इस औषधि का प्रयोग अस्थि-गव्हर के रोग, प्रसवोत्तर जरायु शोथ, पतले, फीके रक्त का स्राव, अक्षि-पेशी की कमजोरी में किया जाता है।
सिर, आँख – रोगी को ऐसा लगता है जैसे आंखों के सामने कोई बारीक कपड़ा लगा हुआ है, युग्म दृष्टि असम्पूर्ण, अत्यधिक छींकें, साथ ही नाक से रक्तस्राव होना। स्नायुशूल पहले दाईं तरह फिर बाईं तरफ होता है।
त्वचा – नींद आते ही बहुत पसीना आने लगता है। छोटी-छोटी लाल फुंसियां, दाने निकलते हैं, आमवादी वेदनाओं के बढ़ने के साथ ही पसीने की मात्रा भी बढ़ने लगती है। ज्यादा खुजली और खुजाने के बाद तेज जलन होती है।
स्त्री – बाह्य जननांगों की क्षतवत व्यथा और लालिमा, चलते समय चिपचिप प्रदरस्राव होता रहता है। जरायु के चारों ओर तेज दुखन की अनुभूति, गर्म पानी, परन्तु उससे भी आराम नहीं होता। अस्थि-गव्हर का प्रदाह इत्यादि।
सम्बन्ध – बेला, लिलियम।
मात्रा – मूलार्क से 6 शक्ति।
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