बोन टीबी का होम्योपैथिक इलाज || Homeopathic Medicine For Bone TB In Hindi

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बोन टीबी का होम्योपैथिक इलाज

टीबी एक संक्रामक रोग है। यह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस जीवाणु के कारण होता है। दुनिया भर में होने वाले मौतों के कारणों में टीबी भी प्रमुख है। टीबी मुख्य रूप से श्वसन तंत्र, फेफड़ों और पाचन तंत्र को प्रभावित करता है।

लेकिन कुछ मामलों में यह शरीर के अन्य अंगों में हो सकता है। यह नाखूनों और बालों के अलावा खून के माध्यम से शरीर के सभी अंगों तक फैल सकता है।

टीबी हड्डियों में भी हो सकता है, तब इसे बोन टीबी या हड्डियों का टीबी कहा जाता है। बोन टीबी को मस्कुलोस्केलेटल टीबी भी कहा जाता है।

Bone TB Ka Homeopathic Dawa

Drosera 30 – बोन की टी० बी० में बहुत दवाएं हैं, परन्तु सबसे ऊँचा स्थान Drosera का है। टी० बी० में अगर गले के ग्लैंड्स को पकना होगा, तो इस दवा को देने से घाव बहुत छोटे छेद का होगा, पुराने पकते ग्लैंड्स छोटे होते चले जायेंगे और ठीक हो जायेंगे। इस दवा के देने से रोगी का स्वास्थ्य सुधर जाता है, खाया-पिया जिस्म को लगने लगता है, चेहरा निखर जाता है।

जिन लोगों के वंश में टी० बी० रहा होता है, उनके जोड़ों के दर्द या अन्य रोगों में भी यह अत्यन्त उपयोगी है, भले ही उन्हें टी० बी० की शिकायत न हो। उनके दर्द चले जाते हैं, स्वास्थ्य सुधर जाता है।

यह बहुत गूढ़ क्रिया करने वाली दवा है, इसे ३० शक्ति में देना चाहिये और बार- बार दोहराना नहीं चाहिए । इसकी 30 शक्ति की एक मात्रा ही हूपिंग कफ़ को दूर कर देती है।

Silicea 200 – गले के टी० बी० की सख़्त ग्रन्थियों के लिये उपयोगी है। इस औषधि के रोगी को पाँवों में बदबूदार पसीना आता है, सोते समय सिर पर पसीना आता है, रोगी डरपोक, आत्म-विश्वास की कमी होता है

नमीदार ठंड नहीं चाहता, ख़ुश्क ठंड पसन्द करता है, परन्तु ‘शीत- प्रकृति’ (Chilly) का होता है । इस प्रकृति के साथ यदि उसे हड्डी का टी० बी० हो, ग्लैंड्स का टी० बी० हो, Fistula हो, तो यह उसे ठीक करता है ।

Symphytum 200 – यह दवा Bone Fracture के लिये अमूल्य दवा है । जो ज़ख्म हड्डियों तक फ़ैल जाते हैं – बोन के टी० बी० में ऐसा होता ही है- उन्हें यह दवा ठीक कर देती है। हड्डी टूटने के बाद उसे जोड़ने में यह सहायक है ।

अगर हाथ या टांग की हड्डी काट देनी पड़े और हड्डी में तकलीफ़ बनी रहे, तो इस से लाभ होता है। टूटी हुई हड्डी की चुभन, उसका दर्द रोगी को कष्ट दिया करता है ।

Calcarea Carb 200 – इसका सब ग्रन्थियों पर प्रभाव है— गले की ग्रन्थियाँ, पेट की, हर किसी भी अंग की। अगर रोगी की इस दवा की प्रकृति हो, तो यह दवा ग्रन्थियों या हड्डियों की टी० बी० में बहुमूल्य है । दवा की प्रकृति क्या है ?

इस दवा की प्रकृतिवाला बच्चा या युवा दीखने को तो भारी-भरकम, परन्तु आलसी होता है, सिर बड़ा होता है, सिर के पसीने से तकिया भींग जाता है ( साइलीशिया)

Video On Bone TB

पसीना खास कर रात को आता है, रोगी मोटा, थुलथुला होता है, सर्दी बर्दाश्त नहीं कर सकता, जिस्म से खट्टी बू आती है। ऐसे रोगी के पेट के टी० बी० में, ग्रन्थियों तथा हड्डियों के टी० बी० में यह अमोघ दवा है ।

Phosphorus 30 – दियासलाई में फ़ॉसफ़ोरस काम आता है । दियासलाई के कारखानों में काम करने वालों को टी० बी०, खासकर हड्डियों का टी० बी० हो जाया करता है । होयोपैथी की दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति में जो दवा जो रोग उत्पन्न करती है

रोगी में उस लक्षण के होने पर वही दवा उस रोग को दूर करती है, इसलिये हड्डियों तथा ग्रन्थियों की टी० बी० में यह उत्तम दवा है । दवा का चुनाव करते हुए दवा की प्रकृति को नहीं भुलाना चाहिये।

फ़ॉसफ़ोरस की प्रकृति का व्यक्ति पतला- दुबला होता है, लम्बा, जल्दी-जल्दी बढ़ता है, नाजुक, रक्तहीन – Anemic – जरा-सी रगड़ से खून बहने लगता है, ठंडे पानी का प्यासा, नमक के लिये उतावला, बर्फ़ चाहने वाला

अकेला रहते भयभीत हो जाता है, नर्वस, अन्धेरे से डरता है, उदासीन, दूसरों से मिलने-जुलने की इच्छा नहीं होती। इस प्रकृति के साथ टी० बी० के बताया गया लक्षण हों, तो यह दवा टी० बी० में बहुत लाभ करती है ।

Iodium 30 – यह दवा भी ग्रन्थियों के कड़ा पड़ जाने में, उनके सूज जाने में, बड़ा हो जाने में काम आती है। इसकी विशेषता यह है कि इसकी सूजन में दर्द नहीं होता – Painless रोगिणी की सब ग्रन्थियाँ बढ़ जाती हैं

स्तन सूक जाते हैं। रोगी की प्रकृति पर भी ध्यान देना आवश्यक है। रोगी परेशान – Anxious — होता है, बेचैन, जितना शान्तभाव से बैठे रहने का प्रयत्न करता है, उतने ही बेचैनी बढ़ती जाती है

कुछ-न-कुछ करते रहना पड़ता है, वह इसलिये व्यस्त रहता है कि अगर – कुछ न करेगा तो परेशानी बढ़ेगी। भूख खूब लगती है, खाता भी खूब है, परन्तु दुबला होता जाता है । ‘ऊष्ण-प्रकृति’ (Hot) का है ठण्ड पसन्द करता है।

Barya carb 30 – जो बच्चे बौने से होते हैं, शारीरिक विकास ठीक नहीं होता, देर से विकास हो पाता है, मानसिक विकास में भी अपनी आयु की दृष्टि से पिछड़े होते हैं, हर काम में पीछे रहने वाले, शर्मीले, ठंड से जिनका रोग बढ़ जाता है

पाँवों में बदबूदार पसीना ( साइलीशिया ) आता है, हड्डियों में छेद होने सी पीड़ा होती है, टांगों या हाथों की लम्बी हड्डियों में दर्द हुआ करता है, ग्रन्थियाँ सूज जाती हैं, कभी-कभी उनमें फोड़ा बन जाता है, पस पड़ जाती है, हड्डियों के क्षय-रोग के लिये यह उत्तम है।

Sulphur 200 – ग्रन्थियों की सूजन तथा हड्डियों के क्षय में, ख़ास कर बचपन में इस रोग से आक्रान्त होने पर यह दवा अद्वितीय है । बच्चा सूक कर कांटा हो गया होता है, बूढ़ों की-सी शक्ल हो जाती है, ऐसा लगता है कि ये little old man—हैं

भूख बेहद, जब कुछ खाने को सामने किया जाता है तब ललचा कर उसे पकड़ने को ऐसे लपकता है मानो भूख से व्याकुल है – ऐसे सूके, झुर्रियोंवाले बूढ़े से बालक के लिये यह हितकर है

Tuberculinum 1M – यह गूढ़ – क्रिया करनेवालो दवा है । जिन रोगियों के वंश में कहीं टी० बी० हुआ हो और उनमें ग्लैंड्स के टी० बी० के लक्षण हो जायें, जो रोगी एक जगह टिक कर न रह सके, हर समय यहाँ-वहाँ जाना चाहे

यात्रा ही करता रहे, थका-मांदा, शक्तिहीन, दुबला होता जाए, शरीर पर मांस न चढ़े, भूख – भूख चिल्लाये (आयोडियम), बन्द कमरे में परेशान हो जाए

खुली, ठंडी हवा पसन्द करे, नम मौसम को भी न चाहे, मीठी चीज़ों की लालसा – ऐसी प्रकृति के ग्लैंड्स के टी० बी० में इस से लाभ होता है ।

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