काला.मोतिया (ग्लोकोमा), वस्तु की सही दूरी का ज्ञान नहीं हो पाता, आंखों के प्रयोग से चिड़चिड़ाहट होना, निकट दृष्टि रोग हो जाता है, कभी-कभी आंखों का पक्षाघात भी हो जाता है, तो 3 × शक्ति में औषधि प्रयोग करनी चाहिए।
सैन्टोनियम : रोगी को रंगों का अंतर पता नहीं चलता। अचानक दृष्टि बोझिल हो जाती है. आंखों का तिरछापन (भेंगापन), प्राय: सभी वस्तुएं पीली-पीली दिखाई पड़ती हैं,पेट में कीड़े पाए जाते हैं, आंखों के नीचे काले गड्ढे होते हैं, तो यह दवा 3 × शक्ति में औषधि प्रयोग करनी चाहिए।
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